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आंकड़ों में दिखा अंतर्विरोधों का इंद्रधनुषी रंग

जीएसटी प्रणाली के जरिए कर जटिलताओं को कम से कम किए जाने के कारण उद्यमशीलता को लगातार प्रोत्साहन मिला है। - अनिल तिवारी

 

कवि राधेश्याम तिवारी की एक कविता है- न्यूटन ने यह तो बताया कि सेव ऊपर से नीचे की ओर गिरता है, लेकिन नीचे वालों को मिलता क्यों नहीं यह कौन बताएगा?

अर्थव्यवस्था के स्याह पहलुओ के बीच से एक बेहतर भारत बनाने की जद्दोजहद के बीच बने वस्तु एवं सेवा कर (जी एस टी) संग्रह की हालिया उछाल अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर प्रस्तुत करती है, पर लगे हाथों सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) द्वारा जारी बढ़ती बेरोजगारी का आंकडा नौकरी की तलाश कर रहे ग्रामीण और शहरी युवाओं के पुरसुकून होने की उम्मीदों पर पानी फेरने वाला है। वित्त विभाग के मुताबिक दिसंबर 2022 में वस्तु एवं सेवा कर संग्रह 15 प्रतिशत बढ़कर 1.49 लाख करोड़ से भी अधिक का हो गया है। इससे बेहतर कर अनुपालन के साथ-साथ निर्माण में सुधार एवं खपत में तेजी के संकेत मिलते हैं। लेकिन दूसरी तरफ सीएमआईई का दावा है कि भारत में दिसंबर महीने में बेरोजगारी की दर बढ़कर 8.3 प्रतिशत हो गई है। बेरोजगारी दर का यह आंकड़ा पिछले 16 महीनों में सबसे ज्यादा है। यह हमारी अर्थव्यवस्था की समावेशी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि ’एक देश-एक कर’ के नारे के तहत जीएसटी के कार्यान्वयन से भारत विश्व भर में आकर्षक कारोबारी गंतव्य के रूप में उभरा है। इस व्यवस्था ने भारत के लगभग 140 करोड लोगों के लिए साझा बाजार की अवधारणा को साकार कर दिया है। अनेक अप्रत्यक्ष करों का जीएसटी में बिलयन कर दिया गया है। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों तथा समाज के सभी वर्गों की बेहतरी के लिए वस्तु एवं सेवा कर एक जुलाई 2017 से ही देश में लागू है। जीएसटी प्रणाली के जरिए कर जटिलताओं को कम से कम किए जाने के कारण उद्यमशीलता को लगातार प्रोत्साहन मिला है। ज्ञात हो कि जीएसटी लागू होने के पहले कारोबारी प्रवर्तको, विनिर्माताओं और उत्पादकों को विभिन्न विभागों का चक्कर लगाना पड़ता था तथा 30 प्रतिशत तक केंद्रीय व राज्य करों का भुगतान करना होता था,लेकिन अब कारोबारियों को मात्र 18 से 22 प्रतिशत तक ही करों का भुगतान करना होता है। ऑनलाइन भुगतान की सुविधा हो जाने से व्यापारियों को आए दिन के उत्पीड़न से भी निजात मिल गई है। उद्योगों में छोटे बड़े का भेद कम हुआ है जिसके चलते व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे माइक्रो मीडियम और स्माल सभी तरह के उद्योगों के लिए संभावनाएं खुल गई हैं।

उद्यमों में गतिशीलता आने के कारण कर संग्रह भी लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2022 में लगातार पिछले 10 महीने से कर संग्रह के रूप में राजस्व 1.40 लाख करोड़ रुपए से अधिक रहा है। वित्त मंत्रालय ने अपने ताजा बयान में बताया है कि दिसंबर 2022 के दौरान सर्कल जीएसटी राजस्व 149507 करोड रुपए का रहा है। इसमें जीएसटी 26700 करोड़ रुपए एसजीएसटी 33757 करोड रुपए आईजीएसटी 78434 करोड रुपए (माल के आयात पर एकत्र 40362 करोड़ रुपए सहित) और उपकर 11500 करोड़ रुपए (माल के आयात पर एकत्र 850 करोड रुपए सहित) है। इस तरह दिसंबर 2022 में राजस्व संग्रह सालाना आधार पर 15 प्रतिशत अधिक है क्योंकि पिछले साल इसी अवधि में जीएसटी संग्रह 1.30 लाख करोड़ रुपए तक ही रहा था। इस दौरान सरकार ने नियमित निपटान के रूप में आईजीएसटी सीजीएसटी में 36669 करोड रुपए और एसजीएसटी में 31094 करोड रुपए का निपटान किया है। दिसंबर 2022 में नियम नियमित निपटान के बाद केंद्र और राज्यों का कुल राजस्व सीजीएसटी के लिए 63380 करोड रुपए और एसजी एसटी के लिए 65451 करोड रुपए है।

दिसंबर महीने का कर संग्रह नवंबर की तुलना में अधिक है लेकिन पिछले अक्टूबर की तुलना में कम है। अक्टूबर महीने का जीएसटी संग्रह 1.52 लाख करोड़ रुपए का था। अक्टूबर में त्योहारी सीजन के कारण खरीददारी भी ज्यादा हुई थी मार्केट में डिमांड थी और उत्पादन भी ज्यादा हुआ था। मांग में तेजी और कच्चे माल के दामों में कमी से लागत कम होने के चलते नवंबर महीने से देश में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में गतिविधियां बढ़ गई थी, जिसका परिणाम दिसंबर महीने के आकलन में दिख रहा है। एस एंड पी ग्लोबल इंडिया के सर्वे में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कार्यरत कंपनियां आने वाले समय में तेजी की संभावनाओं को लेकर काफी आश्वस्त हैं।सर्वे में शामिल कंपनियों ने भरोसा जताया है कि उनके उत्पादों की मांग की तेजी बनी रहेगी तथा साल 2023 में उत्पादन बढ़ाने की उनकी क्षमता भी अच्छी रहेगी। हाल के दिनों में सकारात्मक धारणा का स्तर जो दिखा है वह पिछले 8 साल में सर्वाधिक है।

अब बात करते हैं सीएमआईई के आंकड़ों की। ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत में दिसंबर महीने में बेरोजगारी दर बढ़कर 8.3 प्रतिशत हो गई है यह आंकड़ा पिछले 16 महीनों में सबसे ज्यादा है। नवंबर महीने में यह आंकड़ा 8 प्रतिशत का था। हालांकि आंकड़ों में बेरोजगारी के दर के बढ़ने के साथ-साथ श्रम भागीदारी बढ़ने की उलटबांसी भी शामिल है। दिसंबर महीने में श्रम भागीदारी 40 प्रतिशत तक बढ़ी है जो 12 महीनों के सबसे ज्यादा ऊंचा स्तर पर है। लेकिन चिंता की बात यह है कि ग्रामीण बेरोजगारी के बरक्स इस महीने शहरी बेरोजगारी में भारी वृद्धि हुई है। याद कीजिए कुछ महीने पहले ही इलाहाबाद में अचानक हजारों छात्र रोजगार के सवाल पर ताली थाली बजाते आधी रात को सड़कों पर उतर आए थे। मनमोहन सरकार के दौर में जॉबलेस ग्रोथ से रोजगार के सवाल पर युवाओं में बढ़ती बेचैनी को भापते हुए वर्ष 2013 में वर्तमान प्रधानमंत्री ने इसे जोर-शोर से उठाया था। युवा आबादी के हर हाथ को काम देने की बात कही गई थी। लेकिन हर तरह के आंकड़े गवाह हैं कि 3 दशक के नवउदारवादी अर्थनीति के सबसे बड़े शिकार रोजगार के अवसर ही हुए हैं।

बहरहाल आंकड़ों के आईने में एक ही समय में कर संग्रह का आकार बढ़ने और रोजगार के अवसर कम होने की पेश तस्वीर आसानी से गले उतरने वाली नहीं है। क्या इन दोनों के बीच कोई सरल संबंध हो सकता है? सुगम मांग और पूर्ति के कारण उद्योग का पहिया रफ्तार से घूमा है इसलिए जीएसटी संग्रह को लेकर कोई संदेह का कारण नहीं है, लेकिन न्यूज़ एजेंसी राइटर के हवाले से आये सीएमआई ई के आंकड़े संशय पैदा करने वाले हैं। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. अश्वनी महाजन की मानें तो सजावटी और बनावटी आंकड़ों के जरिए प्रभावित करने की बातें भी अब एक तरह से आम हो गई है।

हिंदी पट्टी की अधिकांश आबादी आज भी पेंचो को रामचरितमानस के सूत्रों से सुलझाने की आदी है। बाबा तुलसी ने लिखा है कि “दुई न होहि एक संग भुआलू, हंसब ठठाई फुलाईब गालू।“ परंतु इस सूक्ति के उलट आंकड़ों में यह करिश्मा हुआ है। ऐसे में यह प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाता है कि किस आंख से हंसे और किस आंख से रोए।        

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