हालाँकि, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा के एक सप्ताह से भी कम समय में, 8 अप्रैल, 2025 को 75 देशों पर अपने पारस्परिक टैरिफ को रोक दिया, लेकिन इस रोक में एकमात्र अपवाद था चीन, जिस पर ट्रम्प ने पहले 125 प्रतिशत टैरिफ लगाया, जिसे बाद में बढ़ाकर 245 प्रतिशत कर दिया है, जिसे हम ’दंडात्मक टैरिफ’ भी कह सकते हैं, क्योंकि चीन ने राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा पारस्परिक टैरिफ का जवाब देने का विकल्प चुना है। माइक्रो ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म ’एक्स’ पर अपने पोस्ट में ट्रम्प ने कहा, “चीन ने विश्व के बाज़ारों के प्रति सम्मान नहीं दिखाया है, उसके आधार पर, मैं संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए जाने वाले टैरिफ को तत्काल प्रभाव से बढ़ाकर 125 प्रतिशत कर रहा हूँ। उम्मीद है कि निकट भविष्य में किसी समय चीन को एहसास होगा कि संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों को लूटने के दिन अब टिकाऊ या स्वीकार्य नहीं हैं।“ अमेरिका को छोड़कर भारत समेत किसी भी देश ने चीन पर टैरिफ नहीं बढ़ाया है, लेकिन अधिकांश देश, चीन द्वारा की जाने वाली डंपिंग से चिंतित हैं। डंपिंग का मतलब है कम दामों पर सामान बेचना। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की भाषा में डंपिंग तब होती है, जब कोई देश या कंपनी अपने घरेलू बाजार की तुलना में विदेशी बाजार में कम कीमत पर उत्पाद का निर्यात करती है। डंपिंग को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में दुरुपयोग माना जाता है। चीन का लक्ष्य आयातक देशों के घरेलू उद्योगों को खत्म करना है। सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) का मामला चीनी डंपिंग और शोषण के जीते जागते उदाहरण हैं। 2004 के बाद, पेनिसिलिन जी और फोलिक एसिड सहित कई प्रकार की एपीआई को भारतीय बाजारों में बेहद कम कीमतों पर डंप किया गया। इस खेल में न केवल भारतीय एपीआई उद्योग को खत्म कर दिया, बल्कि देश की स्वास्थ्य सुरक्षा को भी खतरे में डाल दिया गया।
मार्च में, भारत ने घरेलू उद्योगों को चीनी डंपिंग से बचाने के लिए चार चीनी वस्तुओं - सॉफ्ट फेराइट कोर, वैक्यूम इंसुलेटेड फ्लास्क, एल्यूमीनियम पन्नी और ट्राइक्लोरो आइसोसायन्यूरिक एसिड - पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया था। एंटी-डंपिंग शुल्क 276 अमेरिकी डॉलर से लेकर 1,732 अमेरिकी डॉलर प्रति टन तक है और यह पांच साल के लिए है, जबकि एल्यूमीनियम पन्नी पर छह महीने का अस्थायी शुल्क लगाया गया है। इससे पहले 2024 में ही, व्यापार उपचार महानिदेशालय (डीजीटीआर) द्वारा दायर एंटी-डंपिंग जांचों में से 79 प्रतिशत चीनी उत्पादकों के खिलाफ जांच दायर की गई थीं।
चीन पहले से कहीं ज्यादा डंप क्यों करेगा? कारण यह है कि अमेरिकी टैरिफ के बाद, चीन के लिए अमेरिका को इतनी आसानी से निर्यात करना मुश्किल हो जाएगा; इसलिए, चीन अपने उत्पादों को अन्य बाजारों में डंप करने के लिए मजबूर होगा। सर्वप्रथम चीन के पास बहुत अधिक अतिरिक्त उत्पादन क्षमता है, जो उसे डंपिंग के लिए मजबूर करती है। दूसरे, चीनी कंपनियों को अन्य रूपों में सब्सिडी और सरकारी सहायता मिलती है, जिससे वे अपने उत्पादों को कृत्रिम रूप से कम कीमतों पर बेच पाते हैं। तीसरे, व्यापार तनाव भी वैकल्पिक बाजारों पर किसी तरह नियंत्रण करने के चीनी खेल का हिस्सा है। चीनी डंपिंग को लेकर आशंकाएं बेवजह नहीं हैं। हमारा एपीआई, इलेक्ट्रॉनिक, टेलीकॉम, कपड़ा उद्योग, खिलौना यहित कई अन्य उद्योग चीनी डंपिंग का शिकार रहे हैं। हालाँकि, भारत सरकार का दावा है कि वह वैश्विक बाज़ारों में उभरती स्थितियों पर कड़ी नज़र रख रही है, लेकिन उद्योग चीन द्वारा संभावित डंपिंग प्रयासों से सभी चिंतित है। अमेरिका लंबे समय से चीनी आयात पर अंकुश लगाने का प्रयास कर रहा है। इस संदर्भ में अमेरिकी सीनेट ने दो विधेयक पेश किए हैं, नीदर परमानेंट नॉर नार्मल ट्रेड रिलेशंस अधिनियम (पीएनटीआर अधिनियम) और एक्सिंग नॉन मार्केट टैरिफ इवेजन एक्ट (एएनटीई अधिनियम)। पहला पीएनटीआर चीन से आयात पर केंद्रित है और दूसरा एएनटीई अन्य देशों में माल का उत्पादन करने वाली चीनी फर्मों को लक्षित करता है। पीएनटीआर अधिनियम चीन से सीधे आने वाले माल को प्रतिबंधित करेगा और एएनटीई अधिनियम वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे देशों में चीनी स्वामित्व वाली फैक्ट्रियों से आने वाले माल को प्रतिबंधित करेगा। इसलिए, नए कानूनों के माध्यम से अमेरिका उन सभी संभावित माध्यमों को बंद करने की कोशिश कर रहा है, जिनके माध्यम से चीन अमेरिका में अपने उत्पादों को बेचने की कोशिश कर सकता है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां भारत ने डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत उपलब्ध कई व्यापार उपायों का उपयोग किया है, जिसमें एंटी-डंपिंग शुल्क और सुरक्षा उपाय शामिल हैं। भारत द्वारा लगाए गए अधिकांश एंटी-डंपिंग शुल्क चीन पर थे, बावजूद, चीनी आयात पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2024-25 में, अप्रैल से फरवरी के बीच के पहले 10 महीनों में, चीन से भारत का आयात एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 10.4 प्रतिशत बढ़कर 103.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। दूसरी ओर, चीन को निर्यात 15.7 प्रतिशत घटकर 12.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया। इससे जाहिर तौर पर चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़ गया है।
चीनी डंपिंग भारत की विकास आकांक्षाओं के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि यह आत्मनिर्भर भारत के सपने को चुनौती है। चीन को भारतीय बाजारों में अपने माल की डंपिंग के अनैतिक और अवैध तरीकों का उपयोग करने से रोकने के लिए अपनी प्रशासनिक मशीनरी को सुव्यवस्थित करना होगा। जब भी भारत ने एंटी-डंपिंग शुल्क या सुरक्षा उपायों या किसी अन्य तरीके का इस्तेमाल किया है, तो चीन ने इसे टालने की कोशिश की है। उत्पाद संशोधन, जहां कंपनियां अपने उत्पादों को एंटी-डंपिंग शुल्क के दायरे से बाहर करने के लिए थोड़ा संशोधित कर देती हैं; अवशोषण, जहां निर्यातक बाजार हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए शुल्क लागत को अवशोषित कर सकते हैं, यानी अपने लाभों को कम करके उसकी भरपाई कर सकते हैं; परिहार, जहां कंपनियां परिहार प्रथाओं में संलग्न हो सकती हैं, जैसे कि माल की उत्पत्ति या विशेषताओं को गलत तरीके से घोषित करना और कई अन्य तरीके। ये रणनीतियाँ देशों के लिए एंटी-डंपिंग उपायों को प्रभावी रूप से लागू करने और अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा करना चुनौतीपूर्ण बना सकती हैं। साथ ही चीन भी आसियान और अन्य देशों के माध्यम से अपने माल को सफलतापूर्वक पुनः भेज रहा है। चीनी सामानों पर अंकुश लगाने के नई दिल्ली के प्रयासों को विफल करने के लिए, चीन ने अपने कारखानों को अन्य देशों में स्थानांतरित कर दिया है और इस तरह इन देशों के माध्यम से माल की आपूर्ति कर रहा है। हम न केवल चीन से उत्पन्न होने वाले चीनी सामानों पर बल्कि चीन के बाहर स्थापित चीनी कारखानों द्वारा उत्पादित सामानों पर भी अंकुश लगाने के लिए संयुक्त राज्य अमरीका के नए प्रस्तावित कानूनों से संकेत ले सकते हैं।