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एक भारत श्रेष्ठ भारत को प्रतिध्वनित करता है ‘कुंभ’

महाकुंभ का अभूतपूर्व आयोजन भारतीयता की आत्मा और सनातन संस्कृति की दिव्यता का उत्सव है। यह हमें हमारी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों पर गर्व करने का अवसर देता है। - डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

 

नास्ति सत्यं सम तीर्थं नास्ति ज्ञानं सम बलम्। नास्ति धर्मम सम मित्रं नास्ति शीलं सम सुखम।।’

धर्म की बात करें, तो ’सनातन’ शब्द संस्कृत की ’धृ’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है नित्य, शाश्वत या सदा बना रहने वाला, अर्थात जिसका न तो कोई आदि है और न ही कोई अंत। दुनिया की कई प्राचीन सभ्यताएं समय के साथ-साथ विलुप्त होती गईं परंतु सनातन धर्म और संस्कृति अपनी सहजता, सहिष्णुता, आध्यात्मिकता और शाश्वत जीवन शैली के कारण आज भी जीवंत है, जिसका जीता-जागता उदाहरण हम अपने देश में होने वाले कुंभ और महाकुंभ के अनुष्ठानों में प्रत्यक्षतः देख-सुन और समझ सकते हैं, जहां सनातन संस्कृति आध्यात्मिक चेतना, सामाजिक एकता और समरसता का अमृतोत्सव मनाती है।

महाकुंभ का उद्गम समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा है। मान्यता है कि अमृत कलश की प्राप्ति हेतु देवताओं और असुरों के बीच भीषण संग्राम हुआ था और इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं। इन्हीं स्थानों पर महाकुंभ पर्व का आयोजन होता है। महाकुंभ देवताओं के सम्मान में आयोजित पूजन और अर्पण का भी महत्त्वपूर्ण केंद्र है। श्रद्धालु विशेष रूप से श्राद्ध (पूर्वजों को भोजन और प्रार्थना करना) और वेणी दान (गंगा में बाल चढ़ाना) जैसे धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, जो समर्पण और शुद्धता के प्रतीक माने जाते हैं।

महाकुंभ न केवल धार्मिक पर्व है, बल्कि सनातन संस्कृति की जीवंतता, प्रबुद्धता और आध्यात्मिकता का अमृतोत्सव भी है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो महाकुंभ का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। वैदिक युग से लेकर वर्तमान समय तक यह भारतीय समाज को एक सूत्र में बांधने वाला आयोजन रहा है। केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि खगोल शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र और समृद्ध भारतीय लोक संस्कृति का संगम भी है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का पवित्र मिलन होता है, और वहां स्नान करना आध्यात्मिक मुक्ति का प्रतीक है। मान्यता है कि यहां स्नान करने से न केवल पापों का प्रक्षालन होता है, बल्कि पूर्वजों की आत्माओं को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। वेदों और पुराणों में उल्लिखित सूक्तों में भी इसकी महत्ता का उल्लेख मिलता है।

महाकुंभ का उद्गम समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा है।

’गड्गा च यमुना चैव सरस्वती च महानदी।
त्रिसोतः संगमे यत्र स्नानं मुक्ति प्रदंभवेत।।’

इसी परिप्रेक्ष्य में महाकुंभ 2025 की चर्चा समीचीन और प्रासंगिक है, जो प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर आयोजित हो रहा है। 2025 का यह महाकुंभ, न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र होगा, बल्कि यह प्राचीन भारतीय सभ्यता- संस्कृति और दर्शन का वैश्विक मंच और अद्वितीय आयोजन भी बनेगा जिसमें शाही स्नान, आरती, कल्पवास, दीप दान, प्रार्थना और अर्पण, पंचकोशी परिक्रमा इत्यादि मुख्य आकर्षण होंगे। त्रिवेणी संगम पर आयोजित होने वाला यह पवित्र समागम लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करेगा। श्रद्धालुओं का अटूट विश्वास है कि इस पावन बेला में पवित्र जल में डुबकी लगाने से व्यक्ति न केवल सभी पापों से मुक्त हो जाता है, बल्कि उसके पूर्वजों को भी पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है, और अंततः उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ के दौरान पौष पूर्णिमा (13 जनवरी) और मकर संक्रांति (14 जनवरी) की तिथियों पर ’शाही स्नान’ या ’राजयोगी स्नान’ अपना विशेष महत्त्व रखते हैं, जब संतों और उनके शिष्यों के भव्य दल स्नान करने के लिए  निकलते हैं।

यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि इस विशेष स्नान के माध्यम से श्रद्धालु पुण्य प्राप्त करते हैं, और संतों के प्रवचन और गहरे ज्ञान से समृद्ध होते हैं, जिससे उन्हें जीवन की गहरी आध्यात्मिकताओं का अनुभव और ज्ञान की प्राप्ति होती है। गंगा किनारे होने वाली आरती में दीपकों को प्रज्ज्वलित करने के साथ-साथ मंत्रोच्चारण और विशेष पूजा विधियों का अलौकिक दृश्य श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देता है। उनके लिए यह अत्यंत अविस्मरणीय अनुभव होता है, जिसमें भक्तों की इस पवित्र नदी के प्रति श्रद्धा और भक्ति का अहसास और भी अधिक गहराता है। प्रयागराज में कुंभ मेले के दौरान दीप दान का आयोजन मंत्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य होगा, जहां श्रद्धालु त्रिवेणी में हजारों दीपक प्रवाहित करेंगे जिसकी दिव्य और अलौकिक छटा से संपूर्ण वातावरण आलोकित और आह्लादित होगा। मेले की रात को नदी पर टिमटिमाते दीपकों का मनोरम दृश्य धार्मिक उत्साह और एकता की भावना से ओत-प्रोत होगा जो श्रद्धालुओं के दिलों में गहरी और अमिट छाप छोड़ जाएगा।

हमेशा की तरह महाकुंभ के इस अद्वितीय आयोजन में भी कल्पवास की व्यवस्था होगी जो साधकों को आध्यात्मिक अनुशासन और तपस्या के साथ-साथ उच्च चेतना प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेगी। ’कल्प’ संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ’ब्रह्मांडीय युग’, और ’वास’ का अर्थ है निवास। इस प्रकार, कल्पवास एक गहन आध्यात्मिक अभ्यास की अवधि होती है, जिसमें भाग लेने वाले तीर्थयात्री सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं, और सांसारिक माया-मोह तथा भौतिक सुविधाओं का त्याग कर ध्यान, प्रार्थना, वैदिक यज्ञ, होम और आध्यात्मिक प्रवचन जैसी गतिविधियों में निमग्न रहते हैं, जिससे उन्हें आंतरिक शांति का अनुभव होता है।

इस महाकुंभ में श्रद्धालुओं को विज्ञान और धर्म के अद्भुत संगम का भी दृश्यावलोकन करने का मौका मिलेगा। आधुनिक तकनीकों जैसे रियल- टाइम ट्रैकिंग और वर्चुअल दर्शन इसे खास और विश्वस्तरीय आयोजन बनाएंगे। प्रयागराज महाकुंभ न केवल आध्यात्मिक जागरण का मंच बनेगा, बल्कि मानवता और विज्ञान के मेल का अद्वितीय उदाहरण भी प्रस्तुत करेगा। 2025 का महाकुंभ डिजिटल तकनीक, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समरसता के प्रतीकों का अद्वितीय उदाहरण होगा।

’सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, माकश्चिद्दुः खभाग्भवेत।’

’वसुधैव कुटुम्बकम’ का सार प्रस्तुत करता यह आयोजन भारतीय संस्कृति का वैश्विक प्रतिनिधित्व करेगा। लाखों विदेशी पर्यटक इस आयोजन में भाग लेंगे जिससे भारत की आर्थिक और सांस्कृतिक सुदृढ़ता को बढ़ावा मिलेगा। यह आयोजन ’एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की अवधारणा को एक बार पुनः पूर्णतः जीवंत और साकार करेगा। न केवल भारतीय संस्कृति की जड़ों को और अधिक मजबूती प्रदान करेगा, बल्कि इसे विश्व में और भी व्यापक पहचान दिलाने में अपनी महती भूमिका निभाएगा। महाकुंभ का अभूतपूर्व आयोजन भारतीयता की आत्मा और सनातन संस्कृति की दिव्यता का उत्सव है। यह हमें हमारी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों पर गर्व करने का अवसर देता है।           

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