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‘हर भारतीय के लिए देश सर्वोपरि’

भारत में लोग क्रिकेट के दीवाने हैं, पर बात जब देश और देश की आन-बान-शान सशस्त्रा बलों की हो तो इसके प्रति हमारे लोगों की दीवानगी जुनून की तरह है। क्योंकि हर भारतीय के लिए देश से बढ़कर कुछ भी नहीं है, यहां तक कि क्रिकेट भी नहीं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने चीनी मोबाइल कंपनी वीवो के साथ इस साल के इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के लिए मुख्य प्रायोजक के तौर पर आगे बढ़ने का फैसला किया था। बीसीसीआई ने यह फैसला ऐसे समय में किया जबकि भारत का चीन के साथ तीखा विवाद जारी है। बीते पंद्रह-सोलह जून को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झडपों में हमारे बीस सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गये थे। लद्दाख और पैंगोंग में सैन्य गतिरोध अब भी जारी है। ऐसे माहौल में बीसीसीआई का यह गैर जिम्मेदाराना फैसला देश के क्रिकेट प्रेमियों को झकझोर कर रखने वाला था। स्वदेशी जागरण मंच ने बीसीसीआई के इस फैसले पर हमला किया तथा सभी भारतवासियों से अगले महीने यूएई में आयोजित होने वाले आईपीएल मैचों का बहिष्कार करने का आह्वान किया। स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय सहसंयोजक डॉ. अश्वनी महाजन ने दो टूक शब्दों में घोषणा की, कि ‘‘जब पूरी दुनिया चीन का बहिष्कार कर रही है तो आईपीएल उन्हें आश्रय दे रहा है, गले लगाने को आतुर है, आखिर क्यों?’’ 

मालूम हो कि बीते चार अगस्त को वीवो को आईपीएल से बाहर कर दिया गया। डॉ. अश्वनी महाजन से इस पूरे मसले पर रेडिफ डॉट कॉम की शोभा वॉरियार ने लंबी बातचीत की। डॉ. महाजन ने बातचीत में बताया कि ‘‘भारतीय यह नहीं कह रहे हैं कि वे आईपीएल नहीं देखना चाहते, वे सिर्फ वो आईपीएल नहीं देखना चाहते जिसका प्रायोजक चीनी मोबाईल कंपनी वीवो हो’’। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश —

वीवो खुद ही आईपीएल से बाहर हो गया न कि बीसीसीआई ने उन्हें आईपीएल छोड़ने के लिए बाध्य किया?

बंद कमरे की चारदीवारी के भीतर बैठकर क्या बात हुई, यह किसी को नहीं पता है। अब जबकि वीवो को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है ऐसे में वीवो चाहे खुद बाहर निकल गया हो या बीसीसीआई ने उन्हें बाहर निकलने को कहा हो, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि भारतीय जनता के लोकप्रिय दबाव के कारण वीवो को आईपीएल से हटना पड़ा है।

वीवो को आईपीएल से बाहर करने के इस अभियान को शुरू करने वाले व्यक्ति के रूप में क्या आप संतुष्ट हैं?

यहां बात सिर्फ संतुष्टि की नहीं है। तथ्य यह है कि बीसीसीआई इस मामले में देश की जनता की राय के खिलाफ गया था। बीसीसीआई ने देश की जनभावना के विरूद्ध कदम उठाया था। दो दिन पहले जब मैंने पहली बार इस बारे में टवीट किया तो उन्होंने (बीसीसीआई) यह स्पष्ट कहा था कि वीवो उनके साथ रहने वाला है, फिर एक दिन बाद अचानक उन्होंने कहा कि वीवो से प्रायोजक का अधिकार वापिस ले लिया गया। हमें यह समझने की जरूरत है कि आखिर उन चौबीस से छत्तीस घंटों के कम समय में आखिर ऐसा क्या हुआ कि उन्हें अपना फैसला वापिस लेना पड़ा। इसका सीधा जवाब है कि बीसीसीआई को देश के लोगों से चौतरफा ऐसी प्रतिक्रिया मिली कि बीसीसीआई को अपने पांव खींचने पड़े। इस अवधि में हर एफएम चैनल, हर टीवी चैनल पर चर्चा चल रही थी कि आईपीएल को कौन प्रायोजित करेगा? अखबारों में भी इस पर बहस-विमर्श शुरू हो गई थी। हालांकि ऐसे मुद्दों पर चर्चा करने वाली जनता कम ही होती है। इसका सीधा अर्थ यह है कि स्वदेशी जागरण मंच द्वारा की गई अपील जनता द्वारा बहुत अच्छी तरह से स्वीकार की गई।

बीसीसीआई ने कहा है कि सार्वजनिक भावना के मद्देनजर वीवो ने इस तरह का फैसला लिया है?

देखिए वे इस मामले में वीवो को हीरो बनाने की कोशिश कर रहे है जबकि ऐसा है नहीं। वे (बीसीसीआई के लोग) बीसीसीआई को एक व्यवसाय की तरह चला रहे है, उन्होंने महसूस किया कि अगर वे वीवो के साथ आगे बढ़ गये तो उन्हें आईपीएल से कोई राजस्व नहीं मिलेगा और यहां तक कि देश के अन्य विज्ञापन राजस्व भी उनके हाथ से निकल जायेंगे। यदि भारत के लोग आईपीएल देखने नहीं जाते हैं तो जाहिर है कि अन्य देशों के लोगों की रूचि भी आईपीएल देखने में कम ही होगी। मेरा यह स्पष्ट कहना है कि भारतीय यह नहीं कह रहे है कि वे आईपीएल नहीं देखना चाहते बल्कि भारतीय सिर्फ उस आईपीएल को नहीं देखना चाहते जिसका प्रायोजक चीनी कंपनी वीवो हो। आज भी क्रिकेटरों की टी-शर्ट पर छपी वीवो की छवियां उन्हें सता रही हैं।

आपने अभी कहा था, जब पूरी दुनिया चीन का बहिष्कार कर रही है, आईपीएल उन्हें गले लगाने को आतुर है - क्या यह काफी कड़ा और कठोर शब्दों वाली प्रतिक्रिया नहीं है?

हां है, पर मेरे पास उनके फैसले को व्यक्त करने के लिए कोई और शब्द नहीं था। ऐसा नहीं था कि यह अचानक में लिया गया निर्णय था। उन्होंने इस पर व्यापक चर्चा की थी। बीसीसीआई के बयान में कहा गया है कि उन्होंने पूरे मामले पर विस्तार से चर्चा की थी और प्रायोजक के रूप में वीवो के साथ चलने का फैसला किया था। उन्होंने तर्क दिया था कि उन्होंने चीनी प्रायोजक से पैसे ले लिए थे ऐसे में अगर इसे खत्म कर दिया गया तो यह बहुत बडा नुकसान होगा। ऐसे में उनसे मेरा सवाल यह था कि देश के आम नागरिक जो चीन के बहिष्कार का बीड़ा उठाए हुए है उनके नुकसान के बारे में उन्होंने कभी सोचा। देश का आम नागरिक चीन के रवैये को लेकर गुस्से में है। लोग चीन का मोबाईल और टीवी फेंक रहे हैं तथा उसकी जगह गैर चीनी टीवी और मोबाईल खरीदने के लिए अधिक भुगतान कर रहे हैं। क्या देश के नागरिक नुकसान नहीं उठा रहे हैं। जिन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से चीनी कंपनियों को बाहर किया गया उसके लिए हर भारतीय अधिक भुगतान करने के लिए तैयार था तो क्या हम नुकसान नहीं उठा रहे थे। जब देश में हर कोई बलिदान कर रहा था तो बीसीसीआई के बारे में क्या बड़ी बात थी। बीसीसीआई किस लालच में फंसी थी।

पहले से ही मालदार संस्था बीसीसीआई ने जब आईपीएल के लिए वीवो के साथ आगे बढने का फैसला किया था तो आपको आश्चर्य हुआ, क्या आप चौंक गये थे?

निश्चित रूप से। हमारे लिए यह खबर चौंकाने वाली ही थी। आप पूछ रही हैं कि क्यों चौंकाने वाली थी तो जब पूरा देश चीन और चीनी उत्पादों के खिलाफ लडाई के लिए हथियार उठा रहा था तो बीसीसीआई के लोग वीवो के साथ जा रहे थे। पूंजी के नाम पर चीन ने हमारी अर्थव्यवस्था का काफी नुकसान किया है, सीमा पर हमारे सैनिकों के साथ गलत व्यवहार किया है, कोविड-19 जैसी महामारी और इसके प्रसार पर गैर-जिम्मेदाराना काम किया है। जिस तरह से चीन दुनिया को कर्ज जाल के कुचक्र में फंसा रहा है, पड़ोसी देशों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है, वैश्विक शांति को छिन्न-भिन्न करने पर तुला हुआ है, ऐसे में भारतीयों के पास एक मजबूत वजह है कि हमें चीनी सामानों का हर हाल में बहिष्कार करना है। चीनी निवेश से दूर रहना है तथा चीनी कंपनियों को बुनियादी ढ़ांचा परियोजनाओं से हर हाल में दूर रखना है। 

जैसा कि विपक्ष ने आरोप लगाया? क्या आपको लगता है कि बीसीसीआई के फैसले से सरकार और भाजपा का दोहरा चेहरा उजागर हुआ है? क्योंकि बीसीसीआई सचिव जय शाह, गृहमंत्री अमित शाह के बेटे है और बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष अरूण धूमल वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर के भाई है?

मुझे ऐसा नहीं लगता क्योंकि पिछले तीन वर्षो में सरकार के स्तर पर विशेष रूप से इलेक्ट्रानिक आइटम और मोबाईल आदि चीन से आने वाले माल को नियंत्रित करने के लिए लगातार सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रही है। स्वदेशी जागरण मंच पिछले तीन महीनों से चीन के खिलाफ अभियान चला रहा है। केंद्र की सरकार भी चीन के खिलाफ खुलकर कह रही है। दुनिया के हर देश से सरकार ने एफडीआई का स्वागत किया है लेकिन चीन से आने वाली एफडीआई पर सरकार ने एक तरह से रोक लगा दी है। हम सीमा पर हर चीनी सामानों को रोक रहे थे तथा वहां से आने वाले सामानों की जांच कर रहे थे। पूरा देश चीन के खिलाफ एकजुट था, ऐसे में बीसीसीआई के फैसले से स्वदेशी जागरण मंच हैरान था। स्वदेशी जागरण मंच ने बीसीसीआई के फैसले का विरोध करने का निर्णय किया, क्योंकि हमारा बीसीसीआई में कोई प्रतिनिधि नहीं था। जहां तक विपक्ष के आरोप की बात है तो इसका कोई मतलब नहीं था क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता बीसीसीआई से जु़ड़े हुए हैं। मैं इस पार्टी या उस पार्टी की बात नहीं कर रहा हूं। सच्चाई यह है कि बीसीसीआई का चरित्र एक व्यवसायी संस्था का है। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि बीसीसीआई से जुड़े लोग बीसीसीआई को एक व्यवसायिक घराने के तौर पर चला रहे हैं और नंगा सच यह भी है कि राजनीतिक दलों के लोग इस व्यवसायिक घराने से जुड़े हुए हैं।

बीसीसीआई का एक तर्क यह भी था कि आईपीएल के लिए वीवो के साथ दो हजार एक सौ निन्यानवे (2199) करोड़ रूपये की पांच साल के लिए डील हुई थी।

भारत में कई व्यवसायी है जिन्होंने चीन में निवेश किया था। उन्होंने भी यह तर्क दिया कि उनके पास चीन के साथ व्यापारिक सौदे थे जो इस तथ्य के बावजूद नहीं टूटे कि भारत के लोग पिछले तीन-चार वर्षों से चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर रहे थे। हमने भी बीसीसीआई का यह घटिया तर्क सुना है। इसलिए मैनें कहा कि बीसीसीआई का चरित्र एक व्यवसायी का चरित्र है। स्वदेशी जागरण मंच राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत एक स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ राष्ट्रीय कार्य में लगा है। हमने महसूस किया कि बीसीसीआई के व्यापारिक सौदे राष्ट्र की मनोदशा के खिलाफ थे, यह राष्ट्र की सुरक्षा चिंताओं के विपरीत था, इसलिए हमने बीसीसीआई से इस सौदे को रद्द करने के लिए कहा।

क्या आप सरकार से निराश थे?

सरकार से निराश होने का कोई सवाल ही नहीं था। अलबत्ता हम पिछली यूपीए सरकार से बहुत निराश थे जिसमें चीनी आयात तीन हजार प्रतिशत बढ़ा। इसलिए मैं कहता हूं कि चीन विरोधी बात करने के लिए कांग्रेस के पास न हक है, न कोई चेहरा है। मैं पिछले तीन वर्षों में तथा विशेष रूप से चीन के खिलाफ पिछले तीन महीनों में इस सरकार द्वारा किए गए उपायों से खुश हूं। यहां तक कि स्वदेशी जागरण मंच पिछले तीन वर्षों से जो कहता आ रहा है वे ठीक उसके अनुरूप है।

जब आपने भारत के लोगों से आईपीएल का बहिष्कार करने के लिए कहा तो क्या आपको भारत जैसे क्रिकेट के दीवाने देश से आईपीएल का बहिष्कार किये जाने की उम्मीद थी?

मुझे पता है कि लोग राष्ट्र की सुरक्षा चिंताओं के बारे में बहुत संवेदनशील हैं। जब हमने 2017 में चीनी अभियान का बहिष्कार शुरू किया तो कुछ लोगों ने तो हमारी बात सुनी, पर कई लोगों ने कहा कि वे ऐसा नहीं करेंगे। समय के साथ बदलाव आया है। आज मैं एक व्यक्ति को भी यह कहते हुए नहीं सुनता या देखता हूं कि वह एक चीनी उत्पाद खरीदेगा। हां हमारे लोग क्रिकेट के दीवाने है पर वे अपने देश और अपने सशस्त्र बलों के बारे में अधिक पागल है। भारत के लोगों के लिए राष्ट्र से बढ़कर कुछ भी नहीं है यहा तक कि क्रिकेट भी नहीं।

वीवो ने अगले साल वापसी का दावा किया है। इसका मतलब कि जनभावना का ज्वार खत्म होने तक उसने हाथ खींचा है?

आपके कहने का मतलब है कि जब तक जन ज्वार है उन्होंने हाथ खींचा है और फिर वे धडल्ले से वापिस आ जायेंगे। यानि कि वे जनता की भावना के मरने का इंतजार कर रहे हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि इस देश के लोग मूर्ख नहीं है। हमारे देश के लोग जानते है कि चीन ने सन 1962 में फिर 2020 में क्या किया है। हमें पता है कि चीन ने हमारी अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड करने के साथ-साथ दुनिया के लिए महामारी का बीज बोया है। बीसीसीआई और वीवो की ओर से ऐसा कहना एक बचकानी हरकत है कि वे अगले साल वापिस आ जायेंगे। हम तो यहां तक दावा करते है कि लोग इनमें से किसी को भूलने वाले नहीं है।

भारत के लोगों की याददाश्त कमजोर है?

जब लोगों को पता चलता है कि बीसीसीआई और वीवो हमारी कमजोर याददाश्त के साथ खेल रहे है तो वे निश्चित रूप से इसे याद रखेंगे, शिद्दत के साथ याद रखेंगे। भारतीय इसे कभी भूलने वाले नहीं है इसलिए मेरा कहना है कि ‘अभी नहीं, कभी नहीं, इस साल भी नहीं, और आगे भी फिर किसी साल नहीं।                

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