स्वास्थ्य पर होने वाले जेब से होने वाले खर्च में कई कारणों से भारी कमी आई है, इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना नामक सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम की शुरुआत है। - डॉ. अश्वनी महाजन
उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी) के दौर में सरकार द्वारा सामाजिक सेवाओं पर खर्च पर लगातार सबसे बुरा असर पड़ा है। सामाजिक सेवाओं में सबसे ज़्यादा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रभावित हुई हैं। गौरतलब है कि 1990-91 में स्वास्थ्य (जिसमें चिकित्सा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, जलापूर्ति एवं स्वच्छता, पोषण, बाल एवं विकलांग कल्याण शामिल थे) पर कुल सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 2.36 प्रतिशत था। हालांकि, एलपीजी से पहले के दौर में भी सार्वजनिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य संस्थाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन इन सुविधाओं को काफी हद तक सरकारी नीति निर्धारण के केंद्र में रखा जाता था। एलपीजी नीतियों के अंतर्गत निजीकरण के आगमन के साथ ही लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए बाजार की ताकतों की दया पर छोड़ दिया गया। हालांकि, एलपीजी से पहले के दौर और वर्ष 2000 तक स्वास्थ्य पर जेब से किए गए खर्च के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन माना जाता है कि एलपीजी नीतियों से पूर्व यह काफी कम मात्रा में होता था। अगर स्वास्थ्य की बात करें, तो स्वाभाविक रूप से किसी भी परिवार या व्यक्ति के लिए बीमारियों का इलाज हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण, लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं पर अपनी जेब से खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। लोगों की जेब से स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च न केवल मात्रात्मक रूप से बढ़ा है, बल्कि स्वास्थ्य सुविधाओं पर कुल खर्च के प्रतिशत के रूप में भी बढ़ा है। यह ध्यान देने योग्य है कि 1991 में स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय, जिसमें कई अन्य सेवाएं भी शामिल थीं, जीडीपी का 2.36 प्रतिशत था, 2013-14 तक स्वास्थ्य पर कुल व्यय घटकर 1.15 प्रतिशत हो गया और दूसरी ओर, लोगों की जेब से स्वास्थ्य पर खर्च 2013-14 में जीडीपी के 2.6 प्रतिशत तक पहुंच गया। यह उल्लेखनीय है कि एक समय स्वास्थ्य पर जेब से खर्च कुल स्वास्थ्य व्यय का 64.2 प्रतिशत तक पहुंच गया था। यह परिस्थिति जीडीपी के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय में गिरावट और परिणामस्वरूप सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति खराब होने, निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम की बाढ़ आने और वंचितों सहित आम लोगों में स्वास्थ्य के बारे में बढ़ती जागरूकता और चिंता का मिश्रित परिणाम थी।
स्वास्थ्य पर सरकार के खर्च में अनुपातिक कमी देश के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय भी रहा है, क्योंकि देश में व्याप्त गरीबी के कारण लोगों को इलाज के लिए पर्याप्त धन न होने के कारण, निजी स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च के कारण या तो बड़ी रकम उधार लेनी पड़ती है या अपनी संपत्ति बेचनी पड़ती है। सत्ता की बागडोर संभालने के बाद, नरेंद्र मोदी सरकार में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जनवरी 2015 में एक बयान में कहा, “स्वास्थ्य सेवा पर “विनाशकारी“ खर्च के कारण हर साल 630 लाख लोग गरीबी का सामना करते लगते हैं, जो गरीबी को कम करने और आय में वृद्धि के उद्देश्य से विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभों को बेअसर कर देता है,“ यह समस्या केवल भारत के साथ ही नहीं है, बल्कि पूर विश्व इससे प्रभावित हुआ है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में प्रकाशित डब्ल्यूएचओ के एक हालिया अध्ययन में कहा गया है, “यूरोप और मध्य एशिया में लोगों की बढ़ती संख्या को स्वास्थ्य सेवा पर इतना खर्च करना पड़ रहा है कि उनके पास अपनी अन्य आवश्यक जरूरतों के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं बचता है - जिसे ’भयावह स्वास्थ्य व्यय’ कहा जाता है, जो तब होता है जब एक परिवार द्वारा अपनी जेब से किया जाने वाला भुगतान एक निश्चित स्तर की भुगतान क्षमता से अधिक हो जाता है। और यह अधिक से अधिक आम होता जा रहा है।“
लेकिन भारत में संतोष की बात यह है कि हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य पर कुल व्यय के प्रतिशत के रूप में निजी जेब से किया जाने वाला व्यय वर्ष 2013-14 में 64.2 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2021-22 तक केवल 39.1 प्रतिशत रह गया है, जबकि सरकारी खर्च वर्ष 2013-14 में 28.6 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 48 प्रतिशत तक पहुंच गया है। अगर हम इसे दूसरी तरफ से देखें तो पता चलता है कि स्वास्थ्य पर कुल व्यय के प्रतिशत के रूप में सरकारी व्यय 2013-14 में मात्र 1.15 प्रतिशत से बढ़कर अब 1.9 प्रतिशत हो गया है।
यह कैसे संभव हुआ?
स्वास्थ्य पर होने वाले जेब से होने वाले खर्च में कई कारणों से भारी कमी आई है, इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना नामक सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम की शुरुआत है। इस योजना के तहत पात्र आबादी को आयुष्मान कार्ड जारी किए जाते हैं। वर्तमान में इस योजना के तहत करीब 35 करोड़ लाभार्थी हैं। आयुष्मान भारत कार्ड धारकों को 5 लाख रुपये तक का सुनिश्चित उपचार प्रदान किया जाता है। हालाँकि, इस योजना के तहत केवल इनडोर मरीजों (आईपीडी) का उपचार ही कवर किया जाता है, लेकिन अभी तक आउट पेशेंट (ओपीडी) सेवाओं को इस योजना के तहत शामिल नहीं किया गया है। इसके अलावा सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए कई कार्यक्रम भी शुरू किए हैं, जो स्वास्थ्य पर जेब से होने वाले खर्च को कम करने में भी मदद कर रहे हैं।
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का हाल ही में विस्तार किया गया है, जिसमें 70 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों को भी शामिल किया गया है, जिससे उन्हें व्यापक स्वास्थ्य सुविधा प्रदान किया जा सके। इसका मतलब है कि 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिक, चाहे वो किसी भी आय वर्ग के हों, अब आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के लाभों के लिए पात्र होंगे। इस योजना को 70 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों तक विस्तारित करने से निजी जेब से स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च और कम होगा और स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय के अनुपात में और वृद्धि होगी। गौरतलब है कि सरकार ने वर्ष 2025 तक स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय को 2.5 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य तय किया है।
विकसित देश बनने की ओर पहला कदम
समझना होगा कि जहां भारत में एक समय ऐसा आया कि स्वास्थ्य पर कुल खर्च में जेब से होने वाला खर्च लगभग 65 प्रतिशत तक पहुंच गया था और सरकार द्वारा स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च जीडीपी का मात्र 1.15 प्रतिशत तक ही रह गया था, और स्वास्थ्य पर होने वाले कुल खर्च में लोगों को जेब से लगभग 70 प्रतिशत तक देना पड़ता था, वहीं अब निजी जेब से होने वाला खर्च 39.1 प्रतिशत और स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च जीडीपी के 1.9 प्रतिशत तक पहुंचने से भारत अब दुनिया के उन चुनिंदा देशों, जो मध्यम आय वर्ग और उच्च मध्यम आय वर्ग की श्रेणी में आते हैं, के समकक्ष पहुंच रहा है। गौरतलब है कि वर्ष 2021 में विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार उच्च मध्यम आय वाले देशों में निजी जेब से होने वाला स्वास्थ्य पर खर्च, कुल स्वास्थ्य पर खर्च का औसतन 31.37 प्रतिशत था, मध्यम आय वर्ग के देशों में यह लगभग 34 प्रतिशत था। जिस गति से निजी जेब से खर्च कम हो रहा है, आशा की जा सकती है कि जल्द ही इस संदर्भ में देश नई उपलब्धियां हासिल कर सकेगा।