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केंद्र सरकार के प्रयास से स्वास्थ्य सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार

स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार ने उल्लेखनीय पहल की है। आयुष्मान कार्ड के जरिए सरकार हर भारतीय को रुपए 5 लाख तक का मुफ्त इलाज कर रही है। सरकार के इन प्रयासों का असर अब जनजीवन में दिखने लगा है। - वैदेही

 

एक तरफ स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार से जीवन रेखा बढ़ी है, तो तस्वीर का धुंधला पहलू यह भी सामने आना लगा है कि जो चीजें हमें प्रकृति से आसानी से मिल जाती हैं, जिन तक सहज पहुंच है, उन्हीं का अब आम आदमी को ज्यादा अभाव होने लगा है। ग्रामीण इलाकों में अपेक्षित हवा, पानी, धूप मिल जा रही है, लेकिन नगरों और महानगरों में प्रकृति से मिलने वाली इन अनमोल चीजों का भी संकट बदलते समय के साथ बढ़ता जा रहा है।

यदि कोरोना प्रकोप के दौरान स्वास्थ्य के क्षेत्र में मचे हाहाकार की घटनाओं को छोड़ दिया जाए, तो अब इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया के देशों में जीवन रेखा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के समग्र प्रयासों का परिणाम है कि अपने समय की जानलेवा बीमारियां टीबी, मलेरिया, टाइफाइड, पोलियो, पीलिया, डायरिया आदि पर काफी हद तक कंट्रोल कर लिया गया है। दुनिया के देशों में बाल मृत्यु दर लगभग आधी रह गई है तो प्रसव के दौरान मातृ मृत्यु दर भी करीब एक तिहाई रह गई है। संस्थागत प्रसव ने हालातों में तेजी से सुधार किया है। दुनिया के अधिकांश देशों में संक्रामक रोगों का असर भी कम हुआ है, तो डेंगू, स्वाईन फ्लू व इसी तरह की कुछ जानलेवा बीमारियां सामने आने लगी हैं।

पिछले कुछ दशकों से हमारे देश ही नहीं दुनिया के लगभग अधिकांश देशों में स्वास्थ्य सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इसके लिए वैक्सिनेशन अभियान और सरकारों द्वारा अनवरत रूप से चलाए जाने वाले अवेयरनेस और नियंत्रण अभियानों से हालातों में तेजी से सुधार हुआ है। लोगों की जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी हुई है। कोरोना के अपवाद को अलग कर दिया जाए तो जहां 2000 में औसत आयु 67 साल होती थी वह 2022 तक बढ़कर 73 साल हो गई है। यानी कि 25 सालों में छह साल अधिक जीने लगे हैं आम नागरिक। यह अपने आपमें बड़ी उपलब्धि है, सरकारों और स्वास्थ्य सेवाओं की।

यदि हमारे देश की ही बात करें तो जच्चा-बच्चा सुरक्षा अभियान के तहत महिला के प्रेगनेंट होने के साथ से ही नियमित जांच, दवा और टीकों का अभियान चलने के साथ ही प्रसव के बाद बच्चों की सुरक्षा और भविष्य में बीमारी न हो, इसके लिए नवजात बच्चों को मासिक, त्रैमासिक, छमाही, वार्षिक के साथ ही 5-7 साल की उम्र होने तक जिस तरह से अलग-अलग बीमारियों से सुरक्षा के लिए टीके लगाये जा रहे हैं और सरकारी डिस्पेंसरियों में वार विशेष को टीका लगाने की व्यवस्था होने से लोगों में जागरूकता आई है और इसका सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगा है। टीकाकरण और समय समय पर एनिमिया, दस्त निरोधक, कृमि नाशक दवाएं अभियान चलाकर उपलब्ध कराने से सेहत के क्षेत्र में लगातार सुधार आया है। यह वास्तव में चिकित्सा जगत की बड़ी उपलब्धि मानी जानी चाहिए और इसके लिए सरकारों व स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों को श्रेय दिया जाना चाहिए। उन्हीं के प्रयासों से यह संभव हो पाया है।

एक तरफ स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार से जीवन रेखा बढ़ी है तो तस्वीर का धुंधला पहलू यह भी सामने आना लगा है कि जो चीजें हमें प्रकृति से आसानी से मिल जाती हैं, जिन तक सहज पहुंच है उन्हीं की डेफिसिएंसी ज्यादा होने लगी है। यह सब हमारे रहन-सहन, खान-पान और दौड़ती भागती जिंदगी का परिणाम है। आज लोगों में विटामिन डी या सी की कमी आम होती जा रही है। जबकि हम जानते हैं कि चंद मिनटों यानी कि 5-7 मिनट प्रतिदिन धूप सेवन से विटामिन डी की डेफिसिएंसी को दूर किया जा सकता है, पर हालात यह हो गए हैं कि हम केमिकल से तैयार दवा लेने को तैयार हैं, परंतु पांच मिनट धूप सेवन के लिए हमारे पास समय की कमी है। हालांकि मेट्रोसिटीज में गगनचुंबी अट्टालिकाओं के कारण सूर्य भगवान से साक्षात्कार करना लगभग मुश्किल भरा हो जाता है। इसी तरह से काम धंधे की भागदौड़ में धूप सेवन जैसी प्रकृति से सीधे साक्षात्कार का अवसर लाभ नहीं ले पाते हैं। और तो और रंग काला हो जाएगा इसी के चलते धूप से परहेज किया जाने लगा है। इसी तरह से बच्चों का मिट्टी में खेलना तो अब सपना रह गया है। परंपरागत खेल जो शारीरिक व मानसिक व्याधियों से बचाने में सहायक होते थे, वह आज कहीं नैपथ्य में चले गए हैं। आज पैसा खर्च कर जिम में जाकर पसीना बहाने को तैयार हैं, पर प्राकृतिक रूप से मिलने वाले उपहार धूप, हवा पानी से दूर होते जा रहे हैं। एक कारण बढ़ता प्रदूषण भी है। इस सबसे अधिक चिंतनीय यह होता जा रहा है कि आज की पीढ़ी तेजी से डिप्रेशन की शिकार होती जा रही है। प्रतिस्पर्धा का यह दौर डिप्रेशन के रूप में सामने आ रहा है और सेहत के मोर्चें पर इसके दुष्परिणाम तेजी से सामने आने लगे हैं।

केंद्र की मोदी सरकार ने भारतीय वांग्मय में मनुष्य के 100 वर्ष जीने की परिकल्पना में वर्णित आयुर्वेद के विस्तृत प्रभाव को संज्ञान में लेते हुए आयुष विभाग के जरिए गतिविधियां तेज कर दी हैं। वैकल्पिक स्वास्थ्य सुविधा के रूप में सरकार चरणबद्ध तरीके से आयुर्वेद के विकास में अपेक्षित योगदान कर रही है। करोना महामारी के दौरान जिन लोगों का आयुर्वेद पर विश्वास बढ़ा उनमें इसके प्रति भरोसा और अधिक मजबूत हुआ है वही जड़ी बूटियां के सहारे अपने आप को ठीक रखने वाले अधिकांश लोग आयुष उत्पादों के सच्चे एंबेसडर भी बने हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार ने उल्लेखनीय पहल की है। आयुष्मान कार्ड के जरिए सरकार हर भारतीय को रुपए 5 लाख तक का मुफ्त इलाज कर रही है। सरकार के इन प्रयासों का असर अब जनजीवन में दिखने लगा है।

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