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भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का बदलता परिदृश्य

निर्यात के क्षेत्र में प्रशंसनीय प्रदर्शन,  हमारे सकल घरेलू उत्पाद में महत्वाकांक्षी योगदान के रूप में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा को पूरा करता है। ऐसी आशा है कि दुनिया भर में डिजिटलीकरण विशेषकर सेवाओं में, पर जोर दिए जाने से निर्यात बहुत तेजी से बढ़ सकता है। - विनोद जौहरी

 

हमारे देश के  निर्यात परिदृश्य में हाल के वर्षों में एक बड़ा परिवर्तन आया है। हमारे विदेशी व्यापार के पारंपरिक उत्पादों में निर्यात की अपेक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रोद्योगिकी, सेवा क्षेत्रों और मशीनरी उत्पादन में लाभप्रद निर्यात बढ़ रहा है। 1990 के दशक की प्रारम्भ में, चाय, कॉफी और मसालों जैसी खाद्य वस्तुओं का भारत के निर्यात में बड़ा योगदान था फिर उसी कालखंड के अंत तक  टेक्सटाइल्स, रत्न और आभूषण और इंजीनियरिंग सामान जैसे विनिर्मित वस्तुओं की ओर एक बड़ा बदलाव आया। प्राथमिक वस्तुओं की हिस्सेदारी 1990 के दशक के प्रारम्भ में 70 प्रतिशत से सापेक्ष घटकर वर्तमान में लगभग 20 प्रतिशत रह गई है, जबकि औद्योगिक विनिर्मित वस्तुओं की हिस्सेदारी 1990 के दशक की शुरुआत में 30 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत से अधिक हो गई है। इंजीनियरिंग सामान, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल और पेट्रोलियम उत्पादों जैसे उच्च मूल्य वर्धित वस्तुओं की ओर हमारे वैश्विक व्यापार में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। वित्त वर्ष 2023 में हमारा सभी उत्पादों और  सेवा क्षेत्र का निर्यात 760 अरब डॉलर को पार करने का अनुमान है।

भविष्य के व्यापार को आकार देने वाले कारकों - प्रौद्योगिकी, भू-राजनीति और वैश्विक अत्यावश्यकताओं और जलवायु परिवर्तन - के साथ व्यापार परिदृश्य व्रहद रूप से बदल रहा है। विदेशी व्यापार में प्रौद्योगिकी की भूमिका सर्वोपरि है। जैसे-जैसे बदलती प्रौद्योगिकी के साथ व्यापार तेजी से आगे बढ़ा रहा है, वैसे ही हमारे विदेशी व्यापार और निर्यात की प्राथमिकताएं, आवश्यकताएँ, निर्यात के क्षेत्र, आयात में बदलाव और आयातित उत्पादों के विनिर्मित प्रॉडक्ट जैसे कच्चे तेल से भारत में विनिर्मित विभिन्न औद्योगिक, घरेलू और कॉस्मेटिक उत्पादों की मांग बढ़ रही है। 

सम्पूर्ण वैश्विक व्यापार में भी बड़ा परिवर्तन आया है। सकल विश्व व्यापार 1950 में 70 अरब डॉलर से बढ़कर 2022 में 28 ट्रिलियन डॉलर हो गया है। अतीत में, कोयला, तेल, कृषि उत्पाद आदि जैसी प्राथमिक वस्तुओं का विश्व व्यापार में बड़ा हिस्सा था। प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ, विनिर्मित वस्तुओं के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारी वृद्धि हुई है।

भारत का व्यावसायिक सेवाओं का निर्यात हाल ही में इतनी तीव्रता से बढ़ा है कि उनका अभिवृद्धि का प्रभाव अब सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं के निर्यात के समकक्ष हो रहा है। जबकि उनका आधार अपेक्षाकृत छोटा है, पिछले साल उनमें 21 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई, जबकि 2022 में सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं के निर्यात में वृद्धि 27 बिलियन डॉलर थी। सेवा व्यापार में वैश्विक तेजी है और इस क्षेत्र में भारत की हिस्सेदारी भी बढ़ रही है। यह वृद्धि लगभग आईटी सेवाओं के निर्यात में वृद्धि जितनी ही महत्वपूर्ण है। व्यावसायिक सेवाओं के निर्यात में वृद्धि संरचनात्मक कारकों जैसे सेवा मूल्य श्रृंखलाओं के पृथक्करण और दूरस्थान (रिमोट एक्सैस) से सेवाएं प्रदान करने की क्षमता के कारण है। इनके पीछे संरचनात्मक और आवर्ती दोनों कारण हैं। भारत के सेवा व्यापार बाजार में हिस्सेदारी हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण संरचनात्मक कारण सेवा मूल्य श्रृंखलाओं में पृथक्करण है और यह विशेषज्ञता, नवाचार और नवोन्मेष को प्रोत्साहित करता है और व्यापार में संवर्धन करता है।

इन्हीं कारणों से वित्तीय, संचार, कंप्यूटर, तकनीकी, विधिक, विज्ञापन और व्यावसायिक सेवाओं में वैश्विक व्यापार तेजी से बढ़ रहा है और अब वैश्विक सेवा व्यापार का वैश्विक व्यापार में 40 प्रतिशत हिस्सा है। यही सेवाएँ भारत के सेवा निर्यात का मुख्य  भाग हैं, कुल निर्यात का 75 प्रतिशत होने के कारण, इनका विस्तार विश्व में तेजी से बढ़ रहा है। इसके अतिरिक्त, वैश्विक वित्तीय, संचार, कंप्यूटर, तकनीकी, कानूनी, विज्ञापन और व्यावसायिक सेवाओं में भारत की हिस्सेदारी भी 2018 में 6 प्रतिशत से बढ़कर पिछले साल 8 प्रतिशत हो गई है।

भारत में, आयात और निर्यात दोनों की वृद्धि 2017 से बढ़नी शुरू हुई और कोविड के दौरान इसमें और तेजी आई। निर्यात ने बेहतर प्रदर्शन किया है, जिससे सेवा निर्यात के हिस्से के रूप में शुद्ध प्राप्तियों सहित अप्रत्यक्ष सेवाओं की परिमाण दोगुना हो गया है। इस गति से, तीन वर्षों में सेवा क्षेत्र में अप्रत्यक्ष सेवाओं का निर्यात बढ़कर 265 अरब डॉलर हो जाएगा।  

सेवा क्षेत्र में निर्यात के फलस्वरूप अगले तीन वर्षों में लगभग 30 लाख प्रत्यक्ष नए रोजगार स्रजित हो सकते हैं, जिनमें से 20 लाख उच्च वेतन योग्य नौकरियाँ होंगी। यदि यह प्रगति सतत रही, तो यह भारत के युवा वर्ग की आकांक्षाओं के साथ-साथ इसके मध्यम वर्ग और शहरों के लिए भी उतना ही परिवर्तनकारी हो सकता है जितना पिछले तीन दशकों में सूचना प्रोद्योगिकी की सेवाओं में रहा है।

इससे यह स्पष्ट हैं कि व्यावसायिक सेवाओं का निर्यात वर्ष 2020-21 में शून्य से 0.3 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 7.3 बिलियन डॉलर और इसके बाद बढ़कर वर्ष 22-23 के पहले नौ महीनों में 14.7 बिलियन डॉलर हो गया है। 

भारत की केन्द्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने अभी हाल ही में कहा था कि सरकार का ध्यान वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए चार आधारभूत प्राथमिकताओं - इनफ्रास्ट्रक्चर अर्थात बुनियादी ढांचे, निवेश, नवाचार और समावेशन पर है।  निर्यात प्रोत्साहन योजनाएं और क्षेत्र-विशिष्ट उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाएं, भारत को उच्च मूल्य वाली वस्तु और सेवा निर्यातक बनने में सक्षम बना रही हैं। सुद्रढ़ घरेलू विनिर्माण परिदृश्य के कारण देश ने इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि प्राप्त की है। उदाहरण के लिए, भारत का स्मार्टफोन निर्यात, जो 2014 में लगभग न के बराबर था, वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं की बढ़ती उपस्थिति के कारण वित्त वर्ष 2023 में 11 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड आंकड़े तक पहुंच गया है। फार्मास्यूटिकल्स, बल्क ड्रग पार्क, सक्रिय फार्मास्युटिकल्स सामग्री आदि के लिए पीएलआई योजनाओं से ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल्स उद्योग को भी लाभ हुआ है। हालांकि, वैश्विक सहयोग और महत्वपूर्ण दवाओं के विपणन में वृद्धि के कारण महामारी से संबन्धित वर्षों में निर्यात में भी वृद्धि हुई है। जबकि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से विनिर्मित पेट्रोलियम पदार्थों के निर्यात में वृद्धि हुई है।  

कुछ विशेष कारकों ने विनिर्माण क्षमताओं को उत्प्रेरित किया है -

1. विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करनाः 2014 में ’मेक इन भारत’ आंदोलन की शुरुआत के बाद से, वार्षिक एफडीआई वृद्धि 2014-2015 में 45 बिलियन डालर से दोगुनी होकर 2021-2022 में 84 बिलियन डालर हो गई है, जिससे विनिर्माण क्षेत्र में सुधार हुआ है यद्यपि अगले वर्ष 2022-23 में वार्षिक निवेश में यह घटकर 71 बिलियन डॉलर रह गया। सरकार ने रक्षा उत्पादन और दूर संचार में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दी है। इसके अलावा, ऑटोमोबाइल, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य उत्पादों जैसे क्षेत्रों में कई पीएलआई योजनाएं घरेलू निर्माताओं को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिए सशक्त बना रही हैं। भारत लॉजिस्टिक्स में सुधार पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। लॉजिस्टिक्स लागत को और कम करने और हमारे उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए पीएम गति शक्ति और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति जैसे  सुधार लागू किए गए हैं। विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में पिछले कुछ वर्षों में काफी सुधार हुआ है, जो 2014 में 54 से बढ़कर 2018 में 44 हो गई और 2023 में आगे बढ़कर 38 हो गई।

2. व्यापार नियमः सरकार ने निर्यात-विशिष्ट नियामक विकास पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे निर्यातकों को वैश्विक स्वीकृति और प्रतिष्ठा मिली है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की व्यापार संगत योजनाओं, जैसे निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों में छूट (आरओडीटीईपी) और राज्य और केंद्रीय करों और लेवी में छूट (आरओएससीटीएल) का प्रारम्भ लाभप्रद सिद्ध हुआ है। हाल ही में, सरकार ने वैश्विक स्तर पर अपने शिपमेंट को बढ़ावा देने के लिए त्वक्ज्म्च् योजना के तहत लागू वस्तुओं की सूची को 8,731 से बढ़ाकर 10,481 कर दिया है। इनमें रसायन, फार्मा और कपड़ा क्षेत्रों के उत्पाद सम्मिलित हैं।

3. परिवर्तित वैश्विक परिदृश्यः विकसित अर्थव्यवस्थाओं के बीच ’चीन प्लस वन’ रणनीति की बढ़ती भावना उत्पादों और सेवाओं को  वैश्विक परिदृश्य में समाहित कर रही हैं। भारत को नीदरलैंड, ब्राजील और सऊदी अरब जैसे नए बाजारों से भी मांग बढ़ रही है, जिससे निर्यात में वृद्धि हो रही है। इसके अतिरिक्त, भारत आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) पर हस्ताक्षर करने में सक्रिय रहा है। हाल ही में, भारत ने मॉरीशस, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात के साथ एफटीए सौदे संपन्न किए हैं, जिससे हमारे निर्यातकों को और प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है। उदाहरण के लिए, भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते से 2035 तक कुल द्विपक्षीय व्यापार 45-50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की आशा है।

4. दक्षिण पूर्व एशिया से मुख्य अधिगमः भारत को वैश्विक व्यापार स्वरूप में स्वयं को और अधिक उन्नत और महत्वपूर्ण बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि 2022 में वैश्विक निर्यात में देश की हिस्सेदारी केवल 2.1 प्रतिशत थी। सरकार दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से रणनीतिक प्रेरणा ले सकती है जो इसका वैश्विक स्तर पर व्यापारिक अवसर का लाभ उठा रहे हैं। कम श्रम लागत, टैरिफ में कमी और व्यापार संबंधों में उल्लेखनीय वृद्धि ने इन देशों की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाया है। इसके अतिरिक्त, हांगकांग (एसएआर) चीन, सिंगापुर, मलेशिया और वियतनाम लगातार उच्च मूल्य वाले उत्पादों के उत्पादन और निर्यात पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, हांगकांग (एसएआर) चीन के लिए विनिर्मित निर्यात के प्रतिशत के रूप में उच्च-प्रौद्योगिकी निर्यात लगभग 71 प्रतिशत है जबकि भारत के लिए, यह केवल 10 प्रतिशत के आसपास है।

5. नियामक सुधारः भारत ने अपने निर्यात के स्वरूप में सुधार के लिए महत्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन लागू किए हैं। उदाहरण के लिए, नई विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) भारत के व्यापार को आवश्यक बढ़ावा देगी। इस नीति की प्रमुख विशेषताओं में हमारी मुद्रा रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण, डिजिटल परिवर्तन, बेहतर सहयोग और नीति उन्नयन के लिए एक गतिशील अवधि शामिल है। व्यापार में दक्षता और जवाबदेही को सुविधाजनक बनाने के लिए, भारत मौजूदा कई निर्यात संवर्धन परिषदों की जगह एक एकल व्यापार निकाय स्थापित करने की भी योजना बना रहा है। इसके अलावा, स्थिर लागत संरचना बनाए रखने के लिए इनपुट टैरिफ में सुधार पर भी विचार किया जा सकता है।

पिछले कई वर्षों से, भारत वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं का एक अभिन्न अंग बनने का प्रयास कर रहा है। रु. 1.97 ट्रिलियन उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों (पीएलआई) ने उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों को जबरदस्त बढ़ावा दिया है। टैरिफ समायोजन से भी निर्यात में आसानी हुई है। भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में 10.9 बिलियन डॉलर और चालू वित्तीय वर्ष वित्त वर्ष 24 की पहली तिमाही में 3.7 बिलियन डॉलर के स्मार्टफोन का निर्यात किया, जबकि आयात पर 20 प्रतिशत टैरिफ लगता है।

जी20 की अध्यक्षता और भारत की वर्तमान बढ़त का लाभ उठाते हुए, निवेश, व्यापार, प्रौद्योगिकी और पर्यटन पर ध्यान देने के साथ वैश्विक बाजारों तक तीव्रता और महत्वाकांक्षा के साथ पहुंच बनाना अपेक्षित है। निर्यात के क्षेत्र में प्रशंसनीय प्रदर्शन,  हमारे सकल घरेलू उत्पाद में महत्वाकांक्षी योगदान के रूप में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा को पूरा करता है। ऐसी आशा है कि दुनिया भर में डिजिटलीकरण विशेषकर सेवाओं में, पर जोर दिए जाने से निर्यात बहुत तेजी से बढ़ सकता है।  

(स्रोत - इकोनॉमिक टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, लाइव मिंट, मनी कंट्रोल)

विनोद जौहरीः सेवानिव्रत अपर आयकर आयुक्त, दिल्ली 

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