swadeshi jagran manch logo

मुफ्तखोरी के कारण कर्ज में डूबते राज्य

किसी भी राज्य के विकास के लिए जरूरी है कि उसमें निवेष बढ़े। इन्फ्रास्ट्रक्चर के अभाव में निवेष प्रभावित होता है और उसके कारण राज्य का विकास भी। जरूरी है कि राज्यों द्वारा दी जा रही मुफ्त की स्कीमों पर अंकुष लगाकर देष के विकास को गति दी जाए। - डॉ. अश्वनी महाजन

 

पिछले कुछ समय से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में एक बात बार-बार दोहरा रहे हैं कि मुफ्त की रेबड़ियां बांटने की राजनीति इस देष को घुन की तरह खोखला कर रही है। गौरतलब है कि पिछले एक-दो दषकों में विभिन्न राज्यों में राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए विभिन्न प्रकार की मुफ्त योजनाओं की घोषणा करती रही हैं। मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, सार्वजनिक परिवहन में मुफ्त महिला यात्रा, सभी किसानों को उनकी भूमि के आधार पर कैष ट्रांसफर, मुफ्त मंगल सूत्र, मुफ्त टेलीविजन, मुफ्त लैपटॉप, स्कूटर समेत कई प्रकार की मुफ्त योजनाएँ राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि कई राजनीतिक दल इससे लाभ उठाते हुए कई राज्यों की सरकारों में काबिज भी हो गए। विभिन्न राज्यों में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त की योजनाओं की एक लंबी सूची बनती जा रही है।

आंध्र प्रदेष के बारे में रिजर्व बैंक का यह भी कहना है कि आंध्र प्रदेष और अन्य राज्यों की राज्य सरकारें बजट में घोषित सार्वजनिक उधारी से इतर कई प्रकार से सरकारी कर्ज ले रही हैं, जो चिंता का विषय है। स्थिति तो यह है कि आंध्र प्रदेष की राज्य सरकार तो भविष्य के राजस्व को रहन रख ऋण ले रही है। आंध्र प्रदेष के अतिरिक्त रिजर्व बैंक ने 9 और राज्यों को अगाह किया है कि उनकी उधारी उनकी धारण क्षमता से बहुत अधिक हो चुकी है। इनमें से बिहार, केरल, पंजाब और पष्चिम बंगाल को अत्यधिक दबाव में बताया गया है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब, आंध्र प्रदेष, पष्चिम बंगाल, हरियाणा और केरल में औसतन सरकारी उधारी राज्य सकल घरेलू उत्पाद के 5 प्रतिषत से ज्यादा है, जिसमें पंजाब में यह 9.6 प्रतिषत है और आंध्र प्रदेष और पष्चिम बंगाल में क्रमषः में यह 6.1 और 6.0 प्रतिषत है। इसके अलावा हरियाणा में यह 5.3 प्रतिषत और केरल में यह 5.1 प्रतिषत है।

गौरतलब है कि भारत राज्यों का एक संघ है, इसलिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के ऋण मिलाकर ही संपूर्ण सरकार के ऋण माने जाते हैं। वर्ष 2003 में पारित एफआरबीएम कानून के संदर्भ में बनाई गई एफआरबीएम समिति ने 2017 में यह सुझाव दिया था कि सरकार (केन्द्र और राज्य सरकारें दोनों) के जीडीपी के अनुपात में ऋण की सीमा 60 प्रतिषत होनी चाहिए, जिसमें केन्द्र सरकर के ऋण की सीमा 40 प्रतिषत और राज्य सरकार के ऋण की सीमा 20 प्रतिषत होनी चाहिए।

वर्ष 2020-21 देश और दुनिया के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण रहा। एक ओर सरकारों की आमदनी भारी रूप से घट गई और दूसरी ओर कोरोना महामारी से निपटने हेतु स्वास्थ्य, सामाजिक सेवाओं और खाद्य सहायता पर खर्च अत्यधिक बढ़ गया। स्वाभाविक रूप से केंद्र सरकार की कुल देनदारियां जीडीपी के अनुपात के रूप में 2019-20 में 50.9 प्रतिशत से बढ़ती हुई 2020-21 में 61.01 प्रतिशत तक पहुंच गई। लेकिन इसके बाद यह 2021-22 में ये घटकर 57.33 प्रतिषत, 2022-23 में 55.88 प्रतिषत तक रह गई। इसी प्रकार से राज्य सरकारों की देनदारियां जीडीपी के अनुपात में वर्ष 2019-20 में 26.66 प्रतिशत, 2020-21 में 31.08 प्रतिषत, 2021-22 में 28.71 प्रतिषत और 2022-23 में 27.87 प्रतिषत रही। यदि आम सरकार (केन्द्र और राज्य सरकारें दोनों मिलाकर) की कुल देनदारियां 2019-20 में 77.56 प्रतिषत से बढ़ती हुई 2020-21 में 92.09 प्रतिषत तक पहुंच गई। इसके बाद यह घटती हुई 2021-22 में 86.04 प्रतिषत और 2022-23 में 83.75 प्रतिषत तक पहुंच गई।

गौरतलब है कि केन्द्र सरकार का घाटा और देनदारियां दोनों ही अत्यंत पारदर्षी होते हैं और उसके लिए गलत आकलन की आषंका नहीं होती। लेकिन राज्य सरकारों की देनदारियों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। हाल ही में भारत के अंकेक्षक एवं महालेखाकार (कैग) ने भी राज्यों के बजटीय और राजकोषीय प्रबंधन के बारे में अपनी कुछ टिप्पणियां की हैं। कैग का कहना है कि वर्ष 2020-21 में अधिकांष राज्यों में ऋण जीएसडीपी अनुपात लक्षित 20 प्रतिषत (एफआरबीएम के अनुसार) से ज्यादा है। पंजाब में यह 48.98 प्रतिषत, राजस्थान में 42.37 प्रतिषत, पष्चिम बंगाल में 37.39 प्रतिषत, बिहार में 36.73 प्रतिषत, आंध्र प्रदेष में 35.30 प्रतिषत, मध्य प्रदेष में 31.53 प्रतिषत, तेलंगाना में 27.80 प्रतिषत, तमिलनाडु में 27.27 प्रतिषत और छत्तीसगढ़ में 26.47 प्रतिषत तक पहुंच गया है। गौरतलब है कि ऋण के कैग के आँकड़े राज्य सरकारों द्वारा दिये गये आँकड़ों से भिन्न हैं। और यदि राज्य के सरकारी उद्यमों और राज्य सरकार द्वारा दी गई गारंटियों को भी शामिल कर लिया जाए तो 2020-21 तक राजस्थान में ऋण जीएसडीपी अनुपात 54.94 प्रतिषत और पंजाब में तो यह 58.21 प्रतिषत तक पहुंच चुका था। आंध्र प्रदेष में भी यह 53.77 प्रतिषत आकलित किया गया है। इसके बाद तेलंगाना में यह 47.89 प्रतिषत, मध्यप्रदेष में 47.13 प्रतिषत तक पहुंच चुका है। पष्चिम बंगाल और बिहार में भी यह क्रमषः 40.35 प्रतिषत और 40.51 प्रतिषत है, और तमिलनाडु में यह 39.94 प्रतिषत।

यदि कैग द्वारा इन राज्य सरकारों की समायोजित देनदारियों की तुलना राज्य सरकारों द्वारा दिए गए आंकड़ों से की जाए तो यह 10 प्रतिषत से 20 प्रतिषत तक अधिक दिखाई देता है। हालांकि एफआरबीएम एक्ट के अनुसार केन्द्र और राज्य सरकारों की देनदारियां निर्धारित सीमा से ज्यादा है, लेकिन कैग द्वारा किए गए आकलन के अनुसार राज्य सरकारों का अपेक्षित सीमा से अंतराल लगातार बढ़ता जा रहा है।

मुफ्त की रेवड़ियाँ और राज्यों पर बढ़ता कर्ज

आंध्र प्रदेष के बारे में रिजर्व बैंक का कहना है कि पंजाब के बाद आंध्र प्रदेष मुफ्त की योजनाओं पर खर्च करने वाला देष का दूसरा ऐसा राज्य है। गौरतलब है कि पंजाब में कुल कर राजस्व का 45.5 प्रतिषत मुफ्त की योजनाओं पर खर्च होता है और आंध्र प्रदेष में 30.3 प्रतिषत। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की बात करें तो पंजाब में राज्य सकल घरेलू उत्पाद का 2.7 प्रतिषत मुफ्त की योजनाओं में खर्च होता है तो आंध्र प्रदेष में 2.1 प्रतिषत। इसके अलावा मध्य प्रदेष में सब्सिडी पर खर्च कर राजस्व का 28.8 प्रतिषत, झारखंड में यह 26.7 प्रतिषत है।

गौरतलब है कि कैग के आकलन के अनुसार उन राज्यों पर कर्ज ज्यादा है, जहां मुफ्त की स्कीमों पर ज्यादा खर्च किया जा रहा है। इसमें सबसे ऊपर पंजाब और आंध्र प्रदेष है। जहां कुल राजस्व का भारी हिस्सा मुफ्त की योजनाओं पर खर्च होता है। आंध्र प्रदेष के अलावा दक्षिण का एक अन्य प्रांत तमिलनाडु है, जो जरूरत से ज्यादा मुफ्त की योजनाओं पर खर्च करता है। यूं तो दिल्ली भी मुफ्त की स्कीमों में काफी आगे है, लेकिन दिल्ली पर इस कारण से कर्ज इसलिए नहीं बढ़ता क्योंकि राज्य का प्रति व्यक्ति राजस्व शेष भारत से लगभग दुगुना है। लेकिन दिल्ली सरकार द्वारा मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी और महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन में मुफ्त यात्रा के कारण दिल्ली की वित्तीय स्थिति अत्यंत खराब हो गई है। आम आदमी पार्टी के सत्ता पर काबिज होने से पहले दिए गए तमाम वायदे जैसे 20 नए कॉलेज, फ्री वायफाई, 20 हजार सार्वजनिक शौचालय, महिला सुरक्षा फोर्स, 5 लाख सीसीटीवी, 8 लाख नौकरियों का सृजन, एक लाख युवकों को कौषल प्रषिक्षण आदि सारे वायदे अब तक हवा हो चुके हैं। दिल्ली की नागरिक सुविधाएं बुरी तरह से प्रभावित हो रही हैं। नई सड़कें, फ्लाईओवर, स्कूल और कॉलेज खोलना तो दूर दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाएं भी बुरी तरह से प्रभावित हो रही हैं।

जब कोई प्रांत मुफ्त की स्कीमों पर अपने कर राजस्व का इतना बड़ा हिस्सा खर्च कर देता है तो स्वाभाविक रूप से आवष्यक सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर पर उसका पूँजीगत खर्च कम हो जाता है। राज्य सरकार पर कर्ज बढ़ता चला जाता है, जिसके चलते भविष्य में भी सामाजिक सेवाओं जैसे षिक्षा और स्वास्थ्य के साथ-साथ यातायात और अन्य आवश्यक सेवाएं भी प्रभावित होती हैं। किसी भी राज्य के विकास के लिए जरूरी है कि उसमें निवेष बढ़े। इन्फ्रास्ट्रक्चर के अभाव में निवेष प्रभावित होता है और उसके कारण राज्य का विकास भी। जरूरी है कि राज्यों द्वारा दी जा रही मुफ्त की स्कीमों पर अंकुष लगाकर देष के विकास को गति दी जाए।       

Share This

Click to Subscribe