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ईएसजी को प्रभावित करता है एआई! 

आज बैंक, आपूर्ति श्रृंखला उपभोक्ता जरूरतें सभी कुछ के लिए बड़ी कंपनियों द्वारा ईएसजी का अभ्यास किया जा रहा है। ऐसे में हमें सरकार और आम लोगों की भागीदारी से कृत्रिम मेघा को भी विनियमित करने की जरूरत है। - आलोक सिंह

 

ईएसजी यानी पर्यावरण, सामाजिक और शासन से संबंधित वह दृष्टिकोण है जो आज नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों, कॉरपोरेटस और अन्य हितधारकों के बीच व्यापक चर्चा में है। कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर,) सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) और पर्यावरण प्रभाव आकलन (आईए) की व्यवस्था पहले से मौजूद है, लेकिन ईएसजी इससे कुछ अलग हटकर किया गया उपबंध है। ईएसजी केवल सामाजिक रुप से जिम्मेदार व्यवसाय नही है बल्कि स्थाई व्यवसायिक प्रथाओं को अपनाने का एक व्यापक तरीका है। निवेशक व्यवसाय की दीर्घकालिक स्थिरता के साथ साथ इससे जुड़े किसी भी जोखिम की पहचान करने के लिए ईएसजी विश्लेषण पर अधिक भरोसा कर सकते हैं।

सीएसआर, ईआईए और एसआईए का दायित्व कंपनी पर है जबकि ईएसजी हितधारकों के अत्यंत करीब है। एक बढ़िया ईएसजी अभ्यास एक संगठन की विश्वसनीयता को बनाए रखने में मदद करता है। जबकि ईएसजी से इतर वाला संगठन जिसमे सीएसआर,एस आईए,ईआईए आदि भी शामिल है, अस्थिरता उच्च जोखिम और लंबी अवधि में अचानक नुकसान के लिए महत्वपूर्ण क्षमता के जोखिम पर चलता है। ईएसजी निवेश के लिए पर्यावरण प्रभाव और प्रदूषण या कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए किसी भी प्रयास को संदर्भित करता है। इसमें समुदाय के आसपास का भी संबंध जैसे परोपकार और कॉरपोरेट नागरिकता भी शामिल है। दूसरी तरफ शासन शेयर धारकों के अधिकार, मुआवजे तथा मैनेजमेंट और शेयर धारकों के बीच संबंध के लिए भी जिम्मेदार है। आज की दुनिया में ईएसजी सभी व्यवसायों पर लागू हुआ है और कंपनिया इसके योगदान को महसूस भी कर रही हैं। अधिक से अधिक निवेशकों, शेयर धारको कर्मचारियों, ग्राहकों, नियामको के साथ प्रणाली में अधिक पारदर्शिता के लिए क्लीमेरिंग ईएसजी अनिवार्य हो रहा है। ऐसे में केवल सीएसआर अथवा एस आईए या ईआईए के बल पर पृथ्वी ग्रह के भविष्य की चुनौतियों से नहीं निपटा जा सकता है। ईएसजी निवेश दुनिया के साथ साथ भारत में व्यवसाय के तरीके को बदल सकता है तथा व्यापार समुदाय के साथ-साथ पूरी मानवता की मदद कर सकता है।

इस ऑफ डूइंग बिजनेस और नियामकों की भूमिका के बीच संबंध को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है। इज ऑफ डूइंग बिजनेस में उच्च रैंकिंग के व्यवसाय पर नियामकों के नियंत्रण में भी कमी नहीं आनी चाहिए। व्यापार करने में आसानी और नियामकों के नियंत्रण के बीच व्यापार को शून्य राशि के खेल के रूप में नहीं देखा जा सकता। व्यापार सुगमता के लिहाज से लाइसेंस परमिट राज्य का अनुभव खराब रहा है। व्यापार सुगमता और नियामकों के बीच लाभकारी रिश्ते होने चाहिए। ऐसे में समाज, पर्यावरण और शासन को व्यवसाय मॉडल में एक सक्रिय भागीदार बनाने के लिए विकेंद्रीकरण का रास्ता अनुकूल हो सकता है।

आजकल बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस,एआई) कारोबार को नियंत्रित करने की दौड़ में है। उन्हें अनुसंधान करने, डेटा विश्लेषण करने और एआई कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के लिए सर्वोत्तम मानव संसाधनों की आवश्यकता है। लेकिन विडंबना है कि इसी दौर में सिलीकान वैली की बड़ी प्रौद्योगिक कंपनियों में बड़े पैमाने में छंटनी भी हो रही है। यह परस्पर विरोधी बातें हैं जिसे समझने की जरूरत है। एक तरफ कंपनियां गतिशीलता, मनोरंजन, शिक्षा, खरीदारी, विज्ञापन, चुनाव प्रचार और यहां तक की समाचार के क्षेत्र में एआई के जरिए भविष्य को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही हैं, तो दूसरी तरफ इन कंपनियों द्वारा की जा रही भारी छंटनी इस बात का संकेत दे रही हैं कि एआई एक संक्रमण के चरण में है जो प्रत्येक सक्षम राष्ट्र के लिए विघटनकारी स्थितियां पैदा करने के करीब हैं। भविष्य की प्रौद्योगिकी के लिए एआई अपने नियम गढ़ रहा है। एआई से जुड़ी बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों का उद्देश्य केवल भारी मुनाफा कमाना नहीं है, बल्कि वह मनुष्यों के व्यवहार को नियंत्रित करना चाहती है। किसी भी लोकतांत्रिक प्रणाली में भाग लिए बिना दुनिया को काबू में रखने का वे ख्वाब रखती है। बड़े पैमाने पर हो रही छटनी से संकेत मिलता है कि वे ऐसी नई प्रतिभा की तलाश में हैं जो विघटनकारी एआई पर काम कर सके। ऐसे में जब तक उन्हें वांछित प्रतिभा मिल नहीं जाती एआई की गति कमोबेश बाधित ही रहेगी।

आज हम एक दिलचस्प चौराहे पर खड़े हैं, जहां एआई आने की जल्दी में है और बड़ी कंपनियां अपने प्रोजेक्ट को क्रियान्वित करने को बेताब है। ठीक उसी समय ईएसजी सभी हितधारको के दरवाजे खटखटा रही हैं। ई-कॉमर्स, क्रिप्टो करेंसी, सोशल मीडिया के दुरुपयोग, फर्जी समाचार, कर चोरी, टीकाकरण कार्यक्रम, खाद्य सुरक्षा, व्यापार नीति, मनी लॉन्ड्रिंग और विभिन्न प्रकार के वित्तीय गैर वित्तीय भ्रष्टाचार को विनियमित करने के लिए नियामक एजेंसियां समर्थन कर रही हैं। भ्रष्टाचार एक मानसिकता है, जिसे पूरी तरह खत्म करने के लिए कोई भी कानून पुख्ता नहीं है। लेकिन दूसरे हाथ में हमारे पास कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम के लिए आरोग्य सेतु एप, डिजिटल लेनदेन, सबको घर जैसे कार्यक्रम की सफलता की कहानियां भी है। चाहे गति शक्ति हो अथवा रक्षा उत्पादों में भारत की आत्म निर्भरता हो, वंदे भारत जैसी सेमी बुलेट ट्रेन डिजाइन करना हो, एयरक्राफ्ट बनाने की क्षमता हो, या प्रौद्योगिकी का कार्यक्रम हो, दुनिया हमारा लोहा मानने लगी है। हमारे कदम लगातार आगे बढ़ रहे हैं। विकेंद्रीकरण, स्थानीयकरण, सहकारिता और स्वरोजगार हमारे जनसांख्यिकी लाभांश के उपयोगी होने की कुंजी है। पेप्सी और कोको-कोला का उपयोग हमारे लिए मजबूरी नहीं है बल्कि हमारे लोगों में जागरूकता की कमी का नतीजा है। हमारी प्रगति समाज, पर्यावरण, जीवन शैली और हितधारकों की परिभाषा पर लोगों के नियंत्रण के दर्शन से मेल खाती है। विकेंद्रीकरण और सहकारिता हमारे समाज में सदियों से मौजूद है। ऐसे में इएसजी को लोगों द्वारा विनियमित किया जाना चाहिए। सरकार के भरोसे हम इसे नहीं छोड़ सकते। हमारे पास ओटीटी बनाम टीवी चैनलों के उदाहरण है। ओटीटी तकनीक का लाभ है और जब तक सरकार इसे नियमित करने के लिए तंत्र विकसित करेगी एआई के जरिए कोई अन्य विकारी तकनीक पाइप लाइन में होगी।

भारत सरकार ने क्रिप्टोकरंसी को नियंत्रित करने में सफलता पाई है। जीएसटी के जरिए कर संग्रह का ईमानदार तंत्र विकसित किया है। इसी तर्ज पर प्रभावकारी सरकारी नीति और लोगों की भागीदारी द्वारा एआई को विनियमित किया जा सकता है। आज बैंक, आपूर्ति श्रृंखला उपभोक्ता जरूरतें सभी कुछ के लिए बड़ी कंपनियों द्वारा ईएसजी का अभ्यास किया जा रहा है। ऐसे में हमें सरकार और आम लोगों की भागीदारी से कृत्रिम मेघा को भी विनियमित करने की जरूरत है।

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