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चीन फंसा अपने ही जाल में

चीन ने पाकिस्तान और अफ्रीकी देशों को बहुत भारी कर्ज दे रखा है और वो भी ऊंची ब्याज दर पर, जिसे ये देश इस समय लौटाने में अपनी असमर्थता जता चुके हैं। चीन ने लगभग 350 अरब डॉलर का कर्ज इन देशों को दिया है, जो अब डूब भी सकता है। - विक्रम उपाध्याय

 

कोरोना वायरस आदमी के साथ साथ दुनिया भर की अर्थव्यवस्था को भी निगल रहा है। ऐसे में वे देश जो पहले से ही गरीब हैं, कोरोना के बाद और मुहताज हो गए हैं। ये देश अब अपने कर्ज की अदायगी करने में असफल हो सकते हैं। यह आशंका विश्व के बड़े-बड़े अर्थशास्त्री और वित्तीय संगठन भी बता रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो इसका सबसे बड़ा नुकसान चीन को हो सकता है। चीन ने पाकिस्तान और अफ्रीकी देशों को बहुत भारी कर्ज दे रखा है और वो भी ऊंची ब्याज दर पर, जिसे ये देश इस समय लौटाने में अपनी असमर्थता जता चुके हैं। चीन ने लगभग 350 अरब डॉलर का कर्ज इन देशों को दिया है, जो अब डूब भी सकता है।

चीन ने खुद ही ऐलान किया है कि अब वह लैटिन अमेरिका के देशों को लोन नहीं देगा, क्योंकि वे देश अब लोन चुकाने की स्थिति में नहीं हैं। चीन ने 2019 में डोमिनिशियन रिपब्लिक को 600 मिलियन डॉलर का, सुरीनाम को 200 मिलियन डॉलर का, ट्रिनीडाड एंड टोबैगो को 104 मिलियन डॉलर का लोन दिया था। वेनेजुएला, ब्राजील, इक्वेडोर और अर्जेंटिना को भी करोड़ो डॉलर का कर्ज चीन ने दिया है। अब चीन इन देशों के पावर रोड और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को बंधक रखकर अपनी ही कंपनियों द्वारा पैसे लगा रहा है।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट अखबार ने 25 मई को अपनी खबर में साफ लिखता है कि चीन लैटिन अमेरिकी देशों का पार्टनर है या उनका शिकार कर रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने अप्रैल में लैटिन अमेरिका क्षेत्र के दौरे पर चेतावनी दी थी कि बीजिंग की उधार देने की नीति दुर्भावनापूर्ण और नापाक है। अपनी पूंजी के जरिए चीन इन देशों की अर्थव्यवस्था की नशों में एक ऐसा रक्तप्रवाह इंजेक्ट कर रहा है जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है और गवर्नेंवस को नष्ट कर रहा है।

जर्मनी के कील इंस्ट्टीयूट का आकलन है कि चीन ने 350 अरब डॉलर नहीं, बल्कि 520 अरब डॉलर से भी अधिक का कर्ज इन देशों को 1991 से प्रारंभ हुई नई आर्थिक नीति के बाद भूमंडलीकरण का विचार नीति निर्माताओं के मन-मस्तिष्क पर इस कदर छाया हुआ था कि उन्हें देष में मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन, उद्योगों को संरक्षण एवं संवर्धन, आत्मनिर्भरता आदि विचार दकियानूसी से लगते थे। टैरिफ में लगातार कमी करते हुए दुनिया को यह संकेत दिए जा रहे थे कि वह भारत में अपना सब सामान न्यूनतम आयात शुल्क पर बेच सकते हैं। यह भी कहा जा रहा था कि विदेषों से कल पुर्जे और तैयार सामान कम टैरिफ पर आने के कारण उपभोक्ताओं को साजो सामान सस्ता मिलेगा और उनका जीवन स्तर बेहतर हो जाएगा। लेकिन देष ने देखा कि 1991 के बाद से लगातार और 2001 (जब चीन डब्ल्यूटीओ का सदस्य बना) के और ज्यादा तेजी से हमारा विदेषी व्यापार घाटा बढ़ता गया और वर्ष 2012-13 तक यह 190 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। 2013 के बाद, अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतों में गिरावट के बाद हमारा व्यापार घाटा कम हो गया। हालांकि, इसके बाद भी यह उच्च स्तर पर रहा (और 2018-19 में यह 184 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया)। समझा जा सकता है कि चूंकि हम इतना अधिक आयात करने लगे थे कि हमारी निर्भरता विदेषों और विषेष तौर पर चीन पर अत्यधिक बढ़ गई थी। हमारे उद्योग या तो बंद हो गए अथवा अपनी क्षमता से कहीं कम स्तर पर काम करने लगे थे। इसका सीधा असर हमारे रोजगार सृजन पर पड़ा। 

सर्वविदित है कि एक ओर पारंपरिक कृषि में रोजगार सृजन की संभावनाएं नहीं होने के कारण और दूसरी ओर सेवा क्षेत्र में रोजगार के सीमित और कई बार घटते अवसरों के कारण हमारी बेरोजगारी बढ़ने लगी। युवा बेरोजगारी की दर तो उससे भी कहीं ज्यादा है। विभिन्न दवाओं के कच्चे माल मास्क, पी.पी.ई. किट्स, टेस्टिंग किट्स समेत कई मेडिकल उपकरणों के लिए चीन पर निर्भरता ने तो न केवल भारत, बल्कि समस्त दुनिया को सकते में ला दिया था। साथ ही साथ यह भी ध्यान में आया कि वे अर्थषास्त्री जो यह कह रहे थे कि हमें कृषि बाजारों को आयात के लिए पूरी तरह से खोल देना चाहिए, और हमें खाद्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का विचार ही नहीं करना चाहिए, वास्तव में वे देष को गुमराह कर रहे थे। माना दे रखा है। यदि इसमें सच्चाई है तो चीन ने वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ से भी अधिक का कर्ज दुनिया को बांट रखा है।

चीन की यह नीति रही है कि सामरिक रूप से महत्वपूर्ण विकासशील देशों में बड़ी परियोजनाओं के लिए कर्ज दो और यदि बाद में किसी देश ने कर्ज नहीं चुकाया तो फिर उन परियोजनाओं पर अपना कब्जा जमा लो।

यह कहा जा रहा है कि चीन जानबूझकर इतना कर्ज बांट रहा है। अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप इसे चीन की डेब्ट ट्रैप डिप्लोमैसी कहते हैं।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक चीन से गुहार लगा चुके हैं कि उससे इस समय ना तो कर्ज की अदायगी के लिए कहा जाए और ना ही उससे कोई ब्याज लिया जाए। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने वर्ल्ड इकोनोमी फोरम पर दुनिया के सामने यह स्वीकार किया कि उनका देश ब्याज और कर्ज अदायगी रोककर ही कोरोना से बदहाल अर्थव्यवस्था को बचा सकता है और बीमारों के लिए सुविधाएं खड़ी कर सकता है। बीजिंग से इसी तरह का अनुरोध कीर्गिस्तान, श्रीलंका और अफ्रीकी देश भी कर चुके हैं।

चीन ने पाकिस्तान की कई परियोजनाओं के लिए कर्ज दे रखा है उसमें सबसे अधिक राशि उसने सीपीईसी यानी चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर के लिए दे रखा है। चीन गरीब देशों के लिए सबसे बड़ा बैंक बन गया है। वह बकायदा भूमि और विकसित परियोजनाओं को गिरवी रखकर लोन दे रहा है। चीन इस समय जबर्दस्त दुविधा में भी है। यदि वह ब्याज या कर्ज की राशि छोड़ देता है तो उसके ही कई बैंक व वित्तीय संस्थान दीवालिया हो सकते हैं। और यदि कर्ज और ब्याज की राशि के एवज में जमीन और परियोजनाओं को अपने कब्जे में करता है तो उसे पूरा करने और उसे चलाए रखने में उसे और अधिक पैसे लगाने पड़ सकते हैं। चीन के लिए दोनों परिस्थितियां जोखिम भरी हैं।

ग्लोब न्यूज वायर के अनुसार चीन की दो प्रमुख फंडिग एजेंसियां, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक ऑफ चाइना और चाइना डेवलपमेंट बैंक ने दुनिया के कई देशों के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में लगभग 335 अरब डॉलर का निवेश किया है। इन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में रेलवे, रोड, पोर्ट और सड़क निर्माण के अलावा गैस प्रोजेक्ट्स भी शामिल हैं। चीन ने लगभग 86 अरब डॉलर पावर प्रोजेक्ट्स में भी लगाए हैं।

चीन ने सबसे अधिक पैसा साउथ और साउथ ईस्ट ऐशिया में लगाया है। यहीं उसने वन बेल्ट और वन रोड पर भी फोकस रखा है। इसके अतिरिक्ति चीन का पैसा मिडिल ईस्ट और नार्थ अफ्रीका में भी लगा है।

पाकिस्तान के अखबार डॉन के अनुसार पाकिस्तान को देखकर जोखिम में पड़े कई और देशों ने चीन से लोन माफ करने या ब्याज ना लेने की मांग की है। इसके पहले पाकिस्तान 12 हजार मेगावाट की अपनी बिजली परियोजना में चीन के निवेश पर देय 30 अबर रुपये के भुगतान को एक साल के लिए स्थगित करने की मिन्नते चीन से कर चुका था। इसके लिए खुद पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी चीन चल कर गए थे। पाकिस्तान ने चीन की सरकार से ब्याज कम करने का भी आग्रह किया और साथ में 10 साल के बजाय कर्ज 20 साल में लौटाने की भी गुजारिश की है।

डॉन का ही कहना है कि चीन ने लोन माफ करने या ब्याज कम करने का प्रस्ताव एकदम से ठुकरा दिया।

चीन के कर्ज में कई देश तो लगभग डूब चुके हैं। वाशिंगटन टाइम्स के अनुसार ईस्ट अफ्रीका के एक देश पर चीन का कर्ज उसके सालाना बजट का 80 प्रतिशत से अधिक है। इसी तरह इथोपिया के सालाना बजट का 20 प्रतिशत के बराबर चीन का कर्ज है। कीर्गिस्तान पर तो यही कर्ज उसके सालाना बजट का 40 फीसदी है।

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