कृषि चक्रः उत्पादन, शोध, निवेश और तकनीक
समय की आवश्यकता है कि किसानों के हित में आवश्यक वस्तु अधिनियम जो सरकार को उपभोक्ता लाभ के लिए आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने में सक्षम बनाता है, को समयानुकूल संशोधित किया जाए। - विनोद जौहरी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के दूसरे कार्यकाल में कृषि सुधारों पर बहुत गंभीर प्रयास किये गये। प्रधानमंत्री ने किसानों की आय दोगुनी करने के प्रयास भी किये। किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने, अपने उत्पादन के पर्याप्त मूल्य प्राप्त करने, मंडी समितियों के शोषण रोकने के उद्देश्य से तीन कृषि सुधार कानून कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2020; कृषक सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020; और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 संसद में प्रस्तावित हुए परंतु उनको निरस्त करने की मांग को लेकर हजारों किसानों ने पिछले नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाल दिया और तीनों कृषि सुधार कानून राजनीति की भेंट चढ़ गये। किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुधारनी है, कृषि उपज भी बढ़ानी है, फसल की अच्छी कीमत भी किसान को मिलनी चाहिए परंतु कृषि व्यवस्था में सुधार नहीं चाहिए - यह कैसी विडम्बना है !! माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस संबंध में एक उच्च अधिकृत समिति भी गठित की परंतु क्या समाधान निकला, किसी को नहीं पता।
भारत में कुल अनाज उत्पादन (2022-23) 3300 लाख टन है जिसका अमेरिकी डॉलर में मूल्य 515 बिलियन डालर है और जो पिछले वर्ष की तुलना में 140 लाख टन अधिक है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 18-19 प्रतिशत है। इससे भी महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हमारे देश में 25 करोड़ किसान हैं और 14 करोड़ लोग कृषि रोजगार में लगे हैं। इसलिए देश की समृद्धि और भविष्य के लिए किसान ही सबसे महत्वपूर्ण है और विकास का मेरुदंड है।
सरकार के स्तर पर कृषि को लेकर बहुत सी योजनाएं और किसानों के लिए जनकल्याणकारी कार्यक्रम हैं परंतु जब इसको लेकर राजनीति होती है तो केवल विषय केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य ही रहता है और आंदोलन भी इसी तक सीमित रहते हैं।
भारतीय संविधान के सातवें शैडयूल में कृषि राज्य के अधिकार का विषय है। इसलिए राज्य सरकारें कृषि पर जो भी सुधार करना चाहती है, उसमें कोई व्यवधान नहीं है। जो कृषि कानून केंद्र सरकार द्वारा लाये गये उनका भी कार्यान्वयन राज्य सरकारों को ही करना है इसलिए किसानों के पक्ष में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित कानूनों और योजनाओं का विरोध किसानों के अहित में है।
राजनीति से अलग कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के लेख भी समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं जिनका आधार शोध होता है और कृषि सुधार के व्यवसथात्मक पक्ष होते हैं। यह लेख कृषि वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों के सुझावों, संकेतों और प्रस्तावों पर आधारित है।
वैज्ञानिक की दृष्टि से कृषि के समक्ष गंभीर चुनौतियां हैं जिनमें जलवायु परिवर्तन, उपज में वृद्धि, सिंचाई के लिए जल की कमी, भू-संरक्षण मुख्य हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कृषि उपज में प्रतिवर्ष 6-8 प्रतिशत की वृद्धि अपेक्षित है जो वर्तमान में लगभग 4 प्रतिशत ही है। कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र में निवेश, इंफ्रास्ट्रक्चर और टैक्नोलॉजी की प्राथमिकता है।
सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर जीएसटी काउंसिल के स्वरूप पर एक राष्ट्रीय कृषि विकास समिति का गठन होना चाहिए जिसमें नीति आयोग, कृषि वैज्ञानिक, उद्योग, विद्वान, शोधकर्ता, राजनीतिक दल, अर्थशास्त्री सम्मिलित हों। इस प्रकार गठित संस्थान कृषि और किसान के हित में दीर्घकालिक निर्णय ले सकते हैं।
कृषि क्षेत्र में निजी निवेश, कृषि पर शोध और शोध के लिए सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम एक प्रतिशत आवंटन तो आवश्यक है जो अभी मात्र 0.6 प्रतिशत है। बीजों की उच्च गुणवत्ता विकसित करना, कृषि के लिए चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में फसल की किस्मों पर शोध भी अगले तीन चार वर्षों में हो जाये तो फसल चक्र पर भी स्थानीय स्तर दीर्घकालिक नीति बनायी जा सकती है जिससे कम या लाभ न देने वाली फसलों पर समय और धन की बचत हो और किसान को भी अपनी फसल का उच्च मूल्य मिल सके।
नीति निर्धारण द्वारा उन शोध संस्थानों को प्राथमिकता के आधार पर वित्त पोषण द्वारा प्रोत्साहन दिया जाये जो फसलों के बौद्धिक संपदा के अधिकार पर कार्य कर सकें जो किसी आविष्कार एवं सृजनात्मक गतिविधियों के आधार पर प्रदान किया जाता हो । इसके अंतर्गत पेटेन्ट, औद्योगिक डिजाइन, प्रतिलिप्यिधिकार, पादप प्रजनक का अधिकार, एकीकृत परिपथ का ले-आउट या खाका डिजाइन इत्यादि आते हैं । बौद्धिक सम्पदा के वे सभी अधिकार जो किसी उपभोक्ता को सूचना प्रदान करते हैं, उनका संरक्षण भी अपेक्षित है।
देश में 103 भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थान, 72 केंद्र एवं राज्य के कृषि विश्वविद्यालय, 6000 कृषि वैज्ञानिक, 25000 शैक्षणिक समुदाय और कृषि विकास केंद्रों में 11000 प्रोफेशनल कार्यरत हैं। वास्तविकता यह भी है कि कृषि में शोध पर आवंटित धनराशि का 90 प्रतिशत वेतन, शेष 10 प्रतिशत में से अधिकांश प्रशासनिक खर्चों पर और नाम मात्र को कृषि में शोध के लिए बचता है। इस ओर यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि शोध के लिए आवंटित धनराशि शोध पर ही खर्च हो।
बीजों की नयी और उच्चीकृत किस्मों को प्रयोग में लाया जाये और फसलों की अधिक उपज के लिए अनुकूल फर्टिलाइजर, इसेक्टिसाइड, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोकने या कम करने के उद्देश्य से नवीकृत टैक्नोलॉजी का शोध और प्रयोग हो।
कृषि क्षेत्र में भी कार्बन क्रेडिट और ग्रीन क्रेडिट व्यवस्था का लाभ किसानों को मिले। भू-संरक्षण, जल संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के अनुरूप फसलों का चयन, किसानों के लिए विभिन्न डिजिटल माध्यमों के प्रयोग को प्रोत्साहन देना आवश्यक है।
कृषि के लिए ऐसी व्यवस्था हो जिससे बाजारी और औद्योगिक मांग और मांग के समयानुसार आवश्यक विशिष्ट फसलों का चयन हो और उनका उत्पादन किसानों के लिए हितकर हो। उद्योग और किसानों के बीच ऐसी व्यवस्था स्थापित करने के लिए संवाद हो सके।
अनाज के वैश्विक बाजार में निर्यात के उद्देश्य से कृषि संबंधित टैक्नोलॉजी, डिमांड के अनुसार फसल का उत्पादन, फसलों का अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होना, फर्टिलाइजर और इंसेक्टीसाइड का अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार प्रयोग, अनाज की गुणवत्ता, वैल्यू चेन मैनेजमेंट, भंडारण आदि पर ध्यान देना आवश्यक है।
फसलों के लिए ड्रिप सिंचन, स्प्रिंकलर और होज़ रील के माध्यम से सिंचाई से कम जल के प्रयोग से किसानों का हित हो सकता है। कम जल के प्रयोग को डॉयरेक्ट बैनिफिट ट्रांसफर से किसानों को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
किसानों के हित में उदारवादी बाजार की बहुत आवश्यकता है। कृषक उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को प्रोत्साहन और बैंकों द्वारा एफ पी ओ को ऋण संबंधी सहायता की आवश्यकता है। डिजिटल एग्रीकल्चरल आउटपुट मैनेजमेंट की व्यवस्था किसानों के बहुत हित में है। फसलों के नुकसान की भरपाई का प्रबंधन भी आवश्यक है।
यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि किसानों को रासायनिक खाद, इंसेक्टिसाइड आदि पर सब्सिडी ने भूमि से अतिरेक जल दोहन और पर्यावरणीय प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन बढ़ा दिया है जो चीन और ब्राजील के बाद भारत में सबसे अधिक है। अकेले पंजाब और हरियाणा में अत्यधिक जल दोहन से भूमिगत जल संरक्षण में भारी कमी हुई है।
समय की आवश्यकता है कि किसानों के हित में आवश्यक वस्तु अधिनियम जो सरकार को उपभोक्ता लाभ के लिए आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने में सक्षम बनाता है, को समयानुकूल संशोधित किया जाए।
सरकार के संतुलनकारों से अपेक्षा की जा रही है कि वे उपरोक्त सभी तथ्य और बिंदुओं पर विचार करके कृषि संबंधी नीतियों का निर्धारण करने के लिए ठोस पहल करे, जिससे आमजन का बड़ा हित सध सके।
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