स्वावलंबी भारत अभियान ‘संकल्प पत्र’
पिछले 30 वर्षों की वैश्वीकरण की नीतियों के अत्यंत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि तो हुई है, किन्तु रोजगार के अवसर आनुपातिक रूप से निर्मित नहीं हुए। इसलिए इस अवधि की जीडीपी संवृद्धि को ‘रोजगारविहीन संवृद्धि’ भी कहा गया। किन्तु जब तक देश पूर्ण रोजगार युक्त नहीं होता, वह पूर्ण स्वावलंबन व वैश्विक मार्गदर्शक के अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता।
हर वर्ष भारत की जनसँख्या में करीब 1.2 करोड़ लोग जुड़ जाते हैं। स्वतंत्रता के बाद से ही जनसंख्या वृद्धि के प्रकार के कारण जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग युवा है। आज देश की दो तिहाई जनसँख्या की उम्र 35 साल से कम है और यह 36 प्रतिशत से अधिक 15 से 35 वर्ष के आयु वर्ग में है। इस दृष्टि से भारत विश्व का सबसे युवा देश है। 15 से 29 वर्ष आयुवर्ग में ही 37 करोड़ युवा हैं। ऐसी स्थिति को ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ के रूप में भी परिभाषित किया जाता है, क्योंकि युवा आबादी का बड़ा आकार युवाओं की क्षमताओं का उपयोग करके, देश के लिए तेजी से विकास करना संभव बनाता है। वर्तमान मेंरोजगार सृजन सबसे बड़ी व गंभीर चुनौती है।
आज देश में लगभग 80 प्रतिशत लोग कृषि, लघु-कुटीर उद्योगों, बड़े उद्योगों, व्यापार आदि के माध्यम से स्वरोजगार में संलग्न है। उसके बावजूद सामान्य युवा नौकरी, विशेषकर सरकारी या बड़ी कंपनी की नौकरी को ही रोजगार मानते हैं। अतः परिभाषा ठीक करने से भी समाधान करने में सहयोग मिलेगा। सरकारी तंत्र की लालफीताशाही, नए उद्यम व स्वरोजगार शुरू करने में तंत्र की कठिनाईयाँ, सामाजिक-पारिवारिक सोच का स्वरोजगार के अनुकूल न होना भी पूर्ण रोजगार युक्त भारत की यात्रा के अवरोध हैं, जिनसे मुक्ति की आवश्यकता है।
इन परिस्थितियों में -
— हमें एक ऐसी राष्ट्रीय सोच की आवश्यकता है, जो युवाओं को स्थायी आधार पर रोजगार की सुविधा प्रदान करे, और जो उत्पादक भी हो।
— ऐसी नीतियां बनाने की जरूरत है, जो उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ अधिक रोजगार के अवसर पैदा करें। हमें कृषि के प्रति उदासीनता को समाप्त करना होगा और कृषि उत्पादन और उससे होने वालीआय को बढ़ाने के प्रयास करने होंगे।
— आय का उचित वितरण भी तभी संभव है जब श्रमिक को उचित मजदूरी मिले, किसान को उसकी उपज का लाभकारी मूल्य मिले और हर कोई अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो। इसके लिए हमें साम्यवाद या समाजवाद की आवश्यकता नहीं है, हमें एकात्म नीति की आवश्यकता है, जहां उत्पादन, रोजगार, निवेश और वितरण को अलग नहीं किया जाता है, बल्कि वे एक दूसरे के साथ एकीकृत रूप से जुड़े होते हैं। इसके लिए न केवल सरकारों व समाज को एकात्म भाव से कार्य करने की जरुरत है, बल्कि समाज को आगे बढ़कर इस रोजगार विहीनता की चुनौती को स्वीकार करना चाहिए।
स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय सभा संकल्प लेती है कि -
स्वदेशी जागरण मंच के सभी कार्यकर्ता बेरोजगारी की समस्या के समाधान हेतु आर्थिक क्षेत्र के संगठनों के साथ-साथ शैक्षिक व सामाजिक संगठनों को साथ लेकर जन-जागरण, प्रबोधन और योजना के माध्यम से देश में स्वदेशी, स्वावलंबन एवं स्वरोजगार के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ेंगे।
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