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कोरोना संकट और बढ़ती वैश्विक चुनौतियाँ 

बढ़ते राजनितिक विरोध, विनिर्माण क्षेत्रा की चुनौतियों और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं ने विश्व राजनीति में चीन की केंद्रीय भूमिका की राह को और कठिन किया है, साथ ही उसकी नव-साम्राज्यवादी नीतियों को भी उजागर किया है। — अभिषेक प्रताप सिंह

 

पिछले एक वर्ष में कोरोना संकट के कारण अर्थव्यवस्था और व्यापार के साथ-साथ सामाजिक, राजनीति, शैक्षिक आदि क्षेत्रों में काफी उतार-चढ़ाव रहा है। खुद को समायोजित करना पड़ा है। वैश्विक स्तर पर विषाल आर्थिक मंदी की चुनौती, बढ़ती वैश्विक अस्थिरता और मानव जीवन की सुरक्षा का संकट इसकी प्रमुख चुनातियाँ हैं। तमाम अनुमानों के बावजूद इससे लड़ने में हमारी अक्षमता लगातार सामने आ रही है. निसंदेह, इस संकट से सही तरीके से निपटने वाले देश बदलती वैश्विक राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाएगें। साथ ही आने वाले वर्षों में हमें ‘सक्षम सामूहिक शोध और प्रभावी वैश्विक विकास’ की अवधारणा को मज़बूत भी करना होगा।

गहराता आर्थिक संकट 

आज ऐसा कोई भी उद्योग या अर्थव्यवस्था का क्षेत्र नहीं है जो इससे से प्रभावित न हुआ हो। यह संकट वैश्वीकरण की पूरी आर्थिक और राजनितिक प्रक्रिया पर भारी पड़ रहा है। आई.एल.ओ. के एक अध्ययन के अनुसार कोरोना वायरस की वजह से दुनियाभर में ढाई करोड़ नौकरियां ख़तरे में हैं, साथ ही गिरती वैश्विक आर्थिक स्थितयों ने नए रोजगार और अवसरों की सम्भावना पर भी प्रश्न चिन्ह लगा रखा है। आईएमएफ का अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था 2020 में 4.4 प्रतिशत कम हो जाएगी। अफ्रीका के कई कम आय वाले देशों में जीडीपी का लगभग बीस प्रतिशत यूरोपी देशों से प्रेषण आय के रूप में आता है, जो इससे सीधे प्रभावित हुआ है। एशियाई वित्त और आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो (एबीएफईआर) के अनुसार, 2008 की वित्तीय संकट की तुलना में कई बढ़ती एशियाई अर्थव्यवस्थाएं कोरोना संकट से अधिक प्रभावित हैं। दक्षिण एषिया और दक्षिण पूर्व एषिया की अर्थव्यवस्था जो वैश्विक पर्यटन पर अधिक निर्भर हैं, यात्रा प्रतिबंधों के कारण संकट में है। चीन और अमरीका जैसे बड़े देश और मज़बूत अर्थव्यवस्थाएं इसके सामने लाचार हो गए हैं। एशियाई निर्यातक देश कमज़ोर वैश्विक मांग का सामना कर रहे हैं।  

इस परिदृश्य को देखते हुए आर्थिक स्तर पर  बेरोजगारी, गरीबी और आय असमानता के बड़े पैमाने पर बढ़ने की सम्भावना हैं। अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना, संरक्षणवादी नीतियां और बाधित आपूर्ति श्रृंखलाएं, दुनिया भर में खाद्य कीमतों में वृद्धि का कारण बन सकती हैं। इसीलिए वैश्विक स्तर पर बेहतर समन्वय और आपसी सहयोग द्वारा कोरोना के आर्थिक असर को सीमित किया जाना चाहिए। गहराते आर्थिक संकट और आपसी विश्वास के अभाव में विश्व व्यवस्था को संगठित रखना  एक प्रमुख चुनौती होगी।  

बदतर वैश्विक परिदृश्य

कोरोना महामारी ने ग्लोबल आर्डर के सामने भी नयी चुनातियाँ खड़ी कर दी हैं, जिसके वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य पर दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे। इस संकट ने वैश्विक राजनीति में अमेरका की केंद्रीय भूमिका को कमतर किया है। महामारी के बढ़ते प्रकोप ने विकसित देश के रूप में जहाँ एक ओर उसकी स्वास्थ्य सेवाओं की सीमाओं को उजागर किया है, वहीँ दूसरी और इसने यूरोपीय देशों और अमरीका के बीच के आर्थिक गठजोड़ को भी प्रभावित किया है। जिसका फायदा रूस और चीन को यूरोप में नए व्यापारिक हितों को साधने में होगा। अन्य कमज़ोर देशों को सहायता प्रदान करने के सन्दर्भ में भी  अमेरिकी कूटनीति ने निराशाजनक प्रदर्शन किया है। इटली में गहराते कोरोना संकट के बीच यूरोपियन यूनियन की सुस्ती ने एक क्षेत्रीय संगठक के रूप उसकी साख और भविष्य की भूमिका पर संदेह खड़ा कर दिया है। कोरोना संकट के साए में अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते आर्थिक और राजनितिक संकट के वैश्विक राजनीति पर गंभीर प्रभाव होने की आषंका है। 

बढ़ते राजनितिक विरोध, विनिर्माण क्षेत्र की चुनौतियाँ और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं ने विश्व राजनीति मे चीन की केंद्रीय भूमिका की राह को और कठिन किया है, साथ ही उसकी नव-साम्राज्यवादी नीतियों को भी उजागर किया है।  इस संकट के बीच में चीन की आक्रामक विदेष नीति ने एषिया में क्षेत्रीय स्थिरता के विचार को और कमज़ोर किया।  

इसके अलावा, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) जैसे वैश्विक संस्थानों की घटती विश्वनीयता और अप्रभावी भूमिका ने भी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आस्थिर करने में सहयोग किया है।  

इस परिदृष्य में, बहुपक्षीयता के विचार को आगे बढ़ाते हुए भारत ने परस्पर सहयोग, आपसी विश्वास और हित्त समंजस्यीकरण के आधार पर वैश्विक रिकवरी की इस प्रक्रिया के लिए एक सषक्त एजेंडा और मजबूत नेतृत्व प्रदान करने के दृढ़ संकल्प को प्रदर्षित करता है। ’वैक्सीन मैत्री’ की मानवीय कूटनीति द्वारा भारत ने सत्तर से अधिक देषों और स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना का टीका पहुचायां है।  हाल ही में संपन्न जी-20 बैठक और इंडो-पैसिफिक समूह देषों की वार्ता के एजेंडा में उत्तर-कोरोना काल में भारत की बढ़ती भूमिका को रेखांकित किया है। 

निष्कर्ष- इस बदलते वैश्विक परिदृष्य में मूल प्रष्नः ये हैं कि वैश्विक आर्थिक मंदी कब तक चलेगी, क्या अमेरिका और चीन के बीच टकराव बढ़ेगा, आपदा से यूरोपीय संघ कितना प्रभवित होगा, वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था का पुनर्निर्माण कैसे होगा और इंडो-पैसिफिक सहयोग कितना प्रभावी होगा। इन प्रष्नों के अलोक में कोरोना संकट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ’विघटनकारी कारक’ बना हुआ है, जिससे वैश्विक व्यवस्था में ’अस्थिरता और प्रतियोगिता’ के और ज्यादा बढ़ने की प्रबल सम्भावना है।        ु  

लेखक देशबंधु कॉलेज, डीयु में अध्यापक हैं।

साभारः राष्ट्रीय सहारा

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