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दिल्ली का बजटः झूठ की चासनी में जुमलों की सौगात

केजरीवाल के वे सभी वायदे नारे दिल्ली तक अभी भी नहीं पहुंचे जो वे दूसरे राज्यों में चुनाव जीतने के लिए करते आ रहे हैं। — विक्रम उपाध्याय

 

अरविंद केजरीवाल ऐसे दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा देश के नेता बनने की है, लेकिन उसके लिए जो रास्ता उन्होंने चुना है  वह कर के नेता बनने वाला नहीं कह कह के नेता बनने वाला है। वह संभवतः देश की जनता को इतने कम समझ वाली मानते हैं कि जो चाहे दावा और वायदा कर डालते हैं, जबकि उनको भी मालूम है कि जो कह रहे हैं वह खालिस बकवास के अलावा कुछ भी नहीं है। 

पिछले सात साल से वह दिल्ली के मुख्यमंत्री है और उनके हर भाषण में उनका एक ही जुमला होता है, दिल्ली का स्कूल ठीक कर दिया दिल्ली का अस्पताल ठीक कर दिया। अब वही बता सकते हैं कि अगले कितने साल तक वह इस जुमले को दोहराते रहेंगे। अभी दिल्ली का बजट आम आदमी पार्टी की सरकार ने प्रस्तुत किया। 75,800 करोड़ के दिल्ली के बजट में क्या ऐसा किया है कि जो हर साल लाखों रोजगार के अवसर उत्पन्न हो जाएंगे, केजरी सरकार ने कोई स्पष्टता नहीं दी है। सिवाय इसके कि बपरोला दिल्ली में एक नया इलेक्ट्रानिक सिटी बनाने की घोषणा के। बाकी जितने भी रोजगार सृजन के विकल्प बताए गए हैं, सब पहले से चल रहे हैं, अरविंद केजरीवाल ने उसपर नया लिफाफा चढ़ाने का प्रयास किया है। 

दिल्ली वर्षों से खुदरा और थोक कारोबार का गढ़ रही है। यहां से पूरे भारत के लोग सामान खरीद कर ले जाते रहे हैं, इसके लिए दिल्ली सरकार 100 करोड़ रुपये खर्च कर रिटेल व्यवसाय को आकर्षक बनाने का जो दावा कर रही है, दरअसल वह निजी व्यवसायियों के कारोबार को अपने जरिए होने का दावा करने का एक सस्ता फार्मूला है। ठीक उसी तरह जैसे पहले रोजगार का पोर्टल बनाकर रोजगार मुहैया कराने का दावा केजरीवाल ने किया था। नौकरी देने वाले और नौकरी मांगने वाले का नाम अपने पोर्टल पर ले आओ और रोजगार देने का दावा कर डालो।

लिफाफा बदलने के इस काम का नमूना इस उदाहरण से देखा जा सकता है। दिल्ली में पांच बड़े रिटेल मार्केट हैं। 2022 के बजट में कहा गया है कि 100 करोड़़ के लागत से सुविधाओं में विस्तार किया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोग मार्केट में आए और रोजगार बढ़े। जरा चांदनी चौक बाजार में ही जाकर देखें। वहां आज तक महिलाओं के लिए उचित शौचालय का निर्माण नहीं हुआ है। ढ़ांचागत विकास की मांग काफी समय से व्यापारी कर रहे हैं। पिछले अक्टूबर में दिल्ली के वित मंत्री मनीष सिसोदिया ने वहां का दौरा भी किया, लेकिन जिस बजट को रोजगार बढ़ाने वाला बजट केजरीवाल की सरकार बता रही है वह तो चांदनी चौक के बाजार को भी ठीक करने के लिए पैसे आवंटित नहीं कर रही है। गांधी मार्केट, कृष्णा मार्केट, सरोजिनी नगर करोल बाग में पिछले छह साल में कितना विकास हुआ है यह बताने की स्थिति में खुद  केजरीवाल भी नहीं है।

केजरीवाल को इतना जरूर मालूम है कि देश में आने वाले सभी चुनावों में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा रहने वाला है। पहले कोरोना, फिर रूस -यूक्रेन युद्ध, अमेरिका का रूस ईरान और चीन पर प्रतिबंध और फिर पूरे विश्व में छायी महंगाई। लोगों के सामने समस्याएं तो होंगी, जिसका तत्काल हल ढूंढने में सभी सरकारें लगी हैं। लेकिन केजरीवाल को इसमें लगना नहीं है। बेरोजगारी की समस्या में अपनी झूठ की राजनीति का छौंक लगाना है। इसके लिए उन्हें कुछ खास नहीं करना बस झूठ ही तो बोलना है तो उसकी आदत पहले से ही बनी हुई है। 

अगले पांच साल में दिल्ली में 20 लाख रोजगार देने के वायदे वाले बजट में प्रावधान भले ही ना किया हो दावे तो किए ही जा सकते हैं। जैसे अभी तक किए गए हैं। मसलन केजरीवाल ने पोर्टल में लोगों का नाम चढ़ाया और पिछले पांच साल में जितनी भी निजी कंपनियों में नौकरी मिली सब पर अपने श्रेय का लिफाफा चढ़ा दिया। 10 लाख नौकरियां निजी क्षेत्रों ने दिया, जिसे केजरीवाल ने अपने नाम कर लिया। खुद ही विधानसभा में डरते डरते यह दावा किया कि उन्होंने भी पिछले छह साल में 53 हजार नौकरियां दी हैं। वो दावा भी कितना सच्चा है यह तो केजरीवाल ही जानते हैं। यदि इस दावे में सच्चाई होती तो सूचना के अधिकार के माध्यम से यह जानकारी क्यों आती कि पिछले  छह साल में केवल 464 लोगों को ही सरकारी नौकरी मिली है। विकास के नाम पर इतना बड़ा भोपूं। 

केजरीवाल जानते हैं कि गुजरात, हिमाचल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलांगना के चुनाव होने वाले हैं। अधिकतर राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी का मुकाबला होना है। बीजेपी से पार पाना भले ही मुश्किल है, लेकिन कांग्रेस को हटा कर उसकी जगह अपनी पहुंच बनाने का यह मौका है। केजरीवाल को यह भी मालूम है कि मुश्किल से दो करोड़ की जनता वाली दिल्ली में उनका प्रदर्शन ब़ड़े राज्यों में कोई मायने नहीं रखता। ना ही दिल्ली में उनकी कथित उपलब्धि की छाप ही कहीं दिखाई पड़ सकती है। 

आधी दिल्ली केंद्र के अधीन है, वहां केंद्र सरकार के  अपने सुविधा केंद्र हैं। अपने अस्पताल हैं, अपने स्कूल हैं। फिर निजी क्षेत्र  भी यहां काफी मजबूत है। अकेले दिल्ली में 100 से अधिक बड़े निजी अस्पताल हैं। 50 प्रतिशत स्कूलों की संख्या निजी क्षेत्र की है। केजरीवाल ने अभी तक दिल्ली की उन सारी समस्याओं को केंद्र के मत्थे मढ़ दिया है, जब जब वह पूरी तरह विफल रहे हैं। दिल्ली में जब प्रदूषण का लेवल हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो वह केंद्र के बिजली घरों और हरियाणा व पंजाब के किसानों पर दोष मढ़कर निकल जाते हैं। दिल्ली में पानी का जब संकट आता है तो वह भी हरियाणा का दिया हुआ बता कर छुप जाते हैं। जब कभी किसी ने यमुना को साफ करने के उनके वायदे के बारे में पूछा तो वह एक नई तारीख बता देते हैं।

केजरीवाल के वे सभी वायदे नारे दिल्ली तक अभी भी नहीं पहुंचे जो वे दूसरे राज्यों में चुनाव जीतने के लिए करते आ रहे हैं। पंजाब में उन्होंने हर महिला को एक हजार रूपया प्रति महीना देने का वायदा तो किया है, लेकिन सात साल से दिल्ली में सरकार चलाने के बावजूद किसी महिला को एक भी पैसा नहीं दिया है। उत्तराखंड में चुनाव जीतने के लिए केजरीवाल ने यह तो घोषणा कर दी थी कि हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देंगे, लेकिन दिल्ली में नौकरी देने के बजाय नौकरी का पोर्टल लांच करने की बात करते हैं। गोवा और पंजाब को नशामुक्त करने का वायदा तो उन्होंने किया, लेकिन दिल्ली की हर गली में शराब की दुकान लाइसेंस दे दिया है। उन्हें नहीं मालूम कि जनता विकास और विकास के भोपूं में अंतर खूब समझती है। दिल्ली और पंजाब को छो़ड़ केजरीवाल ने जिस राज्य के विधानसभा चुनाव में अपने उम्मरीद्वार खड़े किए, उनमें 10 में से नौ की जमानत जब्त हुई है। पर क्या करें बंदा झूठ बोलने की आदत से मजबूर है। 

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