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चीन की बिजली गुल, भारत पर कैसे पड़ेगा असर

भारतीय उधमियों के लिए यह मौका एक अवसर हो सकता है। भारत सरकार के साथ मिलकर उद्योग जगत के प्रतिनिधियों को चीन से आयात किये जाने वाले उत्पादों को विशेषज्ञों की मदद से स्थानांतरित या भारत में ही उत्पादन इकाई स्थापित करने की आवश्यकता है। — दुलीचंद कालीरमन

 

चीन इन दिनों बिजली की भारी कटौती से जूझ रहा है और वहां लाखों घर और कारखाने इस मुसीबत का सामना कर रहे हैं। चीन में पावर ब्लैकआउट असामान्य नहीं है लेकिन इस बार कई अन्य वजहों ने चीन के बिजली आपूर्तिकर्ताओं के लिए मुसीबत को और भी बड़ा कर दिया है। बिजली की भारी कटौती का सामना कर रहे चीन के पूर्वोत्तर हिस्से के ’इंडस्ट्रियल हब’ में यह समस्या और भी गंभीर होती जा रही है। चीन विश्व के अधिकांश देशों के लिए मुख्य आपूर्तिकर्ता बना हुआ है इसलिए वहां उत्पादन बंद या कम होने से प्रभाव दुनिया के बाकी हिस्सों पर भी पड़ सकता है।

बीते वर्षों के दौरान चीन ने बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने में संघर्ष किया है जिसकी वजह से चीन के कई प्रांतों में बिजली की कटौती का संकट पैदा हुआ। साल 2021 में और भी कई ऐसे मुद्दे आए जिसने इस समस्या को और भी विकराल बना दिया।कोरोना महामारी के बाद जैसे जैसे पूरी दुनिया एक बार फिर खुलने लगी चीन के सामानों की मांग भी बढ़ने लगी और उन्हें बनाने वाले चीन के कारखानों को इसके लिए अधिक बिजली की ज़रूरत पड़ी।

चीन की सरकार ने 2060 तक देश को कार्बन मुक्त बनाने के लिए जो नियम बनाए है उसकी वजह से कोयले का उत्पादन पहले से धीमा पड़ा है। इसके बावजूद अपनी आधी से अधिक ऊर्जा ज़रूरतों के लिए चीन आज भी कोयले पर ही निर्भर है। जैसे-जैसे बिजली की मांग बढ़ी है, कोयला भी महंगा हो रहा है। चीन की सरकार अपने देश में बिजली की कीमतों को सख्ती के साथ नियंत्रित करती है, ऐसे में कोयले से चलने वाले पावर प्लांट घाटे में काम करने के लिए तैयार नहीं हैं और उनमें से कई ने तो अपने उत्पादन में कटौती कर दी है।

ब्लैकआउट से चीन के कई प्रांतों और इलाक़ों में घरों और व्यवसायों पर असर पड़ा जहाँ बिजली की आपूर्ति सीमित हो गई है। दक्षिण चीन के ग्वांग्डोंग और पूर्वोत्तर चीन के हेइलोंगजियांग, जिलिन और लिआओनिंग में बिजली आपूर्ति में समस्या आ रही है। देश के अन्य हिस्सों में भी पावर-कट होने के समाचार मिल रहे हैं। उद्योगों वाले इलाक़ों में कई कंपनियों से कहा जा रहा है कि वे‘पीक टाइम’ में बिजली के इस्तेमाल में कटौती करें या फिर अपने काम के दिन कम कर दें। इस्पात, एल्युमिनियम, सीमेंट और उर्वरक से जुड़े उद्योगों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ा है जहाँ बिजली की काफ़ी ज़रूरत होती है।

बिजली गुल होने से चीन की अर्थव्यवस्था पर इसका विपरित असर पड़ा है। चीन के आधिकारिक आँकड़े दिखाते हैं कि सितंबर 2021 में चीन के कारखानों में फ़रवरी 2020 के बाद से काम सबसे कम हो गया है जब कोरोना संक्रमण के बाद हुए लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को ठप्प कर दिया था।

बिजली आपूर्ति को लेकर जताई जा रही चिंताओं के बाद अंतरराष्ट्रीय निवेश बैंकों ने अपने अनुमानों में चीन के आर्थिक विकास की दर को घटा दिया है। गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक़ पावरकट की वजह से चीन की औद्योगिक गतिविधि 44 प्रतिशत तक कम हो गई है। बैंक का अनुमान है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था इस वर्ष 7.8 प्रतिशत की दर से विकास करेगी, जबकि पहले उसने इसके 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था।

लेकिन कोयले की आपूर्ति बढ़ाना इतना सहज नहीं है। रूस जहाँ पहले से ही यूरोप के अपने ग्राहकों पर ध्यान दे रहा है, वहीं इंडोनेशिया में भारी बारिश से कोयले की सप्लाई पर असर पड़ा है और पास का देश मंगोलिया सड़क के रास्ते ढुलाई को लेकर पहले से ही जूझ रहा है।

चीन में बिजली संकट गहराने से भारत में कई वस्तुओं के कच्चे माल की आपूर्ति प्रभावित होने की आशंका गहराने लगी है। इनमें मुख्य रूप से विभिन्न रसायन व दवा के कच्चे माल, स्टील, फर्नेस आयल, प्लास्टिक, इलेक्ट्रानिक्स व आटो पार्ट्स शामिल हैं। फिलहाल चीन में उत्पादन प्रभावित होने से भारत में केमिकल्स के दाम में बढ़ोतरी होने लगी है। लेकिन निकट भविष्य में अन्य कच्चे माल की कीमतों में भी बढ़ोतरी का अंदेशा प्रबल होने लगा है।

फेडरेशन आफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गनाइजेशंस (फियो) के अनुसार बिजली संकट की वजह से चीन के 20 प्रांतों में मैन्यूफैक्चोरग प्रभावित है और देश की लगभग 45 फीसद मैन्यूफैक्चरिंग बंद है। अगले 10-15 दिनों के बाद कई कच्चे माल की आपूर्ति पर असर दिख सकता है। केमिकल्स उद्यमियों ने बताया कि चीन के संकट के कारण पिछले 15 दिनों में भारत में केमिकल्स के दाम पांच से 40 फीसद तक बढ़ चुके हैं। हालांकि दवा निर्माताओं का कहना है कि उनके पास अमूमन 45 दिनों के कच्चे माल का स्टाक रहता है। अगर बिजली संकट उसके बाद भी जारी रहता है तो निश्चित रूप से दवा के कच्चे माल की कमी हो सकती है। दवा के कच्चे माल के लिए भारत अब भी चीन पर निर्भर है और 70 प्रतिशत कच्चा माल चीन से ही आता है।

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष जनवरी-अगस्त में पिछले वर्ष समान अवधि के मुकाबले चीन से आटो पार्ट्स के आयात में 70.56 फीसद, इलेक्ट्रिकल्स व संबंधित पार्ट्स में 64.29, प्लास्टिक में 108.99, लौह अयस्क व स्टील में 37.84, फार्मा उत्पाद में 38 और केमिकल्स के आयात में 41 फीसद का वृद्धि हुई है।

चीन में कोयला संकट से उत्पादन के साथ वहां बंदरगाहों पर आवाजाही भी प्रभावित हुई है। इससे भारत में कंटेनर समस्या और गहरा सकती है जिससे लागत बढ़ेगी। निर्यात-आयात से जुड़े व्यापारियों के मुताबिक चीन कमोबेश दुनियाभर को कच्चे माल की सप्लाई करता है। ऐसे में चीन में समस्या उत्पन्न होने से दुनिया के सभी हिस्सों में सप्लाई चेन प्रभावित होगी जिससे कई वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती है।

भारतीय उधमियों के लिए यह मौका एक अवसर हो सकता है। भारत सरकार के साथ मिलकर उद्योग जगत के प्रतिनिधियों को चीन से आयात किये जाने वाले उत्पादों को विशेषज्ञों की मदद से स्थानांतरित या भारत में ही उत्पादन इकाई स्थापित करने की आवश्यकता है। इसकी राह में आने वाली सभी बाधाओं को त्वरित गति से दूर करने की आवश्यकता है, ताकि रणनीतिक तौर पर भी भारत को आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल कर सके।  

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