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अर्थव्यवस्था में उछाल

31 अगस्त 2021 को प्रकाशित जीडीपी के आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 2011-12 की स्थिर कीमतों के आधार पर भारत की जीडीपी पिछले वर्ष की इस तिमाही की तुलना में 20.1 प्रतिशत के उछाल के साथ 32.38 लाख करोड़ पहुंच गई है। यदि चालू कीमतों के आधार पर देखें तो पिछले वर्ष की इस तिमाही की तुलना में जीडीपी 26.5 प्रतिशत के उछाल के साथ 46.20 लाख करोड़ पहुंच गई है। जब हम इस तिमाही में आए इस उछाल का विश्लेषण करते हैं तो अर्थव्यवस्था के जिस क्षेत्र में सबसे बड़ा उछाल आया है वो औद्योगिक क्षेत्र है। जिसके महत्वपूर्ण घटक के नाते मैन्युफैक्चरिंग में 49.6 प्रतिशत का और कंस्ट्रक्शन (निर्माण) में 68.3 प्रतिशत का उछाल देखा जा रहा है। खनन में 18.6 प्रतिशत और व्यापार, होटल, यातायात और संचार सेवाओं में 34.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। वास्तव में कोविड के कारण मुश्किल में आई भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह बहुत बड़ी राहत का समाचार है। 

जहां सरकार इसके लिए अपनी नीतियों को श्रेय दे रही है, विपक्षी इस वृद्धि को पिछले वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के ठप्प होने के चलते जीडीपी में आई गिरावट के कारण जीडीपी में इस वृद्धि को कोई उपल्बधि नहीं मान रहे। अर्थशास्त्र की भाषा में इसे ‘लो बेस इफेक्ट’ के नाम से जाना जाता है। लेकिन यदि विपक्षियों की यह बात मान भी ली जाए तो भी यह बात तो स्वीकार करनी ही होगी कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड महामारी के उस दुष्प्रभाव से अब बाहर आने लगी है। 

वर्तमान आंकड़ों के आलोक में यह स्पष्ट हो रहा है कि अर्थव्यवस्था पूर्व में आई उस गिरावट के प्रभाव से बाहर आ रही है। मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों में सबसे बड़ी वृद्धि (234.4 प्रतिशत) व्यवसायिक वाहनों की बिक्री में हुई। उससे कम लेकिन बड़ी वृद्धि (110.6 प्रतिशत) निजी वाहनों की बिक्री में हुई। उससे कम लेकिन बड़ी वृद्धि (103.1 प्रतिशत) स्टील की बिक्री में हुई। सीमेंट के उत्पादन में भी भारी वृद्धि (52.9 प्रतिशत) दर्ज की गई। रेलवे यात्री यातायात (यात्री किलोमीटर) में 5560 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वस्तुओं और सेवाओं के आयात में 72.8 प्रतिशत और निर्यात 49 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक भी बढ़ा और मैन्युफैक्चरिंग में 53.7 प्रतिशत उछाल देखा गया। जल, बंदरगाह में ‘कारगो’ में 26.5 प्रतिशत और एयरपोर्टों पर ‘कारगो’ में 118.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। एयरपोर्टों पर यात्रियों की संख्या में 366.3 प्रतिशत वृद्धि हुई। 

अर्थव्यवस्था में आई इस अभूतपूर्व गिरावट के बाद सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रयास देखने को मिले। एक ओर इस गिरावट के कारण मजदूरों पर पड़े दुष्प्रभावों की भरपाई के लिए विशेष रोजगार कार्यक्रम, 80 करोड़ लोगों को मुत राशन की व्यवस्था, लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिए विभिन्न प्रकार के राहत एवं समर्थन की नीति और उपाय तो अपनाए ही गए, अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भरता की राह पर ले जाने के लिए भी प्रयास शुरू हुए हैं। 

गौरतलब है कि पिछले 20 सालों में चीन से असमान प्रतिस्पर्धा, चीन के द्वारा अपनाए जाने वाले अनैतिक हथकंडे जैसे गैरकानूनी निर्यात सहायताएं, गलत बिलिंग (अंडर इंवायसिंग), गैरकानूनी डंपिंग आदि के कारण देश का मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। अनेक उद्योग-धंधे बंद हुए और बेरोजगारी में वृद्धि हुई। कोरोना काल में भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में चीन के प्रति नाराजगी भी बढ़ी है और देशों में आत्मनिर्भरता की नई इच्छा जागृत हुई है। भारत सरकार द्वारा आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को लेकर कई प्रकार के उपाय अपनाए जा रहे हैं। सरकारी खरीद में भारत में निर्मित वस्तुओं को प्राथमिकता की नीति तो पिछले 4-5 साल से चल ही रही थी, अब सरकार द्वारा भारत में मैन्युफैक्चरिंग को पुनर्जीवित करने के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव) की योजना की घोषणा की गई है, जिसमें लगभग 2 लाख करोड़ रूपए की राशि अगले कुछ वर्षों के लिए आवंटित की गई है। चीन से आयातों को रोकने के लिए आयात शुल्क बढ़ाए जा रहे हैं, एंटी डंपिंग शुल्क भी लगाए जा रहे हैं और गैर-टैरिफ उपायों के द्वारा भी चीन से आयातों को रोकने का भरपूर प्रयास हो रहा है।

इन सब प्रयासों के चलते भारत के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को एक नया जीवन मिल सकता है। दुनिया भर में मैन्युफैक्चरिंग रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। अधिक रोजगार मिलने के कारण मैन्युफैक्चरिंग के माध्यम से आय के अधिक स्रोत उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए ऑटोमोबाईल क्षेत्र जो मैन्युफैक्चरिंग का बहुत बड़ा हिस्सा है, वहां पिछले तीन दशकों में उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि होने से एक ओर बड़ी संख्या में सहायक उद्योगों (अधिकांश छोटे उद्योगों) का सृजन हुआ है, तो दूसरी ओर ऑटोमोबाईल के बिक्री केन्द्र और अन्य सहायक गतिविधियों के माध्यम से बड़ी मात्रा में उद्यमों का निर्माण भी संभव हुआ है, जिससे न केवल रोजगार मिला बल्कि साथ ही साथ देश इस क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गया। यही नहीं आज भारत बड़ी मात्रा में ऑटोमाबाईल उत्पादों का निर्यात भी कर रहा है।

माना जा सकता है कि इस तिमाही में हुई वृद्धि से रोजगार और आमदनी में आयी कमी की भरपाई होगी, फिर भी एक तिमाही के नतीजों से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि अर्थव्यवस्था कठिनाईयों से बाहर आ गई है। इतना जरूर कहा जा सकता है कि यह नतीजे यह बताते हैं कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। महामारी के दौरान दुनिया भर में चीन के प्रति बढ़ते हुए गुस्से को एक अवसर में बदलकर भारत दुनिया में ‘मैन्युफैक्चरिंग हब’ बने, इस हेतु बड़े प्रयास करने की जरूरत होगी।
 

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