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आत्मनिर्भर बनने के लिए स्वदेशी प्रासंगिक

बढ़ती जनसंख्या को रोकना स्वदेशी आर्थिक विकास के मॉड़ल के लिए जरुरी है तथा यह बात जितनी जल्दी लोंगों की समझ में आ जाये उतना ही अच्छा है वरना तो हम राजनेताओं को मात्र दोष ही देते रह जायेंगे। — डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

 

भारत के लगभग सभी राजनीतिक दलों के राजनेता देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए चिन्तन नहीं कर रहे है, जिससे 74 वर्ष की स्वतंत्रता के उपरान्त भी भारत उतनी तरक्की नहीं कर पाया, जितनी की करनी चाहिए थी। चुनाव जीतने के उपरान्त अधिसंख्य राजनेता भ्रष्टाचार में लिप्त होकर अधिक से अधिक धन एकत्र करने की अपनी लालसा पूर्ति में लग जाते है। सभी कालों में सरकारों की सभी आर्थिक विकास योजनाएं अल्पावधि में ज्यादा से ज्यादा आर्थिक लाभ प्राप्त करने का षिकार होती रही है। चूंकि प्रत्येक पांच वर्ष में आम चुनाव होते है तो सरकारें भी ऐसी योजनाएं बनाती रहती है, जिनके परिणाम दो-तीन साल में ही प्राप्त हो जायें। जबकि योजनाएं दीर्घावधि के लिए दीर्घ लक्ष्य (आत्मनिर्भरता) को साधने के लिए बननी चाहिए जिसके लिए स्वदेषी मॉड़ल ही वर्तमान में प्रासंगिक हो सकता है।

स्वतंत्रता के प्रारम्भ के वर्षों में प.ं नेहरु के समय विकास का मॉड़ल समाजवादी व्यवस्था पर आधारित रहा था तथा बाद में यह समाजवादी व पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पर आधारित हो गया तद्उपरान्त वह वैष्वीकरण व उदारीकरण पर आधारित हो गया। आर्थिक नीतियों पर सरकार का अत्यधिक नियंत्रण होने के कारण देष में व्यापक रुप से भ्रष्टाचार का वातावरण बन गया। वर्तमान में गरीबी को समाप्त करने के लिए उस तरह की आर्थिक योजनाएं बन रही है जिनमें गरीबी व वंचित लोगों का विकास हो सके और लोग उत्पादकीय कार्य करने के लिए प्रेरित हो सकें। यह सब लोग जानते हैं कि जब तक देष का प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के तथा देष के विकास के लिए प्रेरित होकर उत्पादकीय कार्य नहीं करेगा तब तक देष की सरकारें गरीबों व वंचितों को वांछित लाभ नहीं दे पायेंगी।

भारत देष के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेष अंबानी ने अपने एक लेख में लिखा था कि गत तीन दषकों में हुए आर्थिक सुधारों का लाभ देष के सभी नागरिकों को नहीं मिला है। समाज के सबसे निचले वर्ग के आर्थिक विकास के लिए भारतीय मॉड़ल जरुरी है तभी देष 2047 तक स्वतंत्रता के सौ वर्षों में चीन व अमेरिका का प्रतिस्पर्धी बनकर उनको ललकार सकेगा।

वर्ष 1991 से षुरु हुए आर्थिक उदारीकरण के कारण ही सकल घरेलू उत्पाद (जीड़ीपी) 1991 में 266 अरब डॉलर था जो आज दस गुना हो चुका है। 1991 में जो अर्थव्यवस्था कमियों से जुझ रही थी वह 2021 में पर्याप्त सुधारों के साथ खड़ी हुई है। अब भारत को वर्ष 2051 तक एक ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहिए जो टिकाऊ होने के साथ साथ समस्त देषवासियों को आगे बढ़ने में सहयोग कर सके। 1991 में अर्थव्यवस्था की दिषा व निर्धारण दोनों को ही बदलने की दूरदृष्टि और साहस दिखाया गया था।

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र (प्राइवेट सेक्टर) भी प्रभावकारी ऊंचा स्थान रखता है। जबकि 1991 से पूर्व मात्र सार्वजनिक क्षेत्र (पब्लिक सेक्टर) को ही यह महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। उदारीकरण के चलते देष में लाइसेंस, परमिट व कोटा पद्धति लगभग समाप्त होकर व्यापार और औद्योगिक नीतियों को उदार कर पूंजी बाजार व वित्तीय क्षेत्र को पर्याप्त स्वतंत्रता दी गई। उन्हीं सुधारों से विष्व में भारत को सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का पांचवा स्थान प्राप्त हो सका है।

इस अवधि में महत्वपूर्ण बुनियादी ढ़ांचा में बहुत सुधार हुआ है। जिसमें सड़क, रेल, जल व वायु परिवहन मार्गो में पर्याप्त विकास एवम् सुधार हुआ है। कुछ ऐसा ही उद्योग व सेवा के क्षेत्र में भी देखने को मिला है। सूचना व ऊर्जा क्रान्ति ने देष की अर्थव्यवस्था में पर्याप्त महत्वपूर्ण योगदान दिया है। देष के लिए आगमी 30 वर्ष बहुत महत्वपूर्ण है तथा सभी देषवासियों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कमर कसकर उत्पादन कार्य हेतु तैयार रहना चाहिए जिसके लिए विष्व के देषों का पर्याप्त आर्थिक सहयोग की भी जरुरत होगी।

भारत के संसाधनों पर बढ़ती जनसंख्या प्रतिकूल प्रभाव ड़ाल रही है। सतत् आर्थिक विकास के लिए हम सभी का दायित्व बनता है कि उस पर मिलकर चिंतन व मनन करें। देष के सभी लोगों को धर्म व मजहब से ऊपर उठकर सोचना चाहिए कि बढ़ती जनसंख्या को किस प्रकार नियंत्रित किया जाये। भारत में प्रतिदिन 70,000 से अधिक बच्चे अर्थात 2.55 करोड़ प्रतिवर्ष बच्चे जन्म लेने वाली अर्थव्यवस्था में प्राकष्तिक संसाधनों की पूर्ति करना बहुत परेषानी का कारण बनता जा रहा है। बढ़ती जनसंख्या प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पंहुचा रही है। क्योंकि हम धरती के ससांधनों का तेजी से दोहन कर रहे है। इस सबसे देष के विकास के लिए योजनाकारों की सभी योजनाएं लगभग बेकार व असफल साबित हो जाती है।

देष में एक राजनीतिक दल की सरकार जाती है तो दूसरे राजनीतिक दल की सरकार आ जाती है तथा यह सभी राजनेता जानते है कि वे बेरोजगारी, अषिक्षा, बीमारी व गरीबी को समाप्त तो क्या बल्कि तनिक भी कम नहीं कर पायेंगे। बस हड़ताल व आंदोलन में ही अपनी मानव षक्ति का दुरुपयोग करते हुए गरीबी को बढ़ाते रहेंगे तथा सत्ता प्राप्त करने के लिए जनता में मुफ्तखोरी की लत ड़ालते रहते है।

प्राकृतिक संसाधानों को भविष्य के लिए टिकाऊ बनाये रखने के लिए जनसंख्या की वृद्धि में प्रभावकारी रुकावट अब अनिवार्य हो चली है। बढ़ती जनसंख्या देष के विनाष का कारण बनकर रहेगी। प्राकृतिक संसधानों की पूर्ति व मांग में सामंजस्य प्रकृति के नियमों के अनुसार नहीं हो रहा है। बढती जनसंख्या एक परिवार का नहीं बल्कि देष के संसाधनों की कमी का मुद्दा बन गया है।

अगर जनसंख्या इसी गति से बढ़ती रही तो जल, जलवायु, भोजन तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर ही ग्रहण लग जायेगा अभी यदि प्रत्येक भारतीय नागरिक बढ़ती जनसंख्या के प्रति जागरुक नहीं हुआ तो बहुत देर हो जायेगी तथा देष का 2047 तक विकास पूर्णरुप से अवरुद्ध ही हो जाने की सम्भावना है। स्वतंत्रता के सौ वर्ष पूर्ण होने पर अच्छे व विकसित भारत के लिए जहां स्वदेषी आर्थिक मॉड़ल की आवष्यकता है जिसमें हम स्वदेषी व स्थानीय तकनीक व संसाधानों व वस्तुओं का अधिक प्रयोग करें वहीं देष की बढ़ती जनसंख्या पर धर्म व मजहब से ऊपर उठकर राष्ट्रभक्ति दिखाते हुए अंकुष लगाने की भी आवष्यकता है।

पृथ्वी पर उपलब्ध कुल पीने योग्य जल की मात्रा 2030 तक ही 50 प्रतिषत कम हो जायेगी। पृथ्वी पर लगभग कुल जल का 2.5 प्रतिषत जल ही पीने योग्य है। पानी नहीं तो जीवन कैसा? जल ही जीवन है, जल नही तो कल नहीं। यह तो एक संसाधान (पानी) का उदाहरण है। बाकी हवा, अन्न, वस्त्र, दवाईयां आदि का क्या होगा सोचा नहीं जा सकता है। अतः बढ़ती जनसंख्या को रोकना स्वदेषी आर्थिक विकास के मॉड़ल के लिए जरुरी है तथा यह बात जितनी जल्दी लोंगों की समझ में आ जाये उतना ही अच्छा है वरना तो हम राजनेताओं को मात्र दोष ही देते रह जायेंगे। ऐसे राजनेता अपना स्वार्थपूर्ण करके चलते बनेंगे उस समय तक बहुत देर हो जायेगी। स्वदेषी उपलब्ध वस्तुओं, संसाधान, तकनीक, ज्ञान, विज्ञान का ही प्रयोग करके आत्मनिर्भर बनने की हर सम्भव कोषिष करनी बहुत ही आवष्यक है।            ु 

डॉ. सूर्य प्रकाष अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाष प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।

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