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ऑनलाईन पढ़ाई: सुविधा तो है, पर खतरे भी कम नहीं

शिक्षक की आंखों के सामने विद्यार्थी जो शिक्षा ग्रहण करता है तथा उसका विद्यार्थियों पर जो प्रभाव पड़ता है उस दृष्टि से ऑनालाइन शिक्षा को कारगर नहीं माना जा रहा है। विद्यार्थी भी अन्य साथियों के साथ एक टीम भावना का व्यवहार सीखता है। — डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल


मार्च 2020 माह के मध्य से चीनी कोरोना वायरस के संक्रमण से ही प्राइमरी स्कूल से लेकर उच्च शैक्षिक संस्थानों में शिक्षा का वातावरण ध्वस्त हो गया है तथा निजी संस्थानों की आर्थिक हालात खराब हो गये जिस कारण वहां कार्यरत् शिक्षक व शिक्षेणत्तर कर्मचारियों की हालत भी खराब हो गये है। अभिभावक भी निरन्तर फीस न देने का महौल तैयार कर रहे है जिससे शिक्षा संस्थान व अभिभावकों में एक रस्साकशी शुरु हो गयी है। जिसका शिकार युवा पीढ़ी हो रही है। शिक्षकों ने इस काल में ऑनलाईन कक्षायें लेकर कुछ हद तक अध्यापन कार्य किया व उनका ग्रीष्मावकाश भी व्यस्तता से गुजारा और वेतन देने में संस्थान फीस न आने का कारण बता रहे है। अब आखिर शिक्षक व कर्मचारी कहां जायें।

जुलाई 2020 के प्रारम्भ होते ही यह प्रश्न मुखर हो गया है कि आखिर मार्च 2020 में स्थगित की गई परीक्षाऐं कब प्रारम्भ होंगी? अब सरकार ने घोषणा की कि अन्तिम वर्ष के छात्रों की ही परीक्षा होगी, शेष सभी को प्रोन्नत कर दिया जायेगा। अब यह अन्तिम वर्ष के छात्रों की परिक्षाएं कब होगी, यह बताना मुश्किल है। नये सत्र के लिए स्कूल व कॉलेज कब से खुलेंगे और वहां का स्वास्थ्य का वातावरण कैसा रहेगा? इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। जुलाई 2020 के अंत तक देश में स्कूल व कॉलेजों के अतिरिक्त सब कुछ खुल चुका है। परंतु यह भी समझना होगा कि बाजार तथा स्कूलों का वातावरण एकदम से अलग होता है। सर्वोच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुरक्षा प्रणाली के बिना शिक्षण संस्थान नहीं खोले जा सकते है।

क्योंकि जुलाई माह के अंत तक कोरोना का संक्रमण घटा नहीं है जिससे अभिभावक भी अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने का खतरा नहीं उठाना चाहते है। परन्तु यह भी सही प्रतीत होता है कि अभी कोरोना के संक्रमण का प्रसार भी अनिश्चित है तथा इसकी व्यापक रोकथाम के लिए विश्व भर के हजारों वैज्ञानिक प्रयासों के बाबजूद इसकी कोई वैक्सीन भी नहीं आ सकी है। परन्तु शिक्षण संस्थान भी अनिश्चित काल तक बंद नहीं रखे जा सकते है तथा वहां कार्यरत् शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को भी भूखे नहीं मारा जा सकता है। अतः इस प्रकार के वातावरण में शिक्षण संस्थानों में ऐसा सुरक्षा कवच तैयार करना होगा जिसमें कोरोना संक्रमण की बिल्कुल भी गुंजायइश न हो। इसके लिए जहां राज्य सरकारों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा वहां राज्य सरकारों की प्रबल इच्छा शक्ति भी होनी चाहिए।

निजी स्कूल व संस्थानों के संचालकों को भी गारण्टी देनी चाहिए कि प्रत्येक विद्यार्थी तथा शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को पूर्ण रुप से संक्रमण मुक्त वातावरण दिया जायेगा। स्कूल संचालक फीस के लिए अभिभावकों पर दबाब बना रहे है। अब यह सरकार के द्वारा भी सुनिश्चित हो जाना चाहिए क्या शैक्षिक संस्थान भारी मुनाफे के लिए ही खोले जाते है और शिक्षा क्षेत्र भी क्या उद्योग की श्रेणी में आ चुका है? इन संस्थानों का छात्रों, शिक्षकों, शिक्षणेत्तर कर्मचारियों, अभिभावकों व समाज के प्रति कोई दायित्व है अथवा नहीं। इसके लिए केन्द्र सरकार के आयकर विभाग के द्वारा सहायता लेकर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस शैक्षिक संस्थानों के द्वारा कितना पैसा सफेद/स्याह के रुप बनाया है और उसमें से वे अब कितना पैस कोरोना के संक्रमण के बचाव के लिए स्क्ूल में व्यय करने को तैयार है।?

जिससे सर्वोत्तम सुरक्षा प्रणाली स्थापित की जाये जिसमें विद्यार्थी और शिक्षक बेफिक्र होकर पठन व पाठन कर सकें। ऐसे ही प्रबंध राजकीय शिक्षा संस्थानों में भी करने चाहिए। इसके लिए सरकार व निजी संस्थानों को पर्याप्त समय लेकर प्रबंध करने चाहिए तथा इसकी समय सीमा भी घोषित करनी चाहिए।

अभी कुछ महीनों से लागू ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली सफल नहीं हो पा रही है। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली में आ रही परेशानियों का अध्ययन करके व्यापक रुप से उनको दूर करते हुए प्रबंध किये जाने चाहिए। विकल्प के रुप में ऑनलाइन शिक्षा को देखा जा रहा है जबकि शिक्षकों के साथ-साथ अधिकांश विद्यार्थियों को भी भारी परेशानी का अनुभव हो रहा है। कोरोना की मजबूरी के कारण इस ऑनलाइन शिक्षा की अवधारणा को बड़े-बड़े शहरों से गांवों के विद्यार्थियों तक पंहुचा दिया गया है। परन्तु शिक्षक की आंखों के सामने विद्यार्थी जो शिक्षा ग्रहण करता है तथा उसका विद्यार्थियों पर जो प्रभाव पड़ता है उस दृष्टि से ऑनालाइन शिक्षा को कारगर नहीं माना जा रहा है। विद्यार्थी भी अन्य साथियों के साथ एक टीम भावना का व्यवहार सीखता है।

अतः सरकारों को प्रत्येक संभव सुरक्षित उपाय करते हुए स्कूल तथा उच्च शिक्षण संस्थानों को शीघ्रतम खुलवाने की व्यवस्था करनी चाहिए।     ु

(डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।)

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