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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के आह्वान पर हम हिंदी को राजकाज व्यवहार एवं प्रयोग की भाषा बनाते हैं तो दुनिया में प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही हिंदी अपने देश में भी गौरवान्वित होगी और हमारा सांस्कृतिक गुलामी से मुक्ति का एक नया इतिहास भी होगा। — डॉ. पराक्रम सिंह

 

भारतीय भाषाओं को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा व्यक्त की गई प्रतिबद्धताओं के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सशक्त भारत निर्माण के लिए भारतीय भाषाओं के प्रयोग की प्रासंगिकता बताते हुए कहा कि जब अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले राज्यों के लोग आपस में बातचीत करें तो उन्हें अंग्रेजी की बजाए हिंदी को या देश की ही किसी अन्य भाषा को इसका माध्यम बनाना चाहिए। निश्चित ही बातचीत एवं व्यवहार की भाषा के रूप में हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं का प्रयोग करने से राष्ट्रीय विकास के नए क्षितिज खुलेंगे। नवाचार के नए-नए आयाम भरेंगे। भारतीय भाषाओं में बातचीत व्यवहार चिंतन एवं शिक्षण से सृजनात्मकता एवं सब पहचान की दिशाएं उद्घाटित होंगी। वास्तव में 100 भाषाएं विचारों, विचारधाराओं, कल्पना और अपने व्यापक सामाजिक राष्ट्रीय दर्शन की अस्पष्टता का माध्यम बनती हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित करते हुए मातृभाषा एवं क्षेत्रीय भाषाओं को प्रतिस्थापित करने का अनूठा उपक्रम किया जा रहा है, इसको लेकर देश में मातृभाषा एवं क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने एवं इन्हीं भाषाओं में उच्च शिक्षा दिए जाने एवं राजकाज में उनका उपयोग किए जाने की स्थितियां निर्मित होने लगी है जो कि एक शुभ संकेत है। आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए स्वभाषा का सम्मान अनूठा उत्तम है। अब हिंदी को राजभाषा ही नहीं, बल्कि राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किए जाने की अपेक्षा है।

एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि हमारे जीवन मूल्य संस्कृति और संस्कारों की सच्ची संभाग सम प्रेषक और परिचयक भी है। बहुत सरल सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः तीसरी सर्वाधिक प्रयोग में आने वाली सबसे सशक्त वैज्ञानिक भाषा है, जो हमारे पारंपरिक ज्ञान प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिन्दी को बहुत से लोग राष्ट्र भाषा के रूप में देखते हैं। राष्ट्रभाषा से अभिप्राय है किसी राष्ट्र की सर्वमान्य भाषा। क्या हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है? यदि आप देखें तो हिंदी का व्यवहार संपूर्ण भारतवर्ष में होता है, लेकिन हिंदी भाषा को भारतीय संविधान में राष्ट्रभाषा नहीं कहा गया है। क्योंकि भारतवर्ष सांस्कृतिक भौगोलिक और भाषाई दृष्टि से विविधताओं का देश है। इस राष्ट्र में किसी एक भाषा का बहुमत से सर्वमान्य होना निश्चित नहीं है। इसलिए भारतीय संविधान में देश की चुनिंदा भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में रखा गया है। शुरू में इनकी संख्या 16 थी जो आज बढ़कर 22 हो गई है। यह सब भाषाएं भारत की अधिकृत भाषाएं हैं, जिनमें भारत देश की सरकारों का काम होता है। भारतीय मुद्रा नोट पर 16 भाषाओं में नोट का मूल्य अंकित रहता है और भारत सरकार इन सभी भाषाओं के विकास के लिए संविधान के अनुसार प्रतिबद्ध है।

वर्तमान समय में हिंदी एवं मातृ भाषाओं का महत्व एवं उपयोग अधिक प्रासंगिक हुआ है, क्योंकि सर्वतो मुखी योग्यता की अभिवृद्धि एवं स्व की पहचान के बिना समाज जीवन के साथ चलना और अपने आपको टिकाए रखना अत्यंत कठिन होता है। नई शिक्षा नीति ने इस बात को गंभीरता से स्वीकारा है। निश्चित ही यह भारत को एक ज्ञान के समाज में रूपांतरित करने वाली सफल योजना साबित होगी। हमारे पास आज दुनिया तक पहुंचने का शानदार सुअवसर है जो अब से पहले शायद कभी नहीं था। हमारे पास आज ऐसा नेतृत्व है जो इन तमाम बदलावों को साकार करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है। हमें सिर्फ सकारात्मक प्रयासों के साथ सही दिशा में बढ़ने एवं मातृ भाषा है उस व भाषा में शिक्षण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। हमारा देश दुनिया का सबसे युवा देश है। अपने नौजवानों को नए भाषाई कौशलों से और नए ज्ञान से लैस कर हम दुनिया में परचम लहरा सकते हैं। भारत सुपर पावर बनने के अपने सपने को साकार कर सकता है। इस महान उद्देश्य को पाने की दिशा में विज्ञान तकनीक और अकादमी क्षेत्रों में नवाचार और अनुसंधान करने के अभियान को तीव्रता प्रदान करने के साथ मातृ भाषाओं एवं हिंदी में शिक्षण एवं राज्य कार्य में उपयोग को प्राथमिकता देना होगा। हिंदी एवं मातृ भाषाओं के प्रति प्रतिबद्धता के साथ नए भारत के निर्माण का आधार प्रस्तुत करना होगा। इससे नवसृजन और नवाचारों के जरिए समाज एवं राष्ट्र में नए प्रतिमान उभरेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में हिंदी सहित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को सरकारी कामकाज, स्कूलों, कालेजों तकनीकी शिक्षा में प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए। इस दिशा में वर्तमान सरकार के प्रयास उल्लेखनीय व सराहनीय है लेकिन इनमें तीव्र गति दिए जाने की अपेक्षा है, क्योंकि इस दृष्टि से महात्मा गांधी की अंतरवेदना को समझना होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि भाषा संबंधी आवश्यक परिवर्तन अर्थात हिंदी को लागू करने में एक दिन का विलंब भी सांस्कृतिक हानि होगी। मेरा तर्क है कि जिस प्रकार हमने अंग्रेज लुटेरों के राजनैतिक शासन को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया उसी प्रकार सांस्कृतिक लुटेरे रूपी अंग्रेजी को भी तत्काल निर्वासित करें। लगभग 75 वर्षों के आजाद भारत में भी पूर्व की सरकारों की उपेक्षा पूर्व नीतियों के कारण हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं को उनका गरिमापूर्ण स्थान नहीं मिल सका। यह विडंबना पूर्ण और हमारी राष्ट्रीयता पर एक गंभीर प्रश्नचिन्ह है। निज की भाषा को नकारना अपनी संस्कृति को विस्मृत करने जैसा है, जिसे अपनी भाषा पर गौरव का बोध नहीं होता वह निश्चित ही अपनी जड़ों से कट जाता है और जो जड़ों से कट जाता है उसका जल्द ही अंत हो जाता है।

ऐसे में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के आह्वान पर हम हिंदी को राजकाज व्यवहार एवं प्रयोग की भाषा बनाते हैं तो दुनिया में प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही हिंदी अपने देश में भी गौरवान्वित होगी और हमारा सांस्कृतिक गुलामी से मुक्ति का एक नया इतिहास भी होगा। 

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