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बदलाव से बदलेगा अमरीका या बरकरार रहेगी चुनौतियां

डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव में जाने से पहले कई अन्य देशों के छात्रों की तरह भारतीय छात्रों को भी वापसी का टिकट पकड़ाने का इंतजाम कर दिया था। लेकिन नया-नया चुनकर आए बाईडेन की टीम ने भरोसा दिलाया है कि भारतीय छात्रों की दिक्कतें दूर की जाएंगी। — अनिल तिवारी

 

अमेरिकी मतदाताओं ने अपना नया राष्ट्रपति चुन लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित दुनिया भर के अधिकांष नेताओं ने बाईडेन को जीत की बधाई भेज दी है। हालांकि फाइनल नतीजों के आने और ट्रंप के अड़ियल रुख से सत्ता के हस्तांतरण पर सभी की नजरें लगी हुई हैं। लेकिन नए विश्व राजनीतिक समीकरण पर बातचीत ही शुरू हो चुकी है। कोरोना महामारी के बाद की दुनिया में अमेरिका की भूमिका क्या होगी? तमाम संकटों से गुजर रही दुनिया की अर्थव्यवस्था कैसे उबरेगी? 30 साल पहले बने भूमंडलीकरण का क्या होगा? भारत के साथ अमेरिका का रिष्ता कैसा होगा? मोदी और ट्रंप के बीच जो तालमेल बना था उसकी तासीर बाईडेन के कार्यकाल में भी दिखेगी, अथवा रिष्तां में उतार-चढ़ाव आएगा?

अमेरिकी राजनीतिक परिदृष्य का कुहासा लगभग छंट चुका है। अमेरिकी जनता ने जो बाईडेन के हाथ में बागडोर दे दी है, अगले 50 दिनों के अंदर अमेरिका में बाईडेन सरकार बकायदा काम शुरू कर देगी। भारत की नजर बाईडेन और उनकी टीम पर होगी। अहम मसलों पर उनके रूख को देख-परख ही आगे के रिष्ते तय होंगे। भारत की सबसे पहली और सबसे बड़ी चुनौती दोनों देषों के बीच ट्रेड डील को अंतिम रूप देने की होगी, जो पिछले 2 सालों से कुछ मसलों पर गतिरोध के कारण अटकी हुई है। नए दौर में बातचीत नए सिरे से होगी, इसलिए दोनों देषों के बीच यह एक चुनौतीपूर्ण होगा।

भारत कूटनीतिक दृष्टि से पाकिस्तान और कष्मीर पर, अमेरिकी रुख पर, पैनी नजर रखेगा। अमेरिका के नए राष्ट्रपति का पाकिस्तान और कष्मीर पर क्या स्टैंड रहता है, इस पर संबंधों का दारोमदार होगा। मालूम हो कि ओबामा और ट्रंप पाकिस्तान और कष्मीर के मसले पर अब तक भारत के रुख से सहमत रहे हैं, लेकिन बाईडेन प्रषासन इस मुद्दे पर क्या रवैया अख्तियार करता है, यह दोनों देषों के बीच के संबंधों को आगे ले जाने मजबूत करने में अहम भूमिका निभाएगा।

अमेरिका में रहकर पढ़ाई कर रहे भारत के छात्रों के लिए नई सरकार की दरियादिली भी कसौटी पर कसी जाएगी, क्योंकि खुद को भारत का सबसे बड़ा दोस्त बताने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव में जाने से पहले कई अन्य देषों के छात्रों की तरह भारतीय छात्रों को भी वापसी का टिकट पकड़ाने का इंतजाम कर दिया था। भारत-अमेरिका के बीच हाल के सालों में एच-1बी वीजा गतिरोध का बड़ा मसला रहा है। ट्रंप प्रषासन ने इस मसले में कई एक शक्ति की थी, अभी भी ढ़ेरों ऐसे कानून प्रभावी हैं जो भारतीय हितों के पूरी तरह प्रतिकूल हैं। हालांकि नया-नया चुनकर आए बाईडेन की टीम ने भरोसा दिलाया है कि भारतीय छात्रों की दिक्कतें दूर की जाएंगी। 

इस बीच कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से अमेरिका के अलग होने और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) का नेतृत्व हासिल करने के बाद चीन अपेक्षाकृत अपने लिए अधिक स्पेस बनाने में सफल हो गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बाईडेन अमेरिका को किस रास्ते पर लेकर चलेंगे? क्या ट्रंप की नीतियों को आगे बढ़ाएंगे या ओबामा युग की ओर पलटेगे? सवाल यह भी है कि बाईडेन की जो भी रिसेट या फॉरवर्ड पालिसी बनती है, उसमें भारत के लिए कितनी और किस प्रकार की जगह होगी? दुनिया के कई एक आर्थिक विचारकों ने माना है कि विष्व व्यवस्था में शक्ति संतुलन पूर्व की ओर झुकेगा, क्योंकि पष्चिम की साख धीरे-धीरे सूख रही है। वाकई अगर ऐसा है तो इसके लिए ट्रंप की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

मालूम हो कि ट्रंप ने अमेरिका को आरसीईपी से बाहर कर एषिया प्रषांत के आर्थिक गलियारे में चीन को छुट्टा छोड़ दिया था। यह एक ऐसा बाजार क्षेत्र है जो वैश्विक जीडीपी में एक तिहाई से अधिक का हिस्सा रखता है। ट्रंप एक तरफ चीन के साथ व्यापार युद्ध लड़ते रहे, तो दूसरी तरफ उन्होंने चीन के साथ मिलकर 35 बिलियन डालर के बेल्ट एंड रोड इनीषिएटिव फंड की स्थापना कर दी, जो चीन के लिए एक सामरिक हथियार की तरह है। यह एक ऐसा मसला है जो शक्ति संतुलन की दिषा बदलने की क्षमता रखता है।

बदली हुई दुनिया में तीन जरूरी शक्ति केंद्र हैं- वाषिंगटन, बीजिंग मास्को। प्रतिस्पर्धा वाषिंगटन और बीजिंग के बीच है। ट्रेड वार को लेकर दोनों आमने-सामने हैं। लेकिन क्या यह सिर्फ ट्रेड वार ही है या इससे कुछ और भी शामिल है। निष्चित रूप से यह एकल नहीं है, इसमें जियो स्ट्रेटजी, वार पॉलिटिक्स के साथ-साथ चीन की विस्तारवादी एकाधिकारवाद और नव-साम्राज्यवाद संबंधी महत्वकांक्षाए भी शामिल हैं। थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो स्थिति साफ हो जाएगी और इसका सीधा प्रभाव वैश्विक राजनीतिक ध्रुवीकरण की ओर होगा। वर्ष 2008 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आए संकट के साथ इसकी शुरुआत हो गई थी। उस समय भी चर्चा थी कि विश्व अर्थव्यवस्था का नेतृत्व अमेरिका से फिसलकर चीन की ओर जा सकता है। इसके बाद ओबामा का कार्यकाल आया, जिसमें अमेरिका को नए ट्रैक पर डाला, जो वहां की मूल प्रवृति से हटकर था। इसका नतीजा था चीन को अपने विनिर्माण उद्योग के साथ साथ सैन्य उद्योग को भी मजबूत करने का मौका मिल गया। इस दौरान बीजिंग और मास्को के बीच रिष्ते प्रगाढ़ हुए और इन्होंने अपने प्रभाव को दमिष्क, तेहरान, इस्लामाबाद एवं पियोंगयांग आदि तक विस्तार देने में सफलता हासिल की।

जहां तक भारत के साथ संबंधों की बात है तो राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी की दोस्ती कुछ अधिक ही फली-फूली, परिणाम यह हुआ कि भारत अमेरिका का स्वाभाविक आर्थिक साझेदारी के साथ-साथ सैन्य साझेदार बनने में सफल रहा। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस सुनहरे दौर में भी दोनों देषों के बीच यदा-कदा टकराव की स्थिति बनी रही। ट्रंप ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को जब एकतरफा निरस्त किया था तो उसके साथ ही भारत पर ईरान से कारोबार को बंद करने का प्रभावी दबाव भी बनाया था। उस समय ट्रंप प्रषासन ने जिन 8 देषों को ईरान से रिष्ते तोड़ने के लिए जबरदस्त अल्टीमेटम दिया था, उसमें भारत का नाम भी शामिल था। भारत को जीएसपी से भी बाहर कर दिया गया था। जिसका लाभ भारत को वर्ष 1976 से ही लगातार मिलता रहा था। भारत अमेरिका के साथ एक अहम व्यापारिक संधि पर हस्ताक्षर होने की आस लगाए बैठा रहा, लेकिन ट्रंप भारत पर अमेरिका की व्यापार नीतियों का गलत फायदा उठाने, नीतियों का बेजा इस्तेमाल करने का आरोप लगाते रहे। वहीं दूसरी तरफ डेमोक्रेटिक सांसदों के साथ भी भारत के रिष्ते बहुत अच्छे नहीं रहे। कष्मीर मसले को लेकर डेमोक्रेट सांसदों ने एक प्रस्ताव पेष किया था, जिसमें कष्मीर में संचार पर से पाबंदी हटाने राजनीतिक कैदियों को रिहा करने और कष्मीरियों के धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा की बात की थी। इस पर भारत ने कड़ा एतराज जताते हुए इसे आंतरिक मामलों पर कड़ा हस्तक्षेप बताया था।

यकीनन कष्मीर में मानवाधिकार धारा-370, सीएए जैसे कई एक आंतरिक मसलों पर नए राष्ट्रपति, जो बाईडेन और उनकी टीम का रुख भारत के स्थापित मानदंडों से भिन्न रहा है तथा अन्य कई मसलों पर भी हाल के वर्षों में भारत अमेरिकी द्विपक्षीय संबंध कुछ खट्टे और कुछ मीठे रहे हैं। लेकिन आने वाले दिनों में इसके अहम होने के संकेत मिल रहे हैं। मोदी-ट्रंप युग में दोनों देषों के रिष्ते जिन ऊचांईयों तक पहुंचे थे, उसके बाद जो बाईडेन के जीत जाने से दोस्ती को लेकर कई तरह की आषंकाएं जताई जा रही थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बधाई संदेष के बाद बाईडेन की ओर से जिस तरह गर्मजोषी के साथ दोनों देषों के संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ करने तथा और अधिक विस्तार देने वाला बयान जारी हुआ है, उसने ऐसी आषंकाओं को काफी हद तक दूर कर दिया है। सत्ता बदलाव से दोनों देषों के बीच आर्थिक कारोबार बढ़ेगा। आईटी सेक्टर के लिए अमेरिकी दरवाजे और खुलेंगे तथा इमीग्रेषन की पेंच भी ढीले होंगे। सामरिक मोर्चे पर भी साझेदारी को विस्तार मिलने की संभावना है।

 

भारतीय मूल की महिला बनी अमरीका में उपराष्ट्रपति

भारतीय मूल की पहली महिला तथा पहली अश्वेत अमरीकी कमला हैरिस अमेरिकी की उपराष्ट्रपति चुनी गई हैं। हैरिस की मां श्यामला गोपालन मूल रूप से चेन्नई की और पिता डोनाल्ड हरीष जमैका मूल के हैं। हरीष अपनी मां के साथ भारत आती रहती हैं। अपनी आत्मकथा में वह लिखती हैं कि वह अपने मामा और दो मोतियों के नजदीक रही हैं। उनसे मिलने के लिए उन्होंने भारत की यात्रा भी की है और इसकी मां का वर्ष 2009 में 70 साल की उम्र में निधन हो गया था।

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