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मणिपुर में हिंसा, तबाही की तह में ड्रग्स माफिया और घुसपैठिए

मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के पीछे हथियार, घुसपैठ और ड्रग्स की तस्करी के तिकड़ी की अहम भूमिका है। अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे होने के कारण जांच एजेंसियों को और अधिक चौकन्ना होते हुए इस सिंडिकेट को काबू करना होगा। - अनिल तिवारी

 

पूर्वोत्तर के खूबसूरत पहाड़ी राज्यों में शुमार मणिपुर इन दिनों जल रहा है। पहाड़ और मैदान के बीच छिड़ी जातीय जंग में डेढ़ सौ से अधिक जिंदगियां हलाक हो चुकी है। केंद्र की सरकार ने मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके की अगुवाई में शांति कमेटी का गठन और फिर गृहमंत्री अमित शाह की अगुवाई में सर्वदलीय बैठक कर अमन चैन कायम करने की कोषिष की है। राज्य में शीघ्र शांति बहाली के लिए कमोबेष सभी राजनीतिक दल समस्या का हल राजनीतिक तरीके से ही निकलने की बात कह रहे हैं लेकिन अंदरखाने अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं। मोटेतौर पर हिंसा के लिए इतिहासवाद, राष्ट्रवाद, संप्रदायवाद, जातिवाद, उग्रवाद, मेइती समाज को एसटी के तहत आरक्षण, भू-कानून में परिवर्तन, संरक्षित वन में भूमि सर्वेक्षण और यहां तक की पूर्वोत्तर के बारूद पर हिंदुत्व की माचिस आदि का नारा बुलंद किया जा रहा है, पर असली कारण हथियार, घुसपैठ और मादक द्रव्यों की तस्करी पर एक तरह से ध्यान भटकाया जा रहा है। दरअसल मणिपुर में चल रहे फसाद के पीछे धड़ल्ले से हो रही अफीम की खेती, अवैध हथियार और घुसपैठिए प्रमुख कारण रहे हैं।

लगभग 140 करोड़ की आबादी वाले भारत देष में लाइसेंसी हथियारों की संख्या 36 लाख से कुछ अधिक की है, लेकिन कुल मिलाकर 28 लाख की आबादी वाले मणिपुर में 30 हजार लाइसेंसी हथियार हैं। यानी हर 93 आदमी में से एक के पास लाइसेंसी हथियार है। वही यहां के विभिन्न समूहों के पास भारी तादाद में नाजायज हथियारों का जखीरा उपलब्ध है। पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में लाइसेंसी हथियारों की संख्या देखें तो असम में 19,617, मेघालय में 20,000, मिजोरम में 16,000, सिक्किम में 2,500 और त्रिपुरा में करीब 400 लाइसेंसी हथियार हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देष में हर साल लगभग 80 हजार से एक लाख तक अवैध हथियारों की बरामदगी होती रहती है। अवैध हथियारों से ही देष में 98 प्रतिशत अपराध कारित होते हैं। प्रमाण मिले हैं कि मणिपुर में हालिया मारकाट अवैध हथियारों से ही हो रही है। खुफिया एजेंसियां पहले से जानती हैं कि मणिपुरके अधिकतर उग्रवादी समूहों के पास राज्य पुलिस से अच्छे हथियार हैं, पर कभी अवैध हथियारों के खिलाफ मुहिम नहीं चली। केंद्रीय गृहमंत्री ने अपने राज्य के हालिया दौरे के दौरान लोगों से हथियार जमा करने की अपील की तो कुल जमा 140 लोग हथियार सरेंडर करने के लिए आगे आए। इनमें एकके-47, इसाम्स राइफल, लाइट मषीन गन, पिस्तौल, एम-16 राइफल, आंसू गैस के गोले से लेकर ग्रेनेड तक शामिल थे। मालूम हो कि हिंसा भड़कने के बाद 20 पुलिस स्टेषनों को जलाने के साथ दो चरणों में पुलिस के हथियार लूट लिए गए। पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी के अनुसार 3 मई को 1600 तथा 27 और 28 मई को 2557 हथियार लूटे गए।

जहां तक मणिपुर में घुसपैठियों का सवाल है तो इसकी शुरुआत ब्रिटिष काल में ही हुई थी। अंग्रेजों ने स्वभाव से षिकारी, युद्ध कला में निपुण और हेड हंटर्स नागाओं तक अपनी पैठ बनाने के लिए सीमा पार से लड़ाकू कौम ’न्यू कुकी’ समुदाय के लोगों को यहां बसाना शुरू किया। अंग्रेज इनका इस्तेमाल नागा क्षेत्रों में छापा मारने और वसूली करने के लिए करते थे। धीरे-धीरे वे यहां की जमीन पर बसते गए, फैलते गए। इनका इतिहास काफी रक्तरंजित रहा है। दिसंबर 1892 की घटना मणिपुर के इतिहास में दर्ज है, जब न्यू कुकियों ने मणिपुर नागालैंड बॉर्डर पर स्थित नागा गांव चिंगजराई में भयानक नरसंहार किया था। मणिपुर में घुसपैठ की समस्या को इन आंकड़ों के जरिए समझा जा सकता है। 1969 के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में गांव की संख्या 64 प्रतिशत तक बढ़ी है। जैसे पहले कुकी नगा बहुल क्षेत्रों में 1370 गांव थे, जो  2021 में बढ़कर 2244 हो गए हैं। म्यांमार से सटे जिला चुराचांदपुर की बात करें तो यहां 1969 में 282 गांव थे जो 2022 में 544 हो गए हैं। मणिपुर से म्यांमार के बीच करीब 390 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा लगी हुई है। खुफिया जानकारी के मुताबिक ज्यादातर घुसपैठ म्यांमार बॉर्डर से हो रही है।

जांच एजेंसियों के मुताबिक भारी मात्रा में हथियारों के साथ घुसपैठ करके आए तमाम विद्रोही संगठनों की नजर राज्य में होने वाली अफीम की खेती पर है। वर्ष 2016 से ही मणिपुर में संरक्षित वन क्षेत्र की सफाई कर धड़ल्ले से अफीम की खेती हो रही है। इससे जनजातीय किसानों की आय तो बढी है, पर नषे के सौदागरों की भी चांदी हो गई है। नषे के कारोबार से हो रही कमाई के कारण आज उनके पास जमीनें हैं, देष विदेष के विद्रोही संगठनों और नषे के सौदागरों से मेलजोल है, अच्छा पैसा है, आधुनिक हथियार है, राजनीति में दखल और पावर सहित सब कुछ है। वर्ष 1992-93 में हुए नागा-कुकी संघर्ष के बाद कुकी लोगों ने अलग कुकीलैंड बनाने की मांग भी की थी। 

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ अफीम की तस्करी से हर महीने दो हजार करोड से ज्यादा की कमाई हो रही है, जो भारत के कई छोटे राज्यों के सालाना बजट से भी ज्यादा है। अफीम के मामले में मणिपुर पड़ोसी देष म्यांमार के रास्ते पर है। पिछले कुछ वर्षों तक म्यामार दुनिया की 80 फीसद अफीम से बनी हीरोइन का उत्पादन करता था। उत्पादन के बाद हीरोइन की तस्करी लाओस, वियतनाम, थाईलैंड और भारत के रास्ते अमेरिका, ब्रिटेन और चीन में की जाती रही है। म्यांमार में सिविल वार के बाद हालात बदल गए हैं। इसलिए नषे के कारोबारियों की नजर मणिपुर की विषाल जनजातीय भूमि पर है। इस काम में विभिन्न राजनीतिक दलों का शह पाकर विद्रोही संगठन भी अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। हालांकि मामले की गंभीरता को भांपते हुए सरकार अफीम की खेती पर अंकुष लगाने के लिए ठोस कदम उठा रही है। इसके सकारात्मक परिणाम भी दिख रहे हैं। सरकारी आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2017-18 में जहां 13121 एकड़ भूखंड पर मणिपुर में अफीम की खेती हुआ करती थी, लेकिन वर्ष 2022 में सरकारी अभियान के बाद अफीम की खेती का रकबा घटकर 2340 एकड़ तक आ गया है। 

ऐसे में कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के पीछे हथियार, घुसपैठ और ड्रग्स की तस्करी के तिकड़ी की भी अहम भूमिका है। अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे होने के कारण जांच एजेंसियों को और अधिक चौकन्ना होते हुए इस सिंडिकेट को काबू करना होगा।

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