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ट्विटर, फेसबुक और लोकतंत्र: प्रतिस्पर्धी सोषल मीडिया की दरकार

सोषल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के बीच प्रतिस्पर्धा उन्हें और अधिक अनुषासित करेगी और हमारे लोकतंत्र के लिए खतरे को भी कम करेगी। इससे राष्ट्र की एकता और अखंडता पर सम्भावित खतरे को भी सफलतापूर्वक रोका जा सकता है। — डॉ. अश्वनी महाजन

 

भारत में किसानों के आंदोलन के मद्देनजर, माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर की भूमिका विवादों का केंद्र बन गई है, खासकर किसान नरसंहार जैसे हैषटैग ट्रेंडिंग के कारण ट्विटर पर भारत विरोधी मुहिम छेड़ना, हिंसा को बढ़ावा देना और भारत के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देना आदि ट्विटर के अधिकारियों की ईमानदारी पर भी प्रष्नचिन्ह लगाता है। जबकि, सरकार ने इस तरह के घटनाक्रम को भारत के संविधान के खिलाफ होने का हवाला देते हुए ट्विटर पर अपनी नाखुषी को स्पष्ट कर दिया है और दृढ़ता से कहा है कि इन ट्विटर हैंडलों के निलंबन से कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं है। लेकिन, ट्विटर का रवैया पूरी तरह से अनुपालन का नहीं लगता है। हाल की घटनाओं ने भारत की एकता और अखंडता के संबंध में सोषल मीडिया दिग्गजों की भूमिका और रवैये पर गंभीर सवाल उठाए हैं, और मुद्दा यह है कि क्या इन प्लेटफार्मों को अपनी मनमानी करने की छूट दी जा सकती है? ट्विटर मुद्दा अपनी तरह का एक मामला है, हालांकि, सामाजिक मीडिया कंपनियों के साथ अनैतिक और गैरकानूनी काम करने वाले मुद्दों का एक इतिहास जुड़ा हुआ है।

राजनेता अपने लाभ के लिए सोषल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करते रहे हैं। हालांकि, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने कार्यकाल के अंतिम छोर पर ट्विटर के साथ टकराव में थे, लेकिन राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान और इससे पहले भी ट्विटर उनके लिए सबसे प्रिय मंच था। उन्हें अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए अन्य सोषल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करने के लिए भी जाना जाता था। कुछ समय पहले रहस्योद्घाटन हुआ था कि कैंब्रिज एनालिटिका नाम की कंपनी ने 8.7 मिलियन अमेरिकी लोगों के फेसबुक डेटा के आधार पर ट्रम्प के चुनाव अभियान में काम किया और इस कंपनी ने ट्रम्प की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैम्ब्रिज एनालिटिका पहले भी कभी गलत कारणों से खबरों में रही है, जब कुछ राजनीतिक दलों के राजनीतिक लाभ के लिए भारत में सामाजिक विघटन को बढ़ावा देने हेतु भारतीयों के फेसबुक डेटा का उपयोग करते हुए इसे रंगे हाथों पकड़ा गया था। हालांकि, मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक उपयोगकर्ताओं की निजता के उल्लंघन के लिए माफी भी मांगी और फेसबुक की उस कारण से बहुत बदनामी भी हुई, जिसने उसके बाजार मूल्यांकन को भी प्रभावित किया। हम अक्सर एक या दूसरे प्लेटफॉर्म द्वारा डेटा के उल्लंघन, रिसाव या अनैतिक बिक्री को सुनते हैं। कैम्ब्रिज एनालिटिका की वेबसाइट ने यह भी दावा किया है कि कंपनी ने 2010 के बिहार चुनाव में विजयी पार्टी के लिए काम किया था।

हालाँकि, सोषल मीडिया कंपनियों की भूमिका को हमेषा संदेह की दृष्टि से देखा जाता रहा है, हाल ही में संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनावों ने ट्विटर को एक बड़े विवाद में डाल दिया, जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को ट्विटर से लगातार झटके मिले। ट्रम्प के ट्वीट पर ट्विटर की टिप्पणियों ने अमेरिकी मतदाताओं के मन में संदेह पैदा करने में प्रमुख भूमिका निभाई। संयुक्त राज्य अमेरिका में हिंसक प्रदर्षनों के बाद राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के ट्विटर अकाउंट को निलंबित कर दिया गया, जिसने ट्विटर कंपनी को गंभीर विवादों से जोड़ दिया है।

स्पष्ट है कि इन सोषल मीडिया कंपनियों के पास एक विषाल ग्राहक आधार है जिससे वे ग्राहकों की निजी जानकारियों पर अधिक नियंत्रण रखते हैं। इसके अलावा विभिन्न लॉगरिदम तकनीक का उपयोग करते हुए उनके पास डेटा के बड़ी मात्रा में खनन की क्षमता है। वे सामाजिक और राजनीतिक आख्यानों को प्रभावित करके समाज और राजनीति को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित कर सकते हैं। यदि इन प्लेटफार्मों को अपनी मनमानी करने की अनुमति दी जाती है, तो हमारा सामाजिक ताना-बाना और लोकतांत्रिक व्यवस्था गंभीर रूप से संकट में आ सकता है। राष्ट्रपति ट्रम्प के ट्विटर अकाउंट को निलंबित करने में कोई तर्क हो भी सकता है, लेकिन उनके दोहरे मापदंडों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ध्यातव्य है कि जब मलेषिया के प्रधानमंत्री मोहथिर मोहम्मद ने ट्वीट कर एक विषेष धार्मिक समूह द्वारा धर्म पर आधारित हिंसा को उचित ठहराया था तो ट्विटर ने उसे नजरंदाज कर दिया।

उदीयमान शक्तियाँ

33.6 करोड़ खातों के साथ फेसबुक, 40 करोड़ ग्राहकों के आधार वाले व्हाट्सएप का सहयोगी है। साथ ही 7 करोड़ भारतीय और 33 करोड़ वैष्विक उपयोगकर्ताओं के साथ ट्विटर एक बड़ा प्लेटफॉर्म है। ये सभी सोषल मीडिया कम्पनियाँ, जैसे चाहें जिस तरह से चाहें, सामाजिक और राजनीतिक विचारों को बदलने की स्थिति में हैं। यह विषाल उदीयमान शक्ति उन्हें अजेय बनाती है। चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने से पहले भी कई भारतीय ऐप उभरे थे। लेकिन, चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध के बाद, उनका व्यवसाय कई गुना बढ़ गया है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चीन फेसबुक, व्हाट्सएप या ट्विटर को अपने देष में अनुमति नहीं देता है। उनके पास अपने वैकल्पिक सोषल मीडिया मंच हैं। वर्तमान परिस्थितियों में, इन प्लेटफार्मों की लोकप्रियता और इनसे प्राप्त होने वाली उपभोक्ता संतुष्टि को देखते हुए, इन प्लेटफार्मों पर तत्काल प्रतिबंध लगाना सही समाधान नहीं होगा, लेकिन उन्हें देष के कानून का पालन करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। हालाँकि, सोषल मीडिया कम्पनियों का मौजूदा विवाद वरदान साबित हो सकता है यदि हम अपने स्वयं के भारतीय प्लेटफार्मों को विकसित करने का प्रयास करें। यह न केवल सोषल मीडिया में अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों के एकाधिकार पर अंकुष लगाएगा, बल्कि अरबों डॉलर की विदेषी मुद्रा को बचाने में भी मदद करेगा। सोषल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के बीच प्रतिस्पर्धा उन्हें और अधिक अनुषासित करेगी और हमारे लोकतंत्र के लिए खतरे को भी कम करेगी। इससे राष्ट्र की एकता और अखंडता पर सम्भावित खतरे को भी सफलतापूर्वक रोका जा सकता है।

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