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पढ़े-लिखे लोगों में बढ़ रही है पलायन की प्रवृत्ति

विदेश मंत्री ने बताया है कि 2020 में 85256 भारतीय नागरिकों ने, 2021 में 163370 नागरिकों ने, 2022 में 225620 नागरिकों ने और 2023 में 30 जून तक 87026 नागरिकों ने अपनी नागरिकता छोड़ी है। - अनिल तिवारी

 

लोकसभा से एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जानकारी दी है कि रोजी रोजगार और बेहतर जीवन जीने की लालसा में प्रतिदिन औसतन 440 भारतीय नागरिकता छोड़ पराए मुल्क को जा रहे हैं। एक सवाल के लिखित उत्तर में विदेश मंत्री ने जानकारी दी है कि पिछले साढे तीन सालों में 5 लाख 61 हजार 272 भारतीय नागरिकों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है। देश छोड़कर जाने वाले यह भारतीय नागरिक 135 देशों में गए हैं जिनमें सऊदी अरब और पाकिस्तान भी शामिल है।

विदेश मंत्री ने बताया है कि 2020 में 85256 भारतीय नागरिकों ने, 2021 में 163370 नागरिकों ने, 2022 में 225620 नागरिकों ने और 2023 में 30 जून तक 87026 नागरिकों ने अपनी नागरिकता छोड़ी है।

जनसंख्या के आधार पर भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश बन चुका है ऐसे में माना जा रहा है कि इसे जनसांख्यिकीय लाभांश दूसरे देशों की अपेक्षा अधिक मिलेगा और अर्थव्यवस्था में तेजी से विकास होगा इसी के मद्देनजर सरकार ने कौशल विकास संबंधी कार्यक्रम चलाएं हैं और अपने रोजगार शुरू करने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है। विदेश मंत्री ने प्रवासी नेटवर्क से जुड़ने और राष्ट्रीय लाभ के लिए इसकी प्रतिष्ठा का उपयोग करने का जिक्र करते हुए कहा है कि विदेश में भारतीय समुदाय राष्ट्र के लिए एक संपत्ति है।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष विवेक देवराय और कोपनहेगन कंसेशंस के अध्यक्ष ब्योन लोमबोर्ग ने पलायन को लेकर हुए हाल के अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा है कि अगर पूरी दुनिया को माइग्रेशन के लिए खोल दिया जाए तो ग्लोबल जीडीपी में डेढ़ सौ प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है। यह सही भी लगता है क्योंकि गरीब देशों में डॉक्टर, नर्स, इंजीनियर या किसी भी क्षेत्र के कौशल प्राप्त दक्ष कामगार साल भर में जितनी आय अर्जित करते हैं अगर भी अमीर देशों में चले जाते हैं तो उनकी आय में कई गुना की वृद्धि हो जाती है। लेकिन पेंच यह है कि पलायन कर जो लोग अमीर देशों की ओर जाते हैं वह कमाई करने के साथ ही वहां की नागरिकता भी हासिल कर लेते हैं। कारोबार नौकरी और पढ़ाई के लिए विदेश जाकर वहां की नागरिकता लेने पर भारतीय नागरिकता स्वतह रद्द हो जाती है। बीते 10 सालों में अमेरिका की नागरिकता लेने वालों की संख्या सबसे ज्यादा रही है। भारतीय संविधान दोहरी नागरिकता रखने की इजाजत नहीं देता है। भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 के मुताबिक ’भारत के नागरिक रहते हुए आप दूसरे देश के नागरिक नहीं रह सकते।’ अगर कोई व्यक्ति भारत का नागरिक रहते हुए दूसरे देश की नागरिकता लेता है तो अधिनियम की धारा 9 के तहत उसकी नागरिकता खत्म की जा सकती है।

भारत की नागरिकता छोड़ने के पीछे  प्रमुख तीन कारण पढ़ाई, नौकरी और कारोबार सामने आया है। इसके अलावा कुछ हद तक रहन-सहन के स्तर को लेकर भी लोगों ने विदेश में रहने के लिए नागरिकता हासिल की है। अमेरिका इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की ओर रुख करने की वजह अधिकाधिक वैभवपूर्ण रहन सहन भी है।जहां तक पढ़ाई का सवाल है साल 2020 के मुकाबले 2021 में अमेरिका जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 10 प्रतिशत से कुछ अधिक की वृद्धि हुई, वहीं 2021 की तुलना में 2022 में अमेरिका जाने वालों की संख्या में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई। रिपोर्ट के मुताबिक विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों में से 60 प्रतिशत से अधिक युवा देश में वापसी नहीं करते।

व्यक्तिगत सुविधाओं के लिए जब किसी देश का नागरिक अपना देश छोड़ दूसरे देशों में बसने लगता है तो निश्चित रूप से यह स्थिति उस देश के लिए चिंता की विषय हो जाता है। खासकर मेडिकल की पढ़ाई के बाद डॉक्टरों के पलायन को लेकर कुछ समय पहले तक भारत में युवाओं को भावनात्मक रूप से प्रेरित करने का प्रयास किया जाता रहा कि जिस देश में उनकी पढ़ाई लिखाई पर ढेर सारा मद खर्च किया है जब सेवा देने का समय आता है तो युवा देश को छोड़कर अपनी प्रतिभा का योगदान किसी और देश में देने लगे यह नैतिक रूप से ठीक नहीं होगा। मगर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा प्रतिभा पलायन रफ्तार के साथ बढ़ता गया। अब तो स्थिति यह है कि जिनके भारत में जमे जमाए कारोबार हैं उनमें भी नागरिकता त्याग कर दूसरे देशों में जाकर रहने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। कुछ समय पहले आई फैमिली ग्लोबल सिटीजंस की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 8000 अमीर लोग भारत की नागरिकता छोड़ने की तैयारी में है। भारत में हर साल लाखों युवा इंजीनियरिंग चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में तकनीकी तालीम हासिल करके रोजगार की तलाश में निकलते हैं, मगर उनमें लगभग 45 प्रतिशत को उनकी इच्छा और क्षमता के अनुरूप रोजगार नहीं मिल पाता ऐसे में वे दूसरे देशों का रुख करते हैं। विकसित देशों की तुलना में भारत में वेतन भत्ते और काम करने की स्थितियां बहुत खराब है इसलिए भी मौका मिलते ही युवा निकल लेते हैं और यहां की नागरिकता छोड़ देते हैं। बेहतर कारोबारी माहौल ना होने अथवा व्यवसायियों में असुरक्षा बोध के चलते भी पलायन का ट्रेंड दर्ज किया गया है।

मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसे सैकड़ों कार्यक्रमों के जरिए विशेष रूप से युवाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है। व्यवसाय के लिए अनेक आर्थिक सुविधाएं दी जा रही है, इसके बावजूद अगर हर साल नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या बढ़कर ही सामने आ रही है तो निश्चित रूप से इसके कारणों पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। रोजगार के अवसर केवल कौशल विकास से नहीं सृजित होते हैं, इसमें श्रम शक्ति को मुख्यधारा से जोड़ने वालों के समर्पण और प्रतिभा की भी जरूरत होती है। भारत अपनी विविधता के साथ प्राचीन काल से आत्मनिर्भरता के लिए दुनिया में पहचाना जाता रहा है। अंग्रेजी हुकूमत के पहले भारत के गांव गणराज्य हुआ करते थे। भारत के गांव इतने समृद्ध थे कि अपनी जरूरत की हर चीज का उत्पादन खुद कर लेते थे। किसी अनमोल चीज के लिए भी नदी पार करना और पार जाकर प्राप्त करना निषिद्ध माना जाता था। बाद के दिनों में जो लोग रोजी रोटी के लिए दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में जाते थे उन्हें गांव लौटने पर गांव वाले पूरबिया या परदेसी कह कर संबोधित करते थे। यह ठीक है कि बदलते समय के साथ विज्ञान में प्रगति की है। विकसित तकनीक का लाभ सभी को उठाना भी चाहिए, लेकिन पलायन की कीमत पर शायद नहीं। इसलिए जरूरी है कि प्रधानमंत्री की गारंटी को ख्याल करते हुए सरकार को बढ़ रहे पलायन पर अंकुश लगाने के लिए बेहतर आर्थिक नीतियों के साथ आगे आना चाहिए। वरना जिस तरह भारत के कभी समृद्ध रहे गांवों में पलायन के कारण अब कुछ न कर सकने वाली जनसंख्या ही बची है, ठीक उसी तरह तेज गति से हो रहे ब्रेन ड्रेन के कारण भारत में भारतीय प्रतिभा, मेधा का अभाव होने की संभावना बढ़ने लगेगी।

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