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अडानी प्रकरणः इतना हंगामा है क्यों बरपा?

यह अच्छी बात है भारतीय रिजर्व बैंक इस पर नजर रखती है और बैंकों को जरूरी निर्देश देती है। ऐसे समय में बाहरी संस्था के ऐसे माहौल बिगाड़ने के उद्देश से लिखी रिपोर्ट को ज्यादा महत्व देना उचित नहीं होगा। - अनिल जवलेकर

 

आजकल अडानी उद्योग समूह की चर्चा है। उनकी कागजी अमीरी कम होने से कुछ लोग खुश तो कुछ नाराज है। संसद भी बंद रही और सर्वोच्च न्यायालय ने भी छोटे निवेशकों के प्रति अपनी सहानुभूति दिखते हुए सेबी को अपनी नीति स्पष्ट करने और इस विषय में जांच करने को कहा है। वैसे, स्टॉक मार्केट की बढ़ोतरी या गिरावट कागजी होती है जबतक की शेयर की खरीदी या बिक्री न हो। वहाँ तो रोज कई लोग अमीर होते है तो कई गरीब। इसलिए शेयर बाजार के उतार चढ़ाव की कितनी चर्चा होनी चाहिए यह सोचने की बात है। बाकी जमीनी हकीकत में किसी की  माली हालत अच्छी है या नहीं यह देखने और समझने के और तरीके भी है और वह स्टॉक मार्केट से ज्यादा वास्तविक है। यह सही है की अडानी के बारे में हिंडेनबर्ग की एक रिपोर्ट आयी है और उसमें कई बाते है। लेकिन उस रिपोर्ट की बातों में कितना दम है यह गुजरते समय के साथ सामने आयेगा, लेकिन इससे मोदी विरोधियों की मुद्दे ढूंढने की तिलमिलाहट जरूर सामने आयी है। इस रिपोर्ट का अडानी उद्योग समूह पर हकीकत में कोई असर हो न हो इस विषय की चर्चा से सामान्यों के मन में भारतीय उद्योगपतियों के बारे में शंका पैदा हुई है और वही चिंता का विषय हो सकता है। 

क्या है यह हिंडेनबर्ग संस्था 

हिंडेनबर्ग अनुसंधान करने वाली अमरीका की एक संस्था है जो 2017 से काम कर रही है। इस संस्था का कहना है की इसका अनुसंधान वित्तीय निवेश निर्णय लेने में सहायक होता है क्योंकि यह कंपनियों की आर्थिक अनियमितता, प्रबंधन की कमियाँ, जाहिर नहीं हुए लेन-देन व्यवहार, गैर कानूनी या अनैतिक तरीके से किया गया व्यापार या अपनाए गए वित्तीय आचरण तथा उत्पाद, वित्तीय तथा रेग्युलेटरी जानकारी नहीं देने के बारे में अनुसंधान करती है। इसके पहले यह संस्था, अमरीका या और अन्य देशों की कंपनियों के बारे में भी लिख चुकी है जैसे की आरडी लीगल हेज फंड, पेरशिंग गोल्ड, ओपको हैल्थ, पोलरिटी टीई, अफरिया, लिबर्टी हैल्थ सायन्स, यांगजा रिवर पोर्ट अँड लोजीस्टिक (चीन की कंपनी), एचएफ़ फूड्स, निकोला आदि आदि। इसमें बहुत सारी कंपनियाँ अमरीका की है। एक-दो चीन की और अब भारत की एक -अडानी उद्योग समूह-है। इस अनुसंधान संस्था का यह दावा भी रहता है कि बहुतायत मामलों में उनका कहना सिद्ध होता है। मतलब यह की यह संस्था विसलब्लोवर का काम करती है। कुछ कंपनियाँ ऐसे लिखे के खिलाफ अमरीका के कोर्ट में जा चुकी है। लेकिन ऐसे मान हानि दावों का आगे कुछ नहीं हो पाता, यह इतिहास है। भारत में भी राजनीति से प्रेरित बहुत लोग बहुत से लोगों के बारे में गलत-सलत बाते कहते है और उनके खिलाफ मान हानि के दावे भी होते है। बहुत हुआ तो माफी मांग कर समझौता हो जाता है। लेकिन बदनामी होने से जो तात्कालिक नुकसान होता है वह हो ही जाता है। यह केस भी ऐसा ही कहा जा सकता है। 

भारतीय संस्थाओं पर भरोसा जरूरी 

हिंडेनबर्ग ने अडानी समूह के संबन्धित रिपोर्ट जनवरी 2023 में प्रकाशित की जिसमें अडानी उद्योग समूह, भारत सरकार और सेबी जैसी संस्थाओं के प्रति आरोप लगाए है। अडानी परिवार के सदस्यों को भी इसमें घसीटा गया है। इन आरोपों का आधार लोगों से बातचीत, कई डॉक्युमेंट्स की छानबीन वगैरह बताया गया है। यह सही है कि इसमें से बहुत से आरोपों को देखने का नज़रिया अपना-अपना हो सकता है और अपने-अपने मतलब निकाले जा सकते है। लेकिन ऐसे विषयों पर भारतीय सेबी जैसे नियंत्रक और भारत की छानबीन करने वाली एजंसियों की बात मान लेना ज्यादा उपयुक्त होगा क्योंकि वह जिम्मेवारी से ऐसी बातों की छानबीन करती रहती है। सरकार और उनकी एजंसियाँ भी अपने तरीके से तथ्य सामने रख सकती है विशेषतः अडानी समूह पर हुए  भ्रष्टाचार और मनी लॉडरिंग के आरोपों के बारे में। 

विरोधियों कि इतनी तिलमिलाहट क्यों

निश्चित ही जो लोग अडानी समूह की कंपनियों के किसी भी तरह से भागीदार है उनकी उलझन समझ में आ सकती है क्योंकि उनकी पूंजी इस उद्योगों में लगी है। सरकार के लिए भी यह रिपोर्ट शांति भंग करने वाली हो सकती है क्योंकि अभी-अभी भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना का धक्का वहन करके पटरी पर वापस लौट रही है और सरकार निजी पूंजी का साथ लेकर बहुत से विकास काम करना चाहती है। निश्चित ही शेयर मार्केट में हलचल होने से अंतर्राष्ट्रीय पूंजी भी सकते में आ जाती है और घरेलू निवेश भी घबरा जाता है। प्लेज की हुई संपातियों की कीमत कम होना वित्तीय प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा सकता है।  लेकिन विरोधी दल की तिलमिलाहट समझ में नहीं आती। उनके पास मोदी सरकार के विरोध में कोई मुद्दा नहीं है यह एक कारण हो सकता है। देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर सकने वाले मुद्दे को लेकर इतनी तिलमिलाहट अच्छी नहीं कही जाएगी।  

हंगामे से अर्थव्यवस्था को नुकसान  

वैसे देखा जाए तो ऐसी रिपोर्ट हँगामा खड़ा करने के लिए ही होती है। आज भारत की अकेली ऐसी अर्थव्यवस्था है जो दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मुक़ाबले अच्छा काम कर रही है। हाल ही में आयी रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता की रिपोर्ट भी यहाँ की वित्तीय प्रणाली के स्थिरता की बात कर रही थी और कह रही है कि यहाँ के बैंक अच्छे स्थिति में है और अब कोई बैंक डूबने की स्थिति में नहीं है। ऐसे मौहोल में भारतीय स्थिरता और विकास पर शंका उपस्थित कर इसमें खलल डालने का काम ऐसी रिपोर्ट करती है, यह बात समझनी जरूरी है। और यह कोई नई बात नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था बड़ी होना और यहाँ के स्थानीय उद्योगों का बढ़ना बाहरी ताकतों और पूंजी पतियों को अच्छा नहीं लगता है और वे उसको कमजोर करने में लगे रहते है। ऐसी रेपोर्टे वित्तीय प्रणाली और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए भारतीय मीडिया या विरोधी दलो को हंगामे से बचना चाहिए। 

सावधानता जरूरी 

भारतीय उद्योग जगत में भी सब कुछ ठीक-ठाक है, ऐसा मानने की जरूरत नहीं है। व्यापार उद्योग में फायदा कमाना मुख्य लक्ष्य होता है और उस फायदे के लिए कुछ भी करने को यह उद्योग तैयार रहते है। यह भी कोई छुपी बात नहीं है। इसलिए ऐसा नहीं है कि यहां के उद्योग नैतिक मूल्यों पर सदा काम करते है और सभी कायदे-कानून का पालन करते हुए उद्योग चलाकर लाभ कमाते है। लेकिन यह देखने के लिए और ऐसी गतिविधियां नियंत्रित करने के लिए भारत की अपनी व्यवस्था है और यहाँ एक स्वतंत्र न्याय व्यवस्था है और उस पर भरोसा करके ही ऐसे प्रश्न सुलझाए जा सकते है। यह भी नकारा नहीं जा सकता की यहाँ की सरकारों का इतिहास वित्तीय संस्थाओं पर दबाव डालने का रहा है और उसके चलते बैंकों को पिछले पाँच वर्षों में डूबे कर्ज के रूप में 10 लाख करोड़ रुपए छोड़ने पड़े है। सामने आए बैंको के घोटाले भी यह बताते है कि बैंक अपने कर्ज देने में और सेक्यूरिटी लेने में गलती करती है और बैंकों को ऐसी गलत सेक्यूरिटी या उसकी आँकी गई गलत कीमत की वजह से नुकसान उठाना पड़ता है। यह अच्छी बात है भारतीय रिजर्व बैंक इस पर नजर रखती है और बैंकों को जरूरी निर्देश देती है। ऐसे समय में बाहरी संस्था के ऐसे माहौल बिगाड़ने के उद्देश से लिखी रिपोर्ट को ज्यादा महत्व देना उचित नहीं होगा।

यह जरूर है कि संबंधित भारतीय नियंत्रक और रिजर्व बैंक या ऐसे विषय में छानबीन करने वाली संस्थाओं ने रिपोर्ट में कही बातों को नज़र अंदाज नहीं करना चाहिए। सरकार ने भी अपनी तरफ से इस पर कार्यवाही करनी चाहिए। विरोधी दलों को भी अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति को समझकर बात करनी चाहिए और सरकार विरोध के लिए मुद्दे ढूंढने की तिलमिलाहट ऐसे रिपोर्ट द्वारा पूरी नहीं करनी चाहिए।

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