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‘‘युवा, नवाचार और आत्मनिर्भर भारत’’

वैश्विक नवाचार सूचकांक में हम 57वें स्थान पर हैं। भारत ब्रेन ड्रेन से ब्रेन गेन की स्थिति में पहुँच रहा है और विदेशों में काम करने वाले भारतीय वैज्ञानिक स्वदेश लौट रहे हैं। – अभिषेक प्रताप सिंह

 

किसी भी देश का विकास वहाँ के लोगों के विकास के साथ जुड़ा हुआ होता है। इसके लिए यह ज़रूरी हो जाता है कि जीवन के हर पहलू में विज्ञान-तकनीक और शोध कार्य अहम भूमिका निभाएँ। विकास के पथ पर कोई देश आज तभी आगे बढ़ सकता है जब उसकी आने वाली पीढ़ी के लिये सूचना और ज्ञान आधारित वातावरण बने और उच्च शिक्षा के स्तर पर शोध तथा अनुसंधान के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों। इस पूरी प्रक्रिया में युवाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। आज जब भारत दुनिया में सबसे अधिक युवा आबादी के स्तर पर खड़ा है तो सरकार, समाज और व्यवस्था की यह जिम्मेदारी है उसी युवा को बेहतर तकनीक और शोध  नवाचार के सभी अवसर मुहैया कराए जाएं ताकि वह अपने योग्यता, लगन और ज्ञान से राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में अपना सहयोग दे सके। आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना विज्ञान प्रौद्योगिकी के साथ-साथ भारत की युवा आबादी और उसकी कार्य क्षमता पर आधारित हैं.

अगर हम कुछ तथ्यों को देखें तो, इंडियन साइंस एंड रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंडस्ट्री रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष रैंकिंग वाले देशों में शामिल है। विश्व की तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति भी भारत में ही है। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (ब्ैप्त्) द्वारा संचालित शोध प्रयोगशालाओं के ज़रिये नानाविध शोधकार्य किये जाते हैं। मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी के लिये प्रत्युष नामक शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर बनाकर भारत इस क्षेत्र में जापान, ब्रिटेन और अमेरिका के बाद चौथा प्रमुख देश बन गया है। नैनो तकनीक पर शोध के मामले में भारत दुनियाभर में तीसरे स्थान पर है।

वैश्विक नवाचार सूचकांक (ळसवइंस प्ददवअंजपवद प्दकमग) में हम 57वें स्थान पर हैं। भारत ब्रेन ड्रेन से ब्रेन गेन की स्थिति में पहुँच रहा है और विदेशों में काम करने वाले भारतीय वैज्ञानिक स्वदेश लौट रहे हैं। व्यावहारिक अनुसंधान गंतव्य के रूप में भारत उभर रहा है तथा पिछले कुछ वर्षों में हमने अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाया है। वैश्विक अनुसंधान एवं विकास खर्च में भारत की हिस्सेदारी बढ़ी है। देश में मल्टी-नेशनल कॉर्पोरशन रिसर्च एंड डेवलपमेंट केंद्रों की संख्या 2018 आँकड़ों के अनुसार 1150 तक पहुँच गई है। ये सभी बदलाव, भारत में अनुसंधान और विकास कार्यों की रफ्तार कई क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ रही है। 

आज हमारे देश का युवा वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष अनुसंधान, विनिर्माण, जैव-ऊर्जा, जल-तकनीक, और परमाणु ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है।

वैश्विक स्तर पर भारतीय और आसियान शोधकर्त्ताओं, वैज्ञानिकों और नवोन्मेषकों के बीच नेटवर्क बनाने के उद्देश्य से आसियान-भारत इनोटेक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (।प्), डिजिटल अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों, साइबर सुरक्षा और स्वच्छ विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत-न्ज्ञ साइंस एंड इनोवेशन पॉलिसी डायलॉग के द्वारा दोनो देश सहयोग कर रहे हैं।

युवा विद्यार्थियों के लिये ओवरसीज विजिटिंग डॉक्टोरल फेलोशिप प्रोग्राम चलाया जा रहा है। डीडी साइंस और इंडिया साइंस नाम की दो नई पहलों की भी शुरुआत हुई है।

इसमें दो राय नहीं है कि भारतीय वैज्ञानिकों का जीवन और कार्य प्रौद्योगिकी विकास तथा राष्ट्र निर्माण के साथ गहरी छाप छोड़ी है। लेकिन कुछ तथ्य ऐसे भी हैं जो इशारा करते हैं कि भारत आज विश्व में वैज्ञानिक प्रतिस्पर्द्धा के क्षेत्र में कहाँ ठहरता है? आखिर क्यों भारत शोध कार्यों के मामले में चीन, जापान जैसे देशों से पीछे है? ऐसी कौन-सी चुनौतियाँ हैं जो अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत की प्रगति के पहिये को रोक रही हैं? इस दिशा में क्या कुछ समाधान किये जा सकते हैं? आवश्यक है आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना इन सभी समस्याओं के समाधान के आलोक में सुनिश्चित हो। तब ही सही मायने मे हम अपने राष्ट्र संकल्प को प्राप्त कर सकेंगे।

अभी पिछले दिनों जब हमने अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाया और जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं ऐसे समय में इस देश की युवा आबादी के लिए आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य एक सबसे बड़ी प्रेरणा है. इन सब बातों के मद्देनज़र एक ऐसी नीति बनानी होगी जिसमें समाज के सभी वर्गों में वैज्ञानिक प्रसार और नवाचार को बढ़ावा देने और सभी सामाजिक स्तरों से युवाओं के बीच विज्ञान के अनुप्रयोगों के लिये कौशल को बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाए जो कि एक उज्ज्वल और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण मे यही सही कदम होगा।

(लेखक डा अभिषेक प्रताप सिंह देशबंधु कालेज दिल्ली यूनिवर्सिटी में अध्यापक हैं।) 

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