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स्वदेशी से बनायें समृद्ध व समर्थ भारत

हम शत प्रतिशत उत्पाद व ब्राण्ड, जहाँ तक भी उपलब्ध हैं, केवल ’मेड बाई भारत’ उत्पाद व ब्राण्ड अपना लेंगे तो भारत स्वावलंबन पूर्वक विश्व में आर्थिक व प्रौद्योगिकी की दृष्टि से क्रमांक एक का देश बन पुनः विश्व गुरु बन सकेगा। — प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा

 

स्वदेशी की भावना ही देश के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समुत्कर्ष एवं प्रगति का आधार और राष्ट्र भक्ति की साकार अभिव्यक्ति कही जा सकती है। देश की आर्थिक प्रगति की दृष्टि से अपने देश में बिकने वाली सभी वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन देश में ही होने पर ही देशवासियों के लिए रोजगार का सृजन, नियमित आय की प्राप्ति और सरकार के लिए कर राजस्व में वृद्धि सम्भव है। इसलिए, देश के आर्थिक स्वावलम्बन, समावेशी आर्थिक विकास और नागरिकों के लिए अच्छा जीवन स्तर सुनिश्चित करना सम्भव होगा। यह सब स्वदेशी अर्थात समाज में आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा या आर्थिक देशप्रेम से ही सम्भव है। स्वदेशी की दृष्टि से केवल ’मेड इन इण्डिया’ लिखा होने से ही किसी वस्तु या ब्राण्ड को स्वदेशी कदापि नहीं कहा जा सकता है। अधिकांश विदेशी ब्राण्डों के उत्पादक अपने सारे साज-सामान विदेशों से लाकर यहाँ उन्हें केवल एसेम्बल करते हैं। इसलिए स्वदेशी से आशय पूर्ण स्वदेशी या मेड बाई इण्डिया से ही होना चाहिये। इसके अतिरिक्त स्वदेशी की भावना केवल मात्र वस्तुओं व सेवाओं के क्रय तक ही सीमित नहीं होकर भाषा, वेशभूषा, भोजन, भैषज्य, जीवन शैली, पारिवारिक संस्कार व आचार-विचार आदि सभी में परिलक्षित होनी अनिवार्य है। विदेशों से आयातित वस्तुओं को क्रय करते चले जाने से देश में बेरोजगारी, उद्यम करना पड़ता है। दूसरी ओर देश में कार्यरत विदेशी कम्पनियों की वस्तुओं व सेवाओं को क्रय करते चले जाने से भी देश के उत्पादक उद्दोग, व्यापार व वाणिज्य विदेशी कम्पनियों के स्वामित्व में जाते है और उनके लाभ देश से बाहर जाते हैं।  

महाद्वीपीय लक्षणों से युक्त राष्ट्र

भारत एक महाद्वीप के लक्षणों से युक्त और अपार सम्भावनाओं वाला देश है। हमारी 135 करोड़ जनसंख्या समग्र यूरोप के 50 देशों व 26 लेटिन अमेरिकी देशों की संयुक्त जनसँख्या के बराबर है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत, चीन के बाद विश्व की सर्वाधिक 17.6 प्रतिशत होने के बाद भी युवाओं की संख्या विश्व की सर्वोच्च 20 प्रतिशत है। विश्व की सर्वोच्च कृषि योग्य भूमि के साथ ही सर्वाधिक विविधता पूर्ण कृषि जलवायु क्षेत्र और सर्वाधिक सूक्ष्म व लघु उधमों से युक्त देश होने से वैश्विक आर्थिक नेतृत्व करने में सर्वाधिक समर्थ देश है। भारत विश्व का विशालतम आणविक शक्ति सम्पन्न लोकतांत्रिक गणतंत्र होने के साथ ही अन्तरिक्ष विज्ञान व मिसाईल प्रौधोगिकी विकास के क्षेत्र में भी विश्व के अग्रणी देशों में है।

चिन्ताजनक आर्थिक परावलम्बन

विश्व की 17.7 प्रतिशत जनसंख्या व विश्व की सर्वोच्च 20 प्रतिशत युवा जनसंख्या युत देश का आज वैश्विक महानुमाप उत्पादन अर्थात वर्ल्ड मेन्यूफैक्चरिंग में मात्र 3 प्रतिशत अंश है। इस 3 प्रतिशत उत्पादन अंश में भी दो तिहाई से अधिक उद्दोग विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के स्वामित्व एवं नियन्त्रण में हैं और देश के उधोग, व्यापार एवं वाणिज्य पर विदेशी कम्पनियों का यह स्वामित्व व नियन्त्रण तेजी से बढ़ भी रहा है। इसका सबसे प्रमुख कारण अधिकांश भारतीय उपभोक्ताओं अर्थात देश की जनता द्धारा विदेशी ब्रान्डों को क्रय किया जाना। यदि हम आयातित या देश में भी विदेशी कम्पनियों द्धारा उत्पादित विदेशी ब्रान्डों को ही क्रय करेंगे तो यह आर्थिक परावलम्बन बढ़ेगा। दूसरा कारण वैश्वीकरण की मृग मरीचिकावश सरकारों द्धारा विगत 30 वर्षों में अपनायी आयात उदारीकरण व विदेशी निवेश प्रोत्साहन की नीतियाँ। वस्तुएँ चाहे आयातित हों या विदेशी कम्पनियों द्धारा ‘मेक इन इण्डिया’ के नाम पर अपने हिस्से-पुर्जे व साज सामान बाहर से लाकर यहाँ एसेम्बल कर ’मेड इन इण्डिया’ लेबल लगाकर बेचीं जाने वाली वस्तुएँ-ये सभी विदेशी ही कहलाएंगी। केवल ’मेड बाई भारत’ वस्तुयें ही स्वदेशी कही जा सकती हैं। 

उदारीकरण के दुष्प्रभावः

उदारीकरण के पूर्व वर्ष 1991-92 में देश का विदेशी व्यापार घाटा मात्र 1.6 अरब डालर का था, जो आयात उदारीकरण के परिणाम स्वरूप 2018-19 तक सौ गुना बढ़कर 160 अरब डालर पर पहुँच गया। व्यापार घाटे में वृद्धि के कारण हमारे रूपये की कीमत 1991-92 की 18 रूपये की तुलना में गिरकर 76 रूपये बराबर एक डालर रह गयी। विदेशी निवेश प्रोत्साहन से शीतल पेय से लेकर टी.वी., फ्रिज व अधिकांश उत्पादों के उत्पादन में विदेशी कम्पनियों का अंश लगभग तीन चौथाई हो गया। इसके परिणामस्वरूप देश में 40 अरब डालर का घाटा निवेश आय में और जुड़ जाता है। इससे व्यापार व निवेश का घाटा कुल मिलाकर 200 अरब डॉलर हो जाता है।  

जापान आदि जैसी आर्थिक राष्ट्र निष्ठा अर्थात स्वदेशी भाव आवश्यकता  

देश में आज जापान, ताईवान, कोरिया, चीन, यूरोप व अमेरिका जैसी आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा आवश्यक है। जापान की उच्च आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा अर्थात स्वदेशी से उच्च लगाव के कारण, विश्व की मात्र 1.6 प्रतिशत जनसंख्या होने पर भी वर्ल्ड मैनुफैक्चरिंग में जापान का अंश 10 प्रतिशत है। जापान में उच्च आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा अर्थात देश व स्वदेशी के प्रति प्रेमवश 96 प्रतिशत स्वदेशी या मेड बाई जापान कारें ही बिकती है। सामन्य उपभोक्ता उत्पादों से लेकर सभी प्रकार के साज-सामान जब तक स्वदेशी उपलब्ध होते है तब तक कोई जापानी नागरिक विदेशी ब्राण्ड के स्थान पर ’मेड बाई जापान’ उत्पाद व ब्राण्ड ही खरीदते है। उस उत्पादन अनुभव से ही व विश्व स्तरीय उत्पाद उत्पादित कर विश्व भर में अपनी पहचान बनाने में सक्षम हुए हैं। दूसरी ओर हमारे देश में केवल 13 प्रतिशत (टाटा व महिन्द्रा की) स्वदेशी कारें बिकती है और 87 प्रतिशत कारें विदेशी बिकती हें। भारत के वर्ल्ड मैनुफैक्चरिंग में मात्र 3 प्रतिशत अंश की तुलना में चीन का अंश 28 प्रतिशत होने से चीन का सकल घरेलू उत्पाद व प्रति व्यक्ति आय भारत से पांच गुनी है। सिंगापुर, जिसकी तुलना में भारत का क्षेत्रफल 5200 गुना व जनसंख्या 234 गुनी है। लेकिन, सिंगापुर के उच्च प्रौधोगिकी सम्पन्न निर्यात (हाई टेक्नोलॉजी एक्सपोर्ट्स) भारत की तुलना में 7.5 गुने है। भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा स्पात उत्पादक देश है। तब भी जहाज निर्माण में भारत का अंश एक प्रतिशत से भी कम है। कोरिया की जनसंख्या व क्षेत्रफल भारत की तुलना में 5 प्रतिशत ही होने पर भी वर्ल्ड शिप बिल्डिंग में उसका अंश 20 प्रतिशत से अधिक है। उपरोक्तानुसार वर्ल्ड मैनुफैक्चरिंग में भारत का अंश 3 प्रतिशत होने के साथ ही आज हमारे देश के अधिकांश अर्थात तीन चौथाई से भी अधिक उत्पादन तंत्र पर विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का स्वामित्व व नियन्त्रण है। हमें भारत के आर्थिक व तकनीकी स्वावलम्बन के लिए हमें ’मेड बाई भारत’ या ’मेड बाई इण्डिया’ उत्पाद ब्राण्डों को ही क्रय में प्राथमिकता देकर अपनी आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा बढ़ानी होगी। 

स्वदेशी अर्थात ’मेड बाई भारत’ उत्पाद व ब्राण्ड

विश्व के महानुमाप उत्पादन अर्थात वर्ल्ड मैनुफेक्चरिंग में चीन के 28 प्रतिशत अंश के सामने समरा अंश मात्र 3 प्रतिशत होने का प्रमुख कारण है, भारत में अधिकांश उपभोक्ताओं अर्थात जनता द्वारा अपनी आवश्यकता व उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं के क्रय में विदेशी उत्पादों व ब्राण्डों को प्राथमिकता दिया जाना है। वस्तुतः चीनी, अमरीकी, यूरोपीय, जापानी व कोरियाई कम्पनियों द्वारा ’मेक इन इण्डिया’ के नाम पर आयातित साज सामानों को जोड़कर अपने उत्पाद एसेम्बल कर उन पर ’मेड इन इण्डिया’ लिख दिया जाता है। वे भी विदेशी उत्पाद ही कहलाएंगे जो भारतीय निर्माताओं द्वारा उत्पादित ’मेड बाई भारत’ उत्पाद व ब्राण्ड हैं, वे ही स्वदेशी कहलाते हैं। हीरो की बाइक या स्कूटर या बजाज टीवीएस मेड बाई भारत है। होण्डा के स्कूटर, बाइक व कारों पर चाहे मेड इन इण्डिया लिखा हो वे विदेशी कहलाएंगे। फिलिप्स के बल्ब, ट्यूब लाईट व प्रेस आदि पर मेड इन इण्डिया लिखा होने पर भी ये विदेशी कहलाएंगे। फिलिप्स हॉलेंड की कम्पनी है। बजाज, सूर्या, अजन्ता, हेवल आदि के उत्पादक स्वदेशी कम्पनियाँ होने से उनके उत्पाद “मेड बाई भारत“ उत्पाद हैं। ’मेड बाई भारत’ उत्पादों व ब्राण्डों को अपना कर उत्पादन में जितनी अधिक भागीदारी ही स्वदेशी वस्तुओं व ब्राण्डों की बढ़ायेंगे उतना ही अधिक से अधिक घरेलू उत्पादन बढ़ाते हुए रोजगार का सृजन कर हम, देश के सकल घरेलू उत्पाद राजस्व, लोगों की आय व मांग में भी उसी अनुपात में वृद्धि कर सकेंगे। ऐसी उत्पादन वृद्धि से ही सरकार के राजस्व की आय में वृद्धि होगी, व्यापार घाटे पर नियन्त्रण हो सकेगा और उससे रुपया भी सुदृढ़ होगा और इसके परिणामस्वरूप देश में उन्नत प्रोधौगिकी का विकास हो सकेगा। देश के बाजारों में आज चीनी वस्तुओं की भरमार से, जहाँ देश के बहुतांश उद्योगों के बन्द होने से हम बेरोजगार व बैंकों को नॉन परफार्मिंग एसेट्स का सामना करना पड़ रहा है। देश का विदेश व्यापार घाटा भी असहनीय हो रहा है।

चीन पर निर्भरता अनुचित :

पिछले वर्ष भारत का चीन के साथ 54 अरब डॉलर का विदेश व्यापार घाटा था एवं वर्ष 2017-2018 में चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा 63 अरब 
(4.5 लाख करोड़ रूपये) का रहा है। भारत लगभग 90 अरब डॉलर (7 लाख करोड रूपये) का आयात करता रहा है। इस प्रकार भारत के साथ शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों में लिप्त चीन 7-10 लाख करोड़ रुपयों से आर्थिक सशक्तिकरण करना एक गम्भीर आत्मघाती कदम है। 1986 में भारत की प्रतिव्यक्ति आय चीन की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक थी और क्रय क्षमता साम्य (परचेजिंग पॉवर पेरिटी) के आधार पर भारत की प्रतिव्यक्ति चीन से 20 प्रतिशत अधिक थी। आज चीन की प्रति व्यक्ति आय भारत की तुलना में पांच गुनी हैं। आज हमारे  इलेक्ट्रानिक आयात लगभग 45 प्रतिशत, मशीनरी आयात 35 प्रतिशत, कार्बनिक रसायन 40 प्रतिशत, मोटर वाहन स्पेअर्स और उर्वरक 25 प्रतिशत, सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री 65-70 प्रतिशत और  मोबाइल के साज सामान 90 प्रतिशत व सोलर पेनल चीन से आते हैं। भारत को विविध उत्पादों व ओधोगिक आदायो की आपूर्ति में चीन पर निर्भरता समाप्त करनी होगी। देश में साधारण कैल्कुलेटर, कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, टीवी सेट जैसे उपभोक्ता उत्पादों से लेकर टेलीफोन एक्सचेंज और सौर पैनल तक अनेक साज सामान चीन से आ रहे हैं। इन क्षेत्रों में देश की कुल मांग के लगभग 50 से 90 प्रतिशत तक चीनी ब्राण्डों पर निर्भरता उचित नहीं है। 

भारत की सामर्थ्य :

देश के पास 16 करोड़ हेक्टर कृषि योग्य भूमि एवं विश्व का सर्वाधिक 6.8 करोड़ हेक्टर, सिंचित क्षेत्रफल है। देश को प्रतिवर्ष हिमपात व वर्षा से कुल 40 करोड़ हेक्टर मीटर जल प्राप्त होता है। हमारा लगभग 20 करोड़ हेक्टर मीटर जल नदियों में बहकर बिना उपयोग के चला जाता है। उसका अनुकूलतम उपयोग करके हम देश की सम्पूर्ण कृषि योग्य भूमि को सिंचित बना सकते हैं। ऐसे में हम अपने कृषि उत्पादन को चतुर्गुणित कर विश्व की दो-तिहाई (450 करोड़) जनसंख्या की खाद्य आपूर्ति करने में सक्षम बन विश्व की क्रमांक एक खाद्य शक्ति (फूड पॉवर) बन सकते हैं। किसान की आय दो गुनी भी हो जाने पर वह उस आय से बाजार से उत्पादकीय उधोगों का माल प्रचुरता में खरीदेगा-यथा बर्तन, पंखा, फ्रिज, स्कूटर, टीवी, वस्त्रादि सम्मिलित हैं। उससे देश में औधोगिक, उत्पादन, रोजगार, आय, सरकार का कर राजस्व आदि सभी बढ़ेंगे और विकास का मार्ग प्रशस्त होगा। 

स्वदेशी की रीति नीति :

भारत के हम 135 करोड़ लोग यदि स्वदेशी अर्थात ’मेड बाई भारत’ या भारतीयों अर्थात भारतीय उधमों द्धारा उत्पादित वस्तुएँ व ब्राण्ड की क्रय करेंगे तो देश में उत्पादन, निवेश, रोजगार, प्रोधोगिकी विकास, आय वृद्धि, मांग वृद्धि, पुनः निवेश व उत्पादन वृद्धि का विकास चक्र गतिमान होगा। यदि विदेशी ब्राण्ड अपनायेंगे तो इसका लाभ उन देशों को जायेगा। इसलिए समावेशी विकास के लिए स्वदेशी विकेन्द्रित नियोजन व उत्पादन और ग्राम विकास पर बल देना होगा। वस्तुतः स्वदेशी व स्वावलम्बन हेतु निम्न प्रयास अनिवार्य हैं -

-    स्वदेशी, अर्थात भारतीय उत्पाद या मेड बाई भारत उत्पाद, सेवाएँ व ब्राण्ड ही खरीदना। विदेशी आयातित व विदेशी कम्पनियों के मेड इन इण्डिया उत्पादों को छोड़ देना। चीन में आयातित व चीन के मेड इन इण्डिया ब्राण्ड उत्पाद कतई नहीं खरीदना। चीन मेक इन इण्डिया करने हेतु जो विदेशी निवेश ला रहा है उसे पैर जमाने का अवसर नहीं देना।
-    आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा या आर्थिक राष्ट्रवाद, तकनीकी राष्ट्रवाद और मेड बाई भारत की रीति-नीति (स्ट्रेटेजी) का प्रसार व संवर्द्धन। 
-    कृषि व उधोगो में यथेष्ट निवेश बढ़ाना। 
-    देश की कृषि जैव सम्पदा अर्थात हमारे बीजों व ’नस्लों’ का संरक्षण, देश की  जैव विविधता का संरक्षण। 
-    परिवार में सौहार्द पूर्वक सामाजिक समरसता के प्रसार के साथ हमारी राष्ट्र भाषा, मातृभाषा के संरक्षण के साथ-साथ वेशभूषा, आहार व जीवन मूल्यों को सुरक्षित रखना इस दृष्टि से परिवारों में सकारात्मक व सम्पूरक संवाद व हिन्दी व अपनी मातृभाषा को बढ़ावा अपने पारम्परिक जीवन मूल्यों का दृढीकरण और प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीयता का आत्मगौरव बढ़ाना भी आवश्यक है। इस प्रकार आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा, तकनीकी राष्ट्रवाद, मेड बाई भारत को प्रोत्साहन के साथ ही समग्र संस्कृति का संरक्षण आज की प्रमुख आवश्यकता है। 
-    कुटीर उधोग, पारम्परिक कलाओं, पारम्परिक खाद्य, गीत, संगीत नृत्य नाटिकाओं का संरक्षण संवर्द्धन।

इस प्रकार यदि हम टूथ पेस्ट, शीतल पेय, जूते के पॉलिश, बल्ब, ट्यूब लाइट, टीबी-फ्रिज, स्कूटर-कार, मोबाइल फोन, केल्कुलेटर व कम्प्यूटर सहित स्कूटर मोटर साइकल व कार पर्यन्त अधिकांश वस्तुओं में स्वदेशी ब्राण्ड या मेड बाई भारत अर्थात स्वदेशी वस्तुएँ ही क्रय करेंगे तो भारत शीघ्र ही विश्व का प्रमुख उत्पादन केन्द्र व अग्रणी आर्थिक शक्ति का स्थान ले सकता है। हमें मेड इन इंडिया या मेक इन इंडिया के नाम पर चीनी व विदेशी कम्पनियों द्धारा देश में असेम्बल किये जा रहे उत्पादों के स्थान पर मेड बाई भारत या  मेड बाई इण्डिया अर्थात पूर्ण स्वदेशी उत्पादों को ही क्रय करना चाहिए।

निष्कर्ष 

अतएवं विकास के लिए स्वदेशी उत्पाद व सेवाएँ अर्थात ’मेड बाई भारत’ या ’मेड बाई इण्डिया’ को छोड़ कर कोई भी अन्य मार्ग नहीं है। हम अपनी खरीददारी में विदेशी वस्तुओं व ब्राण्डों का परित्याग कर स्वदेशी वस्तुओँ व उनमें भी रोजगार प्रधान स्थानीय उधोगों व लघु उधोगों की वस्तुओं को प्राथमिकता प्रदान करें। वस्तुतः विकेन्द्रित उत्पादन से ही समावेशी विकास सम्भव है। इसलिए रोजगार प्रधान लघु उधोगों के उत्पाद व ब्राण्ड उपलब्ध नहीं होने पर ही बड़े उधोगों के उत्पाद खरीदें। स्वदेशी उत्पादों या मेड बाई भारत उत्पादों व ब्राण्डों के होते हुए विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एवं विदेशों से आयातित उत्पादों का पूर्ण बहिष्कार करें। यदि विदेशी कम्पनियों के उत्पाद देश में नहीं बिकेंगे तो वे कुछ माह भी यहाँ नहीं टिक पायेंगी। हम भी देश की आर्थिक समप्रभुता के लिये आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा व्यक्त करते हुए विदेशी वस्तुओं को त्यागकर मेड बाई इण्डिया को बढ़ावा दें। ऐसा करके ही हम स्वयं व हमारी भावी पीढ़ी को आसन्न आर्थिक अराजकता से बचा पायेंगे। आइये हम सब स्वदेशी जागरण मंच के मेड बाई इण्डिया अभियान को सफल बनायें। स्वदेशी वस्तु, सेवाएँ भाषा, भूषा, भोजन, पारिवारिक मूल्य, समरसता की परम्परा, हमारी जैव विविधता, कृषि, पशुधन, पारम्परिक कलाएँ आदि प्रत्येक स्वदेशी आयाम का प्राणप्रण से बल देवें। इसके साथ ही विदेशी वस्तुओं का परित्याग करें और चीनी वस्तुओं को तो भूल कर भी क्रय नहीं करें। हम आज जो कारों में केवल 13 प्रतिशत मेड बाई इण्डिया कारें टाटा व महिन्द्रा की क्रय करते हैं। शेष 87 प्रतिशत कारें विदेशी ब्राण्ड की बिकती हैं। देश में 25 प्रतिशत मेड बाई भारत टिकाऊ घरेलू उत्पाद (टीवी, फ्रिज आदि) बिकते हैं।  जूतों के पॉलिश तक में केवल 15 प्रतिशत ही मेड बाई भारत ब्राण्डों के जूता पॉलिश बिक पाते हैं। ऐसी ही स्थति अन्य अनेक उत्पादों में है। बस हम शत प्रतिशत उत्पाद व ब्राण्ड, जहाँ तक भी उपलब्ध हैं, केवल ’मेड बाई भारत’  उत्पाद व ब्राण्ड अपना लेंगे तो भारत स्वावलम्बन पूर्वक विश्व में आर्थिक व प्रौधोगिकी की दृष्टि से क्रमांक एक का देश बन पुनः विश्व गुरु बन सकेगा।          

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