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पर्यावरण अैर जीवन

भारत में धीरे धीरे ही सही वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हो रही है। 2017 में 21.54 प्रतिशत, 2019 में 21.67 प्र्रतिशत, तथा 2021 में 21.71 प्रतिशत वन क्षेत्र था। ईंधन के लिए पेड़ां की कटाई की बजाय बिजली पर ध्यान दिया जाना चहिए। - डॉ. सूर्यप्रकाश अग्रवाल

 

पर्यावरण ठीक रहने पर ही मानव जीवन भी ठीक रहता है वरना तो मानव जीवन भी कठिनाई में पड़ जाता है तथा मनुष्य बार बार बीमार पड़ते रहते है। भारत का यह दुर्भाग्य है कि कोई भी राजनीतिक दल बढ़ते प्रदूषण की तरफ गम्भीरता से ध्यान नहीं देते है तथा वर्ष में एक दो बार पर्यावरण दिवस अथवा किसी अन्य मौके पर पौधारोपण करवा कर राजनीतिक दल अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते है। कोई भी राजनीतिक दल चुनावों में अपने घोषणा पत्र जारी करते समय उन घोषणा पत्रों में पर्यावरण के लिए कुछ भी नहीं लिखते है। पर्यावरण प्रदूषण भी उतनी ही गम्भीर समस्या है जितनी की भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बीमारी, मंहगाई आदि। राजनीतिक दलों को अपने अपने कार्यकर्ताओं को पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली अपनाने के लिए उद्बोधन करना चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रत्येक नागरिक की होती है।

भारत में धीरे धीरे ही सही वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हो रही है। 2017 में 21.54 प्रतिशत, 2019 में 21.67 प्र्रतिशत, तथा 2021 में 21.71 प्रतिशत वन क्षेत्र था। ईंधन के लिए पेड़ां की कटाई की बजाय बिजली पर ध्यान दिया जाना चहिए। इंर्धन के लिये बिजली का उत्पादन भी गैर पारम्परिक तरीके से हो रहा है। देश में 409 गीगा वाट का कुल बिजली का उत्पादन होता है। जिसमें 6.7 गीगा वाट परमाणु ऊर्जा संयत्रों में, 236 गीगा वाट बिजली का उत्पादन जीवाश्म ईंधन आधारित संयत्रों मे होता है। 166 गीगा वाट बिजली उत्पादन नवीकरणीय स्त्ऱोतों से होता है। जो इस प्रकार है। 61.9 गीगा वाट सौर ऊर्जा से, 46.8 गीगा वाट बिजली बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं से, 41.8 गीगा वाट बिजली का उत्पादन पवन ऊर्जा से होता है। 10.5 गीगा वाट बिजली का उत्पादन बायोमास से तथा 4.9 गीगा वाट बिजली का उत्पादन लधु जल विद्युत परियोजनाओं से स्थापित क्षमता है।

पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भारत ने कई लक्ष्य समय से पूर्व प्राप्त कर लिये है। भारत ने 40 प्रतिशत बिजली का उत्पादन 2030 तक गैर जीवाश्म ईंघन आधारित स्त्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया गया था जिस लक्ष्य को 2021 में ही प्राप्त कर लिया गया। इसी प्रकार 33-35 प्रतिशत तक कार्बन उत्सर्जन में कटौती का लक्ष्य 2030 तक किया गया है। वर्ष 2021 में ही भारत ने 28 प्रतिशत तक कार्बन उत्सर्जन तक कटौती का लक्ष्य प्राप्त कर लिया था। भारत में पैट्रोल में एथेनॉल को मिलाने का लक्ष्य प्राप्त कर लिया जायेगा। यह लक्ष्य 20 प्रतिशत तक रखा गया है तथा आशा की जानी चाहिए कि वह भी शीघ्र प्राप्त कर लिया जायेगा।

वन विभाग को चाहिए कि वह वन क्षेत्र में ईको टूरिज्म की परियोजनाओं को चलाये। हरियाली बढ़ेगी तो वन्य जीवो की संख्या भी बढ़ सकेगी तथा आसपास के ग्रामीणों को रोजगार मिल सकेगा। वन्य क्षेत्र में पर्यटकों के लिए केन्टीन व खेल कूद पार्क इत्यादि स्थापित होने से भी रोजगार बढ़ सकेगा। जैव विविधता बढ़ने से विदेशी पक्षियों का भी आगमन हो सकेगा जिनको देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। वन विभाग को चाहिए कि वह ग्रामीणों को वन व पर्यावरण संरक्षण का भी प्रशिक्षण दे जिससे वे क्षेत्र में आने वाले पर्यटकों के गाइड़ बन सकें।

नहर व रेल लाईनों के किनारे किनारे क्षेत्र में राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा महापुरुषों के जन्म दिवस तथा अन्य महत्वपूर्ण त्यौहारों व दिवसों आदि पर पौधारोपण के कार्यक्रम वन विभाग के द्वारा आयोजित किये जाने चाहिए जिससे पर्यावरण संरक्षण के विकास में तेजी आ सकें।

राजनीतिक दल अपने अपने कार्यकर्ताओं का उपयोग मात्र आंदेलन व प्रदर्शन इत्यादि आयोजित करने में ही करते है जिससे युवा कार्यकर्ताओं की शक्ति का सद्-उपयोग नहीं हो पाता है। किसी बात के विरोध में आंदोलन करते समय भी खाली पड़ी जमीनों पर पौधारोपण किये जाने चाहिए। आंदोलन में युवा शक्ति का निरर्थक नहीं सार्थक उपयोग किया जाना चाहिए। देश के पर्यावरण में सुधार पौधारोपण में तेजी लाने से ही बढ़ पायेगा। बस राजनीतिक दलों को अपनी दृष्किण में थोड़ा बदलाव लाना पडेगा और पर्यावरण में सुधार के लिए सरकार पर अपनी निर्भरता कम करनी पड़ेगी। सभी पक्ष व विपक्षी राजनीतक दलों को अपने अपने कार्यकर्ताओं को पर्यावरण की रक्षा तथा संरक्षण के लिए व्यक्तिगत एवम् सामूहिक कदम उठाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। भारतीय ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों को भी पर्यावरण के अनुकूल शीघ्र से शीध्र व लगातार वृक्षारोपण करवाना चाहिए।

 

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।

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