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स्वदेशी सार्वजनिक नीति अनुसंधान का उन्मुखीकरण

स्वदेशी जागरण मंच का स्पष्ट मानना है भारतीय संस्कृति भारतीय परंपराएं और सबसे बढ़कर भारतीय युवा शक्ति भारत की ताकत है। इनके लूट की खुली छूट नहीं दी जा सकती। - आलोक सिंह

 

देश में इन दिनों सार्वजनिक नीति अनुसंधान संगठनों की बाढ़ आई हुई है। इनमें से ढेर सारे संगठन नीति निर्माण के नाम पर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। खुद के द्वारा घोषित मिशन और विजन से परे हटकर सरकार को तो गुमराह कर ही रहे हैं, राष्ट्रवादी हितधारकों का धन, संस्कृति, परंपरा तहस-नहस करने के साथ-साथ हमारी युवा पीढ़ी को लूटने पर भी आमादा है। नीति निर्माताओं द्वारा ऑनलाइन गेम पर 28 प्रतिशत जीएसटी लागू किए जाने के बाद इनकी कलई खुल कर सामने आ गई है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की देखरेख में चल रही प्रतिस्पर्धी सार्वजनिक नीति लाबी सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रही है, लेकिन सुखद है कि स्वदेशी जागरण मंच राष्ट्रवादी हितधारकों के लिए ’स्वदेशी शोध संस्थान’ की अनूठी पहल कर सार्वजनिक नीति अनुसंधान क्षेत्र की खाई को पाटने तथा इस क्षेत्र में शुचिता कायम करने का बीड़ा उठाया है।

मालूम हो कि सार्वजनिक नीति अनुसंधान संगठन सार्वजनिक नीतियों की निर्माण प्रक्रिया, प्रारूपण और स्वीकृति को प्रभावित करने में एक आवश्यक घटक है। ऐसे संगठन सरकार द्वारा स्वामित्व और वित्त पोषित हैं या गैर सरकारी संगठनों के स्वामित्व में है या किसी अन्य प्रकार के स्वामित्व और वित्त पोषण में चल रहे हैं। अपने खुद के मिशन और विजन की विशेषता के साथ ऐसे संगठन स्वास्थ्य, शिक्षा, अंतरराष्ट्रीय संबंध, रक्षा, दूरसंचार, नीति, आदि क्षेत्रों में समग्रता के साथ काम करने का दावा करते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश संगठनों का कार्य उनके प्रोफाइल कथन के विपरीत होता है। आमतौर पर ऐसे संगठन अपनी प्रकृति में अकादमी होते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि वे अकादमिक पाठ्यक्रम भी चलाते हों। हालांकि ऐसे संगठनों में काम करने वालों को शोधकर्ता के रूप में ही नामित किया जाता है। आज ढेर सारे कॉर्पोरेट निकायों द्वारा ऐसे संगठनों को वित्त पोषित किया जाता है। कारपोरेट के अपने हित होते हैं। इसलिए ऐसे संगठनों को वित्त मुहैया कराने वाले तथा संगठनों मे रहकर काम करने वालों के बीच विभिन्न मुद्दों पर टकराव उत्पन्न होने की भी बातें उभर कर आती रही हैं। चूंकि वित्तदाताओं की अनदेखी कर ऐसे संगठन अपना काम आगे नहीं बढ़ा सकते, इसका फायदा उठाते हुए शोधकर्ताओं से मनमाफिक रिपोर्ट तैयार कराई जाती है। शोधकर्ता आंकड़ों में हेर फेर कर ऐसी रिपोर्ट तैयार करते हैं जो उनके वित्तीय प्रायोजक के व्यवसाय का पक्ष लेता हो। केवल मुनाफे के व्यवसाय में लगे व्यवसायी ऐसी रिपोर्टों को आधार बनाकर सरकार के निर्णय संबंधी प्रक्रिया पर भी प्रभाव डालते हैं। दरअसल जोड़-तोड़ का यह एक व्यापारिक चक्र है, और ऐसे सार्वजनिक नीति संगठन जनता के खुले दुश्मन है। अनुसंधान संगठनों की उत्तरजीविता निजी वित्त पोषको पर निर्भर है।

आज की कारोबारी दुनिया में व्यवसायिक हित धारक बदल गए हैं। पूर्व में उत्पादों या सेवाओं को सर्वप्रथम विकसित किया जाता था और फिर बाजार से खरीदा जाता था। किसी उत्पाद की सफलता या असफलता बाजार की प्रतिक्रिया पर निर्भर करती थी। बाद में कंपनियों ने बाजार से उस उत्पाद या सेवा के बारे में फीडबैक लेना शुरू कर दिया। यानी व्यवसायी  उसी  उत्पाद को प्राथमिकता देने लगे जिसे ग्राहकों ने अपनी पूर्व स्वीकृति दी। इस क्रम में समय-समय पर समाज और पर्यावरण की चिंता करने वाले, न्यायपालिका, मीडिया, मशहूर हस्तियों द्वारा उत्पादों का विज्ञापन, आदि ग्राहकों का मनोविज्ञान सेट करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगे। इसे हम संक्षेप में कह सकते हैं कि आज का व्यवसाय मालिकों, प्रबंधको, कार्यकर्ताओं, न्यायपालिका, मीडिया, राजनेताओं, मशहूर हस्तियों और सार्वजनिक नीति अनुसंधान संगठनों से प्रभावित होता है। कुछ निष्पक्ष अनुसंधान संगठन भी है जो सरकारी परामर्श पर निर्भर हैं लेकिन अधिकांश संगठन अनुचित प्रस्तुतियों का सहारा लेकर हितधारकों को बरगलाने का काम कर रहे हैं।जो लोग सार्वजनिक नीति अनुसंधान संगठनों को वित्त पोषित करते हैं वह उम्मीद रखते हैं कि उनके हितों की तर्कसंगत ढंग से रक्षा की जाएगी, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे हितधारक हैं जो बड़े कारपोरेट के पक्ष में या विदेशी कंपनियों के पक्ष में लिए जाने वाले निर्णयों के शिकार हैं।

सार्वजनिक नीति ऐसी होनी चाहिए जो सभी हितधारको पर समानता का प्रभाव डालती हो। सभी द्वारा सम्मान रूप से समझी और व्याख्यायित की जा सके। उदाहरण के लिए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापना में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 अथवा रियल एस्टेट अधिनियम 2016 सभी के लिए ब्लैक एंड व्हाइट में है, जबकि दिवाला और दिवालियापन संहिता 2016 तथा वस्तु एवं सेवा कर आज भी ग्रे एरिया में है और इसीलिए इनका लगातार मूल्यांकन और इनमें निरंतर सुधार की आवश्यकता है।

कानून में प्रत्येक उद्देश्य के लिए एक समर्पित नीति होनी चाहिए।उदाहरण के लिए डिजिटल कामर्स ओपन नेटवर्क (ओएनडीसी) एक नीति है, जिसका एक मात्र उद्देश्य खरीदारों और विक्रेताओं के लिए ई-कॉमर्स का लोकतंत्रीकरण करना है। ओएनडीसी के आने से पहले तमाम ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा टैक्स चोरी और पैसे जलाने वाले बिजनेस मॉडल के अलावा खरीददारों और विक्रेताओं के शोषण के अनेक मामले प्रकाश में आए थे। ओएनडीसी के उद्देश्य में स्पष्टता थी, इसलिए उसके द्वारा ऐसी नीति तैयार की गई ताकि कंपनियों वकीलों या ग्राहकों या मीडिया द्वारा विरोधाभासी व्याख्या की कोई गुंजाइश ही ना हो। ओएनडीसी के माध्यम से आज एक कुशल व्यवहार व्यवसाय हो रहा है।

ऑनलाइन गेम्स पर 28 प्रतिशत जीएसटी लागू करने का बहुराष्ट्रीय कंपनियां विरोध कर रही हैं। भारत में लगभग साढ़े तेरह हजार करोड़ का ऑनलाइन गेम का कारोबार है। इस क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों को इसके और अधिक बढ़ने की उम्मीद थी। जीएसटी दर बढ़ाई जाने के बाद यह कंपनियां देश में स्टार्टअप के बंद होने का रोना रो रही हैं।

स्वदेशी जागरण मंच का स्पष्ट मानना है भारतीय संस्कृति भारतीय परंपराएं और सबसे बढ़कर भारतीय युवा शक्ति भारत की ताकत है। इनके लूट की खुली छूट नहीं दी जा सकती।

कई एक सार्वजनिक नीति अनुसंधान संगठनों द्वारा हेरफेर कर तैयार की गई सिफारिशों का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रवादी हितधारकों द्वारा वित्त पोषित संगठनों की आवश्यकता है। इसको ध्यान में रखकर स्वदेशी जागरण मंच की ओर से स्वदेशी शोध संस्थान की पहल की गयी है। उम्मीद की जानी चाहिए की स्वदेशी शोध संस्थान सार्वजनिक नीति अनुसंधान के मार्फत पनपने वाले पापाचार को दूर करने का सफल माध्यम बन कर उभरेगा तथा भारतीय मूल्यों परम्परा की रक्षा करते हुए भारतीय प्रज्ञा ज्ञान और मेधा को सबल प्रदान करेगा।       

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