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जीडीपी में गिरावट का अर्थशास्त्र

भविष्य में औद्योगिक और प्रौद्योगिकी विकास के नए अवसर मिलने वाले हैं। कहा जा सकता है कि जीडीपी में वर्तमान संकुचन आया है, लेकिन भविष्य उज्जवल है। लेकिन उसके लिए सरकार, उद्योग और जनता सभी को प्रयास करने होंगे। — डॉ. अश्वनी महाजन

 

31 अगस्त 2020 को केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। जीडीपी में यह गिरावट कृषि को छोड़ अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में दिखाई दे रही है। जबसे जीडीपी के आंकड़े प्रकाशित होना शुरू हुए तब से यह पहली ऐसी घटना है जब किसी एक तिमाही में जीडीपी में इतनी बड़ी गिरावट आई है। हालांकि बड़ी गिरावट के आंकड़े घोषित हुए हैं, लेकिन वे अप्रत्याशित कतई नहीं है। सभी जानकार मान रहे थे कि इस तिमाही में जब पूरा देश लॉकडाउन में रहा, उत्पादन केंद्र ही नहीं बल्कि सभी सरकारी और गैर सरकारी कार्यालय भी बंद थे। अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों के अलावा सामान्यतः किसी अन्य का इलाज नहीं हो रहा था। टयूशन सेंटर समेत सभी सरकारी एवं गैर सरकारी शिक्षा केंद्र बंद थे। रेल मेट्रो सार्वजनिक परिवहन सेवाएँ तो बंद थी ही, निजी वाहनों का भी आवागमन बंद था। संगठित क्षेत्र में सरकारी और गैर सरकारी रोजगार के अवसर तो लगभग सुरक्षित थे, कैजुअल रोजगार लगभग समाप्त हो गया था। और अधिकांश मजदूर वापस अपने स्थानों पर पलायन कर गए थे, ऐसे में जीडीपी में गिरावट संभावित ही थी।

सामान्यतौर पर जब किसी अर्थव्यवस्था में जीडीपी ग्रोथ प्रभावित होती है तो उसकी जिम्मेदारी उस देश की सरकार की आर्थिक नीतियों और कार्य निष्पादन पर आती है। लेकिन जीडीपी में यह गिरावट सरकार की नीतियों की खामियों के कारण नहीं बल्कि ईश्वरीय आपदा (जिसे एक्ट ऑफ गॉड भी कहा जाता है) के कारण है। कोरोना के संक्रमण से शायद ही कोई देश अछूता रहा होगा लेकिन इस दौरान आर्थिक गतिविधियों में गिरावट सभी देशों में एक समान नहीं रही। जीडीपी में जहां भारत में 23.9 प्रतिशत की गिरावट रही, इंग्लैंड में यह गिरावट 20.4 प्रतिशत, फ्रांस में 13.8 प्रतिशत, इटली में 12.4 प्रतिशत, कानाडा में 12 प्रतिशत, जर्मनी में 10 प्रतिशत और अमेरिका में यह गिरावट 32.9 प्रतिशत की रही। कहा जा सकता है कि अमेरिका की तुलना में भारत की जीडीपी में गिरावट कम है। लेकिन प्रश्न यह है कि अप्रैल-जून की तिमाही में भारत की जीडीपी में इतनी बड़ी गिरावट क्यों आई, जबकि अमेरिका को छोड़, अन्य मुल्कों में यह गिरावट अपेक्षाकृत कम रही? इसका कारण यह है कि भारत में लॉकडाउन सबसे पहले लगाया गया और शेष मुल्कों ने इसे लगाने में देरी की। विश्व के देशों की सरकारों के पास दो विकल्प थे, एक अर्थव्यवस्था को बचाने का और दूसरा लोगों को लोगों के जीवन को बचाने का। अमेरिका यूरोप के देशों ब्राजील आदि, अर्थव्यवस्था बाधित न हो, इस उद्देश्य से लॉकडाउन को टालते रहे। भारत सरकार ने यह समझते हुए कि देश में स्वास्थ्य सुविधाएं अन्य मुल्कों की तुलना में कम है, और संक्रमण फैलने की स्थिति में हम उससे निपट नहीं पाएंगे, लॉकडाउन को जल्दी से लागू कर दिया गया। दुनिया के विकसित देश तो इस गुमान में थे कि वह उनके उनके पास उत्तम स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं और महामारी से निपटने के लिए वे पूरी तरह से सक्षम हैं, इसलिए उन्होंने लॉकडाउन लागू करने में देरी की। परिणाम हमारे सामने है। अमरीका जिसकी जनसंख्या मात्र 33 करोड़ की है, जो भारत की जनसंख्या से एक चौथाई से भी कम है, में कोरोना संक्रमण से पीड़ित लोग, भारत में कोरोना संक्रमित 56 लाख की तुलना में, कहीं ज्यादा यानि 69.4 लाख हैं। इसी प्रकार ब्राजील जिसकी जनसंख्या भी मात्र 21.3 करोड़ है, में 40.5 लाख लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। भारत में कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों की मृत्यु दर 1.75 प्रतिशत है, जबकि अमरीका में यह दर 3.1 प्रतिशत, ब्राजील में 3.2 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका में यह 2.1 प्रतिशत है। ईटली में तो यह 13.7 प्रतिशत रही। अमेरिका तो अपनी अर्थव्यवस्था को भी बचा नहीं पाया। यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन भी लॉकडाउन की बजाय इस बात पर बल देता रहा कि कोरोना से निपटने के लिए ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग (टेस्टिंग एंड टेस्टिंग) एकमात्र हल है। भारत जानता था कि उस समय टेस्टिंग की पर्याप्त सुविधाएं हमारे पास नहीं थीं। ऐसे में सरकार के पास दो विकल्प थे एक अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए जीवन को सामान्य रूप से चलाए रखा जाएय और दूसरा जीवन को बचाने के लिए लॉकडाउन लगा दिया जाए, और इस बीच अस्पताल, दवाइयां, वेंटीलेटर, पीपीई किट्स और टेस्टिंग सुविधाओं को बेहतर किया जाए। भारत सरकार ने दूसरा विकल्प चुना और शेष दुनिया ने भी दूसरा विकल्प चुना लेकिन देरी से। इसलिए इन देशों में पिछली तिमाही में जीडीपी में गिरावट तो आई, लेकिन यह गिरावट देरी से आना शुरू हुई। लेकिन इस बीच उन्हें भारी महामारी और उसके कारण मृत्यु का सामना करना पड़ा और कम स्वास्थ्य सुविधाओं के बावजूद भारत दुनिया में सबसे कम मृत्यु दर वाले देशों की श्रेणी में रहा।

अल्पकालिक है यह मंदी

देश और दुनिया की जीडीपी में गिरावट अल्पकालिक ही है, क्योंकि संक्रमण समाप्त होने के बाद अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने वाली है। मांग में आई वर्तमान कमी की भरपाई भी आने वाले समय में होगी, जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में पेंटअप डिमांड कहा जाता है। कारों की बढ़ती माँग से इस बात का आभास पहले से ही होना शुरू हो चुका है।

भविष्य है उज्जवल

शेष दुनिया के बारे में तो कहना कठिन है लेकिन भारत ने इस महामारी से एक बड़ी सीख ली है। प्रधानमंत्री के अनुसार यह सीख है आत्मनिर्भरता की। पिछले दो दशकों से हमारे देश की निर्भरता चीन पर बढ़ती ही जा रही थी। इसके कारण हमारी मेन्युफैक्चरिंग पर प्रतिकूल असर पड़ रहा था।

2012 से लेकर 2015 तक हमारे औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की ग्रोथ लगभग शून्य तक पहुंच चुकी थी। हालांकि पिछले कुछ समय से उसमें थोड़ा बहुत सुधार दिखाई दे रहा है। लेकिन चीन और शेष दुनिया पर हमारी निर्भरता में कोई बड़ा असर नहीं पड़ा था। महामारी के दौरान आवश्यक पीपी किट्स, मास्क, वेंटीलेटर, टेस्टिंग किट्स और चिकित्सा उपकरणों की कमी के चलते, देश में इन वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाकर अपनी और अन्य देशों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने से देश में एक आत्मविश्वास का वातावरण बना है। सरकार ने भी संकल्प लिया है कि देश में प्रयास पूर्वक आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को पूरा करने के लिए दवा उद्योगों के लिए कच्चा माल (एपीआई), इलेक्ट्रॉनिक, केमिकल्स, खिलौने, धातुएं, फर्टिलाइजर आदि तमाम वस्तुओं का देश में उत्पादन बढ़ाया जाएगा। उसके लिए सरकारी सहायता, वित्त, मार्केटिंग आदि के अलावा आयात शुल्क में वृद्धि, एंटी डंपिंग ड्यूटी समेत सभी अन्य उपाय अपनाए जाएंगे। शेष दुनिया की कई कंपनियां जो चीन में कार्यरत थी, वे भी वहां से स्थानांतरित होकर अन्य देशों में जा रही हैं और उनमें से कई भारत में भी आ रही हैं। यानी भविष्य में औद्योगिक और प्रौद्योगिकी विकास के नए अवसर मिलने वाले हैं। कहा जा सकता है कि जीडीपी में वर्तमान संकुचन आया है, लेकिन भविष्य उज्जवल है। लेकिन उसके लिए सरकार, उद्योग और जनता सभी को प्रयास करने होंगे।  

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