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धोलावीराः इतिहास के पार

इतिहास के आईने में धोलावीरा सभ्यता, जलवायु आपदा और इसके प्रबंधन की आवश्यकता के बारे में एक उत्कृष्ट अध्ययन नमूना है।  — डॉ. जया कक्कड़

 

27 जुलाई 2021 को यूनेस्को ने धोलावीरा को विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया है। हड़प्पा के एक महत्वपूर्ण शहर धोलावीरा में हालांकि महलों में मकबरी मंदिरों की कोई अब श्रृंखला नहीं है फिर भी आम जनजीवन की एक खूबसूरत झलक यहां जरूर दिख जाती है। धोलावीरा के रिहायशी इलाके में घर आंगन चूल्हे और यहां तक कि नहाने के लिए स्नान घर भी बड़े सलीके से बनाए गए थे। सड़कों पर पानी बहने ना पाए इसलिए नालों के साथ अपशिष्ट जल को एकत्र करने के लिए बड़े-बड़े हौदे बने हुए थे। सीवेज के पानी को बाढ़ ़या समुद्री तूफान के पानी के साथ मिलाने की अनुमति नहीं थी। विस्तृत और बेहतर शहरी नियोजन का हड़प्पा का यह शहर धोलावीरा एक चमकदार उदाहरण है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता के सभी चरणों को दर्शाता है लेकिन दुर्भाग्य है कि एक उम्दा और बेहतरीन शहर जलवायु परिवर्तन के कारण असमय काल के गाल में समा गया। आज से लगभग 4000 साल पहले जलवायु शुष्कता शुरू हुई जिसके कारण एक अति विकसित नगर धोलावीरा 3000 ईसा पूर्व से लेकर 1520 ई.पू. के बीच समाप्त प्राय हो गया।

अपने समय का अति विकसित शहर धोलावीरा एक समृद्ध विनिर्माण केंद्र था, जो ढेर सारी वस्तुओं का निर्यात भी करता था। विशिष्ट शहरी बुनियादी ढांचे वाले शहर धोलावीरा में केवल दो मौसमी धाराएं थी जो बारिश से बह जाती थी और बल्ला जल्दी सूख जाता था। तब के प्रशासन ने जल प्रबंधन पर बहुत ध्यान दिया था तथा परिष्कृत जल संरक्षण तरीकों का विकास किया। बहुस्तरीय किलेबंदी, जल निकासी व्यवस्था और निर्माण सामग्री के रूप में पत्थर का व्यापक उपयोग होता था। वर्षा जल या अन्य स्रोत से एकत्रित पानी को संग्रहित करने के लिए टैंक बने थे। नालों को बांधो के जरिए व्यवस्थित कर उन्हें बड़े जलाशय में बदला गया था। शहर के बीच में पानी की एक नाली बनाई गई थी जो भूमिगत अथवा तूफानी पानी को एकत्रित कर जलाशयों में भेजती थी। शहर के लगभग 10 प्रतिशत क्षेत्र को जलाशयों के लिए अलग से सुरक्षित रखा गया था जिनमें से कुछ में 10 मिलियन लीटर तक पानी जमा हो सकता था। पत्थर के व्यापक उपयोग के कारण यह एक सुंदर और संरक्षित शहर अपने सुनहरे दिनों में शासकों, व्यापारियों, प्रशासकों, इंजीनियरों के सार्वजनिक समारोहों और चहल-पहल भरे बाजारों के हलचल से गूंजता रहता था। 2600 ईसा पूर्व के आसपास यह पूर्ण विकसित शहर के रूप में जाना जाता था। लेकिन 1900 ई.पू. के बाद दिनोंदिन इसमें गिरावट आनी शुरू हो गई। कहने को तो यह शहर था लेकिन लगातार सिकुड़ता जा रहा था और पंद्रह सौ ईसा पूर्व आते-आते पूरी तरह से विनगरीकृत हो गया। अवशेषों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक शहरी बसावट वहां के सामाजिक पदानुक्रम के संकेत देते हैं। निवासियों के विभिन्न श्रेणियों को समायोजित करने के लिए शहर को गढ़, मध्य शहर और निचले शहर में वर्गीकृत किया गया था। श्रेष्ठतम पदानुक्रम के लिए गढ़ में महल बने थे। मध्य शहर में अमीर व्यापारी और सेना से जुड़े लोग रहते थे, निचला शहर आम लोगों के लिए था।

धोलावीरा का शाब्दिक अर्थ सफेद कुआं है। धोलावीरा की नगर योजना समानांतर चतुर्भुज के रूप में थी। यह शहर तीन भागों में बटा हुआ था इसके दो भागों की मजबूत घेराबंदी की गई थी। धोलावीरा भारत के गुजरात राज्य के कच्छ जिले के बचाव तालुका में स्थित एक पुरातत्व स्थल है। इसका नाम यहां से 1 किलोमीटर दक्षिण में स्थित ग्राम पर पड़ा है जो राधनपुर से 165 किलोमीटर दूर स्थित है। धोलावीरा में सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष और खंडहर मिलते हैं और यह उस सभ्यता के सबसे बड़े ज्ञात नगरों में से एक था। भौगोलिक रूप से या कच्छ के रण पर विस्तारित मरूभूमि बनने के कारण यह द्वीप पर स्थित है। यह नगर 47 हैक्टेयर यानी 120 एकड़ के चतुर्भुज क्षेत्रफल पर फैला हुआ था। बस्ती के उत्तर में मदसौर जलधारा और दक्षिण में मनहर जलधारा है, जो दोनों वर्ष के कुछ महीनों में ही बहती है। यहां पर आबादी लगभग 2650 ईसा पूर्व में आबाद हुई और 1900 ईसा पूर्व के बाद कम होने लगी। कुछ काल तक इसमें कोई नहीं रहा लेकिन 1450 ईसवी पूर्व से फिर से यहां लोग बस गए। नए अनुसंधान के संकेत मिले हैं कि यहां अनुमान से भी पहले 3560 पूर्व से लोग बसना आरंभ हो गए थे फिर लगातार 1820 ईसा पूर्व तक आबादी बनी रहे। धोलावीरा 5000 साल पहले विश्व के सबसे व्यस्त महानगर में गिना जाता था। इस हड़प्पा कालीन शहर धोलावीरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। यह भारत का चालीसवां विश्व धरोहर स्थल है। उस जमाने में यहां लगभग 50000 लोग रहते थे। 4000 साल पहले इस महानगर के पतन की शुरुआत हुई। जलवायु परिवर्तन के कारण एक समृद्ध नगर धोलावीरा कीचड़ के चपटे मैदान में तब्दील हो गया। अब जिस रह से गर्मी बढ़ रही है और जलवायु शुष्कता का असर फैल रहा है। हमें धोलावीरा के अनुभवों से सबक लेकर समय रहते बचाव के प्रयासों पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। 

हालांकि अब वहां का भूजल खाली है। कृषि का अधिकांश भाग वर्षा पर निर्भर है। अच्छा मानसून वर्ष दुर्लभ है। इसलिए अब पीने के पानी की धोलावीरा में सबसे बड़ी समस्या हो गई है। भूजल में टीडीएस की मात्रा 1000 से अधिक है। नर्मदा के पानी को गांव तक पहुंचाना एक चुनौतीपूर्ण काम है। जलवायु परिवर्तन के चलते यहां के लोगों को यह जगह छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

धोलावीरा भारत में सबसे शानदार सिंधु घाटी सभ्यता का स्थल है। एक लंबे कालखंड के दौरान धीरे-धीरे यहां का अच्छा मानसून एक अति कमजोर मानसून में बदला और यहां की जलवायु भी गंभीर रूप से बदल गई। हालांकि वहां के लोगों ने अपने ज्ञान के बदौलत जल संरक्षण की बेहतरीन तकनीकों को अपनाकर बहुत दिन तक काम चलाया जो कि वहां के समाज के सहभागी प्रकृति की गवाही भी देते हैं।   

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