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बजट की गतिशक्ति 

मूलभूत सुविधा जितनी अच्छी होगी, विकास को उतनी गति मिलेगी। इस बजट में इसी गतिशक्ति को मजबूत करने की बात कही है। — अनिल जवलेकर

 

अफसोस की बात है कि आजकल बजट भी पहले जैसा नहीं रहा। एक जमाना था जब बजट का इंतजार होता था। सभी स्तर के लोग आय तथा उत्पादन करों में रियायतों का इंतजार करते थे। शहरी लोक अपने गांव पहुंचने वाली नई रेल गाडियाँ और रेल यात्रा में सहूलियतों के ऐलान की अपेक्षा रखते थे। उद्योगपति मुनाफा बढ़ाने वाली नीतियों की घोषणा का इंतजार करते तथा किसान कर्ज मुक्ति की बाट देखते थे। लेकिन इस साल के बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है। चुनाव का माहौल होने के बावजूद भी बजट बहुत सारी वैचारिकता की बात करता रहा, लेकिन किसी को कोई रियायत नहीं मिली। लेकिन नया बजट तो आया है और उसमें भविष्य की बात भी की गई है। इसीलिए बजट में कही गई गतिशक्ति और सात इंजन वाली बात समझने की जरूरत है। 

अर्थव्यवस्था फिर पटरी पर लौट रही है

पहले अच्छी बात यह है कि अर्थव्यवस्था कोरोना को झेलते हुये फिर से पटरी पर लौट रही है। अर्थव्यवस्था कोरोना की चपेट में आने का यह तीसरा साल है। कुछ ठीक हो रहा है, ऐसा लगते ही कोरोना का कोई और नया प्रकार सामने आता है और फिर अर्थव्यवस्था का धीमा होना शुरु हो जाता है। इसके बावजूद अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ी है और यही सबसे अच्छी खबर है। कृषि तो किसी तरह कोरोना काल में भी बची रही और अर्थव्यवस्था को बल देती रही। लेकिन बाकी क्षेत्र विशेषतः सेवा क्षेत्र चौपट हो गया था। अभी उम्मीद जगी है। और उद्योग तथा सेवा क्षेत्र फिर विकास की ओर बढ़ रहे है। निर्यात तो बढ़ ही रहा है, आयात भी बढ़ने लगा है। विदेशी चलन की गंगाजली अच्छी जमा हुई है। और इन्हीं संकेतां का हवाला देकर वित्तमंत्री ने नए साल के बजट को आने वाले 25 साल के विकास की ओर  मोड़ दिया है। 

बजट का लक्ष्य तथा दृष्टि 

इस 25 साल के अमृत काल में सर्वसमावेशक विकास, उत्पादन, उत्पादकता और निवेश बढ़ाने तथा निवेश के अधिक स्त्रोत ढूंढ़ने के प्रयास का लक्ष्य है। यह प्रयास अंत्योदय का लक्ष्य साधते हुए सभी क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की ओर ले जाएंगा। यह सही है कि बुनियादी सुविधाएँ जितनी जल्दी बढ़ाई जाएंगी, उतनी जल्दी सभी क्षेत्र विकास कर पाएंगे। इसमें नया तंत्र ज्ञान का उपयोग महत्वपूर्ण रहेगा। भविष्य में डिजिटल व्यवस्था महत्वपूर्ण होगी और नया तंत्र ज्ञान को अपनाना इसलिए जरूरी भी है। उसकी बात बजट करता है और यह एक अच्छा कदम कहा जाएगा। डिजिटल व्यवस्था का लाभ ग्रामीण अर्थव्यवस्था विशेषतः कृषि क्षेत्र और किसान तक पहुँचने की बात इस बजट को उपयोगी बनाता है। 

गतिशक्ति और सात इंजन 

इस बजट में विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ‘प्रधानमंत्री गतिशक्ति’ और उसके सात इंजनों को बढ़ावा देने की बात की है जो एक आवश्यक कदम था। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के विकास की मूलभूत सुविधाओं का महत्व किसी को समझाने की जरूरत नहीं है। मूलभूत सुविधा जितनी अच्छी होगी, विकास को उतनी गति मिलेगी। इस बजट में इसी गतिशक्ति को मजबूत करने की बात कही है। इस गतिशक्ति के जो सात इंजन है, वह है- सड़क, रेलवे, एयरपोर्ट, पत्तन, सार्वजनिक परिवहन, जलमार्ग और लॉजिस्टीक संरचना। बजट इन्हीं इंजन को दौड़ाकर सभी क्षेत्र के विकास को गति देने का प्रयास करेगा और लक्ष्य प्राप्त करेगा। 

कैसे दौड़ेंगे यह गतिशक्ति इंजिन 

यह नकारा नहीं जा सकता कि गतिशक्ति इंजन अच्छी गति से दौड़ेंगे तो अपने साथ सभी क्षेत्रों को साथ लेंगे और विकास का लक्ष्य जल्दी प्राप्त कर सकेंगे। लेकिन सवाल यहीं से शुरू होता है। गत 70-75 साल से इन इंजनों को चलाने की कोशिश हो रही है। कई प्रयास किए गए, लेकिन वह गति नहीं ले पा रहे है। कहीं-कहीं कुछ इंजन स्टार्ट होते है, कुछ देर चलते भी है लेकिन फिर रुक जाते है। क्योंकि इसमें नए तंत्र ज्ञान के साथ-साथ भारी निवेश की जरूरत होती है और वहीं दिक्कतें आती है। वैसे इस बजट में वित्तमंत्री ने काफी ज़ोर लगाया है और पूंजीगत खर्चे में 35 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ोत्तरी कर 7.5 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। ग्रीन बॉन्ड, ब्लेंडेड फ़ंड और थेमेटिक फंड की इसमें मदद मिलेगी। राज्यों को भी मदद करने का बजट विश्वास देता है तथा उनको ब्याजमुक्त कर्जे लेने में सहूलियत देने की बात भी करता है। इससे कुछ आशा तो बंधती है। 

संसाधन जुटाना जरूरी 

भारतीय अर्थव्यवस्था की जरूरत इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने की और उसमें निवेश करने की है, यह नकारा नहीं जा सकता। लेकिन यह निवेश कहाँ से आयेगा, यह बात समझने की जरूरत है। नीति आयोग के एक नोट के अनुसार आने वाले 5 सालों में 111 लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत है। यह बजट 7.5 लाख करोड़ की बात करता है। निश्चित तौर पर और पूंजी व्यवस्था करनी होगी। सरकार को यह समझना जरूरी है कि सरकारी फिजूल खर्च में कटौती आज की मांग है। रेवन्यू खर्चा कम किए बगैर विकास की बात नहीं हो सकती। रेवन्यू डेफ़िसिट एक आम बात हो गई है। सभी प्रकार के खर्चे कर्जे लेकर करने की बात को नकारा जाना जरूरी है। इस ओर कुछ भी कदम इस बजट में नहीं दिखते और यही इस बजट की बड़ी कमजोरी है। 

फिजूल खर्चे कम हो 

यह जरूरी है कि फिजूल खर्चों को आका जाये और उसे कम करने की कोशिश की जाये। सब्सिडी या प्रत्यक्ष पैसे देने की नीति की समीक्षा जरूरी है और जहाँ वह हकीकत में काम कर रही है, वही तक मर्यादित रखी जाए। देश में करोड़पति सांसद को पेंशन और सैलरी तथा बहुत सारी सुविधा दी जाती है। यह फिजूल खर्च माना जाना चाहिए। और इसको बंद कर देना चाहिए। ऐसे कई खर्च कम करने के तरीके ढूंढने पड़ेंगे और खर्चे कम करने होंगे, तभी बात बनेगी।  

कल्याणकारी नहीं विकास साधने वाली सरकार चाहिए   

हमारी सरकार को दो बातें समझना जरूरी है और वह यह है कि समाजवादी समाज रचना और कल्याणकारी राज्य की कल्पना पीछे छूट चुकी है। 1990 में जन्मा आज 30 साल का युवा है। 2000 में जन्मा मतदाता बन चुका है। इसलिए 1960-80वें दशक के पैसे बाटने वाली तथा कर्जे न वसूलने वाली नाकाम नीतियों को बदलना जरूरी है। आज का युवा विकास चाहता है और अच्छा जीवन जीना चाहता है। यह अच्छी बात है कि सरकार ने विकास का दायरा बढ़ाया है और स्टार्ट-अप जैसे नई उद्यमों को आगे बढ़ाने की नीति अपनाई है। समान संधि के अवसर और सभी मूलभूत सुविधा तथा नए तंत्र ज्ञान का स्वीकार ही बहुत से प्रश्न हल कर देगा। इसलिए सरकार को मूलभूत सुविधा निर्माण करने में अपनी भूमिका बदलनी होगी और अपने बलबूते पर इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने की बात करनी होगी। 

इतिहास गवाह है कि इसमें निजी क्षेत्र या अंतरराष्ट्रीय पूंजी बहुत साथ नहीं देती। इसलिए सरकार की यह भूमिका कि निजी क्षेत्र अपना निवेश बढ़ाए इसलिए जरूरी पूंजी ही सरकार जुटाएगी सराहनीय नहीं है। सरकार को अर्थव्यवस्था में और भारतीय आर्थिक संस्थानों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाते हुए और अपने खर्च कम करते हुए विकास की बात करनी होगी तभी सफलता मिलेगी। और तभी गतिशक्ति इंजन पटरी पर आएंगे, और गति से चलेंगे भी।          

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