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सेना में भर्ती का ‘अग्निपथ’

अग्निपथ योजना से राजकोष पर कम प्रभाव के साथ सेना का इष्टतम आकार प्राप्त करना संभव हो सकता है। — डॉ. अश्वनी महाजन

14 जून 2022 को घोषित ‘अग्निपथ योजना’, जिसमें चयन की प्रक्रिया 24 जून से प्रारंभ हुई है, युवा पुरुषों और महिलाओं, जिन्हें अग्निवीर कहा जायेगा, को एक निश्चित अवधि के लिए अधिकारियों से नीचे के रैंक हेतु सशस्त्र बलों में शामिल करने का प्रावधान है। इसके बारे में देश में काफ़ी बहस चल रही है। अग्निवीरों के लिए कुल 4 वर्षों की कार्यावधि निर्धारित की गई है, जिसमें 17.5 से 23 वर्ष की आयु के बीच के युवा, सशस्त्र बलों में अपनी सेवाएं देंगे। इस योजना से 46000 सैनिक की भर्ती भारतीय सेना, नौसेना, और वायुसेना में की जानी है। इस कार्य के लिए, उन्हें 30 से 40 हजार रुपये की मासिक परिलब्धियां हासिल होंगी। सेवानिवृत्ति के बाद 11 से 12 लाख रूपये की राशि के साथ ही, सेवा के दौरान उन्हें चिकित्सा सेवाओं के साथ-साथ उन्हें सैन्य कैंटीन का लाभ भी मिलेगा (जहाँ आवश्यक वस्तुएँ करों से मुक्त, रियायती कीमतों पर खरीद के लिए उपलब्ध होती हैं)। इनमें से 25 प्रतिशत अग्निवीर स्थायी आधार पर सेना में आगे रोजगार के लिए पात्र भी होंगे। सरकार ने इसे और आकर्षक बनाने हेतु अपनी मूल योजना में कुछ संशोधन भी किये हैं और 29 जून 2022 तक सरकार को केवल वायु अग्निवीरों के लिए ही 2 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे। इस प्रकार से युवाओं को चार साल की निश्चित अवधि के लिए सेना में शामिल करने की प्रक्रिया आगे बढ़ने लगी है।

हालांकि, इस योजना को एक बड़े कार्यक्रम के रूप में घोषित किया गया था, इस योजना के विरोध में सरकार को बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ा था, जहां कम से कम 12 ट्रेनों को ’उत्तेजित युवाओं’ द्वारा जला दिया गया था और अन्य सार्वजनिक संपत्तियों को भी नष्ट कर दिया गया। कुछ राजनीतिक दल भी आंदोलन के माध्यम से इस योजना का विरोध कर रहे हैं और यहां तक कि उनके द्वारा शासित राज्यों की विधानसभाओं में प्रस्ताव भी पारित किया जाना प्रारम्भ भी हुआ है। चूंकि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों की संख्या बहुत कम है, ऐसे प्रस्ताव बहुत अधिक नहीं होंगे। इसके अलावा, उड़ीसा में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल ने इस मुद्दे पर चुप रहने का विकल्प चुना है।

ऐसा लगता है कि अब अग्निपथ योजना का विरोध ठंडा हो रहा है। और अभी तक लगभग 10 लाख युवाओं ने अग्निवीर बनने हेतु आवेदन भी किया है। इस योजना की मुख्य बातों के अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा की जरूरतों, वित्तीय निहितार्थ, युवाओं की रोजगार योग्यता, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में भविष्य में नौकरी के अवसर आदि के संदर्भ में इस योजना के बारे में 360 डिग्री दृष्टिकोण लेने का समय है।

सेना में रोजगार का इतिहास

हालाँकि सेना में कार्य को देशभक्ति का उत्कृष्ट प्रकार माना जाता है, फिर भी यदि संख्या के रूप में देखें तो भारतीय सेना की कुल संख्या 14 लाख है, और इसके अलावा 1.25 लाख पद खाली हैं। हालांकि सरकारों की उदासीनता सेना में बड़ी रिक्तियों को न भरने के लिए जिम्मेदार हो सकती है, लेकिन इस मुद्दे से अवगत लोगों द्वारा एक और बात रखी जाती है कि सैन्यकर्मियों के लिए कठोर शर्तों के कारण भी इन रिक्तियों को नहीं भरा जा सका। पूर्व में, सेना के अधिकारियों के पदों को भरने के लिए, कई शर्तों में ढील भी दी गई थी, और भर्ती के लिए अभियान भी चलाए गए, इसके बावजूद 9 हजार अधिकारियों के पद अभी भी खाली हैं। 

वर्ष 2022-23 के बजट अनुमानों के अनुसार, भारत का रक्षा बजट 5.25 लाख करोड़ रूपये का है। इस व्यय में वेतन और पेंशन, स्थापना और प्रशासन, रक्षा उपकरणों की खरीद आदि सभी शामिल हैं। हाल ही में, सभी अच्छे इरादों के साथ, सरकार ने पिछले पांच वर्षों में लगभग 47,700 करोड़ रूपये के अतिरिक्त व्यय के साथ सभी रैंक में सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों की पेंशन बढ़ाने का फैसला किया गया था। यदि सभी रिक्तियों को भरा जाता है (जिसकी बहुत ही कम संभावना है), तो उस पर खर्च सरकार की बजटीय सीमा से परे है। हमें यह देखना होगा कि अन्य विभागों में भी, जबकि विभिन्न स्तरों पर (आमतौर पर वर्ग 3 और वर्ग 4 के स्तर पर) रिक्तियां संविदा (कॉन्ट्रेक्ट) कर्मचारियों द्वारा भरी जा रही हैं। इन कर्मचारियों के अधिकार तो न्यूनतम तो होते ही हैं, यह रोज़गार पूरी तरह से तदर्थ यानि एड-हॉक रहता है। इससे सरकारी विभागों में काम की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। हाल ही में सरकार ने अनुबंधित कर्मचारियों की तुलना में कुछ बेहतर कार्य स्थितियों के साथ निजी क्षेत्र में निश्चित अवधि के रोजगार के प्रावधान को शुरू करने के अपने इरादे की घोषणा की है। इसी तरह, सरकारी क्षेत्र के लिए भी यह योजना लाई जा सकती है, जिससे संविदात्मक रोजगार की तुलना में कर्मिकों के जीवन को बेहतर बनाने की संभावना हो सकती है।

चूंकि, सेना में मापदंड कठोर होते हैं, इसलिए इस प्रकार का संविदात्मक रोजगार कभी भी संभव नहीं रहा है। वे दिन गए, जब युद्ध मुख्य रूप से जमीन पर लड़ा जाता था। इन दिनों, युद्ध कंप्यूटर रूम में लड़े जाते हैं, तकनीकी रूप से मिसाइलों का उपयोग करते हुए, हवाई हमलों के माध्यम से कालीन बमबारी आदि युद्ध के मुख्य तरीक़े बन चुके हैं। इसलिए, उस दृष्टिकोण से, हमें सेना के इष्टतम आकार पर काम करने की आवश्यकता है। हमारी जैसी स्थिति वाले अन्य देशों पर नजर डालें, तो पाते हैं कि वे अपनी सेना का आकार छोटा करते हुए, तकनीकी युद्ध, मिसाइलों, लड़ाकू विमानों और यहां तक कि छद्म रूप से जैविक युद्ध के माध्यम से भी अपनी रणनीति बनाकर स्वयं को सैन्य रूप से अधिक मजबूत बना रहे हैं।

अग्निपथ, एक ऐसा ही प्रयास प्रतीत होता है। इस अग्निपथ योजना से राजकोष पर कम प्रभाव के साथ सेना का इष्टतम आकार प्राप्त करना संभव हो सकता है। हालांकि हमारे सशस्त्र बलों के आकार को कम करने की दिशा में नहीं, बल्कि निश्चित रूप से भविष्य में आवश्यकतानुसार देश की सेना के आकार को संतुलित करने हेतु अवसर देने का प्रयास है।

अग्निवीरों के लिए लाभ

वर्तमान में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण, हमारे युवा या तो बिना काम के रहने को मजबूर हैं, अथवा बिना स्पष्ट सोच या लक्ष्य के शिक्षा संस्थानों में दाखिला ले लेते हैं। लंबे समय तक बेरोजगार रहकर भी वे रोज़गार योग्य नहीं बन पाते हैं, जो न तो उनके लिए अच्छा है और न ही समाज के लिए। पूर्व में भी सेना में कई पदों की सेवा अवधि 10 वर्ष से 20 वर्ष के बीच होती रही है और उसके बाद ये ’सेवानिवृत्त’ पूर्व सैनिक न केवल रोजगार योग्य रहते हैं, बल्कि अपने प्रशिक्षण, अनुशासन कार्य और कार्य संस्कृति और कड़ी मेहनत, जो वे सशस्त्र बलों में रह कर सीखते हैं, के कारण कॉर्पोरेट और अन्य निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में भी माँग में रहते हैं। सिवाय इस तथ्य के कि सेवा अवधि को घटाकर 4 वर्ष कर दिया गया है, सेवा के दौरान, अन्य सभी लाभ, जो अन्य सैनिकों प्राप्त होंगे, वही उन्हें भी प्राप्त होंगे। अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, उन्हें अन्य समकक्ष युवकों पर बढ़त हासिल होगी, जो सेना में अग्निवीर के रूप में शामिल नहीं हो पाएँगे। शायद यही कारण है कि कई युवा इस योजना की ओर आकर्षित हुए हैं और उन्होंने इस योजना में आवेदन किया है।        

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