swadeshi jagran manch logo

नयी स्वास्थ्य क्रांति की दरकार

जरुरी है कि हम इस राष्ट्रीय आपदा से सीख ले, आरोप प्रत्यारोप से आगे बढ़कर, भारत में नयी स्वास्थ्य क्रांति को दिशा दे। सही मायने में तभी हम सामूहिक स्वास्थ्य सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करेंगे। और यही इस संकट में हुई मानव जीवन के नुकसान को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। — अभिषेक प्रताप सिंह

कोरोना वायरस के कहर से पिछले महीनों में हमारी दुनिया एकदम बदल गई है। हज़ारों लोगों की जान चली गई। लाखों लोग बीमार पड़े हुए हैं। जो लोग इस वायरस के प्रकोप से बचे हुए हैं, उनका रहन-सहन भी एकदम बदल गया है। यह वायरस दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में पहली बार सामने आया था। उसके बाद से दुनिया में सबकुछ उलट-पुलट हो गया। शुरुआत वुहान से ही हुई, जहां पूरे शहर की तालाबंदी कर दी गई। इटली में इतनी बड़ी तादाद में वायरस से लोग मरे कि वहां दूसरे विश्व युद्ध के बाद से पहली बार लोगों की आवाजाही पर इतनी सख़्त पाबंदी लगानी पड़ी, लोग अपने घरों में बंद हैं। दुनिया भर में उड़ानें रद्द कर दी गई हैं और बहुत से संबंध सोशल डिस्टेंसिंग के शिकार हो गए हैं। ये सारे क़दम इसलिए उठाए गए हैं, ताकि नए कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सके और इससे लगातार बढ़ती जा रही मौतों के सिलसिले को थामा जा सके। 

कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। डब्लूएचओ के मुताबिक बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के प्रसार ने भारत के कई हिस्सों में स्वास्थ्य व्यवस्था को चरमरा दिया था। मरीजों की बढ़ती तादाद के बीच सरकारी और निजी अस्पतालों में मूल भूत सुविधाओं का हाहाकार मचा है। इस संकट के समय में भय, व्याकुलता, घबराहट हमारे जीवन को भी प्रभावित कर रहे है। हलाकि इन सबके बीच प्रश्न है कि क्या संकट को समझने और इससे निपटने में हमसे भी कोई चूक हुई है। जाहिर है इस स्थिति में काम चलाऊ नीति के बजाय भारत में एक नयी “स्वस्थ क्रांति” की दरकार है, जिसके विभिन्न आवश्यक पहलूँ हैं 

इस स्वास्थ्य क्रांति का सर्वप्रथम पहलू है- स्वस्थ सुधार कार्यक्रम की व्यापकता और लोक नीति में उसकी प्राथमिता राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) और नीति आयोग की रिपोर्ट (2018), जिसमें चार चैप्टर्स केवल स्वास्थ्य पर केंद्रित थे, दोनों ने भारत में स्वास्थ्य सुधार को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातें की थी। 

इन रिपोटर्स के अनुसार स्वास्थ्य सुरक्षा का विषय बहुत व्यापक है, जिसमें कई कारक महत्वपूर्ण है जैसे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का विस्तार, निवारक और उपचारात्मत सेवाओं का अंतर, मेडिकल शिक्षा और डॉक्टर्स की संख्या, सक्षम नर्सिंग और स्वास्थकर्मी, नयी स्वास्थ्य तकनीक और शोध, लैब का विस्तारीकरण के साथ ही स्वास्थ्य सेक्टर में सरकारी खर्चा को बढ़ावा देना। ये सब कारक एक कड़ी के सामान हैं, जिनकी बेहतर स्थिति व्यापक स्वास्थ्य सुधार की पहली शर्त है। 

इसका दूसरा पहलू स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर हो रहे खर्च से जुड़ा है। हम अभी भी स्वास्थ्य सेवाओं में केंद्र सरकार के 2.5 प्रतिशत और राज्य बजट के 8 प्रतिशत खर्च के लक्ष्य से बहुत दूर हैं। धन अभाव में ये पूरी व्यवस्था कमज़ोर पड़ रही है। वहीँ स्वास्थ्य पर बड़े निजी निवेश ने इसे मानव कल्याण से इतर, महंगा और लाभ केंद्रित बना दिया है। इसलिए सबसे पहले जरुरी है कि स्वास्थ्य सुरक्षा पर खर्च को बढ़ावा देना।

तीसरा पहलू है- स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार एक बड़ी चिंता है। लगभग 80 प्रतिशत कोरोना के मरीज ’बेहतर प्राथमिक परामर्श’ को तरसते रहे। इसलिए जरूरी है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य अधिकारियों की तादाद को बढ़ाया जाए। आज थाईलैंड और वियतनाम जैसे देश हमारे सामने उदाहरण है। जिन्होंने एक सशक्त और सक्षम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व्यवस्था के आधार पर कोरना पर लगभग विजय प्राप्त कर ली।  

चौथी बात, भारत जैसे विशाल देश में ‘स्वास्थ्य सेवाओं के विकेन्द्रीकरण’  की आवशयकता से है। किसी भी आपदा के समय में नजदीकी क्लीनिक और पड़ोसी उपचार केंद्रों की भूमिका बढ़ जाती है, क्योंकि बड़े हॉस्पिटल पर दबाव अधिक बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में ये केंद्र कम से कम शुरुआती परामर्श, दवा की उपलभ्धता और वैक्सीन अदि की उपलब्धता के लिहाज से इनकी भूमिका बढ़ी है, इसलिए इस नेटवर्क को ग्रामीण और शहरी स्तर पर मज़बूत किया जाना चाहिए। 

2018 में शुरू हुई आयुष्मान भारत योजना का एक प्रमुख अंग पूरे भारत में हेल्थ और वैलनेस (भ्ॅब्) सेंटर  को मजबूत करना है। उसके अनुसार दिसंबर 2022 तक लगभग डेढ़ लाख प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को इनके साथ मिलाकर अपग्रेड करना है। यह एक दूरगामी लक्ष्य है और सरकार को इस ओर तेजी दिखानी चाहिए।

पांचवा पहलू यह है कि अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं एक टीम वर्क हैं, जिसमें स्वास्थ्य और गैर स्वास्थ्यकर्मी दोनों की भूमिका होती है। आज बड़ी संख्या में दवाई, वैक्सीन लगाने, हॉस्पिटल  एडमिशन से लेकर आईसीयू मॉनिटरिंग तक डॉक्टर्स के अलावा नर्स, स्पॉट बॉय, लैब तकनीशियन, लोकल फार्मसिस्ट आदि सभी अपनी भूमिका निभा रहे है। जरूरी है कि भारत अपने स्वास्थ्य सुरक्षा  कार्यक्रम में इन फ्रंटलाइन वर्कर की बेहतर ट्रेनिग, संख्या और सुविधा पर बल दे, जोकि किसी आपदा के समय एक स्वास्थ्य सेवाओं को तत्परता बनाये रखें। कैग (ब्।ळ) की एक रिपोर्ट बताती है कि बिहार, झारखंड, मप्र, उप्र, सिक्किम, उत्तराखंड और बंगाल के स्वास्थ्य केंद्रों में करीब 50 फीसद पैरामेडिकल कर्मचारियों की कमी है। जाहिर है कि न केवल डॉक्टरों की उपलब्धता, बल्कि सहायक सेवाकार्मिकों के मोर्चे पर भी भारत में दीर्घकालिक और मानक रणनीति की आवश्यकता है।

जरुरी है कि हम इस राष्ट्रीय आपदा से सीख ले, आरोप प्रत्यारोप से आगे बढ़कर, भारत में नयी स्वास्थ्य क्रांति को दिशा दे। सही मायने में तभी हम सामूहिक स्वास्थ्य सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करेंगे। और यही इस संकट में हुई मानव जीवन के नुकसान को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।       

लेखक देशबंधु कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापक हैं।

Share This

Click to Subscribe