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आत्मनिर्भर-भारत

आत्मनिर्भर-भारत: स्वदेशी, स्वावलंबन, आत्मनिर्भर पयार्यवाची शब्द है, वंदेमातरम् की साकार अभिव्यक्ति है स्वदेशी

एक अनपढ़ मजदूर भी मूल्यवान विचार दे सकता है। स्वदेशी के नवोन्मेष में योगदान कर देश को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग कर सकता है। — सरोज मित्र

 

आज से लगभग 20 साल पहले बनारस (वाराणसी) में स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आयोजित एक अधिवेशन में ‘स्वावलंबन-भारत’ विषय पर एक परिचर्चा हुई थी। इस परिचर्चा सत्र की अध्यक्षता मैंने (स्वयं लेखक) की थी। श्री राकेश कुलकर्णी मुख्य वक्ता के तौर पर आमंत्रित थे। राकेश कुलकर्णी इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के साथ-साथ एमबीए भी कर चुके थे। वे उस समय तक लगभग 60 से अधिक वस्तुओं का निर्माण कर चुके थे। कुलकर्णी का मानना था कि आप किसी भी मशीन या घटक या अन्य यंत्रों को उठाकर बारीकी से उसका अध्ययन करें। मशीन को हर तरफ से बार-बार देखें, छुएं और उसकी जीवंतता को महसूस करें। यंत्र में लगे हर पुर्जे की बारीक जानकारी हासिल करने की कोशिश करें। मशीन के पुर्जों को ध्यानपूर्वक निकाले और सावधानी के साथ उसे उसके नियत स्थान पर पुनः लगाये। बार-बार ऐसा करने से व्यक्ति का मशीन के साथ एक रिश्ता कायम होता जाता है। बार-बार विघटित होने और जोड़ने के बाद व्यक्ति हरेक पुर्जे का निरीक्षण करके उसमें फेरबदल कर सकता है। उससे नवोन्मेष की गुंजाईश बढ़ती जाती है। बार-बार के छेड़छाड़ से हो सकता है कि कदाचित मशीन में गड़बड़ी आ जाये लेकिन बहुधा इस प्रक्रिया में सुधार और नवनिर्माण की संभावना होती है। मोटे तौर पर इसी को अभियंत्रीकरण कहते है। हालांकि दुनिया के कई देशों में इस तरह के अभ्यास होते है लेकिन जापान इस प्रक्रिया में पारंगत है। सच्चे अर्थों में यही स्वदेशी, स्वावलंबन व आत्मनिर्भर बनने का हुनर है। 

इस क्रम में स्वदेशी कार्यकर्ता अपने शहर या गांव में विद्यमान कारीगरों, जो कि अपने परम्परागत कौशल के द्वारा काम कर रहे है, उनके कौशल विकास के लिए ऐसा सुझाव दे सकते है। स्वदेशी कार्यकर्ता को सबसे पहले अपने को क्या काम करना है, अपना क्षेत्र क्या होगा और काम करने के लिए खुद के सामर्थ्य के बारे में आत्मचिंतन करना चाहिए। क्योंकि कोई भी काम शुरू करने से पहले मानसिकता बनानी पड़ेगी। और ज्ञात हो कि आत्मनिर्भरता भी एक मानसिकता है। यह भी तय है कि समय परिवेश के साथ लड़ने का तीव्र इच्छाशक्ति के बिना किसी काम में सफलता हासिल नहीं होती। 

इसी प्रकार स्वदेशी कार्यकर्ता को जो लोग कुछ कर रहे है उनको धन्यवाद देना चाहिए तथा इसके लिए संबंधित को सम्मान प्रदान करना भी जरूरी है। सवाल है कि समाज में स्वदेशी कार्यकर्ता की पहचान कैसे की जाये। इसका सीधा उत्तर है कि जो व्यक्ति निस्वार्थ भाव से उत्साहित होकर आत्मनिर्भर राष्ट्र निर्माण करने में लगा है, वह निःसंदेह स्वदेशी कार्यकर्ता है। आत्म मंथन, आत्म विश्लेषण और फिर आत्म तृप्ति के जरिए आत्मनिर्भरता के भाव को हम कुछ उदाहरणों से समझ सकते है।

उदाहरण- 1. टूटा हुआ कोणार्क सूर्य मंदिर, जगन्नाथपुरी में है। यह मंदिर समुद्र में था। इसका निर्माण 1200 कारीगरों ने 12 साल में किया था। आज भी पत्थर के इस मंदिर की शिल्पकला देखकर दुनिया भर के लोग चकित होते है। सब प्रकार के आर्थिक सहयोग देकर भी इस प्रकार की कला के निर्माण के लिए उन कारीगरों के मन में जो संकल्प था और अपने द्वारा किये गये कार्य से उन्हें जो आत्मतृप्ति (जॉब सेटिसफेक्शन) हुई थी, वह विचारणीय है। अगर आत्मतृप्ति लाई जा सकती है तो फिर आगे बढ़ते ही जाना है, कोई रोक नहीं सकता।  

उदाहरण-2. मजदूरों की एक मांग थी कि प्रबंधन में भागीदारी हो। एक कारखाने के अधिकारी ने मजदूरों की मांग मानते हुए कहा कि ठीक है, आपको प्रबंधन में स्थान दिया जायेगा। इस कारखाने में मैनेजर का एक पद खाली है। इसके लिए तीन उम्मीदवार है, जिनकी शिक्षा व योग्यता एक समान है। इनमें से एक को चुनना है। अब आप बताईये कि मजदूर प्रतिनिधि के रूप में साक्षात्कार के दौरान इनसे क्या पूछेंगे? मजदूर प्रतिनिधि ने जवाब दिया कि हम जानना चाहेंगे कि पहले ये क्या करते थे। अगर जवाब आया कि सहकारी विभाग में मैनेजर पद पर थे, तो पूछेंगे, उस समय क्वार्टर में कौन-कौन लोग रहते थे। उम्मीदवार अगर बताया कि माता पिता के साथ रहता था। फिर पूछेंगे, अब मैनेजर बनने के बाद यदि आपकी शादी हो गयी हो तो क्वार्टर में कौन-कौन है। अपने उत्तर में अगर उम्मीदवार बोलता है कि मैं और मेरी पत्नी, तो उसको नकार देंगे। जब अधिकारी ने पूछा-ऐसा क्यों? तो मजदूर प्रतिनिधि ने कहा कि जो आदमी अपने माता पिता को साथ में नहीं रख सकता है, वो हजारों मजदूरों को साथ में लेकर कैसे चल सकेगा? ज्ञात हो कि इस विषय को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन तथा एमबीए पाठयक्रम में पढ़ाने के लिए चुना गया। कहने का तात्पर्य यह है कि एक अनपढ़ मजदूर भी मूल्यवान विचार दे सकता है। स्वदेशी के नवोन्मेष में योगदान कर देश को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग कर सकता है।

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