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दुराग्रही विदेशी मीडिया - भारत विरोधी प्रचार में जुटी

बीबीसी को भारत के पड़ोसी देशों में वहां के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर ड़ाक्यमेंट्री जरुर बनानी चाहिए। बीबीसी को अपना वामपंथी मुखौटा हटाना चाहिए तथा मनुष्य व मानवता को सर्वोच्च स्थान देना चाहिए। - डॉ. सूर्यप्रकाश अग्रवाल

 

यह भारत का दुर्भाग्य ही है कि भारत के कुछ प्रमुख राजनेता विदेशों में जाकर भारत के प्रधानमंत्री के प्रति नफरत फैलाने का प्रयास करते रहते है। वहीं कुछ विदेशी मीड़िया भी दुराग्रह से परिपूर्ण होकर भारत विरोधी प्रचार करने में जुटी है। जब से भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की है तभी से कुछ ज्यादा ही दुष्प्रचार किया जा रहा है, लगता तो ऐसा ही है। देश की विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ विदेशी मीड़िया भी विपक्ष की ही भुमिका निभा रही है। कुछ दिन पहले बीबीसी (ब्रिटिश ब्राड़कास्टिंग कॅार्पोरेशन) ने एक ड़ाक्यूमेंट्री बनायी जिसमें भारत के प्रति दुष्प्रचार करने की कोशिश की गई जिसके प्रचार व प्रसार में वामपंथी तथा विपक्षी राजनीतिक दलों ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई तथा कुछ नामचीन विश्वविद्यालयों के प्रागणों में भी पहुंचकर नव-युवकों को भी भारत विरोधी प्रचार में लगा दिया गया थ।

वर्ष 2002 के गुजरात दंगों पर बीबीसी की ड़ाक्यूमेंट्री ‘इंड़िया-द मोदी क्वेश्चन‘ को भारत ने औपनिवेशिक मानसिकता से प्रेरित और गुमराह करने वाला बताया है। यह भारत विरोधी प्रचार का हिस्सा है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस ड़ाक्यूमेंट्री के जरिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  की छवि को हानि पहुंचाने की कोशिशों का प्रोपेगंड़ा ही बताया। स्वंय ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने ड़ाक्यूमेंट्री के तथ्यों को खारिज कर दिया। सुनक ने ब्रिटेन की ससंद में कहा कि‘ निश्चित रुप से हम उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं करते है, चाहे वह कहीं भी हो, लेकिन मै उस चरित्र चित्रण से कतई सहमत नहीं हूं जो माननीय नेता (पीएम मोदी) का दिखाया गया है। ब्रिटेन के हाउस ऑफ लार्ड़ के सदस्य लार्ड़ रामी रेंजर ने कहा कि बीबीसी ने भारत के करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत किया है और लोकतान्त्रिक रुप से निर्वाचित भारत के प्रधानमंत्री, वहां की पुलिस, और न्यायपालिका की बेइज्जती की है। हम दंगों की निन्दा करते है। तत्कालीन विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा कि वर्ष 2002 के दंगों के दौरान ब्रिटेन के उच्चायुक्त की तरफ से भारत के अांतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने पर चेतावनी दी गई थी।

बीबीसी ने मोदी सरकार के अल्पसंख्यकों के प्रति रवैये, कथित विवादित नीतियों, कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के फैसले और नागरिकता कानून को लेकर भी सवाल उठाए गए है। बागची ने आगे कहा कि यह दुष्प्रचार का हिस्सा है जो खास तरह के नजरिये को आगे बढ़ाता है। यह पक्षपात पूर्ण होने के साथ ही औपनिवेशिक मानसिकता से प्रेरित है। बीबीसी ने कहा कि ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय से लिए गए गोपनीय कागजातों के आधार पर इस ड़ोक्यूमेंट्री को तैयार किया था। ये गोपनीय कागजात वर्ष 2002 में नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश उच्चायोग की तरफ से अपने हेड़क्वाटर को भेजी गई रिपोर्ट से संबधित है। कंवल सिब्बल के अनुसार तब भी उन्हें चेतावनी दी गई थी कि हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करें।

विदेशी मीड़िया का एक हिस्सा भारत के प्रति दुराग्रह से भरा हुआ है। इसी दुराग्रह के कारण बीबीसी ने पत्रकारिता के मूल सिद्धान्तों की अनदेखी कर पश्चिमी देशों के लिए अलग मानदंड़ बनाये हुए है। और बाकी देशों के लिए अलग। वह विकासशील और निर्धन देशों को केवल अपने अलग चश्में से ही देखता है बल्कि उसके नेताओं और वहां की जनता को भी अलग कसौटी पर कसता है जिसका प्रमाण यह ड़ाक्यूमेंट्री है।  

बीबीसी को अपनी श्रेष्ठता बोध का अहंकार भी है। बीबीसी की यह पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग ही कही जा सकती है। बीबीसी ने इस बात को नहीं देखा कि गुजरात दंगों की गहराई से जांच देश के सुप्रीम कोर्ट की निगरानी वाले एक विशेष जांच दल ने की थी। बीबीसी ने दुराग्रह का परित्याग नहीं किया जिससे उसने पक्षपाती विमर्श प्रस्तुत किया। बीबीसी भारत में कोरोना काल में लॉकड़ाउन के दुष्परिणाम ही गिनाती रहती है। जबकि यूरोपीय देशों में उसने लाखों लोंगों की जान बचते हुए देखी। भारत में कोरोना के कारण मरे लोगों के शवों को दिखाता है। पश्चिमी मीड़िया के साथ साथ उसके शोध संस्थान भी दुराग्रह से ग्रस्त है। गुजरात के दंगे के शुरुआत पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता जिसे गोधरा कांड़ के नाम से जाना जाता है। जिसमें मुस्लिमों की भीड़ ने रेल की एक बोगी को जला दिया था जिसमें 70 कार सेवक जो अयोध्या से लौट रहे थे, वे जिन्दा जला दिये गये थे। उसको तो बीबीसी ने साबरमती एक्सप्रेस में लगी साधारण आग बताकर मात्र एक वाक्य में निपटा दिया गया। इस कांड़ में 31 लोगों को न्यायालय के द्वारा सजा सुनायी गई जिसे गुजरात हाई कोर्ट ने भी स्वीकार किया। मोदी का प्रधानमंत्री बनना पंथनिरेपक्षता के नाम पर छल व मक्कारी के प्रति जन विद्रोह था। इस लिए 2002 की घटना को विमर्श में दोबारा लाना मोदी को नुकसान पंहुचायेगा। यह ड़ाक्यूमेंट्री वैश्विक वामपंथ के निशाने पर मोदी को लाने की एक कोशिश है क्योंकि ब्रिटेन में लेबर पार्टी का वोट बैंक वहां की मुस्लिम आबादी है। अतः उसको भी खुश करना उद्देश्य था। बीबीसी का चरित्र वामपंथी ही कहा जा सकता है। इसी वामपंथी रवैये के कारण बीबीसी ब्रिटेन में भी अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर कहती है कि उन्होंने तीन चुनाव लेबर पार्टी के विरुद्ध नहीं बल्कि बीबीसी के विरुद्ध लड़े थे। ड़ाक्यूमेंट्री को लेकर लार्ड डालर पोपट, लार्ड रामी रेंजर इत्यादि बुद्धिजीवियों ने बीबीसी की आलोचना की है। बीबीसी का इतिहास बताता है कि उसको हिन्दू विरोध करने पर शान्ति प्राप्त होती है। 1965, 1971 का भारत पाक युद्व, खालिस्तान आतंकवाद तथा लेस्टर दंगे में स्पष्ट दिखाई दे चुका था। इससे पूर्व बीबीसी की ड़ाक्यूमेंट्री ‘इंड़ियाज डाटर‘ जो 2015 में बनी थी, पर भी विवाद हुआ था। इस ड़ाक्यूमेंट्री में वे हिस्से हटा दिये गये थे जो भारत के अनुपात में पश्चिमी देशों में महिला यौन उत्पीड़न के अधिक अांकड़े को उद्धत करते थे।

वर्ष 2008 में भी मुंबई हमले के आक्रमणकारियों को मात्र गनमैन कहा गया था। इंदिरा गांधी सरकार ने बीबीसी पर प्रतिबंध लगाया था। 1984 के सिख दंगे तथा कश्मीर में 1971 के बाद से हो रहे हिन्दू नरसंहार की तमाम त्रासदियों को बीबीसी ने नजरअंदाज किया है। 

बीबीसी मात्र सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के कारण ही गुजरात दंगों को मोदी से जोड ़कर देखता है जबकि भारत के न्यायालयों के द्वारा गहराई से की गई जांचों में वे निर्दोष साबित किये जा चुके है। मात्र भारत के कुछ विरोधी राजनीतिक दल अपनी राजनीति चमकाने के लिए ही विदेशी मीड़िया को उकसाते रहते है। इसी कारण से वे ऐसे हास्यास्पद निष्कर्ष पर पहुंचते है कि भारत से ज्यादा खुशी पाकिस्तान में देखी जाती है। बीबीसी की यह हरकत बहुत ही निन्दनीय है।

अब भारत को भी ब्रिटिश इंड़िया पर जबाबी ड़ाक्यूमेंट्री बनानी चाहिए ताकि विश्व में यह पता लग सके कि ब्रिटिश शासन में भारतीयों पर क्या-क्या अत्याचार हुए? पश्चिमी देश कहते है कि भारत को इससे घबराना नहीं चाहिए। इन पश्चिमी देशों में भी रुसी चैनल रशिया टूड़े के प्रसारण पर से प्रतिबंध हटा देना चाहिए। बीबीसी यह दिखाती है कि वह अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को लेकर चिंतित है। तो ऐसी हालत में बीबीसी को भारत के पड़ोसी देशों में वहां के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर ड़ाक्यमेंट्री जरुर बनानी चाहिए। बीबीसी को अपना वामपंथी मुखौटा हटाना चाहिए तथा मनुष्य व मानवता को सर्वोच्च स्थान देना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भारत में छवि एक प्रखर राष्ट्रवादी की बनती जा रही है जिनके लिए राष्ट्र भारत ही प्रथम है उन पर कोई आरोप चिपक ही नहीं पा रहा है।       

 

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।

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