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कोविड-19 और डगमगाति भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास जारी रहने से अर्थव्यवस्था मजबूती से खड़ी होगी। उसके लिए सरकार को स्वदेशी को पूरी तरह स्वीकारना होगा और अपनी नीतियों का रुख बदलना होगा। इसमें सामान्य नागरिकों का सहयोग भी महत्वपूर्ण रहेगा। — अनिल जवलेकर व  प्रतिमा अरोरा

कोरोना महामारी ने फिलहाल दुनिया को घेर रखा है। दुनिया भर में करोड़ां लोग चपेट में आए है और लाखां ने अपनी जान गवाई है। भारत में भी कोरोना का कहर जारी है और रोज इसके संक्रमितों के आंकडें बढ़ रहे है। हालांकि बाकी देशों के मुकाबले भारत में कोरोना की वजह से मौतें कम हुई है। कहा जा रहा है कि हमारे यहाँ कोरोना से बाधित ज्यादातर लोग ठीक हो रहे है। वैसे दुनिया में ऐसी महामारी पहली बार आयी है ऐसी बात नहीं है। मानव जाति पर आने वाली महामारी कोई अकेला संकट नहीं है। ऐसे कई संकट आए है और मानव जाति उससे फिर से उभरी है और विकसित हुई है। भारत को तो महामारी ने भी नुकसान पहुंचाया है और यहा बाहर से आए हुए लूटेरों ने भी। कई शतकों तक भारत लुटता रहा है और उभरता रहा है। कोरोना संकट से भी उभरेगा। बस थोड़ा धीरज रखना होगा और समय का इंतजार करना होगा। 

कोरोना का संकट गहरा है 

भारत में स्वतंत्रता के बाद जन्मी पीढ़ी ने शायद ऐसा संकट कभी नहीं देखा होगा। हाँ अकाल और बाढ़ के संकटों की खबरे जरूर सुनी होगी या कुछ ने इसका सामना भी किया होगा। भारत की गरीबी के बारे में भी सुना-पढ़ा होगा या कुछ ने इसको सहन भी किया होगा। वैसे कोरोना है तो एक बीमारी, लेकिन इसका असर बीमार पड़ने, ठीक होने या मौत होने तक सीमित नहीं है। इसने पूरी समाज व्यवस्था को ही अपने शिकंजे में लिया है और पूरी मानव जाति को असहाय कर दिया है। ऐसा मानव जाति के इतिहास में पहली बार हुआ है कि पूरी व्यवस्था ठप्प हो गई हो। बाहर सब कुछ बंद पड़ा है और सारे लोग घर में बैठे हुए है। समाज ने पहले कभी नहीं देखी, ऐसी घबराहट दुनिया भर में दिखाई दे रही है। इसका असर समाज के हर घटक, हर व्यक्ति और हर संस्था पर हुआ है। अर्थव्यवस्था तो समाज व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है, इसलिए कोरोना का इस पर होने वाला असर पूरी समाज व्यवस्था को संकट में डालता नजर आ रहा है। अब जबकि  लॉकडाउन में ढील दी जा रही है तब भी अर्थव्यवस्था पूरी तरह खुली नहीं है और इसके सारे घटक काम करते नजर नहीं आ रहे है। एक बड़ा सेक्टर होटल और टूरिज्म तो अब भी बंद ही है। लोग भी पहले जैसा बाहर आकर सामान्य व्यवहार नहीं कर रहे है। इसलिए कोरोना का संकट अभी भी बना हुआ है। 

अर्थव्यवस्था का डगमगाना स्वाभाविक है

कोरोना का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर हुआ है और हो रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं है। जब सबकुछ बंद है और अर्थव्यवस्था का कोई भी घटक ढंग से काम नहीं कर रहा हो तो विकास दर बढ़ेगा या जीडीपी बढ़ेगा ऐसा मानना अपने आपसे धोखा करना होगा। कोरोना ने कारखानों/व्यापार को ही बंद नहीं किया है, बल्कि लोगों को घर गृहस्थी के काम भी घर पर ही करने को मजबूर किया है। नतीजन रोजगार कम होना भी स्वाभाविक ही माना जाएगा। लॉकडाउन की स्थिति से व्यवस्था धीरे-धीरे समान्य होती जा रही है और व्यापार शुरू होने लगे हैं। फिर भी लोगों के मन में कोरोना का भय बरकरार है और अभी भी लोग बाहर आकर सामान्य रूप से व्यवहार नहीं कर रहे है। इसलिए जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे सामान्य होती जाएगी, वैसे-वैसे स्थिति में भी सुधार होगा। इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार सब भगवान भरोसे छोड़ दे। सरकार को अपनी पूरी ताकत और पूरी साधन सामग्री को अर्थव्यवस्था सामान्य बनाने मे लगा देनी चाहिए।  

सरकार की कोशिश सही दिशा में 

यह बात गौर करने लायक है कि सरकार अपनी तरफ से कोशिश करती नजर आ रही है। शुरु से ही सरकार ने गरीब वर्ग को आर्थिक सहायता तथा राशन और गॅस सिलिंडर की पूर्ति करने की व्यवस्था कर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। किसानों को भी इसी तरह की आर्थिक सहायता दी गई है। इसी तरह कोरोना से प्रभावित अर्थव्यवस्था के हर घटक को सरकार ने आर्थिक मदद करने की कोशिश की है। 20 लाख करोर रुपए के पैकेज की घोषणा इसका उदाहरण कहा जा सकता है। जिसमें मुख्यतः जरूरतमंदों को आसान शर्तो पर कर्ज मुहैया कराना, कर्जे वापस करने में मौहल्लत या ब्याज में राहत जैसी बाते है। यह बात सही है कि बहुत सारी घोषित आर्थिक सहायता वित्तीय संस्थाओं द्वारा की जानी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी वित्तीय व्यवस्था में नगद की कमी न हो ऐसी व्यवस्था की है। सरकार के यह सारे कदम सराहनीय कहे जा सकते है। 

सरकार की आर्थिक सहायता घोषणा काफी नहीं 

सरकार को यह बात समझनी होगी की बंद पड़े उद्योग सिर्फ आर्थिक सहायता घोषणा मात्र से शुरू नहीं होगें। इस आर्थिक सहायता के भी बहुत सारे पहलू है और जिसमें अभी भी विचार करने की जरूरत है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि वित्तीय संस्थाओं की माली हालत भी अच्छी नहीं है। संस्थाएं अभी भी सहायता देते समय  उद्यमों की व्यवहार्य होने की गुणवत्ता या स्थिति (टपंइपसपजल) तथा कर्ज वापस करने की क्षमता (त्मचंलउमदज बंचंबपजल) जैसी बातों पर जोर दे रही है जिसकी वजह से बहुत सारे उद्यम कर्जा न लेने की स्थिति में है। वित्तीय संस्था, उद्यमी, कामगार, व्यापारी, किसान इत्यादि के सहयोग के बिना पैकेज को अमल में नहीं लाया जा सकता। इसलिए यह जरूरी है कि सरकार को सहायता पैकेज हकीकत में अमल में आए, यह भी देखना होगा और वित्तीय संस्थाआें के साथ मिलकर समस्याओं को हल करना होगा। 

‘आत्मनिर्भर भारत’ एक सही दिशा

कोरोना के इस बड़े संकट में सरकार की एक समझ की सराहना करनी होगी कि उसने आत्मनिर्भर भारत की बात की है और उस दिशा में कदम उठाना शुरू किया है। आत्मनिर्भरता की नीति चाहे मजबूरी में अपनायी हो लेकिन वह महत्वपूर्ण है। पूरे विश्व में कोरोना की वजह से वैश्वीकरण पिछड़ गया है और अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाइ चैन) गडबड़ा गई है। ऐसे समय में अपनी साधन सामग्री के साथ देश को स्वयंपूर्ण करना जरूरी हो गया है। भारत भौगोलिक तथा लोकसंख्या की दृष्टि से बड़ा देश है। यहा की जनसंख्या और उनकी क्षमता भारत को स्वयंपूर्ण बनाने में सक्षम है। 

कोरोना के समय में भारत के स्वयंसेवी संथाओं ने और बहुत से महिला बचत समूहों ने जो भूमिका निभाई है वह सरकार को अंतर्गत आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाइ चैन) कायम रखने में बहुत बड़ी सहायक साबित हुई है। इसको आगे बढ़ाते हुए भारत को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास जारी रहने से अर्थव्यवस्था मजबूती से खड़ी होगी। उसके लिए सरकार को स्वदेशी को पूरी तरह स्वीकारना होगा और अपनी नीतियों का रुख बदलना होगा। इसमें सामान्य नागरिकों का सहयोग भी महत्वपूर्ण रहेगा।   

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अनिल जवलेकर :- सदस्य एकात्म प्रबोध मंडल (एकात्म विकास समिति ) मुंबई,
निवृत्त्त अधिकारी - नाबार्ड, 
प्रबंध समिति सदस्य - उत्तन कृषी संशोधन संस्था, केशवसृष्टी, उत्तन, भायंदर, ठाणे महाराष्ट्र 
'India's Perspective Policy on Agriculture' एवं 'Droughts and way Forward' इन पुस्तक के सहाय्यक संपादक , 
स्वदेशी जागरण मंच की 'स्वदेशी पत्रिका' (इंग्रजी व हिन्दी) लिखते रहे हैं। 

प्रतिमा अरोरा : Chartared Accountant

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