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अमेरिका से बाहर भेजे जाने वाली राशि पर करः एक प्रतिगामी कदम

हाल ही में, नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ग्रीन कार्ड धारकों सहित विदेशी नागरिकों द्वारा भेजे जाने वाले धन पर 5 प्रतिशत लगाने की घोषणा कर दी। हालाँकि बाद में इसे संशोधित कर 3.5 प्रतिशत कर दिया गया, लेकिन इस योजना ने व्यापक चिंता पैदा कर दी है, खासकर अमेरिका में रहने वाले भारतीय प्रवासियों के बीच, जो विदेशी राष्ट्रीय कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, भारत को वित्तीय वर्ष 2023-24 में कुल 129 अरब डॉलर में से केवल अमेरिका से 32 अरब डॉलर का धन प्राप्त हुआ। आने वाले वर्ष में यदि धन प्रेषण का स्तर समान भी रहे तो भी, प्रस्तावित कर के परिणामस्वरूप प्रभावी रूप से भारतीय परिवारों और भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलने वाली राशि में एक अरब डॉलर से ज़्यादा की कमी आ जाएगी।

ट्रम्प प्रशासन का उद्देश्य घोषित रूप से अमेरिकी सरकार के लिए अधिक राजस्व एकत्र करना और विदेशी देशों में धन को बाहर जाने से रोकना है। हालाँकि, यह दृष्टिकोण अदूरदर्शी और संभावित रूप से हानिकारक है। सर्वप्रथम प्रवासियों द्वारा धन प्रेषण, व्यावसायिक लाभ हस्तांतरण नहीं हैं; बल्कि वे व्यक्तिगत हस्तांतरण हैं। इन निधियों पर संघीय और राज्य आयकरों के माध्यम से पहले ही संयुक्त राज्य अमरीका में कर लगाया जा चुका हो तो, इन हस्तांतरणों पर कराधान की दूसरी परत लगाना अन्यायपूर्ण और आर्थिक रूप से प्रतिगामी दोनों है। इसके अलावा, ऐसा कर अभूतपूर्व है। वैश्विक स्तर पर, वस्तुतः ऐसे कोई उदाहरण नहीं हैं जहाँ सरकारें वैध विदेशी श्रमिकों द्वारा विदेश भेजे गए धन पर कर लगाती हों। कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और खाड़ी के देश, कहीं पर भी ऐसे कर नहीं लगाये जाते। यह सही है कि यह कदम संयुक्त राज्य अमरीका से भारत में धन प्रेषण को हतोत्साहित कर सकता है, जो न केवल इन निधियों पर निर्भर लाखों भारतीय परिवारों को नुकसान पहुँचाएगा, बल्कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। लेकिन दूसरी ओर धन प्रेषण पर कर कुशल अप्रवासियों - विशेष रूप से भारत से आने वाले लोगों - को नकारात्मक संदेश भी भेजेगा, जो संयुक्त राज्य अमरीका की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

अमेरिका में सबसे सफल और उत्पादक अप्रवासी समुदायों में से एक भारतीयों का है। इंडियास्पोरा और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय मूल के लोग, अमेरिकी आबादी का केवल 1.5 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद, कुल आयकर में 5 से 6 प्रतिशत योगदान करते हैं - अनुमानित 250-300 अरब डालर सालाना। यह न केवल भारतीयों की उच्च आय को दर्शाता है, बल्कि एक मजबूत कार्य नैतिकता, शैक्षिक उत्कृष्टता और उद्यमशीलता की भावना का भी प्रतिबिंब है। कोई भी आसानी से समझ सकता है कि अमेरिकी सरकार द्वारा गरीब अमेरिकी परिवारों को दी जा रही मदद, आंशिक रूप से भारतीय मूल के लोगों से अर्जित अतिरिक्त राजस्व से वित्तपोषित है।

अमेरिका ने ऐतिहासिक रूप से अप्रवासियों, विशेष रूप से भारत जैसे देशों से कुशल पेशेवरों से लाभ उठाया है। सिलिकॉन वैली में तकनीकी उछाल का मुख्य कारण अप्रवासी नवाचार था। गूगल, माइक्रोसॉट और एडोब जैसी कंपनियों का नेतृत्व भारतीय मूल के सीईओ- क्रमशः सुंदर पिचाई, सत्य नडेला और शांतनु नारायण ने किया है। उनके नेतृत्व ने न केवल उनकी कंपनियों को बदल दिया है, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके अलावा, विदेशी नागरिक अक्सर विशेष कौशल और ज्ञान लेकर आते हैं जो घरेलू कार्यबल के पूरक होते हैं। भारतीय पेशेवर, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा और वित्त जैसे क्षेत्रों में, महत्वपूर्ण कौशल की कमी की भरपाई करते हैं और वैश्विक बाजारों में अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त को बनाए रखने में मदद करते हैं। जबकि भारत में काम करने वाले अमेरिकी नागरिकों की संख्या अमरीका में काम करने वाले भारतीयों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है, इस सिद्धांत को अन्य वित्तीय प्रवाहों पर लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, भारत अमरीकी कंपनियों द्वारा बाहरी प्रेषण पर कर लगाने का विकल्प चुन सकता है। भारत में काम करने वाली अमेरिकी कंपनियाँ अक्सर रॉयल्टी, लाइसेंस फीस या तकनीकी सेवाओं के भुगतान के रूप में बड़ी मात्रा में धन वापस अमेरिका भेजती हैं। इन पर अधिक सख्ती से कर लगाया जा सकता है, जिससे अक्सर कर से बचने के लिए इन कंपनियों द्वारा अपनाये जाने वाले तरीकों से भी निपटा जा सकता है।

सरकार विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) पर भी कर लगा सकती है। अमेरिका में स्थित बड़ी संख्या में एफआईआई भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करते हैं। हालांकि वे बाजार में तरलता में योगदान जरूर करते हैं, उनकी सट्टा गतिविधियों से महत्वपूर्ण अस्थिरता भी पैदा होती है। भारत उनके प्रत्यावर्तित मुनाफे पर एक छोटा कर लगा सकता है - प्रभावी रूप से टोबिन टैक्स का एक संस्करण, जिसका नाम अर्थशास्त्री जेम्स टोबिन के नाम पर रखा गया है। टोबिन ने अल्पकालिक पूंजी प्रवाह को हतोत्साहित करने के लिए मुद्रा रूपांतरण पर कर लगाने का सुझाव दिया था। टोबिन टैक्स, राजस्व में वृद्धि और सट्टा डॉलर के बहिर्वाह को हतोत्साहित करने जैसे दो उद्देश्यों की पूर्ति कर सकता है। हर बार जब रुपये को यू.एस. में भेजने के लिए डॉलर में परिवर्तित किया जाता है, तो एक छोटा लेनदेन कर लगाया जा सकता है। अमरीकी राष्ट्रपति को समझना पड़ेगा कि एक वैश्वीकृत दुनिया में, सहयोग और आपसी सम्मान, संरक्षणवाद और राजकोषीय अतिक्रमण की तुलना में बेहतर परिणाम देते हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रशासन को तत्काल लाभ से इतर, दीर्घकालिक निहितार्थों के मद्देनजर, इस प्रस्ताव पर पुनर्विचार करना चाहिए।

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