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रिश्वतखोरी ही है फ्रीबीज, इसे रोकने के लिए कानून चाहिएः डॉ. महाजन

स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक डॉ. अश्वनी महाजन ने राजनीतिक दलों द्वारा दी जाने वाली फ्रीबीज (चुनावों के दौरान मुफ्त उपहारों की पेशकश) को ‘रिश्वत का ही एक स्वरूप’ करार दिया है और कहा है कि इसके लिए एक कानून पेश करके इस परिपाटी को समाप्त किये जाने की आवश्यकता है। कई सारे मुद्दों पर दिप्रिंट से बात करते हुए, महाजन ने कहा, ‘मुफ्त उपहार वास्तव में मतदाताओं के लिए एक प्रकार की रिश्वत है, और इस रिश्वतखोरी को रोकना होगा। चाहे यह किसी एक पार्टी द्वारा हो या दूसरी पार्टी की तरफ से, इसे कानून द्वारा रोकना होगा।‘

इस बीच भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) ने सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को एक प्रस्ताव भेज उनसे जवाब मांगा है, जिसमें उन्हें चुनावी घोषणापत्रों में किए गए वादों के ‘वित्तीय निहितार्थ’ और उनके लिए वित्तीय संसाधन जुटाने के ‘तरीकों और साधनों’ का विवरण प्रस्तुत करने की बात कही है। यह कदम इस साल की शुरुआत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ‘रेवडी संस्कृति’ (फ्रीबी कल्चर) वाली टिप्पणी और सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष ‘राजनीतिक दलों द्वारा किये जाने वाले मुफ्त उपहारों के बेतुके वादों’ को चुनौती देने वाली एक याचिका के बाद ‘मुफ्तखोरी’ पर छिड़ी एक तीखी बहस के ठीक बाद उठाया गया है।

उन्होंने तर्क दिया, ‘मुफ्त उपहार वास्तव में वे चीजे/सेवाएं होती हैं, जिनकी कीमत तय की जा सकती है और जो सरकार द्वारा मुफ्त उपलब्ध नहीं कराई जानी चाहिए। अर्थशास्त्र में, हम हमेशा कहते हैं कि संसाधन सीमित हैं और सार्वजनिक राजस्व भी सीमित है। हमारे पास सीमित संसाधन ही उपलब्ध हैं, इसलिए इन संसाधनों का उपयोग या तो राज्य के विकास के लिए या फिर मुफ्त उपहारों को देने के लिए किया जा सकता है। किसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए?’

महाजन ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता शीला दीक्षित का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान, 15 वर्षों के लिए विकास व्यय की वृद्धि दर सालाना लगभग 20 प्रतिशत थी, जो कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार के पहले पांच साल में घटकर 9 प्रतिशत रह गई है।

महाजन ने कहा, ‘यह संज्ञात्मक आधार (नॉमिनल बेसिस) पर है। वास्तविक आधार पर यह उससे काफी कम है। इसलिए, यह विकास में, या यूं कहें कि दिल्ली में विकास के प्रयासों की कमी में, परिलक्षित हो रहा है - कोई नया स्कूल नहीं बना है, कोई नया कॉलेज नहीं खुला है, कोई नया अस्पताल नहीं खुला है, कोई नया फ्लाईओवर नहीं बना है, दिल्ली में कुछ भी नहीं बदला है। इसलिए, अगर कोई कहता है कि मैं समाज के गरीब तबके के लिए ये मुफ्त सुविधाएं प्रदान कर रहा हूं, तो वह सच नहीं बोल रहा है, क्योंकि समाज के गरीब वर्ग को अच्छे परिवहन, अच्छी सड़कों, अच्छी सुविधाओं की आवश्यकता है, ताकि वे एक बेहतर जीवन जी सकें।’

उन्होंने कहा, ‘अगर हम हर किसी को मुफ्त बिजली की सुविधा प्रदान कर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि जो लोग इसके लिए भुगतान कर सकते थे वे भी वास्तव में इसके लिए भुगतान नहीं कर रहे हैं। इसलिए, वे संसाधन राज्य अथवा शहर के विकास के लिए उपलब्ध नहीं कराए जा पाएंगे. और यह एक तरह की छूत की बीमारी है, यह बीमारी दूसरे राज्यों में भी फैलती जा रही है।’

महाजन ने कहा कि राजनीतिक दल भी इस दौड़ में शामिल हैं क्योंकि ‘सत्तारूढ़ होना विकास से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। जिसका अर्थ यह है कि राजनीतिक आकांक्षाएं आम लोगों के कल्याण पर हावी हो जायेंगीं।’

स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भारत की गरीबी, बेरोजगारी और असमानता को उजागर करने वाली आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए महाजन ने कहा कि इसी बात को पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने भी स्वीकार किया था।

महाजन ने कहा, ‘बेरोजगारी की समस्या कई दशकों से चली आ रही है, और विशेष रूप से 1991 में नई आर्थिक नीति को अपनाने के बाद से यह समस्या बहुत अधिक बढ़ गई है। इसे हमारे पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भी स्वीकार किया था, जब उन्होंने कहा था कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि वास्तव में एक रोजगारहीन विकास है। वह इसे बार-बार कहते रहे थे और इसलिए, ऐसा कहना कि यह बेरोजगारी के अस्तित्व में होने की स्वीकृति है, वास्तव में सही नहीं है।’ उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि नौकरी मांगने वालों के बजाय नौकरी देने वाले खड़े करने की ज्यादा जरूरत है।

वैश्विक उथल-पुथल और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के बारे में बात करते हुए, महाजन ने कहा कि भारत ने हमेशा से ‘आपदा में अवसर’ खोजा है और इसके लिए उन्हों कोविड -19 महामारी का उदाहरण दिया है।

उन्होंने कहा, ‘अब, जब यूक्रेन युद्ध चल रहा है, तो हम पाते हैं कि कई देश खाने के सामान की कमी का सामना कर रहे हैं। उन्होंने सोचा था कि वे अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के माध्यम से रूस को खत्म करने में सक्षम होंगे, लेकिन वास्तव में ये प्रतिबंध खुद इन पश्चिमी देशों को ही कष्ट दे रहे हैं, जो अब अन्य चीजों के अलावा गैस और तेल की उपलब्धता के मामले में भारी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। हमारी मुद्रा और अन्य सभी मुद्राएं अवमूल्यन (मुद्रा कीमतों का काम होना) का सामना कर रही हैं, लेकिन हमारी मुद्रा का प्रदर्शन अभी भी अन्य सभी मुद्राओं की तुलना में बेहतर है।’

उन्होंने कहा, इसे देश द्वारा आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने और ‘आत्मनिर्भर पथ’ पर आगे बढ़ने के एक अवसर के रूप में लिया जा सकता है। उन्होंने दावा किया, ‘पश्चिमी देशों से आ रही खबरों के मुताबिक वे सभी मंदी का सामना कर रहे हैं। अमेरिका भी मंदी का सामना कर रहा है और भारत को अपना उत्पादन बढ़ाने की संभावना मिल गयी है। अगर हम पिछली कुछ तिमाहियों की तरफ देखें, तो हमारी जीडीपी काफी तेज दर से बढ़ रही है। हम दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन गए हैं।’

महाजन ने कहा, ‘दूसरी ओर, विकसित देश मंदी का सामना कर रहे हैं। उनकी जीडीपी सिकुड़ रही है, जैसा कि हम देखते हैं कि अमेरिकी जीडीपी पिछली दो-तीन तिमाहियों से लगातार सिकुड़ रही है। इसलिए, यह हमारे लिए एक अवसर है। यूक्रेन युद्ध के कारण हमें किसी खास समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है - भोजन की नहीं, गैस और तेल की भी नहीं। बल्कि इसकी वजह से हमें रूस से सस्ता तेल और गैस मिल रहा है।‘

महाजन ने कहा कि पाउंड, यूरो या येन सहित बाकी मुद्राओं से तुलना करने पर पता चलता है कि उनमें भारतीय मुद्रा की तुलना में लगभग दो या तीन गुना अवमूल्यन हुआ है।

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