swadeshi jagran manch logo

अफगानिस्तान के बदलते हालात से भारतीय हितों की चिंता

अफगानिस्तान के भविष्य को देखते हुए भारत को मध्य एशिया में अपने प्रयास तेज करने के जायज कारण हैं क्योंकि इस वक्त इस क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन की बढ़ती दखलंदाजी भारत के हितों को नुकसान पहुंचा सकती है। — दुलीचंद कालीरमन

 

भारतीय कूटनीति के लिए अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर दुविधा की स्थिति है। अफगानिस्तान के तनावग्रस्त माहौल में आज यह सवाल खड़ा हो गया है कि भविष्य के तालिबान के साथ भारत के संबंध किस प्रकार के होंगे? भारत अफगानिस्तान में अपनी सैन्य भूमिका से बचता रहा है। लेकिन तालिबान की आंतकी पृष्ठभूमि और अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने की उसकी संभावनाओं के चलते भारतीय कूटनीति के लिए परीक्षा की घडी है।

भारत ने अभी तक अफगानिस्तान में अपनी विकासात्मक छवि के अनुरूप ही भूमिका निभाई है। भारत ने पिछले 20 सालों में तीन बिलियन डॉलर के निवेश से अफगानिस्तान में अनेक विकास योजनाओं जैसे सड़क, बांध, स्कूल, अस्पताल, संसद भवन आदि के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अफगानिस्तान के 34 राज्यों में भारत द्वारा पोषित लगभग 400 विकास योजनाओं का भविष्य अन्धकार में है। हेरात प्रांत में स्थित सलमा बाँध को तालिबानी लड़कों ने उड़ाने की असफल कोशिश की थी जिसे अफगानीसैन्य बलों ने निष्फल कर दिया। आज भी आम अफगानी नागरिकों के बीच भारत की बहुत अच्छी छवि है।

वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हुए 9/11 के हमले के बाद अमेरिका और नाटो सेनाओं की अफगानिस्तान में अल-कायदा और तालिबान से एक लंबी जंग के बाद वापसी हो रही है। इस लम्बे युद्ध में अमेरिकी सेना ने बहुत कुछ खोया है। जिसके कारण अमेरिकी प्रसाशन पर सैनिको की घर वापिसी का दबाव है। इसलिए अमेरिका अपनी सेनाओं की फ़ौरन अफगानिस्तान से वापसी चाहता है। अफगानिस्तान के जो वर्तमान राजनीतिक और सैन्य हालात है उस स्थिति को देखते हुए अभी भी कुछ नहीं कहा जा सकता कि अमेरिकी सैन्य-बलों का अगला कदम क्या होगा।

यह तथ्य वैश्विक स्तर पर यह जगजाहिर है कि तालिबान के कंधे पर पाकिस्तान  का हाथ है।ताशकंद में हुए शांति सम्मलेन के दौरान  अफगानिस्तान के राष्ट्रपति गनी ने यह आरोप लगाया था कि पाकिस्तान बड़ी संख्या में आतंकी भेज रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़ती हुई ताकत मध्य एशिया ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव डालेगी।  अल-कायदा, आईएसआईएस और तालिबान ये सभी आंतकी संगठन भले ही नाम से अलग हों लेकिन ये सभी इस्लामिक कट्टरता से प्रेरित सत्ता हथियाने के उद्देश्य पर काम कर रहे हैं। अफगानिस्तान के तालिबान के कब्जे के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध की भावना को ठेस पहुंचेगी।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत अगस्त माह में एक महीने के लिए सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष बन रहा है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर अफगानिस्तान का और आतंकवाद का मुद्दा काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। अफगानिस्तान के मामले को भारत केवल मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकता क्योंकि वहां के हालात भारतीय हितों को भी प्रभावित करने वाले होंगे। अफगानिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व भारत की तरफ आशा की दृष्टि से देखता है कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता के दौरान अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान तालिबानी हिंसा की तरफ दिला सके।

तालिबान के बढते प्रभाव का एक कारण अफगान सेना के पास सीमित रक्षा संसाधनों का होना है। अगर तालिबान के लड़ाके अफगानिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में इसी प्रकार अपना कब्जा करते रहे तो अफगान सुरक्षा बलों का बिखरने का खतरा खड़ा हो जायेगा और उन सैनिकों का दुरूपयोग तालिबान के लड़ाकों के रूप में हो सकता है जो तालिबान की ताकत को और भी बढ़ा देगा।

भारतीय राजनयिक तंत्र का अभी तक तालिबान जैसे आतंकी संगठन के साथ किसी प्रकार की औपचारिक वार्ता या संपर्क नहीं रहा है। इसका खामियाजा हमने कांधार विमान अपहरण के समय भी भुगता था। जिसके कारण  हमें कई पाकिस्तानी आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था। लेकिन अब भारतीय राजनयिक तालिबान के साथ भी सम्पर्क सूत्र तलाश रहें है ताकि भविष्य में अगर तालिबान सत्ता पर काबिज  हो जाते हैं तो भारत के हितों को पर किसी प्रकार का कुठाराघात न हो। भारत ने अफगानिस्तान में जो भारी-भरकम निवेश किया हुआ है उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

तालिबान अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में अपने विरोधियों और आलोचकों को निशाना बना रहा है। विभिन्न प्रान्तों पर तालिबान के कब्जे को देखते हुए अफगानिस्तान में गृह युद्ध की स्थिति भी आ सकती है। काफी संख्या में अफगान नागरिक पाकिस्तान में शरण चाहते है लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिए है। यह भी आशंका व्यक्त की जा रही कि तालिबान अपने शासन के दौरान बड़ी संख्या में लोगों का कत्लेआम करेगा। इसी स्थिति को देखते हुए स्थानीय पासपोर्ट कार्यालयों में भीड़ की स्थिति बनी हुई है। ऐसी भी खबरें है कि अमेरिका अफगानिस्तान से एक लाख नागरिकों को अपने किसी क्षेत्र में ले जाने वाला है ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों को यह जिम्मेदारी है कि वे आपसी विरोध भाव को भूलकर अमेरिकी सेनाओं की विदाई के बाद पड़ोसी देश का दायित्व अपने कन्धों पर लें तथा क्षणिक स्वार्थों को छोड़कर आतंक और अस्थिरता से पीड़ित इस देश को राजनीतिक स्थिरता देने में अपना योगदान दें अन्यथा अफगानिस्तान की धरती से निकली आतंक की चिंगारी मध्य और दक्षिण एशिया में भयंकर अशांति और भीषण आग लगा सकती है। 

अफगानिस्तान के भविष्य को देखते हुए भारत को मध्य एशिया में अपने प्रयास तेज करने के जायज कारण हैं क्योंकि इस वक्त इस क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन की बढ़ती दखलंदाजी भारत के हितों को नुकसान पहुंचा सकती है। ईरान के साथ भारत के अभी तक अच्छे संबंध रहे हैं। लेकिन ईरान-अमेरिकी संबंधों की आंच कभी-कभी ईरान के साथ भारतीय संबंधों पर भी पड़ जाती है, जिसका फायदा उठाने के लिए चीन लालायित रहता है। भारत को ईरान के साथ अपने संबंधों पर और ज्यादा त्वरित फैसले लेने होंगे ताकि वहां अधूरी पड़ी परियोजनाओं के काम में तेजी लाई जा सके और इस क्षेत्र में भारत के हित सुरक्षित रह सकें। भारत को अपने ऊर्जा संसाधनों के निर्बाध आयात के लिए और अफगानिस्तान का पडोसी देश होने के कारण ईरान के साथ व्यापारिक हित संभालने की जरूरत है।    

Share This

Click to Subscribe