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कहां गुम हो रही छोटी नदियां

शासन व्यवस्था बड़ी नदियों के साथ ही छोटी नदियों के संरक्षण संवर्धन एवं उनके प्रदूषण मुक्त होने को सुनिश्चित करने का दायित्व स्वयं निभाये, तभी यह नदियां बचेगी तथा धरती में जल होगा और उससे जीवन भी सुरक्षित बना रहेगा - डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

 

भारतीय संस्कृति के उद्भव और विकास के लिए नदियां अजस्र स्रोत के रूप में आदिकाल से कार्य करती रही हैं। भारतीय नदियों में सिंधु, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, राप्ती, कृष्णा एवं कावेरी आदि नदियों के तट पर अनेक नगर अस्तित्व में आए तथा विकसित होकर महानगर के रूप में परिणत हो गए, किंतु इन बडी नदियों को जीवन देने वाली अनेकानेक छोटी नदियां जो अपने साथ जल धन की अपार राशि को लाकर इन नदियों में समर्पित करती रही, ऐसी छोटी नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। जहां एक ओर भूगर्भ के जल का असीमित दोहन छोटी नदियों के जीवन को छीनने का प्रयास कर रहा है, वहीं दूसरी ओर विकास के परिणामस्वरूप इन छोटी नदियों पर बांध बनाकर तथा बचे हुए जल में जगह जगह चेक डैम बनाकर इनका जीवन छीना जा रहा है। 

यहां पर इस तथ्य की ओर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है कि जिस प्रकार शरीर का तंत्रिका तंत्र पूरे शरीर से रक्त को एकत्र कर धमनियों को प्रेषित कर जीवन को संचालित करता है, उसी प्रकार से इन छोटी नदियों द्वारा जल की अपार राशि का संग्रहण कर तथाकथित बड़ी नदियों को प्रेषित किया जाता है, जिसके बल पर ही तथाकथित बड़ी नदियां विशाल स्वरूप को ग्रहण करती हैं, किंतु छोटी नदियों के समक्ष ही अस्तित्व का संकट उपस्थित हो जाने के कारण विशाल नदियों को भी अपार जल की राशि न मिल पाने से उनके अस्तित्व के समक्ष भी संकट उपस्थित होने जा रहा है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की ऐसी प्रमुख नदियों में हिंडन तथा काली नदी प्रमुख हैं। इसी तरह प्रयागराज की ससुर खदेरी नदी तथा मनसयिता एवं चित्रकूट की मंदाकिनी, गुंता नदी उदाहरण के रूप में प्रस्तुत की जा सकती हैं। मंदाकिनी नदी चित्रकूट स्थित पर्वतमाला के सती अनुसूया आश्रम से निकलकर जिले के अनेकानेक गांवों की भूमि को सिंचित करती हुई, वहां के जीव-जंतुओं को अपने रस से जीवन प्रदान करती हुई महाकवि गोस्वामी तुलसीदास के जन्म स्थल राजापुर में यमुना नदी से मिलती है। यमुना नदी में मिलने से पूर्व मंदाकिनी में अनेक क्षेत्रीय छोटी-छोटी नदियां मिलकर उनके जल प्रवाह को अपने-अपने जल से आपूरित कर गति प्रदान करती हैं। अनुसूया आश्रम से निकलकर चित्रकूट में ही आने पर मां मंदाकिनी से पयश्विनी नदी कामदगिरि पर्वत के पास स्थित ब्रह्म कुंड से निकलकर चित्रकूट में रामघाट में मिलती थी, इसी प्रकार कामदगिरि पर्वत से निकल कर सरयू नदी पयश्विनी नदी के साथ मां मंदाकिनी से रामघाट पर मिलती थी और यहीं पर सरयू ,पयश्विनी  एवं मंदाकिनी का संगम होता था, किंतु अब सरयू एवं पयश्विनी लुप्त हो गई हैं। 

यह अलग बात है कि चित्रकूट में पयस्विनी के महत्व को देखते हुए अब लोग  मंदाकिनी को ही पयश्विनी कहने लगे हैं। इस तथ्य से बहुत ही कम लोग परिचित हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के पावन तपोधाम चित्रकूट में कभी पयस्विनी और सरयू नदियां भी बहती थी। जहां तक गुन्ता नदी का प्रश्न है राजस्व रिकार्ड में उसे नदी के रूप में स्वीकार नहीं किया गया किंतु वह मूल रूप से वर्ष पर्यंत बहने वाली सदानीरा छोटी नदी थी, जिसके जल से समीपवर्ती जीव जंतुओं को जीवन रस प्राप्त होता था तथा समीपवर्ती भूमि सिंचित होकर सोना उगलती थी। कालांतर में वर्ष 1974 में गुन्ता नदी पर बांध बनाकर उसे कैद कर दिया गया और वह अपने अस्तित्व को गंवा बैठी। गुन्ता नदी चित्रकूट के ही ग्राम रैपुरा के पास से निकल कर लगभग 40 किलोमीटर की यात्रा करती हुई राजापुर ग्राम से दक्षिण यमुना नदी में अपने जल प्रवाह को अर्पित कर यमुना के जल प्रवाह की वृद्धि में अपना सहयोग देती थी किंतु आज वह विलुप्त हो चुकी है। 

फैजाबाद जनपद से बहने वाली करीब आधा दर्जन नदियां समाप्त होने के कगार पर हैं। गोमती नदी तो अभी किसी रूप में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं किंतु उसकी अन्य सहायक नदियां तिलोदकी, तमसा, मड़हा, बिसुही और कल्याणी समाप्ति की ओर बढ़ रही हैं 

अयोध्या में तिलोदकी का मेला तो लगता है किंतु तिलोदकी नदी गायब हो चुकी है। सोहावल के पंडित पुर से निकली तिलोदकी नदी का उद्भव स्थल ऋषि रमणक की साधना का केंद्र रहा है। मड़हा और बिसुही नदी पूर्ण रूप से सूख चुकी हैं और अब बरसात में ही जलयुक्त दिखाई देती हैं।

वेदों में उल्लिखित पवित्र कल्याणी नदी की  धारा भी सूख गई है। शासन के प्रभाव से बाराबंकी जिले में उसको पुनर्जीवन प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी प्रकार सहारनपुर की पांवधोई नदी उल्लेखनीय है जो पिछले 50 साल में शहर के गंदे नाले के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी। 

आज भारत का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां समाज की जीवनदायिनी इन छोटी नदियों का अस्तित्व समाप्त प्राय न हो। इन्हीं नदियों के बल पर यमुना को विशाल जल राशि प्राप्त होती थी जो यमुना के माध्यम से गंगा को अविरल रूप से प्राप्त होती रही किंतु इन नदियों के समाप्त हो जाने से गंगा को भी अपेक्षित चल राशि की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। कुंभ के दौरान भारत सहित देसी विदेशी 9 देशों (इटली, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, पोलैंड, साउथ कोरिया, हांगकांग, नेपाल व भारत के पचास कलाकारों ने छोटी नदियों को बचाने के लिए कलाकृतियां बनाकर लोगों को जागरूक किया। 

लुप्तप्राय इन छोटी नदियों को जीवन देने के प्रयास में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की ईस्टर्न यूपी रिसर्च एंड वाटर रिजर्वाटर्स मॉनिटरिंग कमेटी ने कुशीनगर की हिरण्यवती, कुकुत्था नदी समेत पूर्वांचल की 6 नदियों की सैटेलाइट मैपिंग रिपोर्ट शासन से मांगी है। एनजीटी ने यह कदम दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और पूर्वांचल नदी मंच के संयोजक प्रोफेसर राधे मोहन मिश्र के इन नदियों को जीवन देने के प्रयास पर उठाया है। 

नेशनल रिसोर्स मैनेजमेंट जल संचयन योजना के अंतर्गत नदी की सफाई कराने उसके क्षेत्र को गहरा और चौड़ा कराने, किनारों पर पौधारोपण कराने और गांव के मध्य चेक डैम का निर्माण कर बारिश के पानी को रोकने का निर्देश शासन स्तर से जारी किया गया है। 

भविष्य में लोगों के लिए उक्त नदियों की स्थिति मात्र कहानी किस्सों की बात बन कर रह जाएगी। इसी प्रकार ही उरई में स्थित नून नदी अपनी अंतिम अवस्था में हैं, उसका जल प्रवाह पूरी तरह से बाधित हो चुका है। जल प्रवाह के स्थान पर काले गंदे पानी से युक्त गंदा नाला प्रवहमान दर्शित होता है। तीन दशक पूर्व वह पूर्णरूपेण जल प्लावित नदी थी तथा अपने जल से जीव-जंतुओं सहित प्रकृति को पूर्ण संतुष्टि प्रदान करती थी, बांध के निर्माण तथा रेत के वैध अवैध खनन के लिए सरकारी कागजों में शासन व्यवस्था उसे नदी अवश्य मानती है, लेकिन जैसे ही उसके संरक्षण संवर्धन के लिए उसके प्रदूषित होने का जिक्र कर उसे प्रदूषण मुक्त कर नव जीवन प्रदान करने की बात होती है तो उसकी भूमि पर कब्जा जमाए बैठे भू माफिया तथा राजनीतिक संरक्षण प्राप्त रेत खनन के वैध अवैध व्यवसाई गण उसे बरसाती नाला बताने से नहीं चूकते। यह अलग तथ्य है कि नदी के रूप में अपने मृदुल जल से युक्त होने पर समीपवर्ती गांव के किनारे से गुजरते हुए वह उनका सहारा हुआ करती थी। वह क्षेत्र  भूगर्भ जल की दृष्टि से डार्क जोन की श्रेणी में आता है। जालौन जिले के लगभग 101 गांव पूर्ण रूपेण नून नदी के जल में ही निर्भर थे, यह उनके लिए जीवनदायिनी थी किंतु उसके अस्तित्व समाप्त होने से संबंधित गांवों में पानी की विकराल समस्या मुंह बाए खड़ी है। 

छोटी-छोटी नदियों को उनके अपने अस्तित्व के लिए राम भरोसे छोड़ दिया गया है ,जिससे वह स्वयं तो समाप्ति के कगार पर हैं ही साथ ही उनके द्वारा बड़ी नदियों को जल की आपूर्ति न हो पाने के कारण बड़ी नदियों के समक्ष भी समस्या मुंह बाए खड़ी है। दुर्भाग्य से भारत के नीति नियंताओं ने प्रकृति के स्रोतों का निरंतर दोहन कर उन्हें पूर्ण रूप से समाप्त करने का ही निरंतर प्रयास किया है, उनके संरक्षण संवर्धन के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया। प्रकृति के स्रोतों को बनाए रखने के लिए छिटपुट प्रयास तो देखे जा रहे हैं किंतु शासकीय व्यापक प्रयास न किए जाने से उनका परिणाम सामने नहीं आ रहा है। 

नदी के जल से आपूरित होकर भूगर्भ का जल जो कभी भूतल के समीप रहता था, अब निरंतर नीचे जा रहा है, जिसके कारण आने वाले दिनों में, निकट भविष्य में शीघ्र ही भयंकर जल की समस्या उत्पन्न होगी ,जिस का निदान कर पाना बहुत आसान न होगा। उसके लिए छोटी नदियों को गति एवं जीवन प्रदान करना आवश्यक होगा, जिसे  देखते हुए शासन व्यवस्था को इस दिशा में कार्य करना चाहिए किंतु ऐसा होते हुए दिख नहीं रहा। जल ही जीवन है को चरितार्थ कर तथा उसके निहितार्थ को समझकर जीव-जंतुओं सहित प्रकृति को जीवन प्रदान करने वाली छोटी छोटी नदियों को सुरक्षा संवर्धन एवं प्रदूषण से संरक्षण ही उनको जीवन प्रदान कर सकता है। हिंदू धार्मिक त्योहारों गंगा दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा आदि के अवसर पर जनमानस छोटी छोटी नदियों से लेकर बड़ी-बड़ी नदियों तथा स्थानीय तालाबों जलाशयों तक को महत्व प्रदान कर, उनमें स्नान कर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं किंतु यह भावना व्यक्तिपरक तथा मात्र एक दिन के लिए होती है, जबकि आवश्यकता है कि यह भावना व्यक्तिपरक होने के स्थान पर समाजपरक हो तथा शासन व्यवस्था बड़ी नदियों के साथ ही छोटी नदियों के संरक्षण संवर्धन एवं उनके प्रदूषण मुक्त होने को सुनिश्चित करने का दायित्व स्वयं निभाये, तभी यह नदियां बचेगी तथा धरती में जल होगा और उससे जीवन भी सुरक्षित बना रहेगा अन्यथा समाप्त होती जा रही छोटी छोटी नदियां धरती  से समाप्त हो रहे जल की सूचना प्रदान कर आगे आने वाले जीवन के समक्ष उपस्थित होने वाले संकट की चेतावनी भी दे रही हैं, जिसका समय रहते निदान खोजना आवश्यक है और यह निदान किसी भी रूप में येन केन प्रकारेण छोटी छोटी नदियों को तात्कालिक लाभ की दृष्टि से  बांध देने, मार देने के स्थान पर उन्हें अनवरत अपने गंतव्य पथ पर जाने हेतु प्रवाहित होने देने तथा उसकी व्यवस्था कर उसे सुनिश्चित करने से ही संभव है अन्यथा समक्ष विकराल स्थिति है, जिसका सामना कर पाना अत्यंत कठिन होगा।

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