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सर्वसुलभ हो कोरोना वायरस का टीका

इस वैश्विक संकट के समय में हस्ताक्षरकर्ता देशों को सर्वसम्मति से टीके को सर्वसुलभ बनाने के लिए एक साथ आना चाहिए, ताकि हस्ताक्षरकर्ता देश अपने-अपने देशों में आवश्यक कानूनों को बना या संशोधित कर इसे कानूनी रूप से इसे संभव बना सकें। — डॉ. राजीव उपाध्याय

 

कोरोना वायरस से दुनिया भर में 18 करोड़ से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं तथा 39 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। कोरोना वायरस महामारी से संबंधित ये आंकड़े सरकारों द्वारा प्रकाशित आंकड़े हैं। इस बात की बहुत अधिक संभावना व्यक्त की जा रही है कि कोरोना वायरस से संक्रमित लाखों लोगों के आंकड़ों को सरकारी आंकड़ों में अन्यान्य कारणों से स्थान ही नहीं मिल पाया होगा। इस महामारी के कारण लाखों लोग बिना परिवार के रह गए हैं और हजारों बच्चे अनाथ हो गए हैं। दुनिया भर में करोड़ों लोग अपनी आजीविका खो चुके हैं और गरीबी के दुष्चक्र में फंसकर दोनों समय के भोजन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। महामारी के कारण विश्व अर्थव्यवस्था अधर में है और भविष्य को लेकर चारों ओर केवल अनिश्चितता ही है। यह सब तब हो रहा है जब सरकारें, गैर-सरकारी संगठन और साथ ही दुनिया भर के नागरिक महामारी के समय में अधिक से अधिक लोगों को अधिकतम सहायता प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं। आज जब पूरे विश्व में टीके की 300 करोड़ से अधिक खुराकें दी जा चुकी हैं, उस समय भी हर दिन लगभग 3.5 लाख से अधिक लोग इस वायरस से संक्रमित हो रहे हैं और 7 हजार से अधिक लोग इस वायरस के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं।

भारत की परिस्थितियाँ भी पूरे विश्व से भिन्न नहीं है। कोरोना की दूसरी लहर के समय भारत में स्थिति हृदय विदारक रही हैं। चिकित्सालयों में रोगियों के उपचार से लेकर मंडियों में ऑक्सीजन, दवा व अन्य आवश्यक वस्तु भी उपलब्ध नहीं होने के कारण पूरी स्वास्थ्य प्रणाली पूरी तरह से चरमरा गई थी। यह सब भारत में तब हुआ जब भारत ने इस घातक वायरस के खिलाफ युद्ध लगभग जीत लिया था। ब्राजील, अर्जेंटीना और कोलंबिया आदि देश अभी भी इस वायरस से संघर्ष कर रहे हैं। पहली लहर में पूरे यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य विकसित देश ऐसी ही भयावह परिस्थितियों से दो चार हुए हैं, जहाँ श्मशान घाटों व कब्रिस्तानों में मृतकों को उचित अन्तिम संस्कार तक नहीं मिल पाया।

वायरस के उच्च संक्रामक प्रकृति एवं दुनिया पर व्यापक प्रभावों के साथ-साथ इसकी अंतर्निहित प्रकृति को बदलने की क्षमता को देखते हुए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि मानवता एक गंभीर संकट के कालखण्ड की साक्षी है। कोरोना वायरस के भयानक प्रभावों के परिणामस्वरूप आज संपूर्ण मानव जाति संकट में है और इस संकट का समाधान कोरोना वायरस के टीके के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित अनेक चिकित्साशास्त्र, विशेषज्ञों की अब स्पष्ट राय है कि इस महामारी का सिर्फ टीका ही एकमात्र समाधान है। कम से कम अब तक के अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि अभी ऐसी कोई दवा नहीं है जो कोरोना वायरस के विरुद्ध एक ढाल प्रदान कर सके।

अब तक दुनिया भर के विभिन्न देश कोरोना वायरस के दर्जनों टीका विकसित करने में सफल रहे हैं। कई दवा कंपनियां इन टीकां की पर्याप्त खुराक बनाने के लिए दिन-रात कार्य कर रही हैं। परन्तु इन टीकों की मांग आपूर्ति से कहीं बहुत अधिक है और हो भी क्यों न, विश्व को टीका उपलब्ध कराने का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता भारत भी पिछले कुछ हफ्तों में अपने लोगों के लिए पर्याप्त टीका की आपूर्ति करने में असमर्थ रहा है। डब्ल्यूएचओ और तथाकथित वैक्सीन कूटनीति के बहुत प्रयासों के बाद भी दुनिया के कई देशों में टीकाकरण का स्तर एक प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाया है। इस भयावह स्थिति में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि विश्व के हर नागरिक को ये टीके न्यूनतम संभव या बिना किसी लागत के बहुतायत में उपलब्ध हों। विश्व को आज यह समझना होगा कि वर्तमान में टीकों पर विश्व के किसी भी भाग में खर्च किया गया पैसा, खर्च नहीं वरन निवेश है। इस समय आवश्यक है कि संपूर्ण विश्व टीकों के विषय में एकजुट हो जाए।

अब तक के वैश्विक अनुभवों के आधार पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि पूरे विश्व को टीकों की वर्तमान निर्माण क्षमता के साथ टीका लगाने में सालों लगेंगे, जो जोखिम भरा है। यह एक ऐसा जोखिम है जिसे दुनिया इस समय बिल्कुल भी सहन नहीं कर सकती है। इसलिए इस समस्या का केवल एक ही समाधान है कि टीके से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकार और पेटेंट की चिंता किए बिना आवश्यक तकनीक और ज्ञान विश्व के सभी व संभावित वैक्सीन निर्माता को बिना किसी मूल्य या न्यूनतम संभव लागत पर हस्तांतरित किया जाए। यह सच है कि इसे हकीकत में बदलने के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार और पेटेंट से संबंधित कानून सबसे बड़ी बाधा हैं। डब्ल्यूटीओ ट्रिप्स के अनुसार, बौद्धिक संपदा अधिकारों के साथ-साथ पेटेंट अधिकारों को राष्ट्र राज्यों द्वारा संरक्षित किया जाता है। लेकिन इस वैश्विक संकट के समय में हस्ताक्षरकर्ता देशों को सर्वसम्मति से टीके को सर्वसुलभ बनाने के लिए एक साथ आना चाहिए, ताकि हस्ताक्षरकर्ता देश अपने-अपने देशों में आवश्यक कानूनों को बना या संशोधित कर इसे कानूनी रूप से इसे संभव बना सकें।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि वैक्सीन विकास प्रक्रिया में शामिल कंपनियों को किसी भी बीमारी या चिकित्सा स्थिति के लिए वैक्सीन या दवा का निर्माण करने में एक बहुत बड़ी राशि का निवेश करना पड़ता है और उस लागत को वसूल करने के लिए कंपनियां या तो खुद टीके का निर्माण करके लाभ पर अंतिम उपयोगकर्ता को बेचती हैं या अन्य कंपनियों को रॉयल्टी के बदले टीके बनाने का अधिकार देती हैं। यह प्रथा सामान्य दिनों में ठीक काम करती है, परन्तु वर्तमान संकट में यह प्रथा कंपनियों के लिए टीकों के निर्माण और वितरण को एक निषेधात्मक और महंगी प्रक्रिया बनाती है। इस समय सरकारें और अंतर्राष्ट्रीय निकाय सर्वसम्मति से संभावित निर्माताओं सहित सभी वैक्सीन निर्माताओं के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी और ज्ञान तक सार्वभौमिक पहुंच को सुनिश्चित करते हुए दवा कंपनियों के लागत और मामूली लाभ के भरपाई हेतु नियमों और शर्तों पर सहमत हो सकते हैं। वैक्सीन निर्माण की लागत राष्ट्र राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा वहन की जा सकता है। हालाँकि, इस प्रक्रिया को यह सुनिश्चित करना होगा कि हर एक इकाई (अनुसंधान के साथ-साथ निर्माण निकाय) के हितों का ध्यान रखा जाए और कोई भी निर्माण कंपनी अंतिम उपभोक्ताओं का शोषण करने में सक्षम न हो। इस हेतु राष्ट्रीय सरकारें अपने सक्षम क्रियान्वयन द्वारा यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि देश में अनुसंधान और विनिर्माण के वातावरण से समझौता न हो। इसके अलावा सरकारों को निर्माताओं से टीका की खरीद केंद्रीय रूप से सीधे करनी होगी ताकि एक ही देश के विभिन्न बाजारों में मूल्य निर्धारण में कोई असमानता न रहे।

लेखक श्री अरविन्द महाविद्यालय (सांध्य), दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक है।

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