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नई शिक्षा नीति की सफलता गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों पर निर्भर

समर्पित अध्यापक ही शिक्षा नीति के मूल में है। शिक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इसमें राजनीतिक स्वार्थ कदापि नहीं होना चाहिए। — डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

 

केन्द्र सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा की है। अब इस शिक्षा नीति का क्रियान्वयन व उससे सुखद परिणाम तभी प्राप्त हो सकते है जबकि छात्रों को पढाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों को ही नियुक्त किया जाय तथा जो व्यक्ति शिक्षा क्षेत्र में गुणी नहीं हो उसको किसी भी तरह से शिक्षक नियुक्त न किया जाय वरना तो पन्द्रह बीस वर्ष के बाद वही ढाक के तीन पात रहेंगे जो अब तक साठ साल की नीति से प्राप्त हो रहे है कि लोग ड़िग्रीधारी तो है परन्तु शिक्षित व गुणी नहीं है। इस प्रकार से शिक्षक अपने छात्रों को अपनी मेधा क्षमता से ही उसको शिक्षा दे पाते है।

नई शिक्षा नीति से शिक्षक निर्माण करने वाली अध्यापक शिक्षा की गिरती साख को पुनर्स्थापित करने की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। हालांकि अघ्यापक शिक्षा और उसकी नियामक संस्था राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की भूमिका को लेकर सवाल उठाये जाते है। इस संस्था से मान्यता प्राप्त अधिकांश शिक्षण संस्थाओं से बी एड़ आदि उत्तीर्ण हुए शिक्षा स्नातकों के पास बहुत अच्छे अंकों में उत्तीर्ण होने की अंक सूची व ड़िग्री तो है परन्तु शिक्षण कला वे नहीं जानते है क्योंकि अधिकांश शिक्षण संस्थाओं में वे कक्षा में उपस्थित हो कर पढ़े ही नहीं। मात्र कागजपूर्ति करके नोन अटेंंड़ग से ही वे विश्वविद्यालय की परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते है। यदि कभी भी इन शिक्षण संस्थाओं का औचक निरीक्षण किया जाय तो आसानी से पता लगाया जा सकता है कि वहां न तो छात्र है और न ही योग्य अध्यापक। फिर भला इन संस्थाओं से उत्तीर्ण हुए छात्र/छात्राऐं किस प्रकार कक्षाओं में जाकर अपने छात्रों को ढ़ंग से पढ़ा पायेंगे। कुछ राजनीतिक दलों ने तो राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में इन्हीं कच्चे घड़ों (डिग्री धारकों को) को बिना किसी ठोस परीक्षण के केवल स्कूली व विश्वविद्यालय की शिक्षा की मेरिट के आधार पर चयनित करके, छह माह के विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण की औपचारिकता पूर्ण कराके प्राथमिक शिक्षक पद पर स्थायी रुप से नियुक्त कर दिया गया था। वर्तमान में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट के पीछे यही अपरिपक्व और स्तरहीन अध्यापक शिक्षा है। इन विद्यालयों से निकले छात्र ही आगे चल कर माध्यमिक, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में पंहुच कर शिक्षा को प्रभावित करते है। ये छात्र ढ़ंग से उच्च शिक्षा ग्रहण ही नहीं कर पाते है।

भारत के दूसरे राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन् ने कहा था कि छात्रों का नैतिक, अध्यात्मिक, चारित्रिक, मानसिक व शारीरिक विकास शिक्षा से ही सम्भव होता है। गुरु उस मोमबत्ती के समान है जो स्वंय जलकर दूसरों को प्रकाशित करता है। वर्तमान युग में शिक्षक का महत्व दूसरों की अपेक्षा अधिक है। शिक्षक ही हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर व असत्य से सत्य की ओर ले जाने में अहम भूमिका निभाते है। अच्छा वकील, चिकित्सक, इंजीनियर, प्रोफेसर आदि सभी अच्छे शिक्षकों के द्वारा ही पैदा किये जाते है। शिक्षक अपने छात्र व शिक्षा का हित सर्वोपरि समझते है।

भारत में प्राचीन काल से ही गुरु शिष्य परम्परा रही है। गुरु शिष्य का रिश्ता ही समाज का निर्माण करता है। सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था के केन्द्र की धुरी शिक्षक होता है। शिक्षा नीति से सही परिणाम तभी प्राप्त हो सकता है जबकि अध्यापक और अध्यापक शिक्षा के ऊपर गहनता और प्रतिबद्धता के साथ संकल्प पूर्वक आगे बढ़ा जाये। इसी को ध्यान में रखकर शिक्षा नीति में सेवा पूर्व अध्यापकों की शिक्षा, नियुक्ति, सतत व्यावसायिक विकास, कार्यस्थल पर सकारात्मक वातावरण और सेवा शर्तों की चर्चा की गई है। अध्यापक शिक्षा के नाम पर बिना उपस्थित हुए मात्र परीक्षा देकर डिग्री प्राप्त करने की प्रवृति एक कड़वा सच है।

देश में कई राज्यों में स्कूलों में अध्यापको का भारी अभाव है। राज्य सरकारें अध्यापकों की नियुक्ति करती है तथा लोग विभिन्न कारणों से अदालत में चुनौती दे देते है। जिसके कारण अध्यापकों की नियुक्ति एक लम्बे समय तक नहीं हो पाती है। अध्यापन कार्य में गुणवत्ता बनाये रखने हेतु सेवारत् शिक्षकों के सतत् व्यावसायिक विकास की आवश्यकता पड़ती है। परन्तु इसको लेकर राज्य सरकारें कोई खास पहल नहीं कर पा रही है। अध्यापक एक सामान्य कर्मचारी बन कर रह जाता है। जो सरकार के आदेशों की पूर्ति करते हुए कई कई गैर शैक्षिक कार्यों को निरन्तर करते रहने में ही व्यस्त रहता है। नई शिक्षा नीति में सेवा पूर्व अध्यापक शिक्षा की एकीकृत बहुअनुशासनात्मक प्रणाली विकसित करने का सुझाव दिया गया हे।

नई शिक्षा नीति में वर्ष 2030 तक अध्यापक शिक्षा का एकीकृत चार वर्षीय पाठ्यक्रम लागू किया जाना है। तथा साथ ही दो वर्षीय व एक वर्षीय बी एड़ की भी व्यवस्था की गई है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में अध्यापकों को तैयार करना होगा जिसके लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी के प्रयोग और नवाचार को बढ़ावा देना आवश्यक है। राष्ट्रीय उच्च शिक्षा नियामक परिषद अध्यापक शिक्षा संस्थानों का नियमन भी करेगा। इस शिक्षा नीति में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की व्यवस्था की गई है। जिसके अंतर्गत अध्यापक तैयार करने के लिए औपचारिक मार्ग से हट कर नवाचारी पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण की पद्धति पर कार्य करना होगा।

उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए आयोजित अध्यापक पात्रता परीक्षा के परिणाम देखने से पता चलता है कि इस परीक्षा में सम्मिलित हुए बी एड़ ड़िग्री धारकों में से मुश्किल से 15 प्रतिशत के लगभग ही प्रत्याशी उत्तीर्ण हो पाते है जिनमें अधिकांश सरकारी सहायता प्राप्त प्रशिक्षण संस्थाओं से निकले  बी एड़ ड़िग्री धारक होते है। प्रदेश में लाखों बी एड़ डिग्री धारक बेरोजगारों की भीड़ ही बढ़ा रहे है। प्रदेश के राजकीय विद्यालयों के लिए वांछित संख्या में योग्य प्रशिक्षित स्नातक अध्यापक उपलब्ध नहीं हो पा रहे है। इस दुरावस्था के लिए अध्यापक प्रशिक्षक केन्द्र तथा उसकी नियामक संस्था एनसीटीई बराबर की जिम्मेदार है। जो देश की अध्यापक शिक्षा के गिरते स्तर को सुधार नहीं पा रही है।

नई शिक्षा नीति तभी सफल हो सकती है जबकि अध्यापक ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने के लिए तत्पर हो, बच्चों की विविधता, नागरिकता की शिक्षा और कला व शिल्प के प्रति अनुराग हो व उन्हें समूह में कार्य करने, समस्या समाधान करने की योग्यता हो, वे भाषाई पूर्वाग्रह से मुक्त हो, भारतीय संस्कृति और परम्परा को भली प्रकार से जानते हो तथा पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो आदि गुणों से परिपूर्ण इस प्रकार के अध्यापक नई शिक्षा नीति को सफलता प्रदान कर सकते है। समर्पित अध्यापक ही शिक्षा नीति के मूल में है। शिक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इसमें राजनीतिक स्वार्थ कदापि नहीं होना चाहिए।                ु

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।

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