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वन नेशन - वन राशन कार्ड

वन नेशन वन राशन कार्ड़ योजना से स्थानीय और विदेशी लोगों की नागरिकता का निर्धारण होने के साथ ही यह भी जनकल्याण की इस उपयोगी योजना से जुड़ जायेगा। - डॉ. सूर्यप्रकाश अग्रवाल

 

भारत में गत दो वर्ष से वन नेशन-वन राशन कार्ड़ योजना देश के सभी राज्य व केन्द्रशासित प्रदेशों में शुरू की गई है जिसके बहुत ही सकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर हो रहे है। देश भर में लगभग 80 करोड़ राशन कार्ड़ धारी है। इस योजना के लागू होने से लगभग 20 करोड़ राशन अपात्र लोगों ने बनाये हुए पाये गये अर्थात अभी तक दो लाख करोड़ रुपये की खाद्यान्न सब्सिडी में से 50 हजार करोड रुपये का खाद्यान्न अपात्र लोग प्रयोग कर रहे थे। सरकार को मिली यह सफलता अमूल्य है। इस योजना से भ्रष्टाचार भी कुछ कम अवश्य हुआ है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत लगभग 77 करोड़ से अधिक लाभार्थी देश में पीड़ीएस (पब्लिक ड़ीश्ट्रिब्यूशन सिस्टम) के अंतर्गत देश की राशन की दुकानों से जुड गये है। इस देश में इस योजना के अंतर्गत सभी राशन की दुकानों में कम्प्यूटर का प्रयेग किया जा रहा है जिसका सबसे ज्यादा लाभ यह मिला है कि समय पर उपयुक्त एवं पात्र उपभोक्ताओं को राशन का लाभ मिल जाता है। दूसरे सरकारी धन का बंदर बांट भी बहुत कुछ कम हुआ है।

वन नेशन-वन राशन कार्ड़ का सर्वाधिक लाभ प्रवासी मजदूरों का मिला है। इस योजना में राज्य के अंदर ही एक शहर व गांव से अन्य शहर एवं गांव में जाने वालों मजदूरों को मिला है। वहीं राज्य से पलायन करने वालें को भी इसका लाभ मिला है। यह योजना लोकप्रिय भी हुई है तथा 60 करोड़ से अधिक बार इस योजना में लेनदेन हो चुका है। पीडीएस को ड़िजिटल बनाने से खाद्य सब्सिड़ी का दुरुपयोग रुक सका है। रोजगार के लिए एक राज्य से दूसरे राज्यों को जाने वाले श्रमिकों ने एक करोड़ से अधिक बार लेनदेन किया है अर्थात अपनी मूल राशन की दुकन की अपेक्षा दूसरे राज्य की राशन की दुकानों से सामान खरीदा गया है। सरकार के द्वारा गरीबों को राहत देकर भ्रष्टाचार पर प्रभावी लगाम लगायी गई है।

इस भ्रष्टाचार विरोधी योजना को लागू करने में कुछ प्रदेशों ने नकारात्मक रुख अपना रखा है तथा योजना को लागू करने में राजनीति शुरु कर दी गई है। कुछ राज्यों ने इस योजना को लागू करने में ढिलाई दिखायी तथा दिल्ली, बंगाल, छत्तीसगढ़ ने इस योजना पर राजनीति करते हुए अपने अपने प्रदेश में योजना को लागू ही नहीं किया। इस मामले में देश के उच्चतम न्यायालय के द्वारा दखल करने पर भी इस योजना को कुछ राज्यों ने नहीं अपना कर देश की इस योजना को लागू करने से ही इंकार कर दिया। इससे राजनीतिक संकीर्णता ही दिखाई दी। देश में इस योजना को नहीं लागू करने वाले राज्यों ने यह दिखा दिया कि गरीबों के हितैषी होने का मात्र दिखावा करते हैं तथा वे गरीबों के हितैषी होने एवं दिखने का ध्यान रखने वाले लोग अपनी ही सरकार में गरीबों के हितों की पूर्ति में बाधक बने हुए है। राज्य और केन्द्र यदि एक दिशा में कार्य करें तो देश का विकास भी तेज हो सकता है तथा गरीब लोगों का कल्याण भी हो सकता है।

इस योजना से मजदूरों, कामगारों और गरीबों की भौगोलिक बाधा भी दूर हो सकी हैं कुछ राजनीतिक दल जो स्वंय को देश के संघीय ढ़ांचे को सशक्त करने की जरुरत दिखाते है वे ही अक्सर इसके खिलाफत करते पाये गये है। वन राष्ट्र वन टैक्स जैसी जीएसटी को लागू करते समय संघवाद के प्रति और अधिक सहयोग भाव दिखाया जाना चाहिए था परन्तु कुछ दलों का स्वर एकदम बदला हुआ था। आयुष्मान योजना एवं नीट के मामले में भी कुछ राज्यों ने सहयोग नहीं दिया। कुछ राजनेता राष्ट्रभाव की भी उपेक्षा कर क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने से भी चुकते है। क्षेत्रीय दलों में अधिक संकीर्णता देखी जा रही है। अब कांग्रेस जैसा राष्ट्रीय दल भी कभी कभी क्षेत्रवाद को उकसाता रहता है।   

वन नेशन वन राशन कार्ड़ योजना से स्थानीय और विदेशी लोगों की नागरिकता का निर्धारण होने के साथ ही यह भी जनकल्याण की इस उपयोगी योजना से जुड़ जायेगा। यह योजना बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है तथा गरीब, मजदूर व प्रवासी मजदूर इस योजना का लाभ उठा रहे है। कोरोना काल के भंयकर संकट के समय इस योजना की उपयोगिता अद्धितीय थी। देश में सभी राज्यों में यह स्वीकार कर अच्छे मानसिक सोच के साथ इसको लागू किया जाना चाहिए तथा इस बात पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिए कि अन्य देशों से आये घुसपैठिये इस योजना का लाभ उठा कर भारतीयों के हक को तो नहीं ड़कार सकें तथा इस योजना के पात्रों की समय समय पर नियमित जांच प्रक्रिया से गुजार कर परख कर लेनी चाहिए कि पात्र गरीब लोगों को ही इस योजना का लाभ मिले।

 

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है

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