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क्या सही होगा डिजिटल लेनदेन पर शुल्क?

ऐसे में जब भारत डिजिटल भुगतान में दुनिया का नेतृत्व कर रहा है और दुनिया के देश भारत की यूपीआई को अपनाने हेतु भी तत्पर हो रहे हैं, भारत में डिजिटल भुगतान और शुल्क लगाकर इस विकास यात्रा में बाधा खड़ी करना सही नहीं होगा। — स्वदेशी संवाद

 

पिछले कुछ वर्षों में ऑनलाइन भुगतान का चलन काफी बढ़ गया है और यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है। यूपीआई, भीम, फोनपे, पेटीएम आदि नाम आज हर घर में सुनने को मिल रहे हैं। यह सच है कि ऑनलाइन यानी डिजिटल भुगतानों का चलन पूरी दुनिया में बढ़ा है लेकिन दुनिया में भी सबसे ज्यादा यह भारत में बढ़ा है। 20 हजार करोड रुपए के डिजिटल लेनदेन प्रतिदिन हो रहे हैं। मार्च 2022 में तो यह राशि 10 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई थी। नेशनल पेमेंट्स कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया (एनपीसीआई) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में 10.62 खरब रुपए के 628 करोड लेनदेन जुलाई माह में हुए। पिछले एक साल में इन भुगतानों की संख्या दोगुनी हो गई है, जबकि कुल डिजिटल भुगतान की राशि में 75 प्रतिशत वृद्धि रिकॉर्ड हुई है।

डिजिटल भुगतानों का फायदा

आज बिना अपना पर्स खोलें, अपने मोबाइल के मात्र एक क्लिक पर हम एक रुपए से हजारों लाखों का लेनदेन कुछ सेकंडो में ही कर सकते हैं। इस लेन-देन में सावधानी रखने और गलती न करने पर अत्यंत त्वरित एवं सुरक्षित भुगतान हो जाता है और किसी भी प्रकार का धोखा भी नहीं होता। हालांकि बैंकों से राशि अंतरित करने पर कुछ चार्ज देना पड़ता है लेकिन अभी तक यूनीफाईड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) के माध्यम से भुगतान करने पर कोई चार्ज नहीं लगता। ऐसे में लेनदेन सुगम हो जाता है और बिजनेस में लागत भी घटती है।

लेन-देन का व्यवहार मुफ्त में होने का मतलब यह है कि बिजनेस में लागत का घटना। यह सर्वथा सत्य है कि बिजनेस की लागत कीमत बढ़ाती है और वस्तुओं और सेवाओं को उपलब्ध कराना महंगा होता है। ऐसे में यदि धन का लेनदेन सुविधाजनक तरीके से बिना लागत के हो जाए तो लागत में किफायत हो जाती है और ऐसा होने पर कीमत घटती है और बिजनेस के लाभ भी बढ़ते हैं।

बिजनेस में सुविधा में लेनदेन की लागत घटाया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण आयाम है। भुगतान की सुविधा बिजनेस को भी विस्तार देती है। आज हम देखते हैं कि छोटे से छोटे विक्रेता भी अपनी रेहड़ी और पटरी पर भी ‘क्यूआर कोड’ लगाकर ऑनलाइन भुगतान स्वीकार करते दिखते हैं। ग्राहकों की सुविधा के साथ उनके व्यवसाय की सुविधा में और विस्तार होता है।

डिजिटल भुगतान पर शुल्क की कवायद

हाल ही में रिजर्व बैंक ने जनता से डिजिटल भुगतान पर शुल्क लगाए जाने के बारे में जनता से राय मांगी है। उसके साथ ही यह बहस शुरू हो गई है कि डिजिटल भुगतान पर शुल्क लगाना क्या सही कदम होगा? साथ ही इस रायशुमारी का विरोध भी हो रहा है। इस विरोध को थामने के लिए वित्त मंत्रालय ने यह बयान जारी किया है कि फिलहाल सरकार की डिजिटल लेनदेन पर शुल्क लगाने की कोई मंशा नहीं है। इस संबंध में सेवा प्रदाताओं को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए सरकारी मदद समेत दूसरे उपायों पर विचार किया जाएगा।

क्यों सही नहीं है डिजिटल भुगतान पर शुल्क

लेन-देन की लागत देश में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण में एक प्रमुख प्रकार की लागत होती है। गौरतलब है कि जितनी अधिक लेनदेन की लागत होगी वह वस्तु अथवा सेवा की कीमत को प्रभावित करेगी। यानी लेनदेन की लागत अधिक होने पर वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत भी बढ़ेगी।

लेन-देन की लागत का अर्थशास्त्र में कितना महत्व है यह इस बात से पता चलता है कि वर्ष 2009 में अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार के विजेता ओलिवर विलियमसन ने अपना पूरा आर्थिक चिंतन लेनदेन की लागत पर ही किया था और उन्हें ‘लेनदेन लागत अर्थशास्त्री’ के रूप में ही जाना जाता है। हालांकि उन्होंने लेनदेन लागत के विविध पक्षों पर अपना अध्ययन प्रस्तुत किया। लेकिन यदि लेनदेन की कीमत का महत्व समझा जाए तो इस विषय का आर्थिक विश्लेषण एवं जांच होना जरूरी है कि यदि हर डिजिटल भुगतान पर शुल्क लगा दिया जाए तो उससे अंतिम वस्तु एवं सेवा की पहुंच कीमत में कितनी वृद्धि हो जाएगी।

वित्त मंत्रालय ने भी अपने बयान में कहा है कि डिजिटल भुगतान का तंत्र एक मायने में ‘पब्लिक गुड’ है जिसके लिए बजट से प्रावधान करना जरूरी है। अर्थशास्त्र में दो प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं की बात कही जाती है - एक, पब्लिक गुड और दूसरी, प्राइवेट गुड। पब्लिक गुड के बारे में मान्यता यह होती है कि यदि उसे सरकार उपलब्ध कराए तो वह जनता के लिए ज्यादा लाभकारी होगा। कुछ ऐसी वस्तु और सेवाएं होती है कि यदि शुल्क लगाकर शुल्क न देने वालों को उस सेवा से दूर कर दिया जाता है तो उसका समाज को कोई लाभ नहीं होता। हमारा डिजिटल भुगतान का तंत्र बना हुआ है तो ऐसे में यदि हम डिजिटल भुगतानों से उन लोगों को अलग कर दें जो शुल्क देने के लिए तैयार नहीं तो उसका समाज को नुकसान होगा और लागत भी बढ़ेगी और असुविधा भी। इसलिए वित्त मंत्रालय का यह बयान स्वागत योग्य है।

हाल ही में एक आंकड़ा सामने आया है कि भारत में डिजिटल भुगतानों की सुविधा के कारण और देश में मोबाइल क्रांति के चलते दुनिया भर के 40 प्रतिशत से अधिक डिजिटल लेनदेन भारत में होते हैं। स्वाभाविक है कि डिजिटल भुगतान की सुविधा और उनके निशुल्क होने के कारण भारतीय उत्पादों और सेवाओं की लागत और कीमत निश्चित तौर पर कम हो जाएगी। जब तक डिजिटल भुगतान निशुल्क बने रहते हैं, भारतीय निर्यातों की प्रतिस्पर्धा शक्ति भी अधिक होगी और भारत के निर्यात में वृद्धि होगी। यदि सरकार को डिजिटल भुगतानों को निशुल्क रखने के लिए बजट से प्रावधान भी देना पड़े तो भी वह सही होगा। साथ ही साथ विश्व व्यापार संगठन में भी अन्य देशों द्वारा इस पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की जा सकती।

भारत बन सकता है दुनिया का डिजिटल हब

आज भारत डिजिटल लेन-देन में केवल आगे ही नहीं बढ़ा, बल्कि उसमें आत्मनर्भरता भी हासिल की है। नेशनल पेमेंट कॉरपोरशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) ‘रुपे कार्ड’ के संचालन के साथ-साथ सभी डिजिटल बैंकिंग लेनदेन को संचालित करती है। एनपीसीआई यूनीफाईड पेमेंट्स इंटरफेस का भी संचालन करती है। इस प्रकार एनपीसीआई यूपीआई की मदद से ग्राहकों और बिजनेस के बीच डिजिटल सेतु का काम तो करती हैं, निजी लेनदेन को भी सुविधाजनक बना रही है। यूपीआई के कारण सभी सेवा प्रदाताओं के बीच समन्वय भी बन रहा है। यूपीआई के माध्यम से हम अपने बैंक खाते से संबंधित संवेदनशील जानकारियां साझा किए बिना राशि का अंतरण कर सकते है और वो भी बिना किसी लागत के। आज भारत के यूपीआई का उदाहरण दुनिया में दिया जा रहा है और यह अमेरिकी, यूरोपीय एवं अन्य देशों की भुगतान प्रणालियों से कहीं बेहतर आंका जा रहा है। कहा जाता है कि यूपीआई दुनिया की बेहतरीन भुगतान प्रणाली है।

ऐसे में जब भारत डिजिटल भुगतान में दुनिया का नेतृत्व कर रहा है और दुनिया के देश भारत की यूपीआई को अपनाने हेतु भी तत्पर हो रहे हैं, भारत में डिजिटल भुगतान और शुल्क लगाकर इस विकास यात्रा में बाधा खड़ी करना सही नहीं होगा। यही नहीं हाल ही में रूस और भारत ने डिजिटल भुगतानों के लिए हाथ मिला लिया है। ऐसे में यदि दूसरे मुल्क भी भारत के साथ डिजिटल लेनदेन में सहयोग करते हैं, तो भारतीय रूपए को भी ज्यादा मान्यता मिलेगी। जरूरत है भारत की मिसाल देकर भारत को दुनिया का डिजिटल हब बनाने की।       

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