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ई-कॉमर्स कंपनियों का है भ्रष्टाचार से पुराना नाता

भारत में ई-कॉमर्स मार्केट प्लेस का संचालन करने वाले विदेशी खुदरा विक्रेता भारत के खुदरा एफडीआई कानूनों की धज्जियां उड़ाने के लिए नए-नए मार्ग खोजते रहते हैं। — डॉ. अश्वनी महाजन

 

अमेजॉन द्वारा हाल ही में सरकार को दिए गए वित्तीय दस्तावेजों से यह पता चल रहा है कि अमेजॉन की 6 कंपनियों द्वारा पिछले दो वित्तीय वर्षों 2018-19 और 2019-20 के दौरान 8456 करोड़ रूपए यानि लगभग 1.2 अरब डालर की राषि कानूनी एवं व्यावसायिक फीस के नाते खर्च की। यह कंपनी की कुल प्राप्तियों, 42085 करोड़ रूपए का 20.3 प्रतिषत था। सबसे ज्यादा कानूनी और व्यवसायिक फीस 3417 करोड़ रूपए बंगलौर स्थित अमेजॉन सेलर सर्विसेज़ प्राईवेट लिमिटेड द्वारा दी गई। इसी तरह से बाकी कंपनियों ने भी अपने वित्तीय दस्तावेजों में दिखाया है कि उन्होंने भी भारी राशि कानूनी फीस में दी।

कोई भी कंपनी यदि अपने दस्तावेजों में इतनी बड़ी मात्रा में राशि कानूनी एवं व्यावसायिक फीस देती है तो मतलब साफ है कि इसकी आड़ में उन्होंने अपने पक्ष में फैसले कराने के लिए अधिकारियों को रिश्वत दी है। व्यापारी संगठन कांफ्रेडरेषन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने सीधे-सीधे आरोप लगाया है कि लीगल फीस की आड़ में अमेजॉन ने रिश्वत बांटी है। कैट ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर यह कहा है कि चूंकि यह मुद्दा देष की अस्मिता के साथ जुड़ा है, इसलिए इस मामले की तुरंत सीबीआई जांच होनी चाहिए और कंपनी के खिलाफ भ्रष्टाचार रोधक कानून के तहत कारवाई की जानी चाहिए। अमेजॉन कंपनी ने कहा है कि वे इस मामले को बहुत गंभीरता से लेते हैं और उन्होंने इस मामले की आंतरिक जांच शुरू भी करा दी है।

ई कामर्स कम्पनियों पर षिकंजा कसने की दरकार

बहुत दिनों से यह मांग आ रही थी कि ई-कॉमर्स कंपनियां जो गैरकानूनी तरीके से भारत में प्लेटफार्म की आड़ में ई-कॉमर्स का व्यवसाय करते हुए विदेषी धन के आधार पर भारी डिस्काउंट देते हुए यानि ‘कैष बर्निंग मॉडल’ के आधार पर देष के बाजारों पर कब्जा कर रही हैं, को बाध्य किया जाए कि वे अपने वित्तीय दस्तावेजों का लेखा परीक्षण (ऑडिट) करवाकर उन्हें सार्वजनिक करें। लेकिन ये कंपनियां अपने दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से बचती रही।

ऐसे में वर्ष 2018 के दिसम्बर माह में वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत डीआईपीपी विभाग में एक प्रेस नोट-2 जारी कर, इन कंपनियों पर यह अंकुष लगाने का प्रावधान रखा कि वे न तो वे अपने से डिस्काउंट देकर माल सस्ता कर बेच सकती हैं, और न ही अपने पास माल का भंडारण कर सकती हैं। उन पर यह भी शर्त लगाई गई कि वे किसी एक विक्रेता कंपनी के माध्यम से अपनी कुल बिक्री का 25 प्रतिषत से ज्यादा नहीं बेच सकती। इसके साथ ही साथ प्रेस नोट-2 में यह प्रावधान भी रखा गया कि ये कंपनियां हर साल सितंबर माह तक अपने वित्तीय कार्यकलापों में कानूनों का पालन हो रहा है, इस बाबत ऑडिटर से प्रमाण-पत्र लेकर उसे अपनी बेवसाईट पर लगाकर सार्वजनिक करेंगी।

प्रेस नोट-2, जो सरकार का नीति दस्तावेज था, को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नोटिफाई किए जाने की प्रक्रिया के बाद ही इसे कानून बनना था। भारतीय रिजर्व बैंक ने इन कंपनियों के द्वारा ऑडिटर से प्रमाण-पत्र संबंधित प्रावधान के अलावा शेष सब प्रावधानों को नोटिफाई कर दिया। यह दुर्भाग्यपूर्ण था। बाद में जब भारतीय रिजर्व बैंक को इस विषय की गंभीरता से अवगत कराया गया तो उसने इस प्रावधान को दूसरे रूप में नोटिफाई किया कि ये कंपनियां ऑडिटर से प्रमाण-पत्र लेकर तैयार रखेंगी।

कैसे दी जाती है लीगल फीस के रास्ते रिश्वत?

लीगल और व्यावसायिक फीस के रास्ते रिश्वत देने का तरीका बहुत पुराना है। फर्क सिर्फ इतना है कि आज के वक्त में इसका परिमाण बहुत बढ़ गया है। अमेजॉन कंपनी ने अपने लीगल व्यावसायिक कार्यों के लिए कई लॉ फर्मों को रखा हुआ है। इन लॉ कंपनियों को अमेजॉन कंपनी भारी भरकम लीगल फीस देती है, और उसके उपरांत ये कंपनियां किसी दूसरी कंपनी को वह फीस अंतरित करती हैं और उसके बाद एक कड़ी बनती है और अंतोत्गत्वा अंतिम लीगल कंपनी अथवा वकील अथवा कोई प्रोफेषनल राषि नकद निकालकर संबंधित अधिकारियों को देता है। यह काम इतनी कुषलता से किया जाता है कि कंपनी द्वारा सीधे-सीधे रिश्वत देने का मामला नहीं बनता।

समझना होगा कि यह एक अत्यंत गंभीर मामला है। जिससे हमारी पूरी सरकारी प्रक्रिया पर एक सवालिया निषान लगता है। इससे यह भी साबित होता है कि इस कंपनी ने जो भी लाईसेंस और अनुमतियां प्राप्त की हैं, वे सभी कपटपूर्ण तरीके से या धोखाधड़ी से प्राप्त की गई हैं। ऐसे में शुचिता की मांग है कि इन कंपनियों को दिए गए तमाम लाईसेंसों को रद्द किया जाए और इनके तमाम कार्यों को गैरकानूनी घोषित किया जाए। सीबीआई से पूरे मामले की जांच कराई जाए और जैसे-जैसे सरकारी अफसरों की निषानदेही हो, उन्हें छुट्टी पर भेजकर पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो।

क्लाउडटेल का मामला

भारत में ईकॉमर्स मार्केटप्लेस का संचालन करने वाले विदेषी खुदरा विक्रेता भारत के खुदरा एफडीआई कानूनों की धज्जियां उड़ाने के लिए नए-नए मार्ग खोजते रहते हैं। हाल तक अमेज़ोन इंडिया ने भारत की जानी मानी सॉफ़्टवेयर कम्पनी के मालिक एनआर नारायणमूर्ति और उनके परिवार के स्वामित्व वाली क्लाउडटेल जैसी कंपनियों के साथ समझौते के माध्यम से सामान को कृत्रिम रूप से सस्ता करने (प्रीडेटरी प्राइसिंग और डिस्काउंटिंग) का कार्य करती रही है, जिससे ऑफलाइन खुदरा व्यापारियों का व्यवसाय ध्वस्त होता रहा है। ध्यातव्य है कि इस संबंध में श्री नारायणमूर्ति की सार्वजनिक आलोचना और अमेज़न के विरुद्ध कार्यवाही शुरू होने के बाद श्री नारायणमूर्ति ने क्लाउडटेल और अमेज़न के समझोते से किनारा कर लिया है।

कंपनी के दस्तावेज़ों के अनुसार उसे चालू वर्ष में माल और सेवा कर खुफिया महानिदेषालय से 5,455 लाख रुपये की राषि के साथ-साथ सेवा कर से संबंधित मामलों के लिए ब्याज और दंड के लिए कारण बताओ नोटिस प्राप्त हुआ है। यानि माना जा सकता है कि क्लाउडटेल कम्पनी अमेज़ोन की संगत में ना केवल नैतिक रूप से बल्कि क़ानूनी रूप से भी ग़लत कार्यों में संलग्न रही है।

हाल ही में भारत सरकार के उपभोक्ता मामले विभाग ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 94 के अंतर्गत उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 प्रस्तावित किए थे।प्रस्तावित नियम उपभोक्ता संरक्षण के संदर्भ में ई-कॉमर्स दिग्गज, जो खुद को केवल तकनीकी प्लेटफॉर्म कहते हैं, और वास्तव में पूर्ण विकसित ई-कॉमर्स चला रहे हैं, पर षिकंजा कसने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए इन प्रस्तावित नियमों में उच्च छूट के साथ फ्लैष बिक्री को विनियमित करने का प्रस्ताव है और ई-कॉमर्स संस्थाओं के लिए डीपीआईआईटी के साथ पंजीकरण करना अनिवार्य करने का प्रावधान भी प्रस्तावित है। नियमों में कुछ मौजूदा एफडीआई नीति की तुलना में कुछ परिभाषाओं में संषोधनों के साथ-साथ विक्रेता द्वारा डिफ़ॉल्ट के मामले में ई-कॉमर्स संस्थाओं को उत्तरदायी बनाने का भी प्रस्ताव है ।

इन प्रस्तावित नियमों का स्वाभाविक रूप से ये कम्पनियाँ तो विरोध कर ही रही हैं, लेकिन हैरानी और खेद का विषय तो यह है के भारत सरकार के ही कई अफसरषाहों और नीति आयोग ने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। यह खुलासा हाल ही में अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेन्सी रॉयटर्स ने किया है। इस संदर्भ में हाल ही में प्रकाष में आई सम्भावित रिश्वतखोरी और ई कामर्स कम्पनीयों की तरफ़दारी के बीच संबंध की भी जाँच की जानी चाहिए।    

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