प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा के दौरान पेरिस में भारत के भुगतान प्लेटफॉर्म यूपीआई को शुरू किया गया। देखने में चाहे यह एक छोटी-सी शुरूआत लगती है, लेकिन यह भारत के भुगतान प्रणाली की दुनिया में बढ़ती पहचान का द्योतक है। यूपीआई की शुरूआत 2016 में भारत सरकार द्वारा समर्थित एजेंसी, नेशनल पेमेंट्स कॉरपेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) द्वारा की गई थी। यह एक त्वरित डिजिटल भुगतान प्रणाली है, जिसके माध्यम से विभिन्न बैंकों के बीच धन का स्थानांतरण किया जाता है। बड़ी बात यह है कि यह भारतीय रूपए पर आधारित है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस संबंध में फ्रांस में अपने वक्तव्य में यह कहा कि अब भारतीय फ्रांस के आईफिल टावर से भी रूपए में भुगतान कर सकेंगे। अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों में यूपीआई के इस्तेमाल के लिए यूपीआई इंटरनेशनल का एक नया फीचर यूपीआई में शामिल किया गया है। जिससे क्यूआर कोड की मदद से भारतीय बैंक खातों से विदेशों में भुगतान किए जा सकते हैं। भूटान, नेपाल, सिंगापुर, यूएई और मॉरिशिस में तो पहले से ही यूपीआई से भुगतान संभव था, और अब फ्रांस भी उस सूची में शामिल हो गया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2022 में कुल 149.5 लाख करोड़ रूपए के ऑनलाइन लेनदेन हुए। इन लेनदेनों में 126 लाख करोड़ रूपए के लेनदेन सिर्फ यूपीआई के माध्यम से हुए। देश में कुल लगभग 88 अरब ऑनलाइन लेनदेन रिकार्ड किए गए। प्राइस वाटरहाउस कूपर की एक रिपोर्ट के अनुसार ऑनलाइन भुगतान की संख्या 2026-27 तक एक अरब प्रतिदिन तक पहुँच सकती है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया में जितने ऑनलाइन लेनेदेन होते है, उसके 40 प्रतिशत से ज्यादा लेनदेन भारत में होते हैं। बड़ी बात यह है कि 2000 रूपये से अधिक के वैलेट भुगतान पर लगाये गये हालिया शुल्क के पहले, भारत में ऑनलाइन लेनदेन पूर्णतया मुफ्त रहा है। यूपीआई का अंतर्राष्ट्रीयकरण एनपीसीआई के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता है। 2022 में, एनपीसीआई ने घोषणा की कि वह उन बाजारों में यूपीआई भुगतान को सक्षम करने के लिए कई देशों में बैंकों और भुगतान कंपनियों के साथ काम करेगा। तब से यूपीआई को कई देशों में लॉन्च किया जा चुका है और कई अन्य मुल्कों में इस हेतु तैयारी चल रही है। उपयोगकर्ता अपने स्थान से अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी अधिक सुविधाजनक और सुरक्षित तरीके से भुगतान करने और प्राप्त करने में सक्षम होंगे। व्यापारी व्यापक ग्राहक आधार तक पहुंचने और भारतीय ग्राहकों से भुगतान स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यूपीआई सुविधाजनक होने के साथ साथ सुरक्षित भुगतान प्रणाली भी है। आज के साइबर अपराधों के युग में यह एक सुरक्षित भुगतान प्रणाली भी है जो उपयोगकर्ताओं के खातों की सुरक्षा के लिए दो-कारक प्रमाणीकरण का उपयोग करती है। इसलिए हम देखते हैं कि लेनदेन के इतने बड़े प्रमाण के बाद भी धोखाधड़ी न्यूनतम है। वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों में लागत बहुत अधिक है। यूपीआई के अंतर्राष्ट्रीयकरण से सीमा पार भुगतान की लागत को कम करने में भी मदद मिलेगी।
ग़ौरतलब है कि पिछले साल रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर यूरोपीय प्रणाली ‘स्विफ्ट’ में अचानक आई रुकावट के बाद यूपीआई को वैश्विक बनाने की मुहिम तेज हो गई है। अमेरिका ने रूस के साथ लेनदेन में सबसे बड़े वैश्विक भुगतान नेटवर्क स्विफ्ट को अचानक रोक दिया था। एक समय था जब पश्चिमी देशों का वित्तीय दुनिया पर शासन था, उनका न केवल अंतरराष्ट्रीय वित्त पर, बल्कि भुगतान प्रणालियों पर भी नियंत्रण था। वैश्विक भुगतान में स्विफ्ट का एकाधिकार था। पश्चिमी देश जब-तब दुनिया को धमकी देते रहते थे कि अगर कोई देश उनके कहे मुताबिक नहीं चलेंगे तो वे उस पर प्रतिबंध लगा देंगे. उनके प्रतिबंधों का मतलब आमतौर पर स्विफ्ट के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय भुगतान को रोकना होता है। अब जब रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोपीय संघ द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के मद्देनजर, भारत की ओर से भारतीय रुपये में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के निपटान को बढ़ावा देने के प्रयासों के साथ कई अन्य क्षेत्रीय ब्लॉक भी अपने सदस्यों की संबंधित घरेलू मुद्राओं में व्यापार के निपटान को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं, तो पश्चिमी ब्लॉक को ख़ासा अच्छा जवाब मिल रहा है। इससे दुनिया में डी-डॉलरीकरण की प्रक्रिया को भी बल मिल रहा है। रिजर्व बैंक द्वारा अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों में रूपये को अनुमति देने के बाद पिछले एक वर्ष से भी कम की अवधि में 19 देशों ने रूपये में भुगतान लेने के लिए उनके बैंकों द्वारा वोस्ट्रो खाते खोले गये हैं। इस पूरे परिदृश्य में, अंतर्राष्ट्रीय निपटान के लिए रूपे और यूपीआई को बढ़ावा देने और विदेशी बैंकों को भारतीय बैंकों में वोस्ट्रो खाते खोलने की अनुमति देकर रुपये में व्यापार के निपटान की सुविधा प्रदान करने का भारत का प्रयास, अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणालियों में गेम चेंजर साबित हो सकता है। घरेलू स्तर पर सिद्ध सफल यूपीआई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी बढ़ती स्वीकार्यता के साथ, भारत को अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणालियों में वैश्विक पहचान बनाने के लिए मदद भी मिल रही है।