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फिर गहराई बाढ़ की विभीषिका

भारत में बाढ़ की यह स्थिति हर वर्ष बनती है जिसके कारण देश के विभिन्न राज्यों को समय-समय पर भयंकर स्थिति से गुजरना पड़ता है किंतु अदूरदर्शिता के चलते समय से ठोस कार्यवाही कर सुरक्षा व्यवस्था न किए जाने के कारण बाढ़ की विभीषिका अत्यंत भयंकर हो जाती है, जिसका सामना करना पड़ता है। — डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

 

वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही देश के उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ ही गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना एवं छत्तीसगढ़ में हुई अत्यधिक वर्षा ने बाढ़ की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। देश के 20 से अधिक राज्यों में लगातार बरसात हो रही है। गुजरात में भारी वर्षा से अब तक 63 लोग काल के गाल में समा चुके हैं। वही महाराष्ट्र में अब तक 76 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। असम भी भयंकर स्थिति से गुजर चुका है और निरंतर बाढ़ की स्थिति बनी हुई है, जिसने सैकड़ों लोगों की जिंदगी छीन ली है। गुजरात के 8 जिलों में रेड अलर्ट जारी किया गया है। गुजरात के डांग, तापी, नवसारी, वलसाड, पंचमहल, छोटा उदयपुर और खेड़ा अत्यधिक प्रभावित जिले है, जहां से 10700 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है किंतु भारी बारिश से बाढ़ की स्थिति निरंतर भयंकर बनी हुई है। छोटा उदयपुर जिले में लगातार वर्षा से पुल का एक हिस्सा गिर गया है जबकि गुजरात के तापी जिले के पांचाल और कुंभिया को जोड़ने वाला पुल भी बाढ़ की भेंट चढ़ चुका है जिससे आवागमन बाधित हो गया है। राज्य के 388 मार्ग तथा पांच अंडरपास बाढ़ की भयंकर स्थिति को देखते हुए बंद कर दिए गए हैं। भारी बारिश के चलते बड़ोदरा के प्रतापनगर और छोटा उदयपुर जिले के बीच ट्रेन सेवा बाधित हो गई है। क्षेत्र में भारी बारिश के बाद प्रताप नगर, छोटा उदयपुर खंड पर बोडेली और पावी जेतपुर के बीच का ट्रैक बह गया है, जिसके चलते अनेक ट्रेनों का संचालन बंद कर दिया गया है। बाढ़ की दुर्दशा में महाराष्ट्र भी पीछे नहीं हैं। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली, नासिक समेत कई जिलों में भारी बारिश से जनजीवन बुरी तरह प्रभावित है। वर्षा से प्रभावित होकर महाराष्ट्र में अब तक 76 लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा प्रशासन द्वारा 4916 लोगों को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाकर उनके जान माल की रक्षा की गई है। 

इस साल असम ने बाढ़ की जिस विभीषिका का सामना किया है, वैसी स्थिति पूर्व के वर्षों में कभी देखने को नहीं मिली। ब्रह्मपुत्र घाटी में पड़ने वाला बरपेटा जिला लगभग पूरी तरह पानी में डूब गया था। राहत शिविर तक कहीं बनाने की जगह नहीं थी। राज्य का महत्वपूर्ण शहर सिलचर पूरी तरह बाढ़ के आगोश में था, 2 सप्ताह तक सिलचर की स्थिति अत्यंत भयंकर बनी रही, पीने का पानी तक ड्रोन और हेलीकॉप्टर के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया गया। अब तक असम में लगभग 24 लाख लोग बाढ़ प्रभावित हुए हैं, जिनमें से 7 लाख लोग अकेले बरपेटा से हैं। 

वस्तुतः असम की इस बाढ़ विभीषिका का मुख्य कारण अप्रैल और मई महीने में हो रही वर्षा को दृष्टि में रखकर आवश्यक कदम न उठाए जाना रहा है, जिसके कारण समस्त बांध अपनी क्षमता तक भर गए थे। ऐसी स्थिति में प्रशासन का दायित्व था कि वह नागालैंड, मेघालय, भूटान आदि से बात करके बांधों का पानी धीरे-धीरे छोड़ता, किन्तु ऐसा नहीं किया गया और जब जून में अत्यधिक बारिश हुई तो बांधों के पास पानी छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। 

भारत में बाढ़ की यह स्थिति हर वर्ष बनती है, जिसके कारण देश के विभिन्न राज्यों को समय-समय पर भयंकर स्थिति से गुजरना पड़ता है। किंतु अदूरदर्शिता के चलते समय से ठोस कार्यवाही कर सुरक्षा व्यवस्था न किए जाने के कारण बाढ़ की विभीषिका अत्यंत भयंकर हो जाती है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ की विभीषिका तो उनकी भौगोलिक स्थिति और वहां होने वाली अत्यधिक वर्षा का परिणाम है किंतु अन्य राज्यों में वर्षा ऋतु के आगमन के पूर्व सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद कर उससे होने वाली क्षति को न्यूनतम किया जा सकता है। 

आखिर ऐसी कौन सी स्थितियां बनी, जिससे सदियों से निरंतर प्रवाहमान जल  अपने मार्ग पर आगे न बढ़कर शहरों में सैलाब के रूप में उपस्थित हुआ और शहरों में कहर बनकर बरपा। प्रश्न एक ही है कि शहरों में वहां की व्यवस्था को अस्तव्यस्त कर जनजीवन के समक्ष प्रश्नचिन्ह बनकर शहरों में सैलाब बनकर क्यों उपस्थित हुआ तथा तथा भयंकर बाढ़ क्यों आई?

शहरों में सैलाब का आना कोई अकस्मात घटित घटना नहीं है, अपितु मनुष्य एवं प्रकृति के बीच निरंतर चल रहे संघर्ष का परिणाम है। जब तक मानव और प्रकृति में सहअस्तित्व के संस्कार एवं भावना विद्यमान थी तब तक वह दोनों एक दूसरे के पूरक बनकर कार्य करते रहें। प्रकृति, जीवन और संसार का पोषण निरंतर करती रही किंतु विकासोन्मुखी व्यवस्था को दृष्टि में रखकर निरंतर प्रयासरत मानव प्रकृति के अस्तित्व को अस्वीकार कर निरंतर उसके साथ छेड़छाड़ करते हुए मनमाना आचरण करने लगा, जिससे प्रकृति का कुपित हो जाना और जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के आने और जाने का समय भी परिवर्तित हो जाने से उसका आकलन कर पाना असंभव सा हो गया है। 

पूर्व में प्रायः बस्तियों का निर्माण नदियों के एक किनारे ही किया जाता था नदियों का दूसरा छोर उनके प्रवाह एवं फैलाव के लिए छोड़ दिया जाता था, परिणामस्वरूप नदियों के बहने के लिए पर्याप्त स्थान था तथा उनकी धारा बिना किसी बाधा के अपने तटवर्ती एवं समीपवर्ती स्थानों में वर्षा जल के रूप में अकस्मात प्राप्त जल की अगाध राशि को अन्य नदी नालों के माध्यम से प्राप्त कर  अपनी धारा में समाहित कर उसे गंतव्य तक पहुंचाती थी। किंतु आज शहरीकरण की दौड़ में शहरों का अनियंत्रित विकास हुआ। गांव से शहरों की ओर आ रही आबादी बिना कुछ सोचे विचारे जहां जगह मिली वही आवास बनाकर बस गई तथा शहरों एवं मानव बस्तियों के एक किनारे से बहने वाली नदियां आज शहरों के मध्य में आ गई हैं जिससे जल की मात्रा बढ़ जाने पर उनका जल नदी की सीमा तोड़कर शहरों एवं मानव बस्तियों में सहज रूप में प्रवेश कर जाता है और वहां सैलाब की स्थिति उत्पन्न कर देता है। इस समस्या के मूल में शहरों की सैकड़ों वर्ष पुरानी सीवर और जल निकासी व्यवस्था है, जो शहरों के वर्तमान आबादी एवं क्षेत्र के सामान्य भार को ढोने में सक्षम न होने के कारण अकस्मात जल में वृद्धि हो जाने पर जल वृद्धि एवं जलभराव की समस्या उत्पन्न होती है। शहरों में आने वाली बाढ़ की समस्या के समाधान के लिए विद्यमान नालों की साफ-सफाई कर उसकी गाद निकालने के साथ ही साथ उनका आकार बढ़ाने के काम को भी प्राथमिकता के साथ करना होगा इसके साथ ही शहरों के ड्रेनेज सिस्टम में विद्यमान कमियों को दूर करना भी प्रथम लक्ष्य होना चाहिए क्योंकि ड्रेनेज सिस्टम में विद्यमान अव्यवस्था और उसकी कमियों के कारण ही शहरों की जल निकासी की व्यवस्था पंगु हो जाने के कारण बाढ़ की स्थिति बन जाती है।

प्राचीन काल में वर्षा जल के संग्रहण के लिए जल स्रोतों का निर्माण कराया जाता था। गांव एवं शहर सभी में जल संचयन की उत्तम व्यवस्था हुआ करती थी। आबादी के साथ-साथ कुआ तालाब बावड़ियों का जाल बिछा हुआ था। राज परिवार तथा धनी मानी व्यक्ति जीव जगत के कल्याण हेतु जल संग्रहण की इच्छा से कुआ तालाब तथा बावड़ियों का निर्माण कराया करते थे जिससे जहां एक और इनके प्रभाव से भूगर्भ का जल स्तर काफी ऊंचा हो जाता था वहीं दूसरी ओर जीव जगत के लिए उसकी आवश्यकता अनुसार पर्याप्त मात्रा में पानी भी सहज रूप में उपलब्ध हो जाता था। अब विकास की दिशा में इन प्राकृतिक एवं मानव निर्मित जल संसाधनों का आज कोई महत्व नहीं रह गया, परिणामस्वरूप अपने आगोश में जल की अगाध राशि को समेट लेने वाले यह जल संसाधन मृत प्राय हो गए हैं। कोई इनकी सुध लेने वाला नहीं है। यह जल स्रोत वर्षा ऋतु में प्राप्त जल का संग्रहण कर भूगर्भ के जल के स्तर को बढ़ाते हुए वर्ष पर्यंत न केवल जीव जगत को उनकी आवश्यकतानुसार जल उपलब्ध कराते थे अपितु भूगर्भ के जल स्तर को भी बढ़ाकर जल की उपलब्धता सुनिश्चित करते थे किंतु अब इन जल स्रोतों की ओर ध्यान न दिए जाने से यह समाप्ति के कगार पर पहुंच गए हैं। 

भारत में बाढ़ की यह स्थिति हर वर्ष बनती है जिसके कारण देश के विभिन्न राज्यों को समय-समय पर भयंकर स्थिति से गुजरना पड़ता है किंतु अदूरदर्शिता के चलते समय से ठोस कार्यवाही कर सुरक्षा व्यवस्था न किए जाने के कारण बाढ़ की विभीषिका अत्यंत भयंकर हो जाती है, जिसका सामना करना पड़ता है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ की विभीषिका तो उनकी भौगोलिक स्थिति और वहां होने वाली अत्यधिक वर्षा का परिणाम है किंतु पूर्वोत्तर राज्यों सहित देश के अन्य राज्यों में वर्षा ऋतु के आगमन के पूर्व सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद कर उससे होने वाली क्षति को न्यूनतम किया जा सकता है।            

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