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ग्रामीण विकास के लिए ग्रामीण खपत बढ़ाना जरूरी

कहावत है कि किसान खुश तो देश खुश।  किसान को दिया हुआ धन कभी बेकार नहीं जाता है। अब तो बैंकों के माध्यम से धन दिया जा रहा है जो सीधे सीधे किसान के पास आसानी से बिना किसी भ्रष्टाचार के पंहुच जाता है और पैसे को किसान व्यय करेगा तो उद्योग धन्धों का विकास होगा जिससे सम्पूर्ण देश की अर्थव्यवस्था पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। - डॉ. सूर्यप्रकाश अग्रवाल

 

भारत जैसे कृषि प्रधान देश के आर्थिक विकास में गांवों की अभूतपूर्व हिस्सेदारी होती है। भारत में 70 से 80 प्रतिशत की आबादी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से गांवों में निवास करती है। अतः इतनी बड़ी आबादी का देश की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान हो जाता है। ग्रामीण विकास से ही देश की आर्थिक प्रगति व आत्मनिर्भरता का रास्ता निकलता है।

देश का औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के लिए उस औद्योगिक उत्पाद की मांग होना लाजमी होता है। देश की बड़ी आबादी गांवों में रहती है और गांव वाले गरीब है तो औद्योगिक उत्पादन की भारी मांग कौन करेगा? अतः यदि गांव वालों को व्यय करने के लिए कुछ रकम दे दी जाय तो वे उस रकम को व्यय करके आवश्यक वस्तुओं की मांग करेंगे और उससे उद्योगों के उत्पादों की मांग बढ़ सकेगी। मांग बढ़ने से उद्योगों की स्थापना भी बड़ी मात्रा में हो सकेगी जिससे उद्योगों में रोजगार भी बढ़ सकेगा। ग्रामीण खपत में यदि बढ़ोत्तरी होती है तो उसका सीघा प्रभाव अन्य उद्योगों पर भी पड़ेगा। सरकार ने किसानों को 12000 रुपये वार्षिक दिये तो इससे बीज, खाद, कीटनाशक जैसे उद्योगों की मांग बढी जिससे उद्योगों का विकास हुआ। वहीं वस्त्र, दवाऐं, चमड़ा, बैकिंग व बीमा आदि सहित कई अन्य उद्योगों में बृद्धि व प्रगति हुई क्योंकि किसान ने सरकार से प्राप्त इस रुपये को व्यय किया। उद्योगों पर सरकार जीएसटी व आयकर वसूल करती है तो सरकार की आय भी बढ़ सकी व उद्योगों में बेरोजगारी की समस्या भी थोड़ी बहुत हल हो सकी।

सरकार ने इस बात को समझा तथा विकास की गति को तेज करने के लिए किसानों व ग्रामीणों के लिए विभिन्न योजनाऐं शुरु की जिसमें किसान सम्मान निधी, विधवाओं, बृद्धों व विकलांगों को पैंशन, आयुष्मान कार्ड, राशन कार्ड की प्रति  यूनिट पर पांच किलो खाद्यान्न, गैस, आवास आदि अनेक प्रकार की आर्थिक सहायता प्रदान की गई। सम्पन्न किसानों ने अपने युवा पुत्रों व पुत्रियों को कार, स्कूटर, व मोटर सायकल व मोबाइल आदि खरीदवाये, अपने घरों में बिजली के अनेक उपकरण फ्रिज, पंखां व कूलर लगवाये, घरों में खूबसूरत टाईल्स लगवायी। इससे इन सब उद्योगों की बिक्री बढ़ सकी।

गांवों में 60 प्रतिशत से अधिक लोग स्थाई निवास करते है। परन्तु अर्थव्यवस्था में ग्रामीण खपत की हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत ही है। इसलिए मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना जैसी बुनियादी योजनाओं पर अधिक रकम आंबटित की गई। इसी प्रकार कृषि उत्पादों की निर्यात पर भी अधिक ध्यान दिया जा सकता है। वैसे भी चुनौतियों के रहते हुए भी कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ता जा रहा है जिसको और भी बढाने की आवश्यकता है।

वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में ग्रामीण विकास के लिए कुल मिला कर 1,35,944 करोड़ रुपयों का आंबटन किया गया था जिसको आगामी बजट में और बढ़ाया जा सकता है। सरकार की इच्छा ग्रामीण खपत को बढ़ावा देने की बन चुकी है। इससे ग्रामीण आय तथा खपत (व्यय) दोनों ही बढ़ सकते है। भारत में अभी भी कृषि मानसून पर ही आधारित है जिससे किसानों की आय अस्थिर हो जाती है जिसका प्रभाव ग्रामीण मांग पर भी पड़ता है। खेतों में काम करने वाले मजदूर भी रियल स्टेट व इन्फ्रास्टै्रक्चर जैसे रोजगार देने वाले उद्योगों में पलायन कर जाते है जिससे भी किसानों को परेशानी हो जाती है। सरकार भी खाद्य सुरक्षा से जुड़े चावल, गेंहूं, दाल व अन्य अनाज की सीमित मात्रा को ही निर्यात की अनुमति दे सकती है। अतः सरकार रोकडी (व्यावसायिक) फसल व मोटे अनाजों पर विशेष कार्यक्रम चला सकती है। फलों, सब्जी, मांस, मछली, ड़ेयरी आदि उत्पादों पर अधिक ध्यान देकर विश्व के खाद्य संकट में भी अवसर देख सकती है।

कृषि निर्यात में वर्ष 2022 के नौ महिनों में विभिन्न फसलों के निर्यात में बृद्धि इस प्रकार हुई थी। प्रोसेस्ड़ आइटम का 20.03 प्रतिशत, कॉफी का 16.80 प्रतिशत, चावल का 16.09 प्रतिशत, अन्य प्रकार के मोटे अनाज का 13.65 प्रतिशत, तिलहन का 12.69 प्रतिशत, चाय का 12.43 प्रतिशत, फल व सब्जी का 9.07 प्रतिशत, समुन्द्री उत्पाद का 2.74 प्रतिशत रहा। इसलिए कृषि उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए कार्यक्रम चलाये जा सकते है। किसानों की आय निर्यात से बढ़ेगी तो ग्रामीण खपत पर भी प्रभाव अवश्य पड़ेगा। उससे गांवों के साथ साथ निकटवर्ती शहरों के आर्थिक विकास में योगदान मिल सकेगा। कहावत है कि किसान खुश तो देश खुश। अतः किसान को दिया हुआ धन कभी बेकार नहीं जाता है। अब तो बैंकों के माध्यम से धन दिया जा रहा है जो सीधे सीधे किसान के पास आसानी से बिना किसी भ्रष्टाचार के पंहुच जाता है और पैसे को किसान व्यय करेगा तो उद्योग धन्धों का विकास होगा जिससे सम्पूर्ण देश की अर्थ व्यवस्था पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।

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