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भारत का गौरव चंद्रयान-3ः एक संक्षिप्त परिचय

अपने देश के युवाओं को इस वैज्ञानिक उपलब्धि से प्रेरित करने के लिए विद्यालयों में विज्ञान के विशेष सत्र बुलाकर वाद-विवाद, चर्चा, विमर्श और प्रबोधन के आयोजन करने चाहिए जिससे छात्रों में विज्ञान के प्रति रुझान बढ़े और स्वयं तथा देश के विकास में उनकी सशक्त भागीदारी हो। - विनोद जौहरी

 

भारत ने अन्तरिक्ष में एक और गौरवपूर्ण सफलता प्राप्त की, जब 14 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण किया गया। इस उपलब्धि के साथ भारत अमेरिका, अविभाजित रूस और चीन के बाद चौथा देश बन जाएगा। इसके बाद लैंडर के 23-24 अगस्त के बीच चांद की सतह पर पहुंचने की आशा है। कुल 42 दिन में चंद्रयान-3 चांद की सतह पर पहुंचेगा। लॉन्चिंग के बाद पहले चांद की कक्षा में पहुंचेगा फिर उसकी परिक्रमा करते हुए लैंड करेगा। इसने दूसरा ओरबिट रेंजिंग मेनूवर पूरा कर लिया है। इसकी लोकेशन 41,603 ग 226 ओरबिट में है। चंद्रयान-3 करीब 3.84 लाख किलोमीटर की दूरी तय करेगा। इसको चंद्रमा के साउथ पोल पर उतारा जाएगा। क्योंकि चांद का साउथ पोल नॉर्थ पोल से अधिक बड़ा है। यहां जल उपलब्ध होने की संभावना है। यह खोज आंतरिक सौर मंडल की स्थितियों का एक अपरिवर्तित ऐतिहासिक रिकॉर्ड प्रदान करेगी। इसके अलावा, इसके निकट के स्थान जो सदैव इसकी छाया में आच्छादित रहते हैं, उनमें जल की उपस्थिति की संभावना हो सकती है। इसका रोवर इसरो के वैज्ञानिकों को चंद्रमा की सतह से जुड़ी जानकारियां भेजेगा। रोवर चांद की सतह की बनावट से लेकर पानी की मौजूदगी के बारे में बताएगा। इसके विषय में मूल भूत वैज्ञानिक जानकारी होना भी आवश्यक है जिससे इस उपलब्धि का वास्तविक अर्थों में उत्सव मनाया जा सके। 

चंद्रयान-3 मिशन जुलाई 2019 के चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है जिसका उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक रोवर को उतारना था। पूर्व में विक्रम लैंडर की विफलता के बाद लैंडिंग क्षमताओं को प्रदर्शित करने हेतु एक और मिशन की खोज की आवश्यकता अनुभव की गई जो वर्ष 2024 में जापान के साथ साझेदारी में प्रस्तावित चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन से संभव है। कुल 43.5 मीटर लंबे चंद्रयान-3 में एक ऑर्बिटर और एक लैंडिंग मॉड्यूल है। चंद्रयान -3 इंटरप्लेनेटरी मिशन के प्रमुख तीन मॉड्यूल हैं- प्रणोदन मॉड्यूल, लैंडर मॉड्यूल और रोवर। यद्यपि इस ऑर्बिटर को चंद्रयान-2 जैसे वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित नहीं किया जाएगा। इसका कार्य केवल लैंडर को चंद्रमा तक ले जाने, उसकी कक्षा से लैंडिंग की निगरानी करने और लैंडर व पृथ्वी स्टेशन के मध्य संचार करने तक सीमित रहेगा।

इसे जीएसएलवी एमके-3 द्वारा एसडीएससी, श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया। प्रणोदन मॉड्यूल लैंडर और रोवर कॉन्फ़िगरेशन को 100 किमी चंद्र कक्षा तक ले जाएगा। प्रणोदन मॉड्यूल में चंद्र कक्षा से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और ध्रुवीय माप का अध्ययन करने के लिए हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (शेप) पेलोड का स्पेक्ट्रो-पोलारिमेट्री है। चंद्रयान -3 में एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल (एलएम), प्रोपल्सन मॉड्यूल (पीएम), और एक रोवर शामिल है, जिसका उद्देश्य इंटरप्लेनेटरी मिशनों के लिए आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों को विकसित करना और प्रदर्शित करना है। लैंडर में एक निर्दिष्ट चंद्र स्थल पर नरम लैंडिंग करने और रोवर को तैनात करने की क्षमता होगी जो अपनी गतिशीलता के दौरान चंद्रमा की सतह का इन-सीटू रासायनिक विश्लेषण करेगा। लैंडर और रोवर के पास चंद्रमा की सतह पर प्रयोगों को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक पेलोड हैं।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठनद्वारा विकसित जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-एमके 3 (जीएसएलवी-एमके 3) एक उच्च प्रणोदन क्षमता वाला यान है। यह एक तीन-चरणीय वाहन है, जिसे संचार उपग्रहों को भूस्थिर कक्षा में लॉन्च करने हेतु डिज़ाइन किया गया है। इसका द्रव्यमान 640 टन है जो 8,000 किलोग्राम पेलोड को लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) और 4000 किलोग्राम पेलोड को जीटीओ (जियो-सिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट - जीटीओ) में स्थापित कर सकता है।

तमिलनाडु के महेंद्रगिरि में इसरो प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स के हाई एल्टीट्यूड टेस्ट फैसिलिटी में 24 फरवरी को 25 सेकंड की नियोजित अवधि के लिए यह परीक्षण किया गया था।परीक्षण के दौरान सभी प्रणोदन पैरामीटर संतोषजनक पाए गए और भविष्यवाणियों के साथ निकटता से मेल खाते दिखे।क्रायोजेनिक इंजन को पूरी तरह से एकीकृत उड़ान क्रायोजेनिक चरण का अनुभव करने के लिए प्रणोदक टैंकों, चरण संरचनाओं और संबंधित द्रव लाइनों के साथ और एकीकृत किया जाएगा। चंद्रयान -3 में लॉन्चर संगतता, सभी आरएफ सिस्टम के एंटीना ध्रुवीकरण, कक्षीय और संचालित अवतरण मिशन चरणों के लिए स्टैंडअलोन ऑटो संगतता परीक्षण, और लैंडिंग मिशन चरण के लिए लैंडर और रोवर संगतता परीक्षण सुनिश्चित किए गए।

पूर्व में चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे, जो सभी चंद्रमाओं का अध्ययन करने के लिये वैज्ञानिक उपकरणों से लैस थे। ऑर्बिटर द्वारा 100 किलोमीटर की कक्षा में चंद्रमा को देखा गया था, जबकि चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिये लैंडर और रोवर मॉड्यूल को अलग किया गया था। इसरो ने लैंडर मॉड्यूल का नाम विक्रम, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के अग्रणी विक्रम साराभाई के नाम पर रखा था। इसे देश के सबसे शक्तिशाली जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल, जीएसएलवी-एमके 3 द्वारा भेजा गया था।यद्यपि लैंडर विक्रम द्वारा नियंत्रित लैंडिंग के बजाय क्रैश-लैंडिंग की गई जिस कारण रोवर प्रज्ञान को चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक स्थापित नहीं किया जा सका था। 

चंद्रयान-3 की कक्षाओं (ऑर्बिट) के विषय में भी संक्षिप्त जानकारी आवश्यक है। 

1. ध्रुवीय कक्षा- एक ध्रुवीय कक्षा वह कक्षा है जिसमें कोई पिंड या उपग्रह ध्रुवों के ऊपर से उत्तर से दक्षिण की ओर गुज़रता है और एक पूर्ण चक्कर लगाने में लगभग 90 मिनट का समय लेता है। इन कक्षाओं का झुकाव 90 डिग्री के करीब होता है। यहाँ से उपग्रह द्वारा पृथ्वी के लगभग हर हिस्से को देखा जा सकता है क्योंकि पृथ्वी इसके नीचे घूमती है। इन उपग्रहों के कई अनुप्रयोग हैं जैसे- फसलों की निगरानी, वैश्विक सुरक्षा, समताप मंडल में ओज़ोन सांद्रता को मापना या वातावरण में तापमान को मापना। ध्रुवीय कक्षा में स्थित लगभग सभी उपग्रहों की ऊँचाई कम होती है। एक कक्षा को सूर्य-तुल्यकालिक कहा जाता है क्योकि पृथ्वी के केंद्र और उपग्रह तथा सूर्य को मिलाने वाली रेखा के बीच का कोण संपूर्ण कक्षा में स्थिर रहता है।इन कक्षाओं को “लो अर्थ ऑर्बिट“ के रूप में भी जाना जाता है, जो ऑनबोर्ड कैमरा को प्रत्येक बार की जाने वाली यात्रा के दौरान समान सूर्य-रोशनी की स्थिति में पृथ्वी की छवियों को लेने में सक्षम बनाता है, इस प्रकार यह उपग्रह को पृथ्वी के संसाधनों की निगरानी के लिये उपयोगी बनाता है। यह सदैव पृथ्वी की सतह पर किसी बिंदु के ऊपर से गुज़रता है।

2. भू-तुल्यकालिक कक्षा- भू-तुल्यकालिक उपग्रहों को उसी दिशा में कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है जिस दिशा में पृथ्वी घूम रही है। जब उपग्रह एक विशिष्ट ऊँचाई (पृथ्वी की सतह से लगभग 36,000 किमी.) पर कक्षा में स्थित रहता है, तो वह उसी गति से परिक्रमा करता है जिस पर पृथ्वी घूर्णन कर रही होती है। जबकि भूस्थैतिक कक्षा भी भू-तुल्यकालिक कक्षा की श्रेणी में आते हैं, लेकिन इसमें भूमध्य रेखा के ऊपर कक्षा में स्थित रहने का एक विशेष गुण है। भूस्थिर उपग्रहों के मामले में पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल वृत्तीय गति हेतु आवश्यक त्वरण प्रदान करने के लिये पर्याप्त होता है। भू-तुल्यकालिक कक्षा या भूस्थैतिक कक्षा को प्राप्त करने के लिये एक अंतरिक्षयान को पहले भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा में लॉन्च किया जाता है। जियो-सिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट से अंतरिक्षयान अपने इंजन का उपयोग भूस्थैतिक और भू-तुल्यकालिक कक्षा में स्थानांतरित होने के लिये करता है।

अपने देश के युवाओं को इस वैज्ञानिक उपलब्धि से प्रेरित करने के लिए विद्यालयों में विज्ञान के विशेष सत्र बुलाकर वाद-विवाद, चर्चा, विमर्श और प्रबोधन के आयोजन करने चाहिए जिससे छात्रों में विज्ञान के प्रति रुझान बढ़े और स्वयं तथा देश के विकास में उनकी सशक्त भागीदारी हो।  

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