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बदनाम हुए तो क्या? मालामाल तो हुए

सरकार कड़े संशोधनों के साथ आगे आए तथा जानबूझकर खुद को दिवालिया घोषित करने वालों से गहन पड़ताल के बाद मामले को पारदर्शी तरीके से निपटाया जाए। - अनिल तिवारी

 

गो-एयर से गो-फर्स्ट बनी वाडिया ग्रुप की एयरलाइंस कंपनी ने एनसीएलटी के चौखट पर पहुंचकर खुद को दिवालिया घोषित करने की अर्जी दी है। किराए के सिर्फ दो जहाज से कारोबार शुरू करने वाली वाडिया ग्रुप की कंपनी 61 विमानों का जखीरा खड़ा करने के बाद अचानक कारोबार से मुंह मोड़ रही है। दिवालिया घोषित किए जाने के लिए सरकार के समक्ष गिड़गिड़ा रही है। आखिर क्यों? व्यापार में हानि और लाभ दोनों की संभावना हमेशा बनी रहती है लेकिन हर व्यापारी मुनाफा को ही अपना धर्म मानकर व्यापार को आगे बढ़ाता है। ऐसे में बढ़-चढ़कर खुद को दिवालिया घोषित करने की घटनाओं से आम आदमी का कान खड़ा होना स्वाभाविक है। व्यापारियों द्वारा खुद को दिवालिया घोषित करना कहीं उनके लाभ कमाने का रणनीतिक हिस्सा तो नहीं है?

हमारे देश के अधिकांश हिस्सों में आज भी दिवालिया होना सामाजिक शर्म का विषय माना जाता है। जिस किसी व्यापारी का दिवाला निकल जाता है वह  लज्जा से मुंह छुपाते फिरता है।पर आजकल जिस तरह से नामी-गिरामी कंपनियां खुद को दिवालिया घोषित कर रही है, उससे यह लगने लगा है कि अब यह शर्म का नहीं बल्कि लाभ का धंधा हो गया है। इस तरह का ट्रेंड वर्ष 2016 में शुरू हुआ जब दिवाला और दिवालिया संहिता नामक नया कानून बना। इस नए कानून ने व्यापारियों को छूट दी कि अगर आप बैंक का कर्ज लौटा नहीं पा रहे हैं तो खुद को दिवालिया घोषित करिए। सरकारी व्यवस्था आपकी कंपनी बेचकर बैंकों और दूसरों के कर्ज लौटा देगी। देश में इससे पहले तक दिवालियापन से जुड़े कम से कम 12 कानून थे जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी अधिक पुराने थे। तब मामलों के निपटान में बहुत अधिक समय लगता था।सरकार ने व्यापार को गति देने के लिए नया कानून बनाया,लेकिन इस कानून के बनने के बाद से ही इसकी खामियां उजागर होने लगी। लगातार यह आरोप लगता रहा कि कानून का गलत इस्तेमाल कर फायदा उठाया जा रहा है। सरकार ने इस कानून में कई बार संशोधन भी किया है। कानून की धारा 7, धारा 12 एवं धारा 29 में मुकदमा दायर करने, नीलामी में भाग लेने तथा 180 दिनों के भीतर सारी प्रक्रिया पूरी कर लेने का आश्वासन है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि दो 2 साल से भी अधिक समय से मामले अधिकारियों के समक्ष लटके पड़े हैं।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक 31 जनवरी 2023 तक एनसीएलटी पीठों के पास 21205 मामले लंबित हैं। इनमें दिवाला एवं शोधन क्षमता कोर्ट के तहत 12963 मामले तथा 8242 अन्य मामले शामिल है। भारतीय दिवाला एवं शोधन क्षमता बोर्ड के द्वारा जारी किए गए आंकड़े के मुताबिक आईबीसी (इंसॉल्वेंसी व बैंकरप्सी कोड) 2016 की शुरुआत के बाद से 31 दिसंबर 2022 तक कुल 6199 सीआइआरपी ही शुरू हो चुके हैं। सीआरपी का अर्थ कारपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया होता है। आईडीबीआई द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 31 दिसंबर 2022 तक मात्र 611 सीआईआरबी का समाधान हुआ। इनमें वित्तीय लेनदारों के लिए लगभग 2.44 लाख करोड़ रुपए मूल्य की उगाही की गई। इस पूरी प्रक्रिया में कई सारी कंपनियों की नीलामी तो हुई लेकिन इन कंपनियों की नीलामी से बैंकों और दूसरे कर्ज दाताओं को बहुत अधिक प्राप्तियां नहीं हुई। सरकार ने खुद बताया है कि नीलाम हो चुकी कंपनियों में सरकारी बैंकों के लगभग 9 लाख करोड रुपए बतौर कर्ज फंसे थे। यह कंपनियां इतने सस्ते में बिकी हैं कि मुश्किल से ढाई लाख करोड़ ही वापस आए हैं। यानी कि लगभग 6.30 लाख करोड़ रुपए डूब गए। अगर इसे तकनीकी भाषा में कहा जाए तो बैंकों ने अपने खाते से 6.30 लाख करोड़ रुपए का राइट ऑफ कर दिया।

कानून का सहारा लेकर कंपनियां या तो खुद या उनके बैंक उन्हें राष्ट्रीय कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में ले जाते हैं। ट्रिब्यूनल ऐसी कंपनियों का केस किसी सीए या ऑडिट कंपनी को हल ढूंढने के लिए सौंप देता है। इन्हें बैंक की भाषा में रेजोल्यूशन प्रोफेशनल यानी आरपी कहा जाता है। आरपी कंपनियों की परिसंपत्तियों की कीमत निर्धारित करता है और आपसी सहमति के बाद नीलामी की प्रक्रिया शुरू करता है। इस पूरे आयोजन के पीछे अधिक से अधिक रिकवरी करने की मंशा होती है। मामले को अधिकाधिक पारदर्शी बनाने के लिए ही नीलामी की प्रक्रिया रखी गई है। लेकिन इस प्रक्रिया के फलितार्थ चौकानेवाले हैं। उदाहरण के लिए वीडियोकान पर 46 हजार करोड रुपए का कर्ज था, पर यह कंपनी मात्र तीन हजार करोड़ में बिक गई। जेट एयरवेज पर 15000 करोड़ का कर्ज था वह महज दो हजार करोड़ में बिकी। रुचि सोया पर 12000 करोड रुपए का कर्ज था, वह महज 4300 करोड में बिकी। 24000 करोड रुपए की कर्जदार आलोक इंडस्ट्री मात्र 500 करोड़ रुपए में नीलाम हो गई। बरिस्ता कॉफी ग्रुप पर 25000 करोड़ रुपए का कर्ज था वह मात्र 1500 करोड़ में बिक गया। इसी तरह रिलायंस नेवल पर 12000 करोड़ का कर्ज था, यह कंपनी सिर्फ 800 करोड रुपए में नीलाम हो गई। ऐसे अनेक मामले हैं।

कानून लाने के पीछे यह धारणा थी की पुराने दिवालिया कानूनों के कारण मामलों को निपटाने में देरी होती है, जिसका असर बैंकों पर पड़ता है। बैंकों को अपना पैसा वसूलने में काफी समय बर्बाद करना पड़ता है वही नए कर्ज बांटने की क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसीलिए बैंक भी अक्सर रिकवरी के लिए मजबूत कानून की मांग करते रहे हैं। सरकार ने कानून में समय-समय पर संशोधन भी किया है लेकिन ’तू डाल डाल -मैं पात पात’ की कहानी चरितार्थ करते हुए कंपनी मालिक बैंकों का कर्ज चुपके-चुपके अपनी सेल कंपनियों के जरिए या गुप्त और बेनामी खातों के जरिए विदेशों तक भेजते रहे हैं। इसके प्रमाण भी समय-समय पर जांच एजेंसियों को मिलता रहा है। मालूम हो कि आलोक इंडस्ट्री के मालिकों के गुप्त खाता होने की बात पंडोरा पेपर में भी आई थी पर आज तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। बरिस्ता कॉफी के मालिकों ने 127 फर्जी कंपनियों में अपनी 80 प्रतिशत संपत्ति और बैंकों के पैसे चुपके से डाल दिए और खुद को दिवालिया घोषित कर दिया। गौरतलब है कि देश का आम आदमी वाजिब जरूरत के लिए किसी बैंक से लोन लेता है और चुकाने में थोड़ी चूक हो जाती है तो यही बैंक उसका जीना मुहाल कर देते हैं।

जानकार बताते हैं कि बड़ा कर्ज लेने वाली कंपनियां थोड़ा और बड़ा बनने के चक्कर में खुद को दिवालिया घोषित करती हैं तथा अपनी ही परिसंपत्तियों को अपने किसी गुप्त व्यक्ति द्वारा नीलामी के दौरान खुद हासिल करने की कोशिश करती हैं। ज्ञात हो कि गुजरात और राजस्थान में व्यापारियों का दिवाला होना रसूख की बात मानी जाती है। कहा जाता है कि जिस व्यापारी का जितना अधिक बार दीवाला निकला होता है, व्यापार की दुनिया में उसकी साख और अधिक कीमती होती जाती है।

लेकिन यहां लाख टके का सवाल यह है कि कानून की आड़ लेकर कंपनियों की ओने पौने दाम पर नीलामी कर बैंकों द्वारा उनके कर्ज का बड़ा हिस्सा राइट ऑफ कर दिया जा रहा है।बैंक जो रुपया छोड़ दे रहे हैं दरअसल वह रूपया देश के आम आदमी का है, देश के आयकर दाताओं का है। जाहिर है इसका खामियाजा देर सबेर आम आदमी को ही भुगतना पड़ता है। इसे हम यस बैंक के मामले से आसानी से समझ सकते हैं। लगभग दिवालिया हो चुके यस बैंक को बचाने के लिए स्टेट बैंक ने 15000 करोड रुपए की पूंजी डाली, लेकिन स्टेट बैंक ने अगले ही दिन आम जमा कर्ता का ब्याज दर घटा दिया। ऐसे में जरूरी है कि सरकार कड़े संशोधनों के साथ आगे आए तथा जानबूझकर खुद को दिवालिया घोषित करने वालों से गहन पड़ताल के बाद मामले को पारदर्शी तरीके से निपटाया जाए।    

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